(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 338/2001
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, अलीगढ़ द्वारा परिवाद सं0- 93/1998 में पारित निर्णय और आदेश दि0 12.01.2001 के विरूद्ध)
जिया उल्लाह पुत्र श्री हाजी अजीम उल्लाह मालिक फर्म मेसर्स रोज लौक फैक्टरी, वालाय किला, अलीगढ़।
......अपीलार्थी
बनाम
1. सेन्ट्रल बैंक आफ इंडिया, केन्द्रीय कार्यालय चन्दर मुखी नारीमन पोइन्ट, मुम्बई 400021.
2. सेन्ट्रल बैंक आफ इंडिया शाखा रसरा जिला बलिया उ0प्र0 द्वारा मैनेजर सेन्ट्रल बैंक आफ इंडिया शाखा रसरा जिला बलिया उ0प्र0
3. यूनियन बैंक आफ इंडिया द्वारा सचिव सेन्ट्रल गर्वनमेंट आफ इंडिया नई। दिल्ली पोस्ट तथा टेलीग्राफ विभाग, कम्यूनिकेशन मंत्रालय, नई दिल्ली।
4. पोस्ट मास्टर जनरल, नई दिल्ली।
5. पोस्ट मास्टर जनरल, लखनऊ।
6. हेडपोस्ट मास्टर हेड पोस्ट आफिस, अलीगढ़।
7. पोस्ट मास्टर, पोस्ट आफिस रसरा, जिला बलिया उ0प्र0।
............प्रत्यर्थीगण
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से : श्री ओ0पी0 दुवेल,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थीगण सं0- 1 ता 2 की ओर से : कोई नहीं।
प्रत्यर्थीगण 3 ता 7 की ओर से : डा0 उदयवीर सिंह के सहयोगी
श्री कृष्ण पाठक,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक:- 03.02.2021
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद सं0- 93/1998 जिया उल्लाह बनाम सेन्ट्रल बैंक तथा 06 अन्य में पारित निर्णय एवं आदेश दि0 12.01.2001 के विरूद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 15 के अंतर्गत यह अपील स्वयं परिवादी द्वारा प्रस्तुत की गई है। जिला उपभोक्ता आयोग, अलीगढ़ ने इस निर्णय एवं आदेश द्वारा परिवादी के पक्ष में विपक्षी सं0- 3 लगायत 7 को अंकन 400/-रू0 बतौर हर्जा तथा वाद व्यय के रूप में 200/-रू0 अदा करने का आदेश पारित किया है।
2. परिवाद के तथ्यों के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी ताले बनाने/विक्रय करने का कारोबार अलीगढ़ में करता है। यह कि वादी ने तालों के नौकेसेस सर्व प्रकार से उत्तम रीति से बंक करके मेसर्स जैन सन्स ट्रान्सपोर्ट कारपोरेशन हेड आफिस द्वारिकापुरी अलीगढ़ को स्वयं को डिलीवर देने के लिये तारीख 19.07.97 को इस आदेश से दिये कि वह माल वाहक जी0आर0आर0 देने पर सेन्ट्रल बैंक आफ इंडिया रसरा जिला बलिया ब्रान्च को माल डिलीवर कर दे तथा उक्त माल वाहक ने माल रसरा में डिलीवर करने के लिये स्वीकार करके कन्साइनमेंट नोट जे0सी0टी0 (जी0आर0आर0) नं0- 21821 तारीख 19.07.97 वादी को स्वयं के नाम में दे दी उक्त पेटियों में वादी ने मु0 46400/-रूपया का माल भेजा वादी उक्त माल का मालिक कन्साइनर तथा स्वयं कन्साइनी था।
3. यह कि वादी ने उक्त माल की असल जी0आर0आर0 जे0सी0टी0 नं0 21821 तारीख 19.7.97 सेन्ट्रल बैंक आफ इंडिया रसरा ब्रांच जिला बलिया के नाम एन्डोर्स करके उक्त असल जे0सी0टी0 तथा माल की कीमत का विल नं0 94 तादादी 46400/-रूपया व हुन्डी विल्टी सेन्ट्रल बैंक आफ इंडिया रसरा जिला बलिया को रजिस्टरी डाक से ता0 19.07.97 को भेजी तथा सिटी पोस्ट आफिस अलीगढ़ ने उक्त कागजातों को रसरा में सेन्ट्रल बैंक आफ इंडिया को देने के लिए लेकर डाक रसीद नं0 95 तारीख 19.7.97 वादी को दे दी, उक्त पंजीकृत लिफाफा में उक्त कागजात जो पर्याप्त तरीका से सील्ड था तथा जिस पर पाने वाले का पता सेन्ट्रल बैंक आफ इंडिया रसरा जिला बलिया तथा भेजने वाले का वादी का पूरा पता सही लिखा था तथा उक्त डाक घर को उक्त पंजीकृत डाक इस निर्देश के साथ दी गई थी तथा डाकघर ने नियमानुसार प्राप्तकर्ता को ही देने के लिये उक्त पंजीकृत डाक स्वीकार की थी।
4. प्रतिवादीगण नं0- 3 लगायत 7 के द्वारा उनकी सेवा में लेकर वादी ने प्रतिवादी नं0 1 व 2 को उक्त पंजीकृत डाक से उक्त कागजात इस निर्देश के साथ भेजे कि जो व्यक्ति विल में लिखे धन का भुगतान प्रतिवादी नं0- 2 को कर दे उससे भुगतान लेकर माल की विल्टी जे0सी0टी0 उसके हक में एन्डोर्स कर दे तथा भुगतान लेकर अपना कमीशन काटकर बाकी रूपया ड्राफ्ट से वादी को अलीगढ़ में भुगतान कर दे।
5. विधि का बैंकों के नियम तथा चलन बाजार के अनुसार वादी ने हुन्डी विल्टी जे0सी0 टी जी आर0आर0 प्रतिवादी नं0 2 को प्रतिवादीगण नं0 3 लगायत 7 के द्वारा इस आशय से भेजी थी कि वह माल की कीमत वसूल करके अपना कमीशन काटकर शेष धन वादी को ड्राफ्ट से अलीगढ़ में अदा कर देंगे तथा माल की कीमत देने वाले को माल वाहक से माल लेने के लिये जे0सी0टी0 उसके हक में एन्डोर्स कर देंगे तथा प्रतिवादी नं0 2 उक्त माल का एन्डोर्स कन्साइनी था और उसका दायित्व था और है कि वह उक्त माल की कीमत वादी को अदा करे।
6. काफी दिनों तक उक्त माल की डिलीवरी की सूचना व बिल का भुगतान प्रतिवादी सं0- 2 द्वारा न मिलने पर प्रतिवादी सं0- 2 से जानकारी प्राप्त की तब प्रतिवादी सं0- 2 ने बताया कि वादी के कोई कागजात नहीं मिले हैं। इसके पश्चात अपीलार्थी/परिवादी ने प्रतिवादीगण सं0- 3 लगायत 7 को लिखा कि प्रतिवादी बैंक को डाक प्राप्त नहीं हुई है और यदि प्राप्त करायी गई है तो अभी स्वीकृत पत्र की प्रति प्राप्त कराया जाए, जिस पर प्रतिवादीगण सं0- 3 लगायत 7 ने वादी को सूचित किया कि पंजीकृत डाक प्राप्तकर्ता प्रतिवादी सं0- 2 को डिलीवर कर दी गई है, परन्तु प्रतिवादी हस्ताक्षरित कर स्वीकृत पत्र या अन्य कागजात अपीलार्थी/वादी को उपलब्ध नहीं कराया। बाद में माल वाहक जैन संस से जानकारी प्राप्त करने पर अपीलार्थी/वादी को बताया गया कि प्रतिवादी सं0- 2 को पंजीकृत डाक प्राप्त हो गई है तथा प्रतिवादी सं0- 2 को उक्त बिल में लिखा धन अदा करके उक्त माल के कागजात प्रतिवादी बैंक ने पूरा भुगतान लेकर किसी फर्जी मोहन ट्रेडिंग के नाम प्रतिफल लेकर जी0आर0आर0जे0सी0टी0 उपरोक्त जे0सी0टी0 को एन्डोर्स कर दी तथा माल वाहक से डिलीवरी प्राप्त कर ली गई है। परिवाद में आगे लिखा गया है कि प्रतिवादीगण सं0- 1 एवं 2 ने धन प्राप्त करके अपीलार्थी/वादी के माल के कागजात रिटायर किए हैं मगर अपना कमीशन काटकर अपीलार्थी/वादी को उसका धन अदा नहीं किया है। परिवाद पत्र में स्वयं यह कल्पना की गई है कि यदि यह माना जाए कि प्रतिवादी सं0- 2 को पंजीकृत डाक प्राप्त नहीं हुई है तब प्रतिवादीगण सं0- 3 लगायत 7 ने अपने कर्तव्य का पालन नहीं किया है तथा प्राप्तकर्ता को पंजीकृत डाक की डिलीवरी न देकर डिलीवर के फर्जी व जाली कागजात बनाकर वादी का माल, माल वाहक से प्राप्त कर लिया है तथा प्रतिवादीगण सं0- 3 लगायत 7 ने उपरोक्त पंजीकृत डाक से प्रतिवादी सं0- 2 को डिलीवरी न कर अपीलार्थी/वादी को दी गई सेवाओं में कमी की गई है।
7. परिवाद पत्र में वाद कारण उत्पन्न होने का उल्लेख पैरा सं0- 15 में इस प्रकार किया गया है कि वाद कारण दि0 19.07.97 को जिस दिन प्रतिवादीगण सं0- 3 लगायत 7 को अलीगढ़ सिटी पोस्ट आफिस में पंजीकृत डाक के कागजात लिफाफा प्रतिवादी सं0- 2 को डिलीवर करने के लिए दिया।
8. पोस्ट आफिस की ओर से प्रस्तुत किए गए लिखित कथन में यह उल्लेख किया गया है कि एक रजिस्टर्ड पत्र सं0- 95 दि0 19.07.1997 सिटी पोस्ट आफिस में सेन्ट्रल बैंक आफ इंडिया को दिये जाने के लिए प्राप्त हुआ था। आगे उल्लेख किया है कि पंजीकृत पत्र यर्थाथ में रसरा पोस्ट आफिस से गुम हो गया।
9. निर्णय के अवलोकन से यह ज्ञात होता है कि सेन्ट्रल बैंक आफ इंडिया की ओर से कोई जवाब प्रस्तुत नहीं किया गया है।
10. जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई साक्ष्य के आधार पर यह निष्कर्ष दिया गया है कि सेन्ट्रल बैंक आफ इंडिया किसी प्रकार की सेवा में कमी के लिए उत्तरदायी नहीं है और केवल प्रतिवादीगण सं0- 3 लगायत 7 के विरुद्ध अंकन 400/-रू0 क्षतिपूर्ति अदा करने का आदेश पारित किया गया है। इस आदेश को स्वयं अपीलार्थी/परिवादी द्वारा इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि अपीलार्थी/परिवादी ने डाकघर की सेवायें मूल्य देकर प्राप्त की थी जिसमें त्रुटि पायी गई और प्रतिवादी बैंक ने 46,400/-रू0 के बीजक को प्राप्त कर रूपया प्राप्त किया और ट्रांसपोर्ट की रसीद पर माल छोड़ने के लिए आदेशित किया। अत: यह सिद्ध है कि डाकघर की गलती से 46,400/-रू0 माल के हेराफेरी की गलती हुई है और चूँकि बैंक ने 46,400/-रू0 प्राप्त होना स्वीकार किया है। चाहे इस धनराशि को किसी भी व्यक्ति ने छुड़ाया हो, इसलिए बैंक ने भी सेवा में कमी की है और जिला उपभोक्ता आयोग ने बैंक के विरुद्ध कोई आदेश पारित नहीं किया है।
11. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री ओ0पी0 दुवेल और प्रत्यर्थीगण सं0- 03 लगायत 07 के विद्वान अधिवक्ता डा0 उदयवीर सिंह के सहयोगी विद्वान अधिवक्ता श्री कृष्ण पाठक को सुना गया। प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया गया।
12. पोस्ट आफिस ने अपने लिखित कथन में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि जो डाक प्राप्त हुई थी वह रसरा पोस्ट आफिस से गुम हो गई थी जिसका तात्पर्य यह है कि यह डाक कभी भी बैंक को प्राप्त नहीं हो सकी, इसलिए अपीलार्थी/परिवादी द्वारा ली गई सेवाओं में कमी केवल पोस्ट आफिस के द्वारा की गई है न कि बैंक के द्वारा। सेन्ट्रल बैंक आफ इंडिया को जब कोई डाक प्राप्त नहीं हुई तब उस डाक के अनुपालन में किसी प्रकार की धनराशि प्राप्त करने और कमीशन काटकर अपीलार्थी/परिवादी को उपलब्ध कराने का कोई अवसर उत्पन्न नहीं हुआ। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया है कि सेन्ट्रल बैंक आफ इंडिया द्वारा अपीलार्थी/परिवादी की सेवा में कोई कमी नहीं की गई है और केवल प्रतिवादीगण सं0- 3 लगायत 7 द्वारा सेवा में कमी की गई है, इसलिए अंकन 400/-रू0 क्षतिपूर्ति देने का आदेश पारित किया गया है।
13. अपील के ज्ञापन तथा अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के तर्क के अनुसार जिस राशि की विल्टी/हुण्डी बैंक को प्रेषित की गई है उसी धनराशि की क्षतिपूर्ति का आदेश दिया जाना चाहिए यह तर्क विधि से समर्थित नहीं है, क्योंकि डाक भेजने का तात्पर्य यह नहीं है कि डाक पत्र में जिस राशि की वसूली का उल्लेख बैंक के माध्यम से किया गया है वह समस्त राशि बतौर क्षतिपूर्ति पोस्ट आफिस द्वारा अदा की जाए। अपीलार्थी/परिवादी ने अपने क्रेता को जो माल विक्रय किया है उससे विक्रय मूल्य प्राप्त करने के लिए भी अधिकृत है। उसका यह अवसर समाप्त नहीं हुआ है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा केवल सेवा में कमी के कारण वह क्षतिपूर्ति दिलायी गई जो डाक को प्रेषित करने में खर्च हो सकती है न कि वह क्षतिपूर्ति जिसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। सेन्ट्रल बैंक आफ इंडिया यानि प्रतिवादी सं0- 2 को चूँकि कोई डाक प्राप्त नहीं हुई, इसलिए अपील के ज्ञापन का यह तथ्य स्वीकार करने योग्य नहीं है कि यह स्वीकार कर लिया जाए कि अंकन 46,400/-रू0 किसी व्यक्ति को दे दिया गया और यह स्थिति तब भी मौजूद है जब कि संविदा के आधार पर व्यापारिक कार्यों के लिए क्रेता एवं विक्रेता तथा बैंक के मध्य व्यावसायिक संव्यवहार हो जो जिला उपभोक्ता आयोग के क्षेत्राधिकार से बाहर है। अत: अपील खारिज होने योग्य है। विल्टी/हुण्डी कामर्शियल संव्यवहार है जिसके लिए एक निश्चित सुबूत की आवश्यकता होगी जो केवल सिविल न्यायालय में दावा प्रस्तुत करके पेश किया जा सकता है।
आदेश
14. अपील खारिज की जाती है।
15. अपील में उभयपक्ष अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(विकास सक्सेना) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0- 2