Uttar Pradesh

StateCommission

A/130/2016

Gagraj son of Shri Rambabu - Complainant(s)

Versus

Canara Bank - Opp.Party(s)

Sushil Kumar Sharma

14 Aug 2018

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/130/2016
( Date of Filing : 20 Jan 2016 )
(Arisen out of Order Dated 31/08/2015 in Case No. C/483/2009 of District Agra-I)
 
1. Gagraj son of Shri Rambabu
Agra
...........Appellant(s)
Versus
1. Canara Bank
Agra
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN PRESIDENT
 HON'BLE MR. Mahesh Chand MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 14 Aug 2018
Final Order / Judgement

                                                  (मौखिक)

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

अपील सं0- 130/2016

(जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, आगरा द्वारा परिवाद सं0- 483/2009 में पारित आदेश दि0 31.08.2015 के विरूद्ध)

  1. श्री गजराज पुत्र रामबाबू
  2. श्री रामबाबू पुत्र श्री जिन्‍सीराम

निवासीगण- ग्राम- जाजऊ, ग्राम सभा कौरई, तहसील- किरावली व जिला- आगरा।

                                            ..........अपीलार्थीगण।

                            बनाम

  1. केनारा बैंक शाखा प्रबंधक केनारा बैंक कोरई, तहसील किरावली व जिला आगरा।
  2. सहायक मछली पालन अधिकारी कार्यालय उपनिदेशक मतस्‍य 2/60 रामनगर कालोनी, सिविल लाइन, आगरा।

                                         ............ प्रत्‍यर्थीगण

समक्ष:-                       

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष।

 माननीय श्री महेश चन्‍द, सदस्‍य।   

अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित        : श्री सुशील कुमार शर्मा,

                                      विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थीगण की ओर से उपस्थित          : कोई नहीं।

 

दिनांक:-  14.08.2018                      

 

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष  द्वारा उद्घोषित

                                                 

निर्णय

        परिवाद सं0- 483/2009 गजराज बनाम केनारा बैंक व दो अन्‍य में जिला फोरम, आगरा द्वारा पारित आदेश दि0 31.08.2015 के विरुद्ध यह अपील धारा 15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की गई है।

        आक्षेपित आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद परिवादीगण की अनुपस्थिति में निरस्‍त किया है, जिससे क्षुब्‍ध होकर परिवाद के परिवादीगण ने यह अपील प्रस्‍तुत की है।

       अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्‍ता श्री सुशील कुमार शर्मा उपस्थित आये हैं। प्रत्‍यर्थीगण की ओर से नोटिस तामीला पर्याप्‍त माने जाने के बाद भी कोई उपस्थित नहीं हुआ है।

        हमने अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्‍ता के तर्क को सुना है और आक्षेपित आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।

        अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि निश्चित तिथि दि0 31.08.2015 को अपीलार्थी के उपस्थित न होने का पर्याप्‍त कारण है और न्‍यायहित में आवश्‍यक है कि आक्षेपित आदेश अपास्‍त कर अपीलार्थी/परिवादीगण को सुनवाई का अवसर देकर गुण-दोष के आधार पर परिवाद का निस्‍तारण किया जाए।

        हमने अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्‍ता के तर्क पर विचार किया है।

        अपीलार्थी/परिवादीगण ने परिवाद में निम्‍न अनुतोष चाहा है:-

        ‘’य‍ह कि परिवादीगण के पक्ष में तथा विपक्षीगण के विरुद्ध आदेश पारित करते हुए विपक्षीगण को निर्देशित किया जावे कि वे परिवादीगण के प्रोजेक्‍ट को पूर्ण कराने हेतु धन उपलब्‍ध करावे व प्रोजेक्‍ट को पूरा करावे तथा आदेश के परिपालन तक मु0रू0 60,000/- साठ हजार रूपया प्रतिवर्ष के हिसाब से मुआवजा दे।‘’

        परिवाद पत्र की धारा 10 में परिवादी ने प्रोजेक्‍ट 25,000,00/-रू0 का बताया है। अत: परिवाद पत्र में अभिकथित प्रोजेक्‍ट का मूल्‍य एवं परिवाद पत्र में याचित अनुतोष के आधार पर परिवाद का मूल्‍यांकन 20,000,00/-रू0 से अधिक दिखता है। अत: परिवाद जिला फोरम के आर्थिक क्षेत्राधिकार से परे है। अत: ऐसी स्थिति में जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित आदेश अपास्‍त कर पत्रावली जिला फोरम को गुण-दोष के आधार पर निर्णय पारित करने हेतु प्रत्‍यावर्तित किया जाना उचित नहीं है, क्‍योंकि परिवाद जिला फोरम की अधिकारिता से परे है।

        उपरोक्‍त तथ्‍यों को दृष्टिगत रखते हुए जिला फोरम द्वारा पारित आदेश इस प्रकार संशोधित किये जाने योग्‍य है कि अपीलार्थी/परिवादीगण विधि के अनुसार सक्षम फोरम या आयोग में अपना परिवाद प्रस्‍तुत करने हेतु स्‍वतंत्र हैं।

        उपरोक्‍त निष्‍कर्ष के आधार पर अपील आंशिक रूप से स्‍वीकार की जाती है और जिला फोरम का आदेश इस प्रकार संशोधित किया जाता है कि अपीलार्थी/परिवादीगण विधि के अनुसार सक्षम अधिकारिता वाले फोरम या आयोग के समक्ष परिवाद प्रस्‍तुत करने हेतु स्‍वतंत्र हैं।   

 

               

       (न्‍यायमूर्ति अख्‍तर हुसैन खान)            (महेश चन्‍द)                                          

                           अध्‍यक्ष                         सदस्‍य                          

 

शेर सिंह आशु0,

कोर्ट नं0-1

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. Mahesh Chand]
MEMBER

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