राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-2315/2014
(जिला उपभोक्ता फोरम, सहारनपुर द्वारा परिवाद संख्या 58/12 में पारित निर्णय दिनांक 29.09.14 के विरूद्ध)
मै0 फूलचन्द धर्मदास मोरगंज, सहारनपुर द्वारा प्रोप्राइटर श्री सतीश कुमार
पुत्र श्री धर्मदास निवासी मोहल्ला-मोरगंज, सहारनपुर(उ0प्र0)।
.......अपीलार्थी/परिवादी
बनाम्
1. प्रबंधक, सेन्ट्रल बैंक आफ इंडिया, शहीदगंज, सहारनपुर हाल स्थित
जोगियान पुल, सहारनपुर।
2. सेन्ट्रल बैंक आफ इंडिया, शहीदगंज, सहारनपुर हाल स्थित
जोगियान पुल, सहारनपुर।
3. क्षेत्रीय प्रबंधक, सेन्ट्रल बैंक आफ इंडिया, शहीदगंज, सहारनपुर हाल स्थित
जोगियान पुल, सहारनपुर।
4. आंचलिक प्रबंधक, सेन्ट्रल बैंक आफ इंडिया, आंचलिक कार्यालय, 37/2/4,
संघ पैलेस, आगरा, उ0प्र0। .........प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण
समक्ष:-
1. मा0 श्री राज कमल गुप्ता, पीठासीन सदस्य।
2. मा0 श्री महेश चन्द, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री एस0पी0 पाण्डेय, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :श्री जफर अजीज, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक 04.10.2017
मा0 श्री राज कमल गुप्ता, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम सहारनपुर द्वारा परिवाद संख्या 58/12 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दि. 29.04.2014 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई है। जिला मंच ने निम्न आदेश पारित किया है:-
'' परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को आदेश दिया जाता है कि वह इस निर्णय की तिथि से एक माह के अंदर परिवादी को सेवा में कमी के मद में अंकन रू. 8000/- एवं वाद व्यय के मद में अंकन रू. 3000/- अदा करें। उपरोक्त अवधि में अदायगी न करने पर इस निर्णय की तिथि से अंतिम अदायगी की तिथि तक विपक्षीगण द्वारा परिवादी को अंकन रू. 8000/- की राशि पर 09 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज भी देय होगा।''
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संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादी/अपीलार्थी की फर्म का एक ओवर ड्राफ्ट खाता विपक्षी संख्या 2 सेन्ट्रल बैंक आफ इंडिया में था। परिवादी के अनुसार उसने दि. 31.03.09 के उपरांत अपनी उक्त खाते की सीमा का कोई नवीनीकरण नहीं कराया और खाता बंद कराने के संबंध में ओवर ड्राफ्ट लिमिट की रकम को उक्त खाते में जमा कराना प्रारंभ किया। परिवादी दि. 28.03.11 को जब उक्त खाते को बंद कराने के लिए बैंक में गया तो उसे ज्ञात हुआ कि बैंक ने परिवादी के खाते से कुछ खर्चे अनावश्यक रूप से डेबिट किए हुए हैं और जब बैंक ने खाते का विवरण उन्हें उपलब्ध कराया तो उसे ज्ञात हुआ कि फर्म के व्यवसाय से संबंधित एक मै0 नेचुरल हर्ब्स एण्ड फार्मायूलेशन 9-राजपुर रोड, देहारादून ने परिवादी को 3 चेक अलग-अलग राशियों को दिए थे, जिन्हें दि. 23.09.09, 01.10.09 व 23.11.09 को जमा कराया गया था। बैंक ने इस धनराशि को उसके खाते में क्रेडिट कर दिया। इस प्रकार चेक निर्गत करने वाली फर्म से परिवादी का कोई वास्ता नहीं रह गया था, परन्तु विवरण को देखने से पता लगा कि विपक्षी बैंक द्वारा दि. 02.02.11 में परिवादी के हक में जारी तीनों चेकों की धनराशि उसको बिना सूचित किए परिवादी के खाते से डेबिट कर दी। विपक्षी बैंक ने यह अवगत कराया कि यह धनराशि डेबिट की गई, क्योंकि उक्त चेकों का भुगतान कलेक्शन होकर नहीं आया है, जबकि इस संबंध में बैंक द्वारा परिवादी को कोई जानकारी नही दी गई और पूछने पर यह अवगत कराया कि तीनों चेक बैंक के पास नहीं हैं कहीं खो गए हैं। परिवादी के अनुसार बैंक द्वारा परिवादी को उक्त चेकों की धनराशि डेबिट किए जाने के समय जानकारी न देना व चेकों को निर्धारित समयावधि में वापस न किया जाना सेवाओं में कमी को दर्शाता है। यदि उसे समय से सूचित कर दिया जाता तो वह मै0 नेचुरल हर्ब्स से अपना भुगतान नियमानुसार प्राप्त करने हेतु समुचित कार्यवाही करता। परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में यह अनुतोष चाहा कि उपरोक्त तीनों चेकों की धनराशि मय ब्याज उसके खाते में जमा मानी जाए और डेबिट प्रविष्टियों को समाप्त किया जाए।
जिला मंच के समक्ष विपक्षी बैंक ने अपना उत्तर पत्र दाखिल कर परिवाद का प्रतिवाद किया। विपक्षी ने यह अभिकथन किया कि परिवादी का यह कथन गलत है कि दि. 31.03.09 के पश्चात उक्त खाते का नवीनीकरण नहीं कराया। परिवादी ने दि. 16.05.12 को नवीनीकरण कराया था। परिवादी ने जानबूझकर बैंक से ली गई धनराशि का भुगतान नहीं किया, जिससे उसका खाता अनियमित हो गया। परिवादी द्वारा दिए गए चेकों को बैंक ने
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भुगतान हेतु केनरा बैंक भगवानपुर हरिद्वार को भेजा, किंतु उक्त चेक केनरा बैंक द्वारा भुगतान नहीं किया गया और केनरा बैंक द्वारा अवगत कराया गया कि उक्त चेक उसे प्राप्त नहीं हुआ है। विपक्षी बैंक ने नियमानुसार चेक प्राप्त होने पर उसकी धनराशि परिवादी के खाते में क्रेडिट कर दी गई, किंतु केनरा बैंक द्वारा चेक भुगतान न होने पर उक्त जमा धनराशि को परिवादी के खाते से डेबिट किया गया। इस संबध में विपक्षी द्वारा सेवाओं में कोई कमी नहीं की गई है।
पीठ ने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्ताओं की बहस सुनी एवं पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों एवं साक्ष्यों का भलीभांति परिशीलन किया गया।
अपीलार्थी ने अपने अपील आधार में कहा है कि जिला मंच का निर्णय आधारहीन व साक्ष्यों पर आधारित नहीं है तथा विधिक प्रावधानों के विरूद्ध है। जिला मंच ने इस तथ्य को संज्ञान में नहीं लिया कि चेक दि. 27.09.09, 01.10.09 व दि. 23.11.09 को जमा किए गए थे, जबकि दि. 02.02.11 को अपीलार्थी के खाते से धनराशि डेबिट की गई। प्रत्यर्थी बैंक द्वारा चेक को वापस नहीं किया जो घोर सेवा में कमी को दर्शाता है। जिला मंच ने अपीलार्थी को मांगा गया अनुतोष नहीं दिलाया है। अपीलार्थी ने बहस के दौरान यह तर्क दिया कि बैंक ने सेवा में कमी की है और उसे डेबिट किए गए चेकों की समस्त धनराशि व परिवाद में मांगा गया अनुतोष दिलाया जाए।
प्रत्यर्थी बैंक के विद्वान अधिवक्ता द्वारा बहस के दौरान कहा गया कि उनके स्तर पर सेवा में कोई कमी नहीं की गई है। चेकों का भुगतान केनरा बैंक से नहीं प्राप्त हुआ है, अत: चेकों की वह धनराशि जो क्रेडिट कर दी गई थी उसे बाद में डेबिट कर दिया गया।
यह तथ्य निर्विवाद है कि परिवादी फर्म का एक ओवर ड्राफ्ट खाता था। इस खाते में उसके द्वारा मै0 नेचुरल हर्ब्स एण्ड फार्मायूलेशन के 3 चेक जो कि क्रमश: रू. 17930/-, रू. 9851/- व 20085/- कुल रू. 52000/- के थे अपने खाते में जमा कराया था। सेन्ट्रल बैक/ प्रत्यर्थी संख्या 2 ने इन चेकों को भुगतान हेतु केनरा बैंक को भेजा, परन्तु इन चेकों का भुगतान प्रत्यर्थी बैंक को प्राप्त नहीं हुआ। चेकों का भुगतान इसलिए नहीं हुआ क्योंकि केनरा बैंक द्वारा यह अवगत कराया गया कि उक्त चेक उसे प्राप्त नहीं हुआ है अर्थात वे रास्ते में कहीं खो गए। इससे यह स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी बैंक को इन चेकों का कोई भुगतान
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प्राप्त नहीं हुआ। यह सर्वविदित है कि सामान्यत: बैंक निर्गत चेक की धनराशि क्रेडिट कर देते हैं, लेकिन यह क्रेडिट Subject to realization of cheques होते हैं और खातों में यह Unclear balance के रूप में प्रदर्शित होते हैं। यदि क्लीयरिंग में कोई चेक भुगतान नहीं हो पाता है तो बैंक को उस चेक की धनराशि को डेबिट कर देते हैं। इस प्रकरण में भी विपक्षी बैंक ने चेक की धनराशि जो उनके द्वारा खाते में क्रेडिट की गई थी और भुगतान न होने पर बाद में डेबिट कर दी गई उसमें कोई त्रुटि नहीं है। जिला मंच ने मा0 उच्चतम न्यायालय द्वारा सिटी बैंक एन0ए0 बनाम जी0के0एग्रोपैक प्रा0लि0 आदि 2008-सीटीजे-561 व मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा 2009-सीटीजे-297 ए0पी0 भोपन्ना बनाम कोडाग्र डिस्ट्रिक्ट कोआपरेटिव सेन्ट्रल बैंक की व्यवस्था को उद्धृत करते हुए यह अंकित किया है कि यदि कोई चेक बैंक द्वारा इनकैशमेन्ट हेतु भेजा गया और वह ट्रांजिट में खो गया और तलाश करने पर भी नहीं मिला तब चेक भेजने वाले बैंक को चेक में दर्शित धनराशि के भुगतान हेतु दोषी नहीं माना जा सकता है। इसका उत्तरदायित्व मात्र सेवा में कमी हेतु बनता है। पीठ जिला मंच के इस निष्कर्ष से सहमत है। जिला मंच ने प्रत्यर्थी सेन्ट्रल बैंक आफ इंडिया को केवल सेवा में कमी हेतु दोषी पाया है और क्षतिपूर्ति परिवादी को प्रदान की है। अपीलार्थी जमा की गई चेक की धनराशि प्रत्यर्थी बैंक से प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। जिला मंच का निर्णय विधिसम्मत है, उसमें हम कोई त्रुटि नहीं पाते हैं। अत: अपील निरस्त किए जाने व जिला मंच का निर्णय/आदेश पुष्टि किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है। जिला मंच द्वारा पारित निर्णय/आदेश दि. 29.09.14 की पुष्टि की जाती है।
पक्षकारान अपना-अपना अपीलीय व्यय स्वयं वहन करेंगे।
निर्णय की प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार उपलब्ध कराई जाए।
(राज कमल गुप्ता) (महेश चन्द)
पीठासीन सदस्य सदस्य
राकेश, आशुलिपिक
कोर्ट-5