जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद 83/2015
श्रीमती छोटी पत्नी श्री कालूराम, जाति-जाट, निवासी-खेतास, तहसील व जिला-नागौर (राज.)।
-परिवादी
बनाम
1. मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (सी.एम. एण्ड एच.ओ.), हवाई पट्टी के पास, नागौर, जिला-नागौर (राज.)।
2. चिकित्सा अधिकारी, नागौर अस्पताल एवं अनुसंधान केन्द्र, अजमेरी दरवाजे के बाहर, नागौर (राज.)।
3. आई.सी.आई.सी.आई. लोम्बार्ड जनरल इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड जरिये प्रबन्धक, निवासी भगवती भवन, द्वितीय मंजिल, पी.एल. मोटर्स एम.आई. रोड, जयपुर, (राज.)
-अप्रार्थीगण
समक्षः
1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री रमेष कुमार ढाका एवं श्री ओमप्रकाष फूलफगर, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री हनुमानराम पोटलिया, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थी संख्या 1 एवं श्री कुन्दनसिंह आचीणा, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थी संख्या 3।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
आ दे ष दिनांक 21.07.2016
1. यह परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 संक्षिप्ततः इन सुसंगत तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया कि परिवादिया ने अप्रार्थी संख्या 1 के द्वारा नियोजित नसबंदी कार्यक्रम के तहत अप्रार्थी संख्या 2 से दिनांक 18.05.2013 को नसबंदी आॅपरेषन करवाया। उक्त नसबंदी आॅपरेषन के उपरान्त अप्रार्थी संख्या 2 के अस्पताल द्वारा आॅपरेषन सफल का प्रमाण-पत्र केस कार्ड सं. 02, दिनांक 18.05.2013 जारी किया गया। उक्त नसबंदी आॅपरेषन के पष्चात् परिवादिया एवं उसके पति आष्वस्त हो गये कि अब उनके संतान नहीं होगी तथा अब उन्हें गर्भ निरोधक दवाईयों का उपयोग करने की भी कोई आवष्यक नहीं होगी। इसके बाद परिवादिया के समय पर माहवारी नहीं आने पर वह दिनांक 07.09.2013 को राजकीय चिकित्सालय, नागौर में चिकित्सक के पास गई तो चिकित्सक ने उसे जांच करवाने का कहा। इस पर परिवादिया ने दिनांक 10.09.2013 को सोनोग्राफी करवाकर चिकित्सक को दिखाई तो उन्होंने जांच उपरान्त परिवादिया को गर्भवती होना बताया। यह सुनकर परिवादिया को भारी आघात पहुंचा कि आॅपरेषन के बावजूद वह गर्भवती कैसे हो गई? तब उसे यह भी सलाह मिली कि इसके लिए वो अलग से कार्यवाही कर सकती है। इस पर परिवादिया व उसके परिजनों ने अप्रार्थी संख्या 1 के कार्यालय में जाकर इसकी षिकायत की तो उन्होंने बताया कि नसबंदी आॅपरेषन असफल हुआ है तो वे इसके लिए अप्रार्थी संख्या 3 से संविदा के तहत क्षतिपूर्ति राषि 30,000/- रूपये के लिए कार्यवाही करेंगे। तब परिवादिया ने नियमानुसार क्लेम फार्म भरकर अप्रार्थी संख्या 1 के कार्यालय में जमा करवा दिया। इसके बाद परिवादिया आष्वस्त हो गई कि अप्रार्थी संख्या 3 द्वारा उसे क्षतिपूर्ति राषि का भुगतान कर दिया जाएगा। चूंकि परिवादिया का परिवार अत्यन्त ही गरीब परिवार है, जो अपनी पूर्व की संतानों का भी भरण पोशण बमुष्किल कर पा रहे हैं, ऐसी स्थिति में परिवादिया अनचाही संतान को जन्म देने की स्थिति में नहीं थी, इसलिए परिवादिया ने चिकित्सक की राय के अनुसार गर्भपात करवा लिया। उधर, राज्य सरकार द्वारा परिवार नियोजन कार्यक्रम के तहत किये जाने वाले नसबंदी आॅपरेषन असफल होने की स्थिति को देखते हुए अप्रार्थी संख्या 3 से एक बीमा पाॅलिसी ले रखी है, जिसके तहत नसबंदी आॅपरेषन असफल होने पर बीमा पाॅलिसी के तहत सम्बन्धित महिला को क्षतिपूर्ति का भुगतान बीमा कम्पनी अप्रार्थी संख्या 3 के द्वारा किया जाना है। हस्तगत प्रकरण में परिवादिया का नसबंदी आॅपरेषन असफल हुआ है, जिसके कारण क्षतिपूर्ति राषि का भुगतान परिवादिया को किया जाना है। परिवादिया ने उक्त क्षतिपूर्ति राषि के लिए अप्रार्थी संख्या 1 के कार्यालय में समय-समय पर सम्पर्क किया जाता रहा तो वहां से कहा गया कि उपरोक्त राषि का चैक प्राप्त होते ही सूचित कर दिया जायेगा। लम्बे समय तक चक्कर काटने के बावजूद परिवादिया को कोई क्षतिपूर्ति राषि नहीं दी गई। इस बीच अतिरिक्त मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (प.क.), नागौर द्वारा जारी एक पत्र उसे प्राप्त हुआ, जिसमें बताया गया कि समयावधि पार होने से राज्य स्तरीय क्वालिटी एंष्योरेंस कमेटी के समीक्षा उपरान्त स्कीम के तहत सम्बन्धित को भुगतान अस्वीकृत किया जाता है। इसके साथ मूल क्लेम फार्म भी लौटा दिया गया। जबकि परिवादिया ने समयावधि के अंदर परिवाद पेष कर दिया था। अप्रार्थीगण का उक्त कृत्य सेवा में कमी एवं अनफेयर ट्रेड प्रेक्टिस की तारीफ में आता है। अतः परिवादिया कोे नसबंदी आॅपरेषन असफल रहने पर दी जाने वाली क्षतिपूर्ति राषि 30,000/- का भुगतान करने का आदेष अप्रार्थीगण को दिया जाये। साथ ही परिवाद में अंकितानुसार अन्य अनुतोश भी दिलाया जावे।
2. अप्रार्थी संख्या 1 ने जवाब प्रस्तुत करते हुए बताया कि परिवादिया को नसबंदी आॅपरषेन के तहत सहमति षर्तों के अनुसार माहवारी नहीं आने की दषा में दो सप्ताह के भीतर-भीतर सम्बन्धित चिकित्सक को माहवारी नहीं आने की सूचना देनी थी लेकिन परिवादिया ने षर्तों का उल्लंघन करते हुए समय पर सक्षम अधिकारी को सूचना नहीं दी। इस प्रकार मनमर्जी से आष्वस्त होने के तथ्य आदि का कोई लाभ परिवादिया प्राप्त करने की अधिकारी नहीं है। यह भी बताया गया है कि परिवादिया का क्लेम फार्म दिनांक 21.02.2014 को अप्रार्थी संख्या 1 को प्राप्त हुआ, जो आवेदन षर्तों अनुसार 90 दिन में प्राप्त होना था मगर इस अवधि में प्राप्त नहीं हुआ। इसके बावजूद अप्रार्थी संख्या 1 द्वारा क्लेम फार्म अपने पत्रांक द्वारा निदेषक, आर.सी.एच.डी.एम.एच.एस. जयपुर भेजा गया था। जहां से निदेषक ने अपने पत्रांक द्वारा उक्त आवेदन अवधिपार होने के कारण रिजेक्ट कर दिया। अप्रेल, 2013 से आई.सी.आई.सी.आई. लोम्बार्ड जनरल इंष्योरेंस कम्पनी का अनुबंध समाप्त हो गया है, अब प.क. इण्डिमिनिटी स्कीम के तहत राज्य स्तरीय क्वालिटी इंष्योरेंस द्वारा क्लेम की स्वीकृति दी जाती है। यह भी बताया गया कि परिवादिया ने परिवाद-पत्र में गर्भपात कराया जाना लिखा है लेकिन कब, कहां एवं किसकी सलाह से गर्भपात करवाया, इसकी कोई जानकारी नहीं दी है। परिवादिया ने केवल क्लेम प्राप्त करने के लिए झूठे तथ्य अंकित किये हैं। अतः इसे मय खर्चा खारिज किया जावे।
3. प्रार्थी के निवेदन पर दिनांक 17.09.2015 की आदेष तालिका अनुसार अप्रार्थी संख्या 2 का नाम डिलिट किया गया।
4. अप्रार्थी संख्या 3 की ओर से जवाब प्रस्तुत कर मुख्य रूप से यह बताया गया है कि बीमा कम्पनी एवं सरकार के मध्य हुआ एमओयू व पाॅलिसी दिनांक 31.03.2013 को समाप्त हो चुकी थी जबकि परिवादिया का आॅपरेषन पाॅलिसी खत्म होने के बाद दिनांक 18.05.2013 को करवाया गया तथा दिनांक 10.09.2013 को आॅपरेषन विफल होना बताया गया है। ऐसी स्थिति में अप्रार्थी संख्या 3 का कोई दायित्व नहीं है।
5. बहस सुनी गई तथा पक्षकारान द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजात का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया गया। पत्रावली से यह स्पष्ट है कि परिवादिया श्रीमती छोटी ने राजस्थान सरकार के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग द्वारा परिवार कल्याण योजना कार्यक्रम के अंतर्गत दिनांक 18.05.2013 को नसबंदी आॅपरेशन करवाया था। परिवादिया ने अपने परिवाद में बताया है कि नसबंदी आॅपरेषन फेल हो जाने के कारण वह गर्भवती हुई और उसे गर्भपाल करवाना पडा।
परिवादिया ने परिवाद के समर्थन में स्वयं का षपथ-पत्र पेष करने के साथ ही क्लेम आवेदन निरस्त करने का पत्र प्रदर्ष 1, नसबंदी प्रमाण-पत्र प्रदर्ष 2, राजकीय चिकित्सालय, नागौर में इलाज कराने की पर्ची प्रदर्ष 3, सोनोग्राफी रिपोर्ट प्रदर्ष 4 एवं गर्भपात करवाने का प्रमाण पत्र प्रदर्ष 5 भी पेष किये हैं। अभिलेख पर उपलब्ध साक्ष्य से भी स्पश्ट है कि परिवादिया श्रीमती छोटी की नसबंदी करवाये जाने के बाद भी वह गर्भवती हो गई तथा उसे गर्भपात करवाना पडा। नसबंदी प्रमाण-पत्र प्रदर्ष 2 अनुसार परिवादिया छोटी की नसबंदी दिनांक 18.05.2013 को की गई लेकिन आॅपरेषन सफल नहीं होने के कारण वह गर्भवती हो गई तथा सोनोग्राफी रिपोर्ट प्रदर्ष 4 के अनुसार दिनांक 10.09.2013 को ज्ञात हुआ कि परिवादिया गर्भवती है, ऐसी स्थिति में उसे गर्भपात कराना पडा जो कि प्रदर्ष 5 से स्पश्ट है। यह भी स्पश्ट है कि गर्भवती होने के बाद परिवादिया ने सम्बन्धित चिकित्सा अधिकारी को सूचना भी दी तथा नियमानुसार क्लेम हेतु आवेदन भी प्रस्तुत किया, लेकिन इसके बावजूद उसे आज तक क्लेम राषि प्राप्त नहीं हुई है।
अप्रार्थी संख्या 3 के विद्वान अधिवक्ता की मुख्य आपति यह रही है कि बीमा पाॅलिसी की अवधि दिनांक 31.03.2013 को समाप्त हो चुकी थी जबकि परिवादिया के कथनानुसार नसबंदी आॅपरेषन दिनांक 18.05.2013 को किया गया था, जिसके फैल होने का ज्ञान सोनोग्राफी रिपोर्ट अनुसार दिनांक 10.09.2013 को हुआ था। ऐसी स्थिति में अप्रार्थी संख्या 3 का कोई दायित्व नहीं बनता है। अप्रार्थी संख्या 3 की ओर से बहस के दौरान बीमा पाॅलिसी प्रदर्ष ए 1 की फोटो प्रति भी प्रस्तुत की, जिसके अवलोकन पर भी स्पश्ट है कि बीमा पाॅलिसी दिनांक 31.03.2013 को ही समाप्त हो चुकी थी। अप्रार्थी संख्या 1 द्वारा अपने जवाब की मद संख्या 7 में भी स्पश्ट रूप से स्वीकार किया है कि आई.सी.आई.सी.आई. लोम्बार्ड जनरल इंष्योरेंस कम्पनी का अनुबंध अप्रेल, 2013 से समाप्त हो गया था। ऐसी स्थिति में स्पश्ट है कि हस्तगत मामले में परिवादिया के क्लेम अथवा क्षतिपूर्ति हेतु अप्रार्थी संख्या 3 का कोई दायित्व नहीं रहता है।
6. अप्रार्थी संख्या 1 ने परिवादिया की नसबंदी फेल होना स्वीकार करते हुए यही बताया है कि परिवादिया का क्लेम फार्म निदेषक, आर.सी.एच.डी.एम.एच.एस. जयपुर को भिजवा दिया गया था, जिसे अवधिपार होने के कारण रिजेक्ट कर दिया गया। पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री के अनुसार यह स्वीकृत स्थिति है कि परिवादिया का नसबंदी आॅपरेषन मुख्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा राज्य सरकार की योजना अनुसार कार्य करने एवं योजना की क्रियान्विति में ही दिनांक 18.05.2013 को किया गया था। यह पूर्व में ही स्पश्ट किया जा चुका है कि परिवादिया का नसबंदी आॅपरेषन विफल रहने के कारण वह गर्भवती हुई तथा उसे मजबूरन गर्भपात कराना पडा। अप्रार्थी संख्या 1 द्वारा प्रस्तुत जवाब अनुसार नसबंदी आॅपरेषन फैल होने पर परिवादिया की ओर से क्लेम आवेदन दिनांक 21.02.2014 को प्रस्तुत हुआ था, जिसे अप्रार्थी पक्ष द्वारा मात्र इस आधार पर रिजेक्ट किया है कि क्लेम आवेदन विलम्ब से प्रस्तुत हुआ है। अप्रार्थी संख्या 1 ने अपने जवाब की मद संख्या 5 में यह बताया है कि क्लेम फार्म दिनांक 21.02.2014 को प्राप्त हुआ, जो षर्तों अनुसार 90 दिन में प्राप्त होना था। यद्यपि यह सत्य है कि परिवादिया द्वारा अपना क्लेम आवेदन षर्तों अनुसार 90 दिन की अवधि व्यतीत होने के बाद पेष किया गया है लेकिन अप्रार्थी पक्ष द्वारा यह स्वीकार किया गया है कि बीमा कम्पनी का अनुबंध समाप्त हो जाने के बाद राज्य सरकार की प.क. इण्डिमिनिटी स्कीम के अन्तर्गत राज्य स्तरीय क्वालिटी इंष्योरेंस द्वारा क्लेम की स्वीकृति की जाती है। अप्रार्थी पक्ष द्वारा प्रस्तुत जवाब को देखते हुए स्पश्ट है कि नसबंदी आॅपरेषन विफल होने की स्थिति में राज्य सरकार की स्कीम अनुसार क्लेम प्रदान किया जाता है। ऐसी स्थिति में क्लेम आवेदन विलम्ब से पेष होने मात्र के आधार पर खारिज किया जाना न्याय संगत प्रतीत नहीं होता है। अप्रार्थी पक्ष द्वारा परिवादिया का क्लेम आवेदन निरस्त करने बाबत जो सूचना/पत्र प्रदर्ष 1 परिवादिया को दिया गया है उसमें क्लेम आवेदन निरस्त किये जाने का कोई स्पश्ट एवं युक्तियुक्त आधार नहीं बताया गया है। ऐसी स्थिति में स्पश्ट है कि परिवादिया अपना नसबंदी आॅपरेषन विफल रहने के कारण क्षतिपूर्ति प्राप्त करने की अधिकारी रही है जबकि अप्रार्थी पक्ष द्वारा परिवादिया का क्लेम आवेदन खारिज कर सेवा दोश किया गया है।
7. उपर्युक्त विवेचन से यह भी स्पश्ट है कि परिवादिया की ओर से प्रयास करने के बावजूद उसे समय पर क्लेम राषि प्रदान नहीं की गई, जिससे उसे मानसिक परेषानी का सामना करना पडा। ऐसी स्थिति में परिवादिया को मानसिक संताप हेतु 5,000/-रूपये एवं परिवाद व्यय हेतु भी 5,000/- रूपये दिलाया जाना न्यायोचित होगा।
आदेश
8. परिणामतः परिवादिया श्रीमती छोटी द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद अन्तर्गत धारा-12, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 का विरूद्ध अप्रार्थी संख्या 1 स्वीकार कर आदेष दिया जाता है कि अप्रार्थी संख्या 1 परिवादिया को देय मुआवजा राषि 30,000/- रूपये प्रदान करे। यह भी आदेष दिया जाता है कि इस राषि पर आवेदन प्रस्तुत करने की दिनांक 23.04.2015 से परिवादिया 9 प्रतिषत वार्शिक साधारण ब्याज भी प्राप्त करने की अधिकारी होगी। यह भी आदेष दिया जाता है कि अप्रार्थी संख्या 1 इस मामले में परिवादिया को मानसिक संतापस्वरूप 5,000/- रूपये अदा करने के साथ ही परिवाद व्यय के भी 5,000/- रूपये अदा करेंगे।
9. परिवादिया द्वारा प्रस्तुत परिवाद अप्रार्थी संख्या 3 के विरूद्ध खारिज किया जाता है।
10. आदेष की पालना एक माह में की जावे।
11. आदेष आज दिनांक 21.07.2016 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
नोटः- आदेष की पालना नहीं किया जाना उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 27 के तहत तीन वर्श तक के कारावास या 10,000/- रूपये तक के जुर्माने अथवा दोनों से दण्डनीय अपराध है।
।बलवीर खुडखुडिया। ।ईष्वर जयपाल। ।राजलक्ष्मी आचार्य। सदस्य अध्यक्ष सदस्या