राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
सुरक्षित।
अपील संख्या:-2348/2001
(जिला उपभोक्ता आयोग, कानपुर नगर द्वारा परिवाद संख्या-674/1995 में पारित प्रश्नगत आदेश दिनॉंक 25-08-2001 के विरूद्ध)
Dr. Surendra Bahadur Singh, S/o Late Ram Singh resident of 94/4, Vijai Nagar, Kanpur Nagar.
……………..Appellant/Opp. Party.
Versus
Central Bank of India, Extension, Saraswati Balika Inter College, Vijai Nagar, Kanpur Nagar through its Branch Manager.
…………….Respondent/Complainant.
समक्ष:-
1. मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
2. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री आलोक रंजन विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित: श्री बी0एल0 जायसवाल विद्वान अधिवक्ता।
दिनॉंक:-25-08-2021
मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
अपीलार्थी द्वारा यह अपील जिला उपभोक्ता आयोग, कानपुर नगर द्वारा परिवाद संख्या-674/1995 डॉ0 सुरेन्द्र बहादुर बनाम सेन्ट्रल बैंक ऑफ इण्डिया में पारित निर्णय व आदेश दिनॉंक 25-08-2001 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी है।
संक्षेप में अपील के आधार है कि अपीलार्थी/परिवादी दिनॉंक 10-07-94 को दो एकाउन्ट पेयी चेक क्रमश: 8373/-रूपये तथा 1933/-रूपये का एल0आई0सी0 ऑफ इण्डिया के पक्ष में अपने बचत खाता संख्या 2127, सेन्ट्रल बैंक ऑफ इण्डिया एक्सटेंशन, सरस्वती बालिका इन्टर कालेज विजय नगर कानपुर नगर का जारी किया और फिर दिनॉंक 12-07-94 को उसने एक पत्र प्रत्यर्थी को दो चेकों के भुगतान को रोकने का दिया किन्तु इसके बावजूद प्रत्यर्थी ने दोनों चेकों का भुगतान दिनॉंक 14-07-94 को कर दिया। अपीलार्थी ने जब एक परिवाद दायर किया जिसमें उसने दो चेकों की धनराशि के साथ साथ हर्जाना 5000/-रूपये दिलाये जाने की मॉंग की। प्रत्यर्थी बैंक ने कहा कि उसे यह पत्र दिनॉंक 18-07-94 को मिला था जब कि भुगतान दिनॉंक 14-07-94 को किया जा चुका था। विद्वान जिला फोरम/आयोग कानपुर नगर ने एक आदेश से परिवाद निरस्त कर दिया। प्रश्नगत निर्णय व आदेश साक्ष्य के विपरीत पारित किया गया जो त्रुटियुक्त है और बिना किसी मस्तिष्क के प्रयोग के किया गया है। प्रत्यर्थी बैंक ने कोई शपथ पत्र प्रस्तुत नहीं किया। परिवादी ने शपथ पत्र दिया कि उसका पत्र दिनॉंक 12-07-94 को प्राप्त हो गया था जिसको प्रत्यर्थी ने कोई उत्तर नहीं दिया। विद्वान जिला फोरम/आयोग स्वयं इन पत्रों को मंगा सकता था, किन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया। अत: वर्तमान अपील स्वीकार करते हुए प्रश्नगत निर्णय अपास्त किया जाए।
हमने उभयपक्ष की बहस सुनी तथा पत्रावली का सम्यक रूप से परिशीलन किया।
प्रश्नगत निर्णय दिनॉक 25-08-2001 में विद्वान जिला फोरम/आयोग ने लिखा है कि परिवादी ने पत्र जो चेक का भुगतान रोकने के लिये भेजा था वह भुगतान करने के बाद बैंक को प्राप्त हुआ और इसी आधार पर परिवाद निरस्त किया गया।
हमने प्रश्नगत पत्रों का अवलोकन किया। यह पत्र दिनॉंक 12-07-94 का है जिस पर स्पष्ट बैंक की मुहर लगी है जिसमें दिनॉंक 18-07-94 परिलक्षित होता है। बैंक द्वारा बताया गया कि भुगतान दिनॉंक 14-07-94 को किया गया। चॅूंकि भुगतान रोकने का पत्र बाद में प्राप्त हुआ था, इसलिये उस पर कार्यवाही नहीं हो पायी क्योंकि भुगतान पहले हो गया था। परिवादी ने जिला फोरम/आयोग में बैंक के किसी अधिकारी को उक्त पत्र को सिद्ध करने के लिये नहीं बुलाया और न ही मूल पत्र में समन किया। यह दायित्व परिवादी का था कि वह सिद्ध करता कि उसका पत्र दिनॉंक 12-07-94 को बैंक में उसी दिन प्राप्त हो गया था या नहीं।
यहॉं यह प्रश्न विचारणीय है कि बैंक को यदि भुगतान रोकने का पत्र प्राप्त हो गया होता तब उसे भुगतान करने की कोई आवश्यकता नहीं थी। क्योंकि यह एक रूटीन भुगतान होता है और जिससे बैंक को कोई फायदा नहीं पहुँचता। अत: सम्पूर्ण तथ्यों के अवलोकन से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि वर्तमान अपील तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है।
वर्तमान अपील सव्यय निरस्त की जाती है। विद्वान जिला फोरम/आयोग द्वारा पारित निर्णय व आदेश दिनॉंक 25-08-2001 की पुष्टि की जाती है।
अपील व्यय पक्षकारों पर।
उभयपक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
निर्णय आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनॉंकित होकर उदघोषित किया गया।
(राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
प्रदीप कुमार, आशु0
कोर्ट नं0-3