Uttar Pradesh

StateCommission

C/2011/127

Shiv Prakash Sharma - Complainant(s)

Versus

Canara HSBC Life Insurance - Opp.Party(s)

A K Pandey

26 May 2015

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
Complaint Case No. C/2011/127
 
1. Shiv Prakash Sharma
a
...........Complainant(s)
Versus
1. Canara HSBC Life Insurance
a
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE Virendra Singh PRESIDENT
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

         सुरक्षित

परिवाद सं0-127/2011   

शिव प्रकाश शर्मा ग्राम नगला कासिमपुर पीओ सिंगायच तहसील खेरागढ जिला आगरा-२८२००३ ।

                                       ...........परिवादी                                       

बनाम

केनरा एचएसबीसी ओरियंटल बैंक आफ कामर्स लाईफ इंश्‍योरेंस कं0लि0 द्वितीय फ्लोर राजेन्‍द्र पोइंट प्‍लाट नं0 १ रघुनाथ नगर आगरा-२८२००१ द्वारा ब्रांच मैनेजर।  

  •  

समक्ष:-

1. माननीय न्‍यायमूर्ति श्री वीरेन्‍द्र सिंह, अध्‍यक्ष।

2. माननीय श्री उदय शंकर अवस्‍थी, सदस्‍य ।

परिवादी की ओर से उपस्थित : श्री ए0के0 पाण्‍डेय विद्वान अधिवक्‍ता।

विपक्षी की ओर से उपस्थित: श्री विकास अग्रवाल विद्वान अधिवक्‍ता।

दिनांक: 14-09-2015

माननीय श्री उदय शंकर अवस्‍थी सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

  प्रस्‍तुत परिवाद परिवादी ने विपक्षी के विरूद्ध निम्‍न अनुतोष के साथ योजित किया है:-

  1. विपक्षी को निर्देशित किया जाए कि वह परिवादी को ३० लाख रूपये बीमा धनराशि मय १८ प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज हेतु अदा करे।

2.परिवादी को निर्देशित किया जाए कि वह मानसिक उत्‍पीड़न के संबंध में ५

     लाख रूपये परिवादी को अदा करे।

   3. २० हाजार रूपये बतौर वाद व्‍यय अदा करे।

संक्षेप में परिवादी का यह कथन है कि उसकी पत्‍नी ने विपक्षी से बीमा पालिसी सं0-००२३६१२०१८ मार्च २०११ में प्राप्‍त की थी। यह पालिसी ३० लाख रूपये के बीमित धन की थी तथा वार्षिक प्रीमियम १ लाख रूपये परिवादी की पत्‍नी द्वारा अदा किया गया था। परिवादी की पत्‍नी दूध का व्‍यवसाय करती थी जिससे उसकी अच्‍छी आमदनी थी। वह आयकर अदा करती थी । दिनांक २९/०३/२०११ को परिवादी की पत्‍नी का देहांत मेनिनजायटिस रोग से हो गयी थी। उस समय उसकी आयु लगभग २५ वर्ष थी तथा मृत्‍यु से पूर्व उसका स्‍वास्‍थ्‍य अच्‍छा था। प्रश्‍नगत बीमा में परिवादी अपनी पत्‍नी द्वारा नामित किया गया था। अत: पत्‍नी की मृत्‍यु के उपरांत परिवादी ने समस्‍त आवश्‍यक औपचारिकताएं पूर्ण करके बीमा दावा विपक्षी को प्रस्‍तुत किया था, किन्‍तु विपक्षी ने परिवादी का बीमा दावा इस आधार

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पर अस्‍वीकार कर दिया कि परिवादी की पत्‍नी ने प्रश्‍नगत बीमा पालिसी के संबंध में प्रस्‍ताव पत्र भरते समय अपने पूर्व बीमा पालिसियों का उल्‍लेख नहीं किया था। वास्‍तव में विपक्षी द्वारा परिवादी की पत्‍नी से उसका नाम, उम्र, पता, व्‍यवसाय, आमदनी एवं स्‍वास्‍थ्‍य के विषय में जानकारी मांगी गयी थी, किन्‍तु पूर्व बीमा पालिसियों के विषय में विपक्षी द्वारा कोई जानकारी नहीं मांगी गयी थी। प्रस्‍ताव पत्र विपक्षी के अभिकर्ता द्वारा भरा गया था जिस पर परिवादी ने मात्र हस्‍ताक्षर किए थे। परिवादी के दावे को अस्‍वीकार करके विपक्षी द्वारा सेवा में त्रुटि की गयी।

  विपक्षी ने परिवाद के अभिकथनों को स्‍वीकार न करते हुए प्रतिवाद पत्र प्रस्‍तुत किया है। विपक्षी के कथनानुसार परिवादी की पत्‍नी ने बीमा संबंधी समस्‍त शर्तों को सोच-समझकर प्रस्‍ताव पत्र भरा था और इस फार्म में निम्‍नलिखित प्रश्‍न पूछे गये थे।

प्रश्‍न- क्‍या पिछले तीन वर्षों में बीमा धारक की कोई अन्‍य बीमा पालिसी प्रभावी/समाप्‍त/पुनजीर्वित/प्रेषित(Aplied) रही है। इस प्रश्‍न के उत्‍तर में परिवादी की पत्‍नी ने किसी पूर्व बीमा पालिसी से इनकार करते हुए नकारात्‍मक उत्‍तर दिया था तथा यह घोषणा भी की थी कि उसने सभी प्रश्‍नों के सही एवं पूर्ण उत्‍तर दिए हैं, कोई भी सूचना उसने छिपायी नहीं है। यदि उसके द्वारा दिए गए उत्‍तर अथवा बयान गलत पाये जाते हैं तब बीमा पालिसी से संबंधित संविदा शून्‍य मानी जाएगी।

     अत: परिवादी की पत्‍नी द्वारा उपलब्‍ध कराई गयी सूचना एवं घोषणा के आलोक में विपक्षी ने परिवादी की पत्‍नी के नाम प्रश्‍नगत बीमा पालिसी जारी की जो दिनांक १६/०३/२०११ से प्रभावी थी।

     परिवादी की मृत्‍यु की सूचना प्राप्‍त होने के उपरांत एवं बीमा दावा प्रस्‍तुत किए जाने के कारण विपक्षी ने बीमा दावे के सत्‍यापन हेतु जांच की, जांच के दौरान यह तथ्‍य प्रकाश में आया कि प्रश्‍नगत बीमा पालिसी लेने से पूर्व परिवादी की पत्‍नी ने तीन अन्‍य बीमा पालिसियों हेतु आवेदन कर रखा था। परिवादी की पत्‍नी ने अपनी आर्थिक स्थिति की सही जानकारी बीमा पालिसी में उपलब्‍ध नहीं करायी थी। इस प्रकार परिवादी की पत्‍नी ने सारवान तथ्‍यों को छिपाकर प्रश्‍नगत बीमा पालिसी प्राप्‍त की । यदि यह तथ्‍य विपक्षी की जानकारी में परिवादी की पत्‍नी द्वारा प्रार्थना पत्र प्रस्‍तुत करते समय होती तब विपक्षी बीमा कम्‍पनी प्रश्‍नगत बीमा पालिसी जारी नहीं करती। ऐसी परिस्थिति में विपक्षी बीमा कम्‍पनी ने परिवादी के बीमा दावे को स्‍वीकार न करके कोई त्रुटि नहीं की है। साथ ही बीमा कम्‍पनी ने अविलंब प्रश्‍नगत बीमा पालिसी से संबंधित ९३१२५.०७ पैसे का चेक दिनांकित १९/०५/२०११ फण्‍ड वैल्‍यू के भुगतान के संबंध में परिवादी को जारी कर दिया  ।

 

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  परिवाद के अभिकथनों के समर्थन में परिवादी ने अपना शपथपत्र प्रस्‍तुत किया है एवं एक अन्‍य शपथपत्र दिनांकित ०३/०४/२०१४ प्रस्‍तुत किया है जिसके द्वारा परिवाद के अभिकथनों की पुष्टि की है तथा परिवाद के साथ निम्‍नलिखित अभिलेख भी प्रस्‍तुत किए गए हैं।

  1. प्रश्‍नगत बीमा पालिसी से संबंधित अभिलेख ।
  2. बीमाधारिका श्रीमती शिया देवी के मृत्‍यु प्रमाण पत्र की फोटोप्रति।
  3. श्रीमती शीतल देवी प्रधान द्वारा जारी किया गया प्रमाण पत्र ।
  4. पंचनामा ।
  5. डा0 राकेश बाबू द्वारा जारी किया गया प्रमाण पत्र दिनांकित २९-०३-२०११ ।
  6. परिवादी द्वारा विपक्षी बीमा कम्‍पनी को भेजे गए पत्र की फोटोप्रति।
  7. असेसमेंट वर्ष २०१० से संबंधित आयकर रिटर्न की फोटोप्रति ।
  8. वर्ष २०१०-२०११ से संबंधित आयकर रिटर्न की फोटोप्रति
  9. डा0 राकेश बाबू द्वारा विपक्षी बीमा कम्‍पनी को दिए गए विवरण की फोटोप्रति ।
  10. विपक्षी बीमा कम्‍पनी द्वारा प्रश्‍नगत बीमा भुगतान अस्‍वीकार किए जाने के

  संबंध में प्रेषित पत्र दिनांकित १०/०८/२०११ की फोटोप्रति।

     विपक्षी की ओर से साक्ष्‍य में श्री जगदीश एम, असिसटेंट वाईस प्रेसीडेंट लीगल एवं कम्‍प्‍लायंस केनरा एचएसबीसी ओरिएंटल बैंक आफ कामर्स लाईफ इंश्‍योरेंस कं0लि0 का शपथपत्र प्रस्‍तुत किया गया है एवं शपथपत्र के साथ निम्‍नलिखित अभिलेख प्रस्‍तुत किए गए हैं।

  1. प्रश्‍नगत बीमा पालिसी की फोटोप्रति।
  2. बीमाधारिका श्रीमती सिया देवी के मृत्‍यु प्रमाण पत्र की फोटोप्रति ।
  3. बीमा दावा निरस्‍त किए जाने से संबंधित विपक्षी द्वारा परिवादी को प्रेषित पत्र दिनांक १०/०८/२०११ की फोटोप्रति।
  4. विपक्षी बीमा कम्‍पनी द्वारा परिवादी को प्रेषित पत्र दिनांकित १५/०७/२०११ की फोटोप्रति जिसमें परिवादी को फण्‍ड वैल्‍यू के रूप में ९३१२५.०७/-रूपये चेक द्वारा भेजे जाने का भी उल्‍लेख है।

हमने परिवादी की ओर से श्री ए0के0 पाण्‍डेय एवं विपक्षी की ओर से श्री विकास अग्रवाल के तर्क सुने तथा अभिलेख का अवलोकन किया।

परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा यह तर्क प्रस्‍तुत किया गया कि प्रश्‍नगत बीमा पालिसी ३० लाख की परिवादी की पत्‍नी के नाम जिसमें परिवादी नामिनी था, विपक्षी द्वारा जारी किया जाना निर्विवाद है। यह तथ्‍य भी निर्विवाद है कि बीमा पालिसी के अन्‍तर्गत १ लाख रूपये वार्षिक प्रीमियम परिवादी की पत्‍नी द्वारा अदा किया गया। इस पालिसी के प्रभावी रहने के मध्‍य दिनांक २९/०३/२०११ को परिवादी की पत्‍नी बीमाधारिका श्रीमती सिया देवी की तेज बुखार के कारण अचानक मृत्‍यु

  1.  

हो गयी। दाहसंस्‍कार में श्रीमती सिया देवी के पिता एवं भाई भी सम्मिलित हुए। परिवादी की पत्‍नी की आकस्‍मात सामान्‍य मृत्‍यु हुई थी। पत्‍नी की मृत्‍यु के उपरांत परिवादी ने विपक्षी बीमा कम्‍पनी के समक्ष अपना बीमा दावा प्रस्‍तुत किया, किन्‍तु यह बीमा दावा विपक्षी बीमा कम्‍पनी ने इस आधार पर अस्‍वीकार कर दिया कि परिवादी की पत्‍नी ने प्रश्‍नगत बीमा पालिसी के संबंध में प्रस्‍ताव पत्र भरते समय विपक्षी बीमा कम्‍पनी को पूर्व बीमा पालिसियों के विषय में जानकारी नहीं दी थी। विपक्षी द्वारा बीमा दावा गलत आधार पर निरस्‍त किया गया है क्‍योंकि बीमाधारिका श्रीमती सिया देवी ने अपने प्रस्‍ताव फार्म पर ही मात्र हस्‍ताक्षर किए थे। प्रस्‍ताव पत्र विपक्षी बीमा कम्‍पनी के एजेंट राणा द्वारा भरा गया था एवं श्रीमती सिया देवी ने एजेंट को पूर्व पालिसियों का बीमा, इनकम टैक्‍स रिटर्न आदि कागजात दिए थे। परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा यह तर्क भी प्रस्‍तुत किया गया कि विपक्षी द्वारा जिस आधार पर बीमा दावा निरस्‍त किया गया है उसका संबंध किसी प्रकार से बीमाधारक की मृत्‍यु से नहीं है । प्रस्‍ताव पत्र के प्रश्‍न एवं उत्‍तर बीमाधारिका के मृत्‍यु के मध्‍य कोई संबंध नहीं है।

परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा निम्‍नलिखित विधिक व्‍यवस्‍थाओं पर भी विश्‍वास व्‍यक्‍त किया गया है।

  1. इस आयोग द्वारा विजय पाल सिंह बनाम एलआईसी के वाद में दिए गए निर्णय दिनांकित १९/०९/२०१३ ।
  2. मा0 पंजाब एवं हरियाणा उच्‍च न्‍यायालय द्वारा एलआईसी बनाम नरिन्‍दर कौर बत्रा एवं अन्‍य २००४ (३) टी0ए0सी0 ९४३ (पी0 एण्‍ड एच0) के वाद में दिया गया निर्णय
  3. सहारा इंडिया लाईफ इंश्‍योरेंस कं0 लि0 एवं अन्‍य बनाम रयानी रमनजनेयूलू  III (२०१४) सीपीजे ५८२ (एनसी) के वाद में मा0 राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा दिए गए निर्णय
  4. I (२०१२) सीपीजे ४०९ (एनसी) लाईफ इंश्‍योरेंस कारपोरेशन आफ इंडिया एवं अन्‍य बनाम चनागोनी उपेन्‍द्र एवं अन्‍य के मामलेमें मा0 राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा दिया गया निर्णय।

विपक्षी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा यह तर्क प्रस्‍तुत किया गया कि परिवादी की पत्‍नी ने सारवान तथ्‍यों को छिपाते हुए प्रश्‍नगत बीमा पालिसी विपक्षी बीमा कम्‍पनी से प्राप्‍त की है। परिवादी की पत्‍नी ने प्रश्‍नगत पालिसी प्राप्‍त करने से पूर्व प्रस्‍ताव पत्र में इस प्रश्‍न पर कि पिछले ०३ वर्ष में क्‍या बीमाधारक द्वारा ली गयी कोई अन्‍य बीमा पालिसी प्रभावी है/समाप्‍त हो चुकी है/पुनजीर्वित हुई है। पालिसी हेतु प्रार्थना पत्र प्रेषित किया गया है, के उत्‍तर में परिवादी की पत्‍नी बीमाधारक स्‍व0 श्रीमती सिया देवी ने यह उत्‍तर दिया था कि कोई पूर्व की बीमा पालिसियां

 

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नहीं है, जबकि प्रश्‍नगत बीमा पालिसी प्राप्‍त करते समय परिवादी की पत्‍नी ने निम्‍नलिखित तीन बीमा पालिसियों हेतु आवेदन कर रखा था।

  1. भारती एक्‍सा पालिसी सं0-५००७०२०६२० बीमित धन १५१७४४०/-रू0 जिसके लिए आवेदन दिनांक २८/०२/२०११ को किया गया।
  2. भारती एक्‍सा पालिसी सं0-५००७०२०६४६ बीमित धन ४५६२४८३/-रू0 जिसके लिए आवेदन दिनांक २८/०२/२०११ को किया गया।
  3. एसबीआई पालिसी सं0-४४०२०५९७३०८ बीमित धन ५०००००/-रू0 जिसके लिए आवेदन दिनांक २८/०३/२०११ को किया गया।

प्रश्‍नगत बीमा पालिसी हेतु प्रस्‍ताव पत्र परिवादी की पत्‍नी ने दिनांक ०२/०३/२०११ को प्रेषित किया था। इस प्रकार यह स्‍पष्‍ट है कि प्रश्‍नगत बीमा पालिसी प्राप्‍त करने से पूर्व परिवादी की पत्‍नी ने उपरोक्‍त दो बीमा पालिसियों के लिए आवेदन पत्र दिए थे किन्‍तु इस तथ्‍य की जानकारी विपक्षी बीमा कम्‍पनी को परिवादी की पत्‍नी द्वारा प्राप्‍त नहीं कराई गयी।

     विपक्षी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा यह तर्क प्रस्‍तुत किया गया कि बीमा संविदा परस्‍पर विश्‍वास के आधार पर निष्‍पादित की जाती है। अत: बीमाधारक का यह दायित्‍व था कि प्रस्‍ताव पत्र द्वारा मांगी जा रही समस्‍त सूचनाओं को सही-सही विपक्षी बीमा कम्‍पनी को उपलब्‍ध कराते। यदि बीमा कम्‍पनी को पूर्व बीमा पालिसी के संबंध में बीमाधारक द्वारा यह सूचना उपलब्‍ध कराई गयी होती तब विपक्षी बीमा कम्‍पनी प्रश्‍नगत बीमा पालिसी बीमाधारक के पक्ष में निष्‍पादित नहीं करते।

     परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा यह तर्क प्रस्‍तुत किया गया कि भारती एक्‍सा बीमा कम्‍पनी से संबंधित बीमा पालिसी के बाण्‍ड बीमाधारक को भारती एक्‍सा बीमा कम्‍पनी द्वारा रजिस्‍टर्ड डाक द्वारा दिनांक ०८/०३/२०११ को भेजा गया जो बीमाधारक को दिनांक २३/०३/२०११ को प्राप्‍त हुआ तथा स्‍टेट बैंक आफ इंडिया की बीमा पालिसी दिनांक २८/०३/२०११ को जारी की गयी। इस प्रकार प्रश्‍नगत बीमा से संबंधित प्रस्‍ताव पत्र भरे जाते समय विपक्षी बीमा कम्‍पनी द्वारा इंगित बीमा पालिसी बीमाधारक को प्राप्‍त नहीं हुई थी। उनके द्वारा यह तर्क भी प्रस्‍तुत किया गया कि प्रस्‍ताव पत्र की प्रविष्टियां बीमाधारक ने स्‍वयं नहीं भरी थी। पूर्व पालिसियों से संबंधित वस्‍तुस्थिति की जानकारी विपक्षी बीमा कम्‍पनी के एजेंट को उसने दे दी थी तथा आयकर से संबंधित अभिलेख भी एजेंट को प्रेषित किए गए थे। विपक्षी बीमा कम्‍पनी का यह कथन असत्‍य है कि विपक्षी बीमा कम्‍पनी को बीमाधारक द्वारा पूर्व बीमा से संबंधित जानकारी उपलब्‍ध नहीं कराई गयी । उनके द्वारा यह तर्क भी प्रस्‍तुत किया गया कि पूर्व बीमा पालिसियों की जानकारी के तथ्‍य का बीमाधारक की मृत्‍यु से कोई संबंध नहीं है। अत: इस आधार पर दावा क्‍लेम निरस्‍त किया जाना उचित नहीं माना जा सकता।

 

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     महत्‍वपूर्ण प्रश्‍न यह है कि क्‍या बीमा धारक द्वारा सारवान तथ्‍यों को छिपाकर प्रश्‍नगत बीमा पालिसी प्राप्‍त की गयी है यदि हां तो प्रभाव?

     इस संदर्भ में विपक्षी बीमा कम्‍पनी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा सत्‍वंत कौर सांधू बनाम न्‍यू इंडिया एश्‍योरेंस कं0 लि0 IV (२००९) सीपीजे ८ (एससी) के वाद में मा0 उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा दिए गए निर्णय पर विश्‍वास किया गया।

     संदर्भित उपरोक्‍त निर्णय का हमने अवलोकन किया। मा0 उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा इस मामले में यह अवधारित किया गया है कि अधिनियम के अन्‍तर्गत सारवान तथ्‍य परिभाषित नहीं हैं। सामान्‍य रूप से ऐसे तथ्‍य जो बीमा कम्‍पनी के प्रीमियम निर्धारण अथवा इस निष्‍कर्ष को प्रभावित करते हों कि जोखिम स्‍वीकार किए जाने योग्‍य है अथवा नहीं, सारवान तथ्‍य माने जा सकते हैं।

     इस प्रकार प्रत्‍येक मामले के तथ्‍यों एवं परिस्थितियों के आलोक में यह निर्णीत किया जाएगा कि कौन से तथ्‍य सारवान तथ्‍य माने जा सकते हैं।

     जहां तक प्रस्‍तुत मामले का प्रश्‍न है । परिवादी का यह कथन स्‍वीकार किए जाने योग्‍य नहीं है कि पूर्व बीमा पालिसियों के तथ्‍यों से विपक्षी बीमा कम्‍पनी के एजेंट को अवगत कराया गया था किन्‍तु उन्‍होंने प्रस्‍ताव पत्र में यह तथ्‍य उल्लिखित नहीं  किया। प्रस्‍ताव पत्र पर बीमाधारिका द्वारा मात्र हस्‍ताक्षर किए गए थे। यदि वास्‍तव में पूर्व बीमा पालिसी से संबंधित तथ्‍य की जानकारी विपक्षी बीमा कम्‍पनी के अभिकर्ता को कराई गयी होती तब विपक्षी बीमा कम्‍पनी के द्वारा इन तथ्‍यों का उल्‍लेख प्रस्‍ताव पत्र पर न किए जाने का कोई औचित्‍य नहीं था क्‍योंकि मामले की परिस्थितियों के आलोक में इन तथ्‍यों की जानकारी बीमा कम्‍पनी द्वारा प्रश्‍नगत पालिसी जारी किए जाने के निर्णय को प्रभावित करती। परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता का यह तर्क भी महत्‍वहीन है कि दिनांक ०२/०३/२०११ को प्रस्‍ताव पत्र भरते समय बीमा पालिसी उसके पक्ष में जारी नही हुई थी, मात्र इसके लिए आवेदन किया गया था। उल्‍लेखनीय है कि प्रस्‍ताव पत्र में बीमाधारक से यह जानकारी भी अपेक्षित थी कि क्‍या प्रश्‍नगत बीमा पालिसी के लिए आवेदन से ०३ वर्ष पूर्व किसी अन्‍य पालिसी हेतु उसने आवेदन किया है। अत: बीमाधारक से यह अपेक्षित था कि जिन बीमा पालिसियों के लिए उसने प्रश्‍नगत बीमा पालिसी से पूर्व आवेदन कर रखा है उसकी भी जानकारी उपलब्‍ध कराती। इस प्रकार यह स्‍पष्‍ट है कि प्रश्‍नगत बीमा पालिसी से पूर्व ०३ अन्‍य बीमा पालिसी जिनका विवरण ऊपर वर्णित है, के लिए बीमाधारक ने आवेदन कर रखा था एवं इस तथ्‍य की जानकारी उसके द्वारा प्रस्‍ताव पत्र भरते समय विपक्षी बीमा कम्‍पनी को उपलब्‍ध नहीं कराई।

     अब महत्‍वपूर्ण प्रश्‍न यह है कि क्‍या पूर्व बीमा पालिसियों की जानकारी उपलब्‍ध न कराए जाने का तथ्‍य सारवान तथ्‍य प्रश्‍नगत बीमा पालिसी के निष्‍पादन के संबंध में माना जा सकता है?

 

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     उल्‍लेखनीय है कि प्रश्‍नगत बीमा पालिसी की बीमित धनराशि ३० लाख रूपये है जिसकी वार्षिक किस्‍त १ लाख रूपये है। ०३ अन्‍य पालिसी भारती एक्‍सा पालिसी सं0-५००७०२०६२० बीमा धन १५,१७,४४०/-रू0 की है। भारती एक्‍सा पालिसी सं0-५००७०२०६४६ बीमा धन ४५,६२,४८३/-रू0 की है। इस प्रकार प्रश्‍नगत बीमा पालिसी के निष्‍पादन से पूर्व ६० लाख से अधिक बीमा धनराशि की पालिसी हेतु बीमा धारक ने आवेदन कर रखा था। प्रश्‍नगत बीमा पालिसी की बीमित धनराशि को मिलाकर कुल ९० लाख रूपये से अधिक की बीमा पालिसी बीमाधारक द्वारा कराई गयी। प्रश्‍नगत बीमा पालिसी की प्रीमियम की धनराशि १ लाख रूपये प्रतिवर्ष है।

     परिवादी का यह कथन है कि बीमा धारक द्वारा आयकर अदा किया जा रहा था और उसका अपना स्‍वयं का दूध का व्‍यवसाय था । इस संदर्भ में परिवादी ने बीमा धारक द्वारा असेसमेंट वर्ष २००९-२०१० से संबंधित इनकम टैक्‍स रिटर्न, बीमा से संबंधित प्रपत्र प्रस्‍तुत किए हैं जिनके अवलोकन से यह विदित होता है कि वर्ष २००९-२०१० में बीमाधारक की वार्षिक आय १७६३१०/-रू0 बतायी गयी । आयकर की सीमा के अन्‍तर्गत न आने के कारण कोई आयकर बीमाधारक द्वारा अदा नहीं किया गया जबकि वर्ष २०१०-२०११ में बीमाधारक ने अपनी कुल आय २,०३,८२०/-रू0 बतायी गयी है तथा १४८०/-रू0 आयकर के रूप में जमा किया जाना दर्शित है। बीमाधारक की जो वार्षिक आय इन अभिलेखों से द‍र्शित हो रही है उसके आलोक में बीमाधारक द्वारा ली गयी कुल बीमा पालिसी के प्रीमियम की धनराशि किस प्रकार अदा की जाती, परिवादी द्वारा स्‍पष्‍ट नहीं किया गया । यह तथ्‍य भी कम महत्‍व का नहीं है कि पूर्व बीमा पालिसी भी कुछ वर्ष पूर्व की नहीं है, बल्कि प्रश्‍नगत बीमा पालिसी से कुछ दिन पूर्व की ही है। ऐसी परिस्थिति में हमारे विचार से मामले की परिस्थितियों को देखते हुए पूर्व बीमा पालिसी की जानकारी का तथ्‍य विपक्षी बीमा कम्‍पनी के‍ लिए प्रश्‍नगत बीमा पालिसी जारी किए जाने से पूर्व सारवान माना जाएगा क्‍योंकि यह तथ्‍य निश्चित रूप से प्रश्‍नगत बीमा पालिसी जारी किए जाने के निर्णय को प्रभावित करता।

     परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता का यह तर्क कि पूर्व बीमा पालिसी का संबंध बीमाधारिका की मृत्‍यु से नहीं है। अत: बीमा दावे को इस आधार पर अस्‍वीकार करने का कोई औचित्‍य नहीं है। परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता का यह तर्क भ्रामक है क्‍योंकि यह तथ्‍य महत्‍वपूर्ण नहीं है कि पूर्व बीमा पालिसी की जानकारी का तथ्‍य बीमाधारिका की मृत्‍यु से संबधित है अथवा नहीं, बल्कि महत्‍वपूर्ण प्रश्‍न यह है कि पूर्व बीमा पालिसी की जानकारी का तथ्‍य प्रश्‍नगत बीमा पालिसी जारी करते समय महत्‍पूर्ण था या नहीं।

     जहां तक बीमाधारिका की मृत्‍यु का प्रश्‍न है। बीमाधारिका की मृत्‍यु के संदिग्‍ध होने के संबंध में कोई प्रत्‍यक्ष साक्ष्‍य अवश्‍य नहीं है किन्‍तु उल्‍लेखनीय है कि बीमाधारिका की मृत्‍यु तेज बुखार से होनी बतायी गयी है। उसके उपचार हेतु

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 क्‍या प्रयास किया गया। इसकी कोई साक्ष्‍य परिवादी द्वारा प्रस्‍तुत नहीं की गयी है। चिकित्‍सा हेतु कथित प्रयास के रूप में परिवादी का यह कथन हे कि मृतक को इलाज हेतु डाक्‍टर राकेश बाबू के पास ले जाया गया था। इस संदर्भ में परिवादी ने डाक्‍टर राकेश बाबू द्वारा जारी किए गए प्रमाण पत्र की प्रति प्रस्‍तुत की है, किन्‍तु इस प्रमाण पत्र के अवलोकन से यह विदित होता है कि जब बीमाधारिका को डाक्‍टर राकेश बाबू(बीएएमएस) के पासले जाया गया उस समय उसकी मृत्‍यु हो चुकी थी। इस प्रकार यह स्‍पष्‍ट है कि वस्‍तुत: डाक्‍टर राकेश बाबू द्वारा मृतक का कोई इलाज नहीं किया गया। इसके बावजूद डाक्‍टर राकेश बाबू ने मृतक के संदर्भ में बीमा कम्‍पनी को जा विवरण प्रस्‍तुत किया है उसमें उन्‍होंने मृतक की मृत्‍यु तेज बुखार से होना बताया है । जब उनके द्वारा बीमाधारिका का कोई इलाज ही नहीं किया गया तब मृत्‍यु का कारण उनके द्वारा तेज बुखार दर्शित करने का कोई औचित्‍य नहीं है।  परिवादी का यह कथन है कि उसकी पत्‍नी बीमाधारिका की अच्‍छी आमदनी थी और वह आयकर अदा करती थी किन्‍तु फिर भी बीमाधारिका को किसी प्रतिष्ठित अस्‍पताल अथवा किसी प्रतिष्ठित डाक्‍टर से इलाज कराने का कोई प्रयास संभवत: नहीं किया गया, बल्कि बी0ए0एम0एस0 डिक्रीधारी एक ऐसे डाक्‍टर के पास मृतका को तब ले जाया गया जब उसकी मृत्‍यु हो चुकी थी तथा डाक्‍टर भी यह निश्चित नहीं कर पाए कि वस्‍तुत: मृतका की मृत्‍यु किस रोग से हुई। बीमाधारिका की मृत्‍यु प्रश्‍नगत बीमा पालिसी के मात्र कुछ दिन बाद ही होनी बतायी गयी है। उपरोक्‍त परिस्थितियों में बीमाधारिका की मृत्‍यु भी पूर्णत: सामान्‍य असंदिग्‍ध रूप से होना प्रतीत नहीं हो रहा है।

     परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता ने इस आयोग द्वारा परिवाद सं0-२५/२००८ विजय पाल सिंह बनाम एलआईसी व अन्‍य के मामले में दिए गए निर्णय की फोटोप्रति प्रस्‍तुत की है, जिसका हमने अवलोकन किया। इस निर्णय के तथ्‍य एवं परिस्थितियां प्रस्‍तुत वाद के तथ्‍य से भिन्‍न हैं। इस आयोग द्वारा निर्णीत उपरोक्‍त वाद में पूर्व बीमा पालिसी प्रश्‍नगत बीमा पालिसी से कई वर्ष पूर्व जारी की गयी थी एवं पूर्व बीमा पालिसियों की बीमित धनराशि भी इतनी अधिक नहीं थी। इसके अतिरिक्‍त बीमाधारक की मृत्‍यु मोटर दुर्घटना में होनी बतायी गयी थी। जैसाकि पहले मत व्‍यक्‍त किया जा चुका है कि प्रत्‍येक मामले के तथ्‍यों एवं परिस्थितियों के आलोक में सारवान तथ्‍य निर्धारित होगा। हमारे विचार से उपरोक्‍त मामले में इस आयोग द्वारा दिए गए निर्णय का कोई लाभ प्रस्‍तुत मामले में परिवादी को नहीं दिया जा सकता।

     मा0 पंजाब एवं हरियाणा उच्‍च न्‍यायालय द्वारा एलआईसी बनाम नरिन्‍दर कौर बत्रा के मामले के तथ्‍य भी प्रस्‍तुत मामले के तथ्‍य से पूर्णत: भिन्‍न है। इसी प्रकार सहारा इंडिया लाईफ इंश्‍योरेंस कं0 लि0 एवं अन्‍य बनाम रयानी रमनजनेयूलू  तथा लाईफ इंश्‍योरेंस कारपोरेशन आफ इंडिया एवं अन्‍य बनाम चनागोनी उपेन्‍द्र एवं

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 अन्‍य के मामले के तथ्‍य प्रस्‍तुत वाद के तथ्‍यों से पूर्णत: भिन्‍न हैं। अत: इन वादों में दिए गए निर्णयों का कोई लाभ प्रस्‍तुत परिवाद के संदर्भ में परिवादी को नहीं दिया जा सकता है।

     अत: हमारे विचार से मामले के तथ्‍यों एवं परिस्थितियों के आलोक में विपक्षी बीमा कम्‍पनी ने परिवादी के बीमा दावे को अस्‍वीकार करके कोई त्रुटि नहीं की है। विपक्षी बीमा कम्‍पनी द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है। तदनुसार परिवाद निरस्‍त किए जाने योग्‍य है।  

 

                          आदेश

परिवाद निरस्‍त किया जाता है।    

उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

उभयपक्षों को निर्णय की सत्‍यापित प्रति नियमानुसार उपलब्‍ध कराई जाए।

  

                           

(न्‍यायमूर्ति वीरेन्‍द्र सिंह)                 (उदय शंकर अवस्‍थी)

    अध्‍यक्ष                                  सदस्‍य

सत्‍येन्‍द्र कोर्ट-1

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE Virendra Singh]
PRESIDENT

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