(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 1903/2016
अब्दुल हन्नान पुत्र मु0 सिद्दीकी, निवासी बनबीरा, पोस्ट बनबीरा, तहसील तमकुहीराज, जिला कुशीनगर।
.........अपीलार्थी
बनाम
1. सेन्ट्रल बैंक आफ इंडिया, शाखा पिपरा कनक, पोस्ट पिपरा कनक, जिला कुशीनगर द्वारा शाखा प्रबंधक।
2. यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कम्पनी लि0, शाखा कार्यालय देवरिया, द्वारा शाखा प्रबंधक।
.......प्रत्यर्थीगण
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से : श्री बी0के0 उपाध्याय,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0- 1 की ओर से : श्री जफर अजीज,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0- 2 की ओर से : श्री प्रसून कुमार राय,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक:- 20.04.2022
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित
निर्णय
परिवाद सं0- 161/2006 अब्दुल हन्नान बनाम शाखा प्रबंधक, सेन्ट्रल बैंक आफ इंडिया व एक अन्य में जिला उपभोक्ता आयोग, कुशीनगर द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दि0 07.09.2016 के विरुद्ध यह अपील धारा- 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है।
अपीलार्थी/परिवादी द्वारा परिवाद पत्र इन आधारों पर प्रस्तुत किया गया कि उसने अपीलार्थी सं0- 1/विपक्षी सं0- 1 के यहां से 1,00,000/-रू0 का ऋण दि0 04.10.2002 को मुर्गीपालन हेतु लिया था जिसका खाता सं0- 14/6 है। मुर्गीपालन का बीमा प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक ने स्वयं कराया था जिसके लिए अपीलार्थी/परिवादी से 750/-रू0 लिया था। 12,500/-रू0 मार्जिन मनी बैंक द्वारा काटा गया था। इस ऋण राशि में 7500/-रू0 की सब्सिडी थी जिसको बैंक ने नहीं दिया। अपीलार्थी/परिवादी ने 17,000/-रू0 ऋण की अदायगी किया और मुर्गीपालन का कार्य करने लगा। दि0 11.05.2004, दि0 25.06.2004 व दि0 29.06.2004 को 30900/-रू0 में चुज्जे आदि क्रय करके अपीलार्थी/परिवादी लाया था। पोल्ट्री फार्म में दि0 11.05.2004 को चुज्जे लाये गये थे जो तैयार हो गये तथा दि0 25.06.2004 को लाये गये चिक्स छोटे थे जो तैयार नहीं हुए थे। इसी मध्य एक संक्रामक बीमारी फैल गई जिसमें चुज्जे मरने लगे। अपीलार्थी/परिवादी सरकारी पशु चिकित्सालय तमकुहीराज में जाकर चुज्जों के इलाज के लिए कहा, लेकिन वे नहीं आये। बीमारी ने भयंकर रूप ले लिया जिससे पोल्ट्री फार्म की सभी मुर्गियां मर गईं। अपीलार्थी/परिवादी ने इसकी सूचना बैंक व बीमा कम्पनी को देकर निवेदन किया कि उसे बहुत ही आर्थिक क्षति उठानी पड़ी है। इसलिए ऋण को माफ कर दिया जाये और इसकी भरपाई बीमा कम्पनी से करा ली जाये। अपीलार्थी/परिवादी का कथन है कि उसने सूचना बीमा कम्पनी व बैंक तथा पशु चिकित्साधिकारी को दिया और भाग-दौड़ करता रहा। ऋण राशि के अलावा आहार दाना, अतिरिक्त पूँजी व मुर्गियों के रख रखाव में 40,000/-रू0 अतिरिक्त अपीलार्थी/परिवादी का खर्च हो गया। अपीलार्थी/परिवादी ने जिलाधिकारी, कुशीनगर को प्रार्थना पत्र दिया कि वह ऋण लेकर मुर्गी पालन कर रहा था उसकी सारी मुर्गियां बीमारी फैल जाने के कारण मर गई हैं, इसलिए उसका ऋण माफ किया जाये।
जिलाधिकारी द्वारा तहसीलदार, तमकुहीराज से जांच करायी गई, जिन्होंने दि0 30.07.2005 को जांच रिपोर्ट दिया और अपीलार्थी/परिवादी की मांग को उचित कहा तथा जिलाधिकारी ने प्रत्यर्थी सं0- 1/विपक्षी सं0- 1 को दि0 18.08.2005 को ऋण माफी के सम्बन्ध में पत्र लिखा, अत: लिये गये ऋण 1,00,000/-रू0 को माफ करते हुए क्षति की क्षतिपूर्ति बीमा कम्पनी से कराये जाने व शारीरिक एवं मानसिक क्षति के लिए 50,000/-रू0 तथा उक्त अतिरिक्त खर्च 40,000/-रू0 प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण से दिलाये जाने की याचना की गई।
अपीलार्थी/परिवादी ने पुन: परिवाद को संशोधित किया और यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कम्पनी को पक्षकार बनाया तथा अंत में परिवाद में दि0 30.10.2015 को पुन: संशोधित किया और कथन किया कि उसने मुर्गीपालन हेतु ऋण लिया था। केन्द्र सरकार की कृषि ऋण माफी योजना 2008 के अंतर्गत उसका ऋण माफ होने योग्य है। यह भी कहा कि चूँकि केन्द्र सरकार की कृषि ऋण माफी योजना वर्ष 2008 में लागू हुई और यह परिवाद वर्ष 2006 में प्रस्तुत किया गया इसलिए केन्द्र सरकार की उक्त योजना का उल्लेख परिवाद में नहीं कर सका उसके द्वारा अब यह अनुतोष चाहा गया है कि प्रत्यर्थी सं0- 1/विपक्षी सं0- 1 कृषि ऋण माफी योजना 2008 का लाभ प्रदान करते हुए ऋण माफ कर अदेयता प्रमाण पत्र जारी करे तथा प्रत्यर्थी सं0- 2/विपक्षी सं0- 2 बीमित राशि 1,00,000/-रू0 18 प्रतिशत ब्याज सहित दुर्घटना तिथि से दिलाये जाये।
प्रत्यर्थी सं0- 1/विपक्षी सं0- 1 द्वारा वादोत्तर में कथन किया गया है कि अपीलार्थी/परिवादी ने प्रधानमंत्री रोजगार योजना के अंतर्गत 1,00,000/-रू0 का ऋण लिया तथा 12,500/-रू0 मार्जिन मनी जमा किया। समय-समय पर प्रत्यर्थी सं0- 2/विपक्षी सं0- 2 से बीमा कराया गया जिसके प्रीमियम का भुगतान अपीलार्थी/परिवादी के खाते से किया गया। बर्ड फ्लू आता है कि उसकी पुष्टि जिलाधिकारी व सी0एम0ओ0 की आख्या के बाद ही होती है। अपीलार्थी/परिवादी ने मुर्गियों के मरने का प्रमाण पत्र सी0एम0ओ0 से प्राप्त नहीं किया। जिलाधिकारी ने पत्रांक 202 दिनांकित 18.05.2002 द्वारा यह निर्देश दिया कि अपने स्तर से ऋण माफी हेतु उचित एवं आवश्यक कार्यवाही की जाये, लेकिन प्रत्यर्थी/विपक्षी एक राष्ट्रीयकृत बैंक है। बैंकिग एक्ट के तहत किसी भी ऋण को यदि सरकार द्वारा कोई फण्ड उक्त ऋण को माफ करने के बारे में दिया जाता है तो बैंक उस धनराशि को सरकार के खाते से मंगाते हुए ऋणी के खाते में डाल देता, लेकिन ऐसा कोई चेक या ड्राफ्ट जिलाधिकारी से प्राप्त नहीं हुआ। अपीलार्थी/परिवादी के जिम्मे 1,02,937/-रू0 बकाया है तथा दि0 01.04.2006 से ब्याज अवशेष है। पुन: अतिरिक्त वादोत्तर में यह कहा गया है कि अपीलार्थी/परिवादी ऋण राहत योजना का पात्र नहीं है। यदि यह किसी प्रकार से साबित भी हो जाता है तो उस परिस्थिति में भी अपीलार्थी/परिवादी ऋण राहत योजना का लाभ नहीं प्राप्त कर सकता, क्योंकि भारत सरकार की ऋण राहत योजना वर्ष 2008 में लागू हुई और वर्ष 2009 में बंद हो गई तथा अपीलार्थी/परिवादी ने वर्ष 2014 में ऋण राहत योजना का लाभ पाने की याचना की है, अत: परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।
प्रत्यर्थी सं0- 2/विपक्षी सं0- 2 ने भी वादोत्तर में कथन किया है कि अपीलार्थी/परिवादी का यह कथन गलत है कि उसने मुर्गे, मुर्गियों के मरने की सूचना बीमा कम्पनी को दिया। कोई घटना घटित होने पर बीमा कम्पनी को तत्काल सूचना दिया जाना चाहिए। अपीलार्थी/परिवादी ने कोई सूचना नहीं दिया। ऋण अदा न करना पड़े इसलिए उसने यह परिवाद दाखिल किया है। अपीलार्थी/परिवादी ने सी0एम0ओ0 से मुर्गियों के मरने का कोई प्रमाण पत्र प्राप्त नहीं किया। बीमा कम्पनी द्वारा अपीलार्थी/परिवादी के मुर्गियों के खाद्य पदार्थ का बीमा फायर एण्ड बरगलरी हेतु किया गया था। मुर्गियों की क्षति एवं मृत्यु के सम्बन्ध में बीमा नहीं हुआ था। बीमा कम्पनी की कोई देनदारी नहीं है, अत: परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।
हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री बी0 के0 उपाध्याय तथा प्रत्यर्थी सं0- 1 के विद्वान अधिवक्ता श्री जफर अजीज एवं प्रत्यर्थी सं0- 2 के विद्वान अधिवक्ता श्री प्रसून कुमार राय को सुना। प्रश्नगत निर्णय व आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेखों का सम्यक परिशीलन किया।
उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को विस्तार पूर्वक सुनने एवं पत्रावली के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि जिला आयोग द्वारा समस्त तथ्यों एवं उपलब्ध प्रपत्रों का भली-भॉति परिशीलन एवं परीक्षण करने के उपरान्त विधि अनुसार निर्णय व आदेश पारित किया गया है, जिसमें हस्तक्षेप हेतु उचित आधार प्रतीत नहीं होता है। तदनुसार अपील निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील निरस्त की जाती है। प्रश्नगत निर्णय व आदेश की पुष्टि की जाती है।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (विकास सक्सेना)
अध्यक्ष सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0- 1