Uttar Pradesh

StateCommission

A/2000/663

Union Of India - Complainant(s)

Versus

Cane Development Council - Opp.Party(s)

Mrs. P L Nigam

18 Nov 2008

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2000/663
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Union Of India
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Cane Development Council
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'ABLE MR. Alok Kumar Bose PRESIDING MEMBER
 HON'ABLE MR. Jugul Kishor MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
ORDER

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

सुरक्षित

अपील संख्‍या-663/2000

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, रामपुर द्वारा परिवाद संख्‍या-21/1999 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 10.02.2000 के विरूद्ध)

 

1. यूनियन आफ इण्डिया द्वारा सेक्रेटरी, मिनिस्‍ट्री आफ टेलीकम्‍यूनिकेशन, नई दिल्‍ली।

2. असिस्‍टेट पोस्‍ट मास्‍टर, सेविंग्‍स बैंक, रामपुर।

3. सीनियर सुप्रीटेंडेंट आफ पोस्‍ट आफिसेस, मुरादाबाद।   ......अपीलार्थीगण/विपक्षीगण।                                           

बनाम्

केन डेवलेपमेंट काउंसिल द्वारा सेक्रेटरी छोटे लाल गर्ग।   .................प्रत्‍यर्थी/परिवारदी।                                                 

समक्ष:-

1. माननीय श्री आलोक कुमार बोस, पीठासीन सदस्‍य।

2. माननीय श्री जुगुल किशोर, सदस्‍य।

अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित          : कोई नहीं।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित         : श्री ए0के0 पाण्‍डेय, विद्वान अधिवक्‍ता।

दिनांक 07.01.2015        

माननीय श्री जुगुल किशोर, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

यह अपील वर्ष 2000 से निस्‍तारण हेतु सूचीबद्ध है। अपीलार्थीगण की ओर से कोई उपस्थित नहीं है, जबकि प्रत्‍यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री ए0के0 पाण्‍डेय उपस्थित हैं। उन्‍हें सुना गया एवं पत्रावली का परिशीलन किया गया और समीचीन पाया गया कि इस प्रकरण का निस्‍तारण कर दिया जाये।

इस प्रकरण में आवश्‍यक तथ्‍य इस प्रकार हैं कि परिवादी/प्रत्‍यर्थी केन डेवलेपमेंट कांउसिल ने रू0 1,93,500/- दिनांक 22.01.1997 को एक वर्ष के लिए खाता संख्‍या-209358 में जमा किया जिसकी भुगतान की तिथि दिनांक 22.01.1998 थी और दूसरा खाता संख्‍या-209420 में दिनांक 25.02.1997 को रू0 100000/- एक वर्ष के लिये जमा किया जिसकी भुगतान की तिथि दिनांक 25.02.1998 थी। उपरोक्‍त दोनों खातों में खाताधारक सेक्रेटरी का नाम परिवर्तित किये जाने के लिए परिवादी ने दिनांक 04.02.1998 को एक पत्र अपीलार्थीगण/विपक्षीगण को लिखा, जिसके जवाब में दिनांक 19.03.1998 को एक पत्र प्राप्‍त हुआ कि परिवादी द्वारा नियम-4 (2) के विरूद्ध खाते खोले गये हैं, अत: उन्‍हें तुरन्‍त बंद करने का निर्देश दिया गया जबकि परिवादी द्वारा कहा गया कि वह 06 या 07 सालों से इस प्रकार का डिपाजिट करता आ रहा है और भुगतान पाता है। फिर भी आदेश के अनुपालन में प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने दिनांक 26.03.1998 को अपीलार्थी/विपक्षीगण को इस आशय का एक पत्र भेजा कि उसका भुगतान ब्‍याज सहित खाता बंद किया जाये, किन्‍तु  अपीलार्थीगण  द्वारा  कोई  ध्‍यान  नहीं दिया गया। तत्‍पश्‍चात प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने

-2-

दिनांक 24.04.1998, 27.04.1998, 02.06.1998, 12.06.1998, 12.08.1998, 11.09.1998, 02.11.1998, 09.11.1998 तथा दिनांक 22.12.1998 को उन्‍हें भुगतान हेतु पत्र लिखा किन्‍तु अपीलार्थीगण द्वारा इन पर कोई ध्‍यान नहीं दिया गया जिससे क्षुब्‍ध होकर परिवादी/प्रत्‍यर्थी द्वारा जिला फोरम, रामपुर में प्रश्‍नगत परिवाद योजित किया गया।

अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा जिला फोरम के समक्ष दाखिल जवाबदावा में प्रत्‍यर्थी द्वारा द्वारा टर्म डिपाजिट स्‍कीम के अन्‍तर्गत धनराशि जमा करना स्‍वीकार किया गया है। परन्‍तु यह बचाव लिया गया है कि प्रत्‍यर्थी ने नियम-4 (2) पोस्‍ट आफिस टाइम डिपाजिट रूल्‍स, 1981 में दिये गये नियम के विपरीत गलत तरीके से धनराशि जमा किया है। टर्म डिपाजिट केवल व्‍यक्तिगत नाबालिग या गार्जियन जमा कर सकता है। टर्म डिपाजिट किसी संस्‍था द्वारा नहीं खोला जा सकता है और परिवादी/प्रत्‍यर्थी ने कोआपरेटिव सोसायटी में जो खाता टर्म डिपाजिट में खोला है वह अवैध खोला है इस प्रकार परिवादी अपनी जमा धनराशि पर ब्‍याज पाने का अधिकारी नही है।   

 जिला फोरम द्वारा उभय पक्ष को सुनने तथा पत्रावली का अवलोकन करने के पश्‍चात दिनांक 10.02.2000 को परिवाद स्‍वीकार करते हुए विपक्षीगण/अपीलार्थीगण को यह आदेश दिया गया कि वह परिवादी/प्रत्‍यर्थी को आदेश के एक माह के भीतर दोनों प्रश्‍नगत टर्म डिपाजिट की धनराशि रू0 1,93,000/- तथा रू0 1,00,000/- 11 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज की दर से जमा करने की तिथि क्रमश: 22.01.1997 तथा दिनांक 25.02.1997 से अदा करें तथा क्षतिपूर्ति के रूप में रू0 5,000/- भी अदा करने का भी आदेश दिया गया।

उपरोक्‍त आदेश से क्षुब्‍ध होकर अपीलार्थीगण/विपक्षीगण द्वारा यह अपील दिनांक 10.03.2000 को दाखिल की गयी है। अपीलार्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है, जबकि प्रत्‍यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री ए0के0 पाण्‍डेय उपस्थित हैं। अपीलार्थी द्वारा दिनांक 05.07.2000 को उपस्थित होकर जिला फोरम द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश को स्‍थगित कराने के पश्‍चात इस अपील पर कोई बल नहीं दिया जा रहा है और न ही वह उपस्थित हो रहे हैं। अत: पीठ द्वारा पत्रावली एवं जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश का अवलोकन किया गया।

     यह तथ्‍य अपीलार्थी को स्‍वीकार्य है कि प्रत्‍यर्थी ने दिनांक 22.01.1997 को अपने नाम से टर्म डिपोजिट स्‍कीम के अन्‍तर्गत खाता संख्‍या-209358 में रू0 1,93,500/- जमा किया था, जिसकी भुगतान की तिथि दिनांक 22.01.1998 थी। इसी प्रकार उसने दूसरा खाता संख्‍या-209420 दिनांक 25.02.1997 को रू0 1,00,000/- जमा करके खोला था, जिसकी अन्तिम भुगतान की तिथि दिनांक 25.02.1998 थी। अपीलार्थी को यह मान्‍य है कि उसके द्वारा दिनांक 19.03.1998 को प्रत्‍यर्थी को इस आशय का एक पत्र लिखा गया था कि उपरोक्‍त दोनों खाते नियम 4 (2) पोस्‍ट आफिस टाईम डिपोजिट रूल्‍स 1981 के नियमों  के  विपरीत होने के कारण उन्‍हें तत्‍काल बंद कर दिया जाये। तत्‍पश्‍चात प्रत्‍यर्थी ने

-3-

दिनांक 26.03.1998 को अपीलार्थीगण को इस आशय का एक विधिक पत्र भेजा कि खाते तत्‍काल बंद करते हुए अन्तिम भुगतान कर दिया जाये। इसके उपरान्‍त भी अपीलार्थीगण द्वारा परिवादी को भुगतान नहीं किये जाने पर परिवाद संख्‍या-21/1999 संस्थित किये जाने की आवश्‍यकता पड़ी। अधीनस्‍थ फोरम द्वारा उपरोक्‍त धनराशि को प्रत्‍यर्थी/परिवादी को वापस लौटाने हेतु जो आदेश पारित किया गया है, वह पूर्ण रूप से विधिसम्‍मत है एवं पत्रावली में उपलब्‍ध साक्ष्‍यों पर आधारित है। इसमें हस्‍तक्षेप करने का प्रथम दृष्‍टया कोई आधार नहीं बनता है। अपीलार्थीगण का कहना है कि अधीनस्‍थ फोरम द्वारा सम्‍पूर्ण धनराशि पर 11 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज अदा करने हेतु आदेश पारित किया गया है एवं साथ ही साथ प्रत्‍यर्थी/परिवादी को क्षतिपूर्ति स्‍वरूप रू0 5,000/- अदा करने का भी आदेश पारित किया गया है, जो नियमों के विपरीत है। चूंकि अपीलार्थीगण को जमाशुदा धनराशि पर प्रारम्‍भ से अन्तिम भुगतान की तिथि तक ब्‍याज अदा करने का आदेश पारित किया गया है एवं परिवादी/प्रत्‍यर्थी निरन्‍तर उक्‍त धनराशि पर ब्‍याज प्राप्‍त कर रहा है, अत: माननीय राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा पारित विभिन्‍न विधिक सिद्धान्‍तों को दृष्टिगत रखते हुए उसे एक ही धनराशि पर एकाधिक लाभ प्राप्‍त करने का प्रथम दृष्‍टया अधिकार नहीं बनता है। इसके साथ साथ रिजर्व बैंक आफ इण्डिया द्वारा निर्धारित ब्‍याज-दर तथा पोस्‍ट आफिस टाइम डिपाजिट रूल्‍स 1981 में दिये गये प्रावधानों के विपरीत तय-शुदा ब्‍याज से अधिक ब्‍याज अदा करने हेतु दिया गया आदेश विधिअनुरूप नहीं है। अत: पत्रावली पर उपलब्‍ध साक्ष्‍यों को दृष्टिगत रखते हुए हम इस निष्‍कर्ष पर पहुँचते हैं कि यदि अपीलार्थीगण को प्रत्‍यर्थी द्वारा जमा की गयी सम्‍पूर्ण धनराशि पर, धनराशि जमा करने की तिथि से अन्तिम भुगतान की तिथि तक 06 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्‍याज अदा करने हेतु आदेश पारित किया जाये तो यह आदेश न्‍यायसंगत होगा। तदनुसार यह अपील आंशिक रूप से स्‍वीकार होने योग्‍य है। चूंकि प्रत्‍यर्थी अपने ही धनराशि वापस प्राप्‍त करने के लिये पिछले लगभग 18 वर्ष से दौड़-भाग कर रहा है, अत: क्षतिपूर्ति स्‍वरूप दी गयी धनराशि रू0 5,000/- न्‍यायसगंत प्रतीत है।      

आदेश

अपील आंशिक रूप से सव्‍यय स्‍वीकार की जाती है। अपीलार्थीगण को आदेश दिया जाता है कि वह प्रत्‍यर्थी द्वारा जमा की गयी सम्‍पूर्ण धनराशि पर, धनराशि जमा करने की तिथि से अन्तिम भुगतान की तिथि तक 11 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज के स्‍थान 06 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्‍याज की दर से ब्‍याज दिया जाये। शेष आदेश यथावत रहेगा।

पक्षकार इस अपील का अपना अपना अपीलीय व्‍यय स्‍वंय वहन करेंगे। इस निर्णय/आदेश की प्रमाणित प्रतिलिपि उभय पक्ष को नियमानुसार उपलब्‍ध करा दी जाये। पत्रावली दाखिल अभिलेखागार हो।

 

              (आलोक कुमार बोस)                    (जुगुल किशोर)

             पीठासीन सदस्‍य                           सदस्‍य

लक्ष्‍मन, आशु0,  कोर्ट-5

 
 
[HON'ABLE MR. Alok Kumar Bose]
PRESIDING MEMBER
 
[HON'ABLE MR. Jugul Kishor]
MEMBER

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