Uttar Pradesh

Lucknow-I

CC/356/2009

M.M.SALES - Complainant(s)

Versus

CANARA BANK - Opp.Party(s)

10 Nov 2022

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. CC/356/2009
( Date of Filing : 31 Mar 2009 )
 
1. M.M.SALES
.
...........Complainant(s)
Versus
1. CANARA BANK
.
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Neelkuntha Sahya PRESIDENT
 HON'BLE MS. sonia Singh MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 10 Nov 2022
Final Order / Judgement

        जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम, लखनऊ।

            परिवाद संख्‍या:-   356/2009                                             उपस्थित:-श्री नीलकंठ सहाय, अध्‍यक्ष।

                    श्रीमती सोनिया सिंह, सदस्‍य।             

परिवाद प्रस्‍तुत करने की तारीख:-31.03.2009

परिवाद के निर्णय की तारीख:-10.11.2022

 

M.M. Sales, Wahab Mansion, Moulviganj, Lucknow-226018 through its present Proprietor Smt. Neelam Malik Wife of Late Sri Raj Kumar Malik (previous Proprietor), aged about 46 years, R/o 3-D, Singaar Nagar, P.S. Manak Nagar, Lucknow.                          ...........Complainant.    

                                               

                            Versus

1.      Canara Bank, Branch Aminabad, 39, Aditya Bhawan, Aminabad, Lucknow, through its concerned Manager.

2.      Canara Bank, H.O. Bangalore, 560002, through its Head.

3.      Reserve Bank of India, Mahatma Gandhi Marg, Kanpur-208001 through its head.                                                            ...........Opp. Parties.                                                                                       

                                                                                            

परिवादी के अधिवक्‍ता का नाम:-श्री संजीव श्रीवास्‍तव।

विपक्षीगण के अधिवक्‍ता का नाम:-श्री अशोक कुमार शाही।

आदेश द्वारा- श्री नीलकंठ सहाय, अध्‍यक्ष।

                            निर्णय.

1.   परिवादी ने प्रस्‍तुत परिवाद 6,70,000.00 रूपये मय ब्‍याज, शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक क्षति हेतु 3,20,000.00 रूपये दिलाये जाने की प्रार्थना के साथ प्रस्‍तुत किया है।

2.   संक्षेप में परिवाद के कथन इस प्रकार है कि परिवा‍दी एम0एम0 सेल्‍स एक प्रोपराइटर है जो कि वहाब मेंशन मोलवीगंज, लखनऊ का है जो कि स्‍लीपवेल कम्‍पनी का व्‍यापार करता है। केनरा बैंक ब्रान्‍च अमीनाबाद लखनऊ में परिवादी का खाता नम्‍बर के0ए0जी0ए0 8233 विगत कई वर्षों से संचालित है तथा बैंक से एकाउन्‍टपेयी चेक के माध्‍यम से व्‍यापार होता है। आवेदक के पति दिनॉंक 03.10.2006 से 07.10.2006 तक एस0जी0पी0जी0आई0 में भर्ती थे, जहॉं पर उनका इलाज मृत्‍यु के दौरान तक चला।

3.   परिवादिनी की पति श्री राजकुमार मलिक जो कि प्रोपराइटर थे, के द्वारा व्‍यापार के संबंध में चेक जारी किया गया जिसका भुगतान केनरा बैंक द्वारा नहीं किया गया, तब मृतक के पति द्वारा स्‍टेटमेंट ऑफ एकाउन्‍ट निकाला गया, तो पता चला कि दिनॉंक 04.10.2006 से 23.10.2006 तक 6,70,000.00 रूपये हस्‍ताक्षर के सत्‍यापन के तहत भुगतान कर दिया गया जो निम्‍नवत है-

S.No.

Date

Cheque’s No.

Amount

1.

04.10.2006

081705

Rs. 80,000.00

2.

06.10.2006

081702

Rs. 90,000.00

3.

09.10.2006

081729

Rs. 60,000.00

4.

16.10.2006

081735

Rs. 1,20,000.00

5.

23.10.2006

081774

Rs. 3,20,000.00

    

मृतक राजकुमार मलिक ने विपक्षी संख्‍या 01 से संपर्क किया और यह कहा गया कि विपक्षी संख्‍या 01 द्वारा इन सब चेकों को जारी नहीं किया है। तब विपक्षी संख्‍या 01 द्वारा यह कहा गया कि दिनॉंक 13.11.2006 को आवेदक को दिनॉंक 31.10.2006 को चेकबुक अजय कुमार की रिक्‍वेस्‍ट पर दी गयी थी, और परिवादिनी के पति द्वारा कभी अजय कुमार को चेक बुक प्राप्‍त करने हेतु अधिकृत नहीं किया गया था। पुन: विपक्षी संख्‍या 01 को दिनॉंक 27.11.2006 को पत्र प्रेषित किया गया कि उसका साक्ष्‍य दिया जाए। तो बैंक द्वारा कापी प्रदत्‍त करायी गयी।

4.   आवेदक द्वारा उसको देखा गया तो पता चला कि गलत एवं उपेक्षापूर्ण तरीके से चेक का भुगतान किया गया तथा उक्‍त चेकों को विपक्षी संख्‍या 01 ने बिना हस्‍ताक्षर और बिना जॉंच किये हुए ही भुगतान कर दिया गया था। दिनॉंक 23.07.2007 को हैण्‍ड राइटिंग एक्‍सपर्ट विधि विज्ञान प्रयोगशाला द्वारा मिलान कराया गया जो कि मुख्‍य न्‍यायिक मजिस्‍ट्रेट लखनऊ द्वारा अपराध संख्‍या 16/07 अन्‍तर्गत धारा 419/420/467/463/471 पारित किया गया तो पता चला कि उक्‍त चेक पर हस्‍ताक्षर मिल नहीं रहे थे। Ombudsaman  को भी इस संबंध में सूचना दी गयी थी।

5.   विपक्षी संख्‍या 01 ने उत्‍तर पत्र प्रस्‍तुत करते हुए कथन किया कि यह एक कारपोरेट बॉडी है, तथा परिवाद के कथनों को इनकार करते हुए कहा कि यह एक फर्म है जो कि एम0एम0 सेल्‍स का करेन्‍ट एकाउन्‍ट से व्‍यापार करती है। परिवाद पत्र के समस्‍त कथनों को इनकार करते हुए यह कहा कि परिवादी को पूर्णरूप से चेकों के भुगतान के संबंध में जानकारी थी और भिन्‍न भिन्‍न तिथियों पर चेकों का भुगतान कराता रहा। बैंक ने चेक बुक अथारिटी लेटर प्रोपराइटर के फार्म पर परिवादी के हस्‍ताक्षर पर जारी किया था और व्‍यापार के सिलसिले में परिवादी द्वारा चेक का इस्‍तेमाल किया गया था। परिवादी की स्‍वयं की यह इच्‍छा है कि कभी बैंक की बड़ायी करे कभी उसकी उपेक्षा बताये। परिवादी ने झूठा परिवाद दाखिल करके दोनों अच्‍छा और बुरा नहीं बन सकता।

6.   परिवादी के पास ही Cheque Requisition Slip थी और मलिक द्वारा अथारिटी लेटर दिये जाने पर चेक जारी किया गया। हस्‍ताक्षर मिल नहीं रहे थे तो यह नहीं कहा जा सकता कि दूसरे व्‍यक्ति द्वारा हस्‍ताक्षर किया गया है। अपराध संख्‍या 16/07 जो परिवादी द्वारा दाखिल किया गया वह दिनॉंक 01.02.2007 को दाखिल किया गया है जो कि घटना दिनॉंक 04.10.2006 और 23.10.2006 के संबंध में है जो कि तीन माह बाद दाखिल किया गया है। वह मनगढ़न्‍त तथ्‍यों के आधार पर दाखिल किया गया है, तथा यह भी कहा गया कि परिवादी के कथानक के तहत एक विस्‍तृत साक्ष्‍य दोनों पक्षों से लिये और दिये जाने तक क्रास इग्‍जामिनेशन की विषय वस्‍तु है। ऐसे प्रकरण के निस्‍तारण का क्षेत्राधिकार सिविल न्‍यायालय को है, कन्‍ज्‍यूमर फोरम को कोई क्षेत्राधिकार नहीं है। अत: परिवाद खारिज किये जाने योग्‍य है।

7.   परिवादी ने अपने साक्ष्‍य शपथ पत्र तथा पुलिस अधीक्षक, सी0बी0आई0 को भेजा गया पत्र, वरिष्‍ठ पुलिस अधीक्षक को भेजा गया पत्र,  बैंक स्‍टेटमेंट,  जनरल मैनेजर, केनरा बैंक को भेजा गया पत्र, आदि दाखिल किया है। विपक्षी ने अपने साक्ष्‍य में नमूना हस्‍ताक्षर प्रपत्र, चेक की छायाप्रति, केनरा बैंक द्वारा परिवादी को भेजा गया पत्र आदि की छायाप्रति दाखिल की गयी हैं।

8.   विदित है कि परिवादिनी द्वारा यह कहा गया कि उनके पति की फर्म मोलवीगंज लखनऊ में थी। विपक्षीगण द्वारा यह कहा गया कि प्रक्रिया अपनाकर पैसे का भुगतान किया गया, इसमें किसी व्‍यक्ति को अधिकृत किया और उसके बाद उनके हस्‍ताक्षर प्रमाणित करके चेकबुक जारी की गयी। सामान्‍यत: बैंक की प्रक्रिया भी यह है कि चेकबुक दाखिल किया जाता है तो आखिरी पन्‍ने में भरकर दिया जाता है। चॅूंकि वह बीमार है और एस0जी0पी0जी0आई0 में थे तो अधिकृत किया जाना स्‍वाभाविक प्रतीत होता है और बैंक तो सरसरी तरीके से बिना हस्‍ताक्षर मिलाये सामान्‍यत: कोई कार्य नहीं करता है, और पैसे का भुगतान हो गया।

9.   परिवादिनी का यह कथानक कि दाण्डिक वाद जो कि मुख्‍य न्‍यायिक मजिस्‍ट्रेट लखनऊ में चल रहा है उसमें एक्‍सपर्ट की राय है कि चेकबुक में हस्‍ताक्षर नहीं मिल रहे हैं। दाण्डिक प्रक्रिया में क्‍या हुआ रिपोर्ट का अवलोकन इस परिवाद में नहीं किया जा सकता, वह एक अलग प्रक्रिया है। इस रिपोर्ट के तहत साक्ष्‍य न्‍यायालय में आयेगा और उनकी सत्‍यता के प्रतिपरीक्षण भी किया जायेगा, तब सत्‍यता निकलने के उपरान्‍त न्‍यायालय अपनी विवेचना करके उचित निर्णय पारित करता है। उक्‍त वाद दाण्डिक न्‍यायालय का है और यह फोरम का नहीं है।  

10.  जहॉं तक भिन्‍न भिन्‍न तिथियों पर पैसे के भुगतान किये जाने तथा अथारिटी लेटर के तहत चेकबुक प्राप्‍त करने, चेकबुक पर हस्‍ताक्षर का मिलान परिवादिनी के पति के हस्‍तलेख से कराने के उपरान्‍त ही इसकी सत्‍यता परखी जा सकती है कि क्‍या वास्‍तव में मृतक मलिक जिनका खाता था ने आर्थराइज्‍ड किया, चेकबुक काटा या नहीं तथा उक्‍त की विधि विज्ञान प्रयोगशाला की रिपोर्ट मागने और रिपोर्ट के बाद रिपोर्टकर्ता को जिरह करना यह तथ्‍य आवश्‍यक है, और यह जटिल विषय है। जहॉं पर प्रतिपरीक्षण और जटिल विषय का प्रश्‍न हो वहॉं प्रकरणों का निस्‍तारण उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम में संभव नहीं है। जैसा कि राज्‍य उपभोक्‍ता आयोग कर्नाटक बंगलौर द्वारा IV 1993 (1) C.P.R. 694  जिसमें कहा गया है कि जहॉं जटिल विषय हो कि कपट तो उपभोक्‍ता फोरम का, क्षेत्राधिकार नहीं है। ठीक इसी प्रकार राज्‍य उपभोक्‍ता आयोग राजस्‍थान, जयपुर द्वारा II 1993 (1) C.P.R. 260 में कहा गया है कि कपट डिसेप्‍शन यह जैसा इस तथ्‍य  में जटिल प्रश्‍न है, इन प्रश्‍नों में समरी तौर पर नहीं दिया जा सकता। राष्‍ट्रीय उपभोक्‍ता फोरम नई दिल्‍ली द्वारा I 1992 (1) C.P.R. 34 में जहॉं पर जटिल प्रश्‍न हो या मिश्रित प्रश्‍न का उदाहरण हो वहॉं व्‍यवहार न्‍यायालय को क्षेत्राधिकार है। माननीय न्‍यायालय द्वारा यह व्‍यवस्‍था की गयी है कि जहॉं जटिल वस्‍तु का प्रतिपरीक्षण हो तो कंज्‍यूमर फोरम को क्षेत्राधिकार नहीं रहता है। क्षेत्राधिकार दीवानी न्‍यायालय को है। बिना उपरोक्‍त कार्यवाही किये सेवा में कमी का निस्‍तारण किया जाना संभव नहीं है। जैसा भी हो इस न्‍यायालय द्वारा इसका विचारण करना संभव नहीं है। परिवाद निरस्‍त किये जाने योग्‍य है। परिवादी स्‍वतंत्र रहेगा कि नियमानुसार कार्यवाही किसी अन्‍य न्‍यायालय के समक्ष कर सकता है।

                             आदेश

     परिवादी का परिवाद खारिज किया जाता है। परिवादी स्‍वतंत्र होगा नियमानुसार कार्यवाही करने के लिये कि वह किसी सक्षम न्‍यायालय में वाद दायर कर सकता है।

 उभयपक्ष को इस निर्णय की प्रति नियमानुसार उपलब्‍ध करायी जाए।

 

   (सोनिया सिंह)                                                 (नीलकंठ सहाय)

          सदस्‍य                                            अध्‍यक्ष

                            जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग,   प्रथम,

                                          लखनऊ।          

आज यह आदेश/निर्णय हस्‍ताक्षरित कर खुले आयोग में उदघोषित किया गया।

                                   

   (सोनिया सिंह)                                                 (नीलकंठ सहाय)

         सदस्‍य                                           अध्‍यक्ष

                            जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग,   प्रथम,

                                         लखनऊ। 

दिनॉंक-10.11.2022

 

 
 
[HON'BLE MR. Neelkuntha Sahya]
PRESIDENT
 
 
[HON'BLE MS. sonia Singh]
MEMBER
 

Consumer Court Lawyer

Best Law Firm for all your Consumer Court related cases.

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!
5.0 (615)

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!

Experties

Consumer Court | Cheque Bounce | Civil Cases | Criminal Cases | Matrimonial Disputes

Phone Number

7982270319

Dedicated team of best lawyers for all your legal queries. Our lawyers can help you for you Consumer Court related cases at very affordable fee.