( मौखिक )
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
अपील संख्या :1016/2023
आसू पुत्र अजीज आयु लगभग 26 वर्ष निवासी ग्राम लुहारी तहसील बड़ौत जनपद बागपत।
कनारा एच.एस.बी.सी. ओरियन्टल बैंक आफ कॉमर्स, लाईफ इन्श्योरेंस कम्पनी लि0 द्वारा प्रबन्धक कनारा एच.एस.बी.सी. ओरियण्टल बैंक आफ कॉमर्स लाईफ इंश्योरेंस कं0लि0 क्षेत्रीय कार्यालय यूनिट नं0-208, कंचन जंघा बिल्डिंग 18, बाराखम्बा रोड, नई दिल्ली-110001.
प्रत्यर्थी/विपक्षी
समक्ष :-
1-मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
उपस्थिति :
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित- श्री विनीत कुमार।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित- कोई नहीं।
दिनांक : 21-06-2023
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित निर्णय
परिवाद संख्या-12/2021 आसू बनाम कनारा एच.एस.बी.सी. ओरियन्टल बैंक आफ कॉमर्स में जिला उपभोक्ता आयोग, बागपत द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 16-05-2023 के विरूद्ध यह अपील उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत इस न्यायालय के सम्मुख प्रस्तुत की गयी है।
विद्धान जिला आयोग द्वारा परिवाद स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है :-
-2-
‘’ परिवादी का परिवाद विपक्षी के विरूद्ध आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी बीमा कम्पनी को निर्देशित किया जाता है, कि वह इस निर्णय की दिनांक से 60 दिन के अंदर परिवादी को परिवादी की पत्नी आशमा की बीमा पॉलिसी-0064731212 के संबंध में तीन वर्ष के प्रीमियम की जमा धनराशि अंकन रू0 43,105.50 पैसे मय 09 प्रतिशत वार्षिक ब्याज परिवाद दायर करने की तिथि से अदा करें तथा वाद व्यय के रूप में अंकन 5,000/-रू0 भी परिवादी को निर्णय की तिथि से 60 दिन के अंदर अदा करें।
प्रार्थना पत्र यदि कोई लम्बित हो तो वह सभी इस निर्णय के अनुसार निस्तारित किये जाते हैं।
इस आदेश की सत्यापित प्रति पक्षकारों को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के प्रावधान के अनुसार नि:शुल्क प्राप्त कराई जाए। इस आदेश की प्रति को कन्फोनेट वेबसाईट पर पक्षकारों के अवलोकन के लिए अपलोड किया जाए ।
पत्रावली बाद आवश्यक कार्यवाही दाखिल दफ्तर हो।‘’
जिला आयोग के आक्षेपित निर्णय एवं आदेश से क्षुब्ध होकर परिवाद के परिवादी की ओर से यह अपील योजित की गयी है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता श्री विनीत कुमार उपस्थित। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि परिवादी की पत्नी आसमा ने अपने जीवनकाल में विपक्षी बीमा कम्पनी से एक बीमा पालिसी ली थी जिसकी बीमा धनराशि अंकन 90,00,000/-रू0 एवं प्रीमियम धनराशि अंकन 14,368.50 रूपये वार्षिक थी। बीमित आसमा द्वारा अपनी उक्त बीमा पालिसी में अपने पति आशू अर्थात परिवादी को नामिनी नियुक्त किया गया था
-3-
तथा पालिसी की किश्तों को समय से जमा करती रही। परिवादी की पत्नी आसमा की दिनांक 11-11-2019 को सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गयी जिसका मुकदमा प्रार्थी द्वारा थाना बागपत में दिनांक 13-11-2019 को मु0अ0सं0-900/2019 दर्ज कराया गया। परिवादी द्वारा पालिसी के नियम व शर्तो के अनुसार मृत्यु दावा समस्त प्रपत्रों के साथ विपक्षी के निर्देशानुसार उसके अधिकृत कार्यालय ‘’कैनरा एच.एस.बी.सी. ऑरियण्टल बैंक आफ कॉमर्स, लाईफ इं0कं0लि0 दूसरी मंजिल ऑर्चिड बिजनेस पार्क सेक्टर 48 सेना रोड, गुडगॉंव, हरियाणा’’ को यथासमय प्रेषित किया गया। इस संदर्भ में विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा अपने पत्र दिनांकित 29-10-2020 के माध्यम से बीमित की आईटीआर व बैंक स्टेटमेंट तथा आय संबंधी साक्ष्य की मांग की गयी जो परिवादी ने यथासमय विपक्षी बीमा कम्पनी को उपलब्ध करा दी तथा अपने उक्त दावे के निस्तारण की मांग की परन्तु बीमा कम्पनी द्वारा परिवादी के बार-बार आग्रह किये जाने के बावजूद भी बीमा दावे का निस्तारण नहीं किया जिसके संबंध में परिवादी द्वारा अपने अधिवक्ता के माध्यम से विपक्षी बीमा कम्पनी को उक्त दावे के निस्तारण हेतु वैधानिक सूचना पत्र दिनांकित 24-12-2020 प्रेषित कराया परन्तु विपक्षी बीमा कम्पनी ने न तो नोटिस का कोई जवाब दिया और न ही मृत्यु दावे का निस्तारण ही किया जिस कारण परिवादी को अत्यधिक मानसिक क्षति हुई, जो कि विपक्षी बीमा कम्पनी की सेवा में कमी है अत: विवश होकर परिवादी ने परिवाद जिला आयोग के समक्ष योजित किया है।
विपक्षी की ओर से 14ग जवाबदावा दाखिल करके, जवाबदावा में निम्न प्रारम्भिक आपत्तियॉं की गयीं कि शिकायतकर्ता ने दुर्घटना लाभ सहित कुल बीमा राशि 90,00,000/-रू0 के भुगतान के लिए अनुरोध किया है लेकिन दुर्घटना लाभ
-4-
सहित के कुल मूल्य 90,00,000/-रू0 को जानबूझकर छिपाया है। दावे का वास्तविक मूल्य आयोग के आर्थिक क्षेत्राधिकार से बाहर है। अत: शिकायत खारिज की जानी चाहिए। बीमित व्यक्ति की वसीयत किये बिना ही मृत्यु हो गयी है उसके तीन नाबालिक बच्चे हैं उन्हें भी परिवाद में शिकायतकर्ता के रूप में पक्षकार बनाना चाहिए था। बीमित की बहन अर्थात नजमा ने पहले भी मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट बागपत के समक्ष दिनांक 28-02-2020 की अंतिम रिपोर्ट संख्या-35/2020 के विरूद्ध एक विरोध याचिका दायर कर रखी है जिसमें उसने शिकायतकर्ता (पालिसी के तहत नामित) पर बीमित की हत्या को अंजाम देने और कथित हत्या को सड़क दुर्घटना का रूप देने का आरोप लगाया है जो कि अभी भी सी0जे0एम0 कोर्ट बागपत के समक्ष लम्बित है और उक्त बीमा पालिसी शिकायतकर्ता द्वारा विरोधीपक्ष को धोखा देने के लिए एक गुप्त उद्देश्य से की गयी है। बीमित के व्यवसाय और वार्षिक आय का बीमा पालिसी के प्रस्ताव फार्म में गलत उल्लेख किया था। यह भी उल्लेखनीय है कि बीमित ने उक्त बीमा पालिसी के अतिरिक्त अन्य कई जीवन बीमा पालिसी के लिए आवेदन किया था। बीमित की बहन ने शिकायतकर्ता/नामित व्यक्ति पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि शिकायतकर्ता ने बीमा राशि प्राप्त करने के लिए बीमित की हत्या सुनियोजित तरीके से की है, शादी के बाद शिकायतकर्ता और बीमित के बीच गंभीर विवाद थे और वे अक्सर झगड़ते रहते थे। पुलिस रिकार्ड से निकले कुछ विवरण भी इस प्रकार है कि न तो उसकी बेटी, जो दुर्घटना के समय साथ थी उसे चोट लगी और न ही शिकायतकर्ता की मोटर साईकिल जो बगल में खड़ी थी वो क्षतिग्रस्त हुई। शिकायतकर्ता ने बीमित के नाम से दो पालिसी करा रखी थी एक बीस लाख की ओर दूसरी नब्बे लाख की, जिसके बाद सड़क दुर्घटना में बीमित की
-5-
मृत्यु होना संदिग्ध प्रतीत होता है। पुलिस पी.सी.आर. में सबसे पहले अपराध स्थल पर पहुँचे कांस्टेबल की जानकारी का कोई विवरण नहीं है। उपरोक्त तथ्यों के आधार पर शिकायतकर्ता का परिवाद किसी भी उचित विवरण से रहित है और केवल प्रतिपक्षी को परेशान करने, अनुचित लाभ और धन प्राप्त करने के लिए दायर किया गया है, इसलिए शिकायत खारिज किये जाने योग्य है।
विद्धान जिला आयोग द्वारा उभयपक्ष को सुनने तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का परिशीलन एवं परीक्षण करने के पश्चात अपने निष्कर्ष में यह मत अंकित किया है कि परिवादी द्वारा बीमाकृत धनराशि 90 लाख रूपया की बाबत वाद योजित किया गया है जब कि बीमा धनराशि 90 लाख रूपये तथा दुर्घटना हित लाभ 90 लाख रूपये कुल 1 करोड़ 80 लाख रूपये वाद का मूल्यांकन होता है परिवादी ने केवल 90 लाख रूपये पर मूल्यांकन गलत तरीके से किया है क्यों कि परिवादी द्वारा केवल 90 लाख रूपये हित लाभ की बाबत अनुतोष चाहा है। परिवादी द्वारा पालिसी लेते समय प्रस्ताव फार्म में अपनी पत्नी मृतक आशमा की आय के संबंध में कपटपूर्वक गलत तथ्य दर्शाये हैं तथा बाद में कपटपूर्वक आयकर विवरणी में गलत आय दर्शाकर आयकर विवरणी दाखिल की है तथा प्रस्ताव फार्म में तीन लाख रूपये वार्षिक बचत होना दर्शाया गया है तथा मृतका की मृत्यु संदिग्ध परिस्थितियों में हुई है। दुर्घटना में मृत्यु होने का कोई ठोस साक्ष्य परिवादी द्वारा नहीं दर्शाया गया है। दुर्घटना के समय परिवादी के कथनानुसार परिवादी मोटर साईकिल से अपनी पत्नी व पुत्री तमन्ना के साथ जाना प्रथम सूचना रिपोर्ट में बता रहा है, लेकिन दुर्घटना में परिवादी या उसकी पुत्री को किसी प्रकार की चोट नहीं आयी। प्रथम सूचना रिपोर्ट में दुर्घटना करने वाले किसी वाहन का कोई नम्बर या विवरण भी परिवादी द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट
-6-
में नहीं लिखवाया गया है, जिससे दुर्घटना का होना संदिग्ध है। सुनियोजित तरीके से परिवादी ने भारी भरकम रकम की पालिसी पत्नी के नाम से ली और दुर्घटना में उसकी मृत्यु होना दर्शाकर बीमा क्लेम लेने का प्रयास किया है। मृतका की मृत्यु के उपरान्त उसकी सगी बहन नजमा द्वारा पुलिस द्वारा लगायी गयी अंतिम रिपोर्ट, यह कहते हुए आपत्ति की गयी है कि बीमा पालिसी का लाभ लेने के लिए परिवादी ने अन्य लोगों के साथ मिलकर मृतका की हत्या की और उसकी मृत्यु दुर्घटना में होना दर्शाया है। दुर्घटना की बाबत न तो दुर्घटना करने वाले किसी वाहन का विवरण या कोई नम्बर, प्रथम सूचना रिपोर्ट में लिखवाया गया और न ही केाई ऐसा गवाह साक्ष्य में प्रस्तुत किया गया जिसने दुर्घटना होते हुए देखी हो। किसी गवाहन का कोई शपथ पत्र तक पत्रावली पर दाखिल नहीं किया गया जिससे कि दुर्घटना होना और दुर्घटना में मृतका की मृत्यु होना साबित हो सके।
धारा-45 बीमा अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार बीमा कम्पनी को पालिसी लिये जाने के तीन वर्ष तक पालिसी पर प्रश्न चिन्ह उठाने का अधिकार है साथ ही गलत तथ्यों के आधार पर कपटपूर्वक पालिसी पर भी प्रश्नचिन्ह उठाने का अधिकार है। गलत तथ्यों के आधार पर कपटपूर्वक पालिसी मृतका की परिवादी द्वारा ली गयी और पालिसी लिए अभी तीन वर्ष का समय भी नहीं बीता, मृतका की मृत्यु दुर्घटना में होना साबित नहीं है। ऐसी स्थिति में बीमा कम्पनी द्वारा क्लेम की धनराशि का भुगतान परिवादी को न करके कोई सेवा में कमी नहीं की गयी है। परिवादी द्वारा बीमा पालिसी के संबंध में जमा प्रीमियम की धनराशि अंकन रू0 14,368.50 पैसे प्रतिवर्ष कुल अंकन धनराशि रू0 43,105.50 पैसे मय 09 प्रतिशत वार्षिक ब्याज विपक्षी से परिवादी को दिलाया जाना न्यायोचित पाया गया।
-7-
अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश साक्ष्य एवं विधि के विरूद्ध है। जिला आयोग द्वारा मात्र प्रीमियम की धनराशि अदा करने का आदेश पारित किया गया है जब कि पालिसी के अनुसार बीमा धनराशि अदा करने का आदेश पारित किया जाना चाहिए था अत: उसे पालिसी की बीमाकृत धनराशि मय ब्याज दिलायी जावे।
हमने अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता को विस्तारपूर्वक सुना तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों एवं जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश का भली-भॉंति अवलोकन किया।
अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता को सुनने तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का परिशीलन एवं परीक्षण करने के पश्चात यह पीठ इस मत की है कि विद्धान जिला आयोग द्वारा समस्त तथ्यों पर गहनतापूर्वक विचार करने के पश्चात विधि अनुसार निर्णय पारित किया गया है जिसमें हस्तक्षेप हेतु उचित आधार नहीं है, तदनुसार अपील निरस्त किये जाने योग्य हैं।
आदेश
अपील निरस्त की जाती है। विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश की पुष्टि की जाती है।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
अपील योजित करते समय अपीलार्थी द्वारा अपील में जमा धनराशि (यदि कोई हो) तो नियमानुसार अर्जित ब्याज सहित जिला आयोग को विधि अनुसार निस्तारण हेतु यथाशीघ्र प्रेषित की जावे।
-8-
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
प्रदीप मिश्रा, आशु0 कोर्ट नं0-1