Madhya Pradesh

Seoni

CC/06/2013

JITENDRA KUMAR - Complainant(s)

Versus

CENTRAL BANK OF INDIA - Opp.Party(s)

17 Apr 2013

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, सिवनी(म0प्र0)

प्रकरण क्रमांक -06-2013                                   प्रस्तुति दिनांक-02.01.2013
समक्ष :-
अध्यक्ष - रवि कुमार नायक
सदस्य - श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत,

जितेन्द्र कुमार मर्सकोले, पिता बड़ीराम
मर्सकोले, उम्र लगभग 46 वर्श, निवासी
अपर बैनगंगा कालोनी, सिवनी, तहसील
व जिला सिवनी (म0प्र0)।...................................आवेदकपरिवादी।


             :-विरूद्ध-:                  
(1)    षाखा प्रबंधक, चोलामंडलम एम.एस.
    जनरल इंष्योरेंस कंपनी लिमिटेड, डारे
    हाउस, द्वितीय तल नंबर-2, एन.एस.सी.
    बेस रोड, चेन्नर्इ, पिन कोड 600 001
(2)    षाखा प्रबंधक, सेन्ट्रल बैंक आफ इंडिया
    षाखा सिवनी, तहसील व जिला सिवनी
    (म0प्र0)।.................................................अनावेदकगणविपक्षीगण।

                    
                 :-आदेश-:
     (आज दिनांक-   17/04/2013            को पारित)
द्वारा-अध्यक्ष:-

(1)        परिवादी ने यह परिवाद, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के तहत, अनावेदक क्रमांक-2 बैंक षाखा से लिये गये कार ऋण, किष्तों के भुगतान बाद भी अनापतित प्रमाण-पत्र (नोडयूज) जारी न कर, मनमाने रूप से ली गर्इ इंष्योरेंस की राषि 13,857-रूपये व उस-पर ब्याज की मांग को अनुचित व सेवा में कमी होना बताते हुये, नोडयूज प्रमाण-पत्र व हर्जाना दिलाने के अनुतोश हेतु पेष किया है।
(2)         मामले में यह स्वीकृत तथ्य है कि-परिवादी ने अनावेदक क्रमांक-2 बैंक षाखा से ऋण लेकर कार खरीदा था, जिसका ऋण खाता क्रमांक-3133330775 है। यह भी विवादित नहीं है कि-उक्त वाहन-कार का पूर्व में बीमा, दिनांक-25.07.2012 की मध्य रात्री तक रहा है और अनावेदक क्रमांक-2 ने दिनांक-02.07.2012 को परिवादी के खाते में 13,857-रूपये उक्त वाहन का अगले एक वर्श की अवधि के लिए अनावेदक क्रमांक-1 से बीमा कराने की प्रीमियम राषि के भुगतान के राषि के रूप में जोड़ दिया, जो कि-दिनांक-28.08.2012 को परिवादी ने उक्त बीमा प्रीमियम राषि को छोड़कर, षेश ऋण की राषि 43,887-रूपये ऋण खाते में अदा कर दी। और यह भी विवादित नहीं कि-दिनांक-25.07.2012 को परिवादी ने अपने उक्त वाहन का युनार्इटेड इणिडया इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड से अगले एक वर्श की अवधि के लिए बीमा करा लिया था।  
(3)        स्वीकृत तथ्यों के अलावा, परिवाद का सार यह है कि- अनावेदक क्रमांक-2 ने परिवादी के वाहन का बीमा करा लेने की सूचना दिनांक-25.07.2012 तक परिवादी को मौखिक या लिखित रूप से नहीं दी और परिवादी के अनुमति के बिना अनावेदक क्रमांक-1 ने परिवादी की कार का इंष्योरेंस दिनांक-21.08.2012 को किया और इसकी भी कोर्इ प्रति परिवादी को नहीं दी, जो कि-दिनांक-18.08.2012 को संपूर्ण ऋण की राषि 43,087-रूपये अदा किये जाने के बावजूद, अनावेदक क्रमांक-2 ने, परिवादी को अनापतित प्रमाण-पत्र जारी नहीं किया और गलत बीमा की राषि 13,857-रूपये की अनुचित मांग कर, परिवादी को अनावष्यक रूप से प्रताडि़त किया जा रहा है।
(4)        अनावेदक क्रमांक-1 बीमा कम्पनी का जवाब यह है कि- परिवादी और अनावेदक क्रमांक-2 के बीच विवाद, षेश ऋण राषि होने न होने के संबंध में है, जो कि-अनावेदक क्रमांक-1 को अनावष्यक पक्षकार बनाया गया है, जो कि-ऋण राषि की अदायगी की सुरक्षा हेतु अनावेदक क्रमांक-2 आवेदक की सहमति से अनावेदक क्रमांक-1 बीमा कम्पनी से प्रष्नाधीन वाहन का बीमा, आवेदक के ऋण स्वीकृति दिनांक से कराया था और अनावेदक क्रमांक-1 से कार का बीमा का नवीनीकरण कराया जाता रहा है, जो कि-अनावेदक क्रमांक-1 को अनावेदक क्रमांक-2 के द्वारा, पत्र दिनांक-02.07.2012 और उसी दिनांक का 13,457-रूपये का प्रीमियम चेक भेजा गया था, जिसके आधार पर अनावेदक क्रमांक-1 ने वाहन की बीमा पालिसी जारी की थी। परिवादी के प्रति उसने कोर्इ सेवा में कमी नहीं किया है। 
(5)        अनावेदक क्रमांक-2 बैंक की ओर से पेष जवाब का सार यह है कि-दिनांक-25.07.2012 की आगे की अवधि के लिए वाहन का बीमा करा लेने की सूचना अनावेदक क्रमांक-2 द्वारा, परिवादी को मौखिक-रूप से दी गर्इ थी कि-वाहन की बीमा अवधि समाप्त हो रही है और दृशिटबंधक करार की कणिडका-7 के प्रावधानों के अनुसार, कार को सुरक्षित रखने के उददेष्य से बैंक द्वारा, अनावेदक क्रमांक-1 बीमा कम्पनी से बीमा करा लिया गया है, जबकि-परिवादी ने बैंक को यह सूचित नहीं किया था कि-उसके द्वारा स्वयं किसी अन्य बीमा कमपनी से बीमा करा लिया गया है और पालिसी की प्रति भी पेष नहीं की गर्इ है, जो कि-परिवादी का यह दायित्व था कि-यदि वह स्वयं बीमा कराता है, तो बैंक को सूचना देगा। इस तरह परिवादी स्वयं की ही त्रुटि का लाभ लेने का प्रयास कर रहा है और उक्त ऋण अनुबंध के प्रावधान का गलत व्याख्यान कर रहा है। अनावेदक क्रमांक-2 के द्वारा विधि व प्रक्रिया के अनुरूप कार्यवाही की गर्इ है और पालिसी प्राप्त करने में किये गये व्यय को ऋण खाते में जोड़ा जाना परिवादी के प्रति सेवा में कमी नहीं है।
(6)        मामले में निम्न विचारणीय प्रष्न यह हैं कि:-
        (अ)    क्या अनावेदकगण ने, परिवादी की सहमति व 
            सूचना के बिना, वाहन की पालिसी जारी व प्राप्त 
            कर, अनावेदक क्रमांक-2 द्वारा, उसकी प्रीमियम 
            राषि परिवादी से मांग कर, उसके प्रति-सेवा 
            में कमी किया है?
        (ब)    सहायता एवं व्यय?
                -:सकारण निष्कर्ष:-
        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(अ) :-
(7)       प्रदर्ष सी-10 की पूर्व वर्श की वाहन की बीमा पालिसी की प्रति से व स्वीकृत तथ्य होने से यह स्थापित है कि-उक्त वाहन पूर्व में दिनांक-26.07.2011 से 25.07.2012 के मध्य रात्री की अवधि तक के लिए बीमित रहा है। जो कि-प्रदर्ष सी-4 के ऋण खाता स्टेटमेन्ट की प्रति व अनावेदक क्रमांक-1 द्वारा जारी पालिसी षेडयूल सहित, बीमा प्रमाण-पत्र की प्रति प्रदर्ष सी-9, उक्त पालिसी लेने के लिए अनावेदक क्रमांक-2 द्वारा, अनावेदक क्रमांक-1 को जारी प्रीमियम राषि के चेक की प्रति प्रदर्ष सी-11 व पालिसी जारी करने हेतु पत्र प्रदर्ष सी-13 से यह सिथति स्पश्ट है कि-दिनांक-02.07.2012 को अनावेदक क्रमांक-2 ने प्रीमियम राषि का चेक सहित, बीमा पालिसी जारी करने (नवीनीकरण) के लिए अनावेदक क्रमांक-1 बीमा कम्पनी को पत्र भेजा था और उसी दिन दिनांक-02.07.2012 को उक्त प्रीमियम राषि 13,857-रूपये परिवादी के ऋण खाता में बकाया राषि में जोड़ दी गर्इ, जो कि- अनावेदक क्रमांक-2 की ओर से भी पेष प्रदर्ष आर-1 के ऋण खाता स्टेटमेन्ट से भी दर्षित है। जबकि-परिवादी-पक्ष की ओर से पेष प्रदर्ष सी-5 की प्रीमियम राषि रसीद व प्रदर्ष सी-6 की पालिसी की प्रति से यह स्पश्ट है कि-दिनांक-25.07.2012 को ही परिवादी ने प्रीमियम राषि अदा कर, आगे की एक वर्श की अवधि के लिए युनार्इटेड इणिडया इंष्योरेंस कम्पनी से पालिसी प्राप्त कर लिया था।
(8)        वाहन के दृशिटबंधन के लिए सावधि ऋण करार, अनावेदक क्रमांक-2 की ओर से प्रदर्ष आर-2 के रूप में पेष हुर्इ है, जिसकी कणिडका-7 में ऋणी का यह दायित्व रहा है कि-वह अपने खर्चे पर वाहन को अच्छी हालत में रखेगा, वाहन के चोरी होने तृतीय-पक्ष जोखिम, दंगा व नागरिक अषांति के विरूद्ध जोखिम हेतु बीमा कराकर रखेगा और समय-समय पर बैंक के अपेक्षा अनुसार, बैंक द्वारा मान्य, बीमा कार्यालय द्वारा, वाहन का बीमा करायेगा तथा ऐसी पालिसी और उसकी प्रीमियम अदायगी की रसीद बैंक के सुपुर्द नहीं करता है, तो बैंक, उक्त बीमा अपने नाम से कराने और ऐसा करने में वहन किये गये खर्च ऋणी के ऋण खाते में नामे करने के लिए स्वतंत्र होगा (परंतु बादध्य नहीं)।
(9)        अनुबंध की षर्त से स्पश्ट है कि-वाहन का बीमा कराकर रखने का दायित्व परिवादी का रहा है और समय-समय पर बैंक की अपेक्षा के अनुसार, बीमा पालिसी लेकर, पालिसी की प्रति व प्रीमियम की रसीद पेष न करने पर ही, बैंक, बीमा अपने नाम से कराने के लिए स्वतंत्र रहा है, जो कि-दिनांक-25.07.2012 के आगे की अवधि के लिए बीमा पालिसी प्राप्त कर, पालिसी व प्रीमियम रसीद की प्रति पेष करने की अपेक्षा, परिवादी से अनावेदक क्रमांक-2 बैंक के द्वारा, दिनांक-02.07.2012 के पूर्व, अर्थात अनावेदक क्रमांक-1 से बैंक द्वारा बीमा पालिसी लेने के लिए आवेदन व प्रीमियम राषि भेजने के पहले परिवादी से कोर्इ अपेक्षा, बैंक के द्वारा, बीमा पालिसी प्राप्त करने के लिए की गर्इ हो और परिवादी ऐसा करने में असफल रहा हो, ऐसी कोर्इ सिथति प्रस्तुत मामले में नहीं, ऐसी अपेक्षा बाबद, कोर्इ भी पत्र अनावेदक क्रमांक-2 द्वारा, परिवादी को भेजा जाना स्वयं अनावेदक-पक्ष द्वारा नहीं कहा गया है। तो अनावेदक क्रमांक-2 के द्वारा, वाहन की बीमा पालिसी अवधि समाप्त होने के 23 दिन पूर्व ही परिवादी से पूछे बिना व पालिसी प्राप्त करने के लिए समय दिये बिना, वाहन की पालिसी प्राप्त करने हेतु वहन की गर्इ राषि ऋण खाते में परिवादी के नामे किये जाने हेतु, अनावेदक क्रमांक- 2 बैंक षाखा कतर्इ स्वतंत्र नहीं रही है, क्योंकि ऐसा करने के पूर्व अनुबंध की षर्त क्रमांक-7 के अनुसार यह आवष्यक था कि-अनावेदक क्रमांक-2 पहले परिवादी से यह अपेक्षा करता की वह दिनांक-25.07.2012 से आगे की अवधि के लिए पालिसी प्राप्त कर, उसकी प्रतियां व प्रीमियम रसीद की प्रति पेष करे और जब परिवादी ऐसा करने में असफल रहता, तभी बैंक अपनी ओर से पालिसी प्राप्त  कर, वाहन की राषि परिवादी से वसूल सकता था। 
(10)        यह भी स्पश्ट है कि-यदि कोर्इ मौखिक जानकारी या सहमति परिवादी की अनावेदक क्रमांक-2 बैंक के द्वारा पालिसी लेने के पूर्व ली गर्इ होती या अनावेदक क्रमांक-2 के द्वारा पालिसी लेने के पष्चात भी उक्त आषय की कोर्इ मौखिक सूचना परिवादी को दी गर्इ होती, तो परिवादी पालिसी अवधि समाप्त होने के पूर्व अंतिम दिन युनार्इटेड इणिडया इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड से उसी अवधि की दूसरी पालिसी क्यों प्राप्त करता। तो बहुत ही स्पश्ट है कि-अनावेदक क्रमांक- 2 के द्वारा, परिवादी से कोर्इ अपेक्षा, पालिसी प्राप्त कर पेष करने की किये बिना और अनावेदक क्रमांक-2 दिनांक-25.07.2012 से आगे की अवधि के लिए पालिसी ले रहा है या नवीनीकरण करा रहा है, इसकी भी जानकारी दिये बिना, अनावेदक बैंक षाखा ने जल्दबाजी में पालिसी अवधि समाप्त होने के 23 दिन पहले ही मनमाने रूप से प्रीमियम की राषि का चेक व पालिसी नवीनीकरण का आवेदन, अनावेदक क्रमांक-1 को भेज दिया और ऋण खाते में उक्त प्रीमियम राषि बकाया के रूप में जोड़ दी गर्इ, जो कि-प्रदर्ष आर-4 की पालिसी प्रमाण-पत्र में वाहन का रजिस्ट्रेषन नंबर और वाहन में उपयोग किये जा रहे र्इधन का गलत विवरण दर्ज होने से ही स्पश्ट है। और उसके बाद ही दिनांक-25.07.2012 तक के आगे के 23 दिन की अवधि में भी परिवादी को कोर्इ सूचना अनावेदक क्रमांक-2 बैंक के द्वारा, उक्त आषय की नहीं दी गर्इ, जबकि बैंक यह जानता था कि-अनुबंध षर्त के अनुसार, समय पर पालिसी आगे की अवधि के लिए प्राप्त करने का दायित्व परिवादी का रहा है और परिवादी उक्त दायित्व निर्वहन में उक्त 23 दिन की अवधि के बीच पालिसी प्राप्त करने की कार्यवाही कर सकेगा। तो ऐसी कोर्इ सूचना तक परिवादी को दिनांक-25.07.2012 के पूर्व अनावेदक क्रमांक- 2 बैंक द्वारा नहीं दी गर्इ और परिवादी ने समय पर दिनांक-25.07.2012 को ही बीमा पालिसी, युनार्इटेड इणिडया इंष्योरेंस कम्पनी की प्रदर्ष सी-6 की प्राप्त कर ली। तो स्पश्ट है कि-अनावेदक क्रमांक-2 का उक्त कृत्य, प्रदर्ष आर-2 के अनुबंध के कणिडका-7 का खुला उल्लघंन है, उक्त षर्तों के अनुसार, परिवादी से समय पूर्व नवीन पालिसी प्राप्त करने की अपेक्षा किये बिना बैंक अपनी ओर से पालिसी प्राप्त करने के लिए स्वतंत्र नहीं था, जो कि-अनुबंध का उल्लघंन कर, पालिसी प्राप्त करने हेतु प्रीमियम राषि का चेक व प्रस्ताव अनावेदक क्रमांक-2 द्वारा जारी करने के बावजूद भी, उक्त की सूचना, परिवादी को पालिसी की अवधि समाप्त होने तक नहीं दी गर्इ, तो यह अनावेदक क्रमांक-2 द्वारा, परिवादी के प्रति की गर्इ सेवा में कमी है, जिसके फलस्वरूप परिवादी को उसी अवधि की पालिसी प्राप्त करने हेतु पुन: व्यय करना पड़ा।
(11)        यह भी स्पश्ट है कि-दिनांक-18.08.2012 को जब परिवादी ऋण खाते की षेश राषि अदा कर, अनापतित प्रमाण-पत्र प्राप्त करने गया, तब उसे अनापतित प्रमाण-पत्र न देकर, उक्त 13,857-रूपये की राषि जमा करने हेतु भी बादध्य किया गया, जबकि-ऐसी मनमानी कार्यवाही कर, परिवादी के उपर डाला गया उक्त 13,857-रूपये की राषि का बोझ अनावेदक क्रमांक-2 द्वारा, परिवादी के प्रति अपनार्इ गर्इ मनमानी अनुचित प्रथा है और ऐसी राषि के भुगतान हेतु परिवादी कतर्इ दायित्वाधीन नहीं हो सकता। तो ऐसी राषि की मांग कर, अनापतित प्रमाण-पत्र जारी करने से इंकार किया जाना अनुचित होकर, परिवादी के प्रति की गर्इ सेवा में कमी है। जबकि-यह स्पश्ट है कि-दिनांक-18.08.2012 को परिवादी द्वारा आपतित लिये जाने और उक्त राषि का भुगतान न कर, स्वयं पालिसी ले-लिये जाने की जानकारी देने पर, अनावेदक क्रमांक-2, अनावेदक क्रमांक-1 से ली गर्इ पालिसी निरस्त करवाकर, प्रीमियम राषि का काफी अंष वापस पा सकता था और क्षति को कम कर सकता था, पर अनावेदक अनावेदक क्रमांक-2 के द्वारा ऐसी हुर्इ क्षति की राषि को कम करने का कोर्इ प्रयास नहीं किया गया, तब अनावेदक क्रमांक-1 के द्वारा, परिवादी के प्रति-कोर्इ सेवा में कमी किया जाना स्थापित नहीं पाया जाता है, पर अनावेदक क्रमांक-2 के द्वारा, परिवादी के प्रति-सेवा में कमी की गर्इ है, यह स्थापित पाया जाता है। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ को निश्कर्शित किया जाता है।
        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(ब):-
(12)        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ के निश्कर्श के आधार पर, मामले में निम्न आदेष पारित किया जाता है:-
        (अ)    अनावेदक क्रमांक-2 बैंक के द्वारा, परिवादी से जो
            13,857-रूपये (तेरह हजार आठ सौ सन्ताव रूपये)
            व उस-पर दिनांक-18.08.2012 से आगे की अवधि 
            के ब्याज की जो मांग की जा रही है, वह अनुचित
            व मनमानी है, परिवादी उक्त अदायगी को बादध्य                 नहीं और अनावेदक क्रमांक-2 बैंक षाखा, उक्त
            राषि व उस-पर देय ब्याज परिवादी के खाते में 
            जमा करे और उसे पालिसी प्राप्त करने वाले                     तत्कालीन षाखा प्रबंधक के रूप में पदस्थ रहे                 व्यकित से वसूले।
        (ब)    अनावेदक क्रमांक-2, परिवादी को उसके बैंक ऋण
            खाता की राषि का भुगतान हो जाने बाबद, नोडयूज
            (अनापतित प्रमाण-पत्र) आदेष दिनांक से तीन माह 
            की अवधि के अंदर जारी कर, रजिस्टर्ड-डाक से                 भेजें।
        (स)    अनावेदक क्रमांक-2 के द्वारा की गर्इ अनुचित मांग व
            अनापतित प्रमाण-पत्र जारी करने के इंकार के                 फलस्वरूप, परिवादी को जो मानसिक संताप व
            असुविधा हुर्इ और उसके वाहन के रजिस्ट्रेषन
            प्रमाण-पत्र से फायनेन्सर का नाम (एच.पी.) समाप्त
            नहीं हो सका और उसके द्वारा वाहन का अंतरण कर
            सकने की स्वतंत्रता का अधिकार प्रभावित हुआ है, 
            तो उक्त सभी को ध्यान में रखते हुये, अनावेदक
            क्रमांक-2, परिवादी को 3,000-रूपये (तीन हजार
            रूपये) हर्जाना अदा करे और हर्जाना की उक्त राषि
            त्रुटिकत्र्ता, तत्कालीन षाखा प्रबंधक के रूप में                 पदस्थ रहे व्यकित से अनावेदक क्रमांक-2 वसूलेगा।
        (द)    अनावेदकण स्वयं का कार्यवाही-व्यय वहन करेंगे और
            अनावेदक क्रमांक-2, परिवादी को कार्यवाही-व्यय के
            रूप में 2,000-रूपये (दो हजार रूपये) अदा करे।
        (इ)    हर्जाना और कार्यवाही-व्यय की राषि की अदायगी
            अनावेदक क्रमांक-2, परिवादी को आदेष दिनांक से
            तीन माह की अवधि के अंदर करेगा।
        
        मैं सहमत हूँ।                                  मेरे द्वारा लिखवाया गया।         

(श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत)                          (रवि कुमार नायक)
            सदस्य                                                अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद                           जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोषण फोरम,सिवनी                         प्रतितोषण फोरम,सिवनी                           

            (म0प्र0)                                               (म0प्र0)

 

 

 

 

 

 

 

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