राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उत्तर प्रदेश, लखनऊ।
मौखिक
अपील संख्या:-२७८०/१९९९
(जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग, देवरिया द्धारा परिवाद सं0-८६७/१९९७ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक २६-०५-१९९९ के विरूद्ध)
अरिमर्दन तिवारी पुत्र श्री सी0सी0 तिवारी, निवासी अंसारी रोड, जिला देवरिया।
........... अपीलार्थी/परिवादी।
बनाम
१. सेण्ट्रल बैंक आफ इण्डिया द्वारा रीजनल मैनेजर, पालिका रोड, देवरिया।
२. ब्रान्च मैनेजर, सेण्ट्रल बैंक आफ इण्डिया, ब्रान्च आफिस, अंसारी रोड, देवरिया।
…….. प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण।
समक्ष :-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित :- श्री एम0एच0 खान विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित :- कोई नहीं।
दिनांक :- १४-०२-२०२२.
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, अपीलार्थी अरिमर्दन तिवारी द्वारा इस आयोग के सम्मुख उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ की धारा-१५ के अन्तर्गत जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग, देवरिया द्धारा परिवाद सं0-८६७/१९९७ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक २६-०५-१९९९ के विरूद्ध योजित की गई है।
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संक्षेप में परिवाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादी के कथनानुसार विपक्षी बैंक द्वारा परिवादी को शिक्षित बेरोजगार योजना के अन्तर्गत स्वरोजगार हेतु ६१,७५०/- रू० का ऋण स्वीकृत किया गया था। परिवादी रेडीमेड परिधान बनाने का उद्योग करना चाहता था। विपक्षी सं0-२ ने दिनांक ११-०१-१९९५ को परिवादी को १५,०००/- रू० सिलाई मशीन खरीदने तथा ५,०००/- रू० फर्नीचर खरीदने हेतु ऋण का भुगतान किया। तदोपरान्त १५,०००/- रू० दिया, जिससे परिवादी ने कपड़ा खरीदा। दिनांक ०७-०२-१९९५ को ६,०००/- रू० विपक्षी बैंक ने परिवादी को दिया। इसके पश्चात् विपक्षी सं0-२ ने परिवादी को स्वीकृत ऋण की शेष रकम का भुगतान नहीं किया, जबकि परिवादी ने इस सम्बन्ध में विपक्षी बैंक से कई बार आग्रह किया। परिवादी का यह भी कथन है कि विपक्षी सं0-२ ने गलत आधार पर दिनांक ०४-१२-१९९५ को परिवादी के विरूद्ध आर0सी0 जारी कर दी जिसे विपक्षी सं0-२ ने दिनांक २१-१२-१९९६ को वापस ले लिया। परिवादी का यह कथन है कि विपक्षी सं0-२ ने परिवादी को बिना सूचना दिए उसके स्वीकृत ऋण में से २३,९९०/- रू० ऊषा वस्त्रालय को दे दिया। विपक्षीगण ने परिवादी के ऋण की धनराशि पर अनुदान नहीं दिया है। परिवादी ने जिला फोरम के सम्मुख मांग की कि ४१,०००/- रू० ऋण ब्याज के साथ सात वर्ष में आसान किश्तों में उससे बसूला जावे तथा स्वीकृत ऋण की शेष रकम उसे दे दी जावे। परिवादी ने क्षतिपूर्ति एवं वाद व्यय की भी मांग की।
विपक्षीगण ने विद्वान जिला फोरम के सम्मुख अपना प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत किया जिसमें कथन किया गया कि परिवादी को प्रधानमंत्री योजना
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के अन्तर्गत ६१,७५०/- रू० ऋण के रूप में स्वीकृत किए थे। परिवादी को २०,०००/- रू०, १५,०००/- रू० एवं दिनांक ०८-०२-१९९५ को २७६०/- रू० दे दिए थे। दिनांक ११-०२-१९९५ को परिवादी को ऋण के रूप में २३,९९०/- रू० दिए थे। परिवादी ने ऋण की धनराशि का दुरूपयोग किया था इसलिए ऋण की धनराशि की वसूली के लिए उसके विरूद्ध आर0सी0 जारी की गई। परिवादी द्वारा यह आश्वासन दिए जाने पर कि वह ऋण की राशि का सदुपयोग करेगा, आर0सी0 वापस ले ली गई। दिनांक १७-०२-१९९५ को परिवादी के आग्रह पर विपक्षी सं0-२ ने २३,९९०/- रू० का चेक परिवादी के ऋण की धनराशि के रूप में ऊषा वस्त्रालय नगर पालिका रोड, देवरिया के नाम जारी किया गया था, जिस दुकान से परिवादी ने अपने उद्योग के लिए कपड़ा खरीदा था। परिवादी के ऋण पर सरकार ने अनुदान नहीं दिया है इसलिए परिवादी को कोई अनुदान नहीं दिया है।
विद्वान जिला फोरम/आयोग ने उभय पक्षों के कथनों एवं साक्ष्यों पर विस्तृत विवेचना के उपरान्त परिवादी का परिवाद अपने प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश द्वारा अस्वीकृत कर दिया। इस निर्णय एवं आदेश से विक्षुब्ध होकर प्रस्तुत अपील प्रस्तुत की गई है।
मेरे द्वारा अपलीर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री एम0एच0 खान को सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेखों का परिशीलन किया गया। प्रत्यर्थीगण की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
जिला फोरम/आयोग द्वारा अपने निर्णय एवं आदेश के अनुसार इस
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तथ्य का समुचित विवरण अंकित किया कि अपीलार्थी/परिवादी द्वारा जो एग्रीमेण्ट का विवरण प्रस्तुत किया गया है उसमें इस तथ्य का स्पष्ट रूप से प्राविधान अंकित है कि परिवादी द्वारा वापसी ६० किश्तों में की जावेगी तथा प्रत्येक किश्त १५००/- रू० की होगी। उपरोक्त किश्त की देयता की तिथि को भी एग्रीमेण्ट में अंकित किया गया है तथा यह भी अंकित किया गया है कि यदि परिवादी उपरोक्त किश्तें देयता के अनुसार ऋण का भुगतान नहीं करेगा तब उस स्थिति में विपक्षी बैंक को पूर्ण अधिकार होगा कि वह ऋण की सम्पूर्ण धनराशि एकमुश्त अपीलार्थी/परिवादी से वसूल करे। विद्वान जिला फोरम/आयोग द्वारा उक्त एग्रीमेण्ट का परिशीलन करने के उपरान्त तथा उपरोक्त एग्रीमेण्ट में अंकित तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए यह पाया कि परिवादी ने ऋण की वसूली में कोई भी रकम विपक्षी बैंक को वापस नहीं की, अत्एव उपरोक्त स्थिति में विपक्षीगण/प्रत्यर्थीगण को यह सम्पूर्ण अधिकार है कि वे वैधानिक रूप से ऋण की वसूली अपीलार्थी/परिवादी से करें।
विद्वान जिला फोरम/आयोग द्वारा उपरोक्त विवेचना के उपरान्त यह पाया कि अपीलार्थी/परिवादी द्वारा जो अनुतोष विद्वान जिला फोरम से प्राप्त किया जाना चाहा है वह अनुतोष विद्वान जिला फोरम मामले की परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए प्रदान नहीं कर सकता है।
मेरे द्वारा अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को सुनने तथा विद्वान जिला फोरम के प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश के परिशीलन के उपरान्त यह पाया गया कि विद्वान जिला फोरम/आयोग द्वारा जो निर्णय एवं आदेश
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पारित किया गया है वह पूर्णत: सुसंगत है और उसमें किसी प्रकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। अपील तद्नुसार निरस्त की जाती है।
अपील व्यय उभय पक्ष अपना-अपना बहन करेगें।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
प्रमोद कुमार,
वैयक्तिक सहायक ग्रेड-१,
कोर्ट नं0-१.