Madhya Pradesh

Gwalior

CC/118/2015

RAVINDRA SINGH - Complainant(s)

Versus

BSNL - Opp.Party(s)

BHARAT SINGH

18 Mar 2015

ORDER

DISTRICT CONSUMER FORUM GWALIOR
FINAL ORDER
 
Complaint Case No. CC/118/2015
 
1. RAVINDRA SINGH
KAMPU, LASHKAR
GWALIOR
MADHYA PRADESH
...........Complainant(s)
Versus
1. BSNL
GWALIOR
GWALIOR
MADHYA PRADESH
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
  Smt.Abha Mishra PRESIDING MEMBER
  Dr.Mridula Singh MEMBER
 
For the Complainant:BHARAT SINGH, Advocate
For the Opp. Party:
ORDER

     परिवादी स्वयं उपस्थित।
                परिवाद की ग्राह्यता के संबंध में परिवादी अधिवक्ता के तर्क सुने गये।
                 प्रकरण का अवलोकन कर विचार किया गया।
                 परिवादी का अभिवचन है कि उसने अनावेदक भारत संचार निगम लिमिटेड से डब्ल्यू0एल0एल0 इंटरनेट सिग्नल न आने के कारण दूाभाष कनेक्शन क्रमांक 2820001प्राप्त किया था जिसे लिए जाने के उपरांत बिना उपयोग तीन चार दिन मे ंही वापस कर दिया था। परिवादी ने उक्त नकैकशन के संबंध में सिग्न न मिलने के कारण दिनांक 25.11.2011 को अनावेदक के यहां विधिवत शिकायत करते हुए दिनांक 13.12.2011 को चाही गयी सुविदा प्राप्त न होने से कनेक्शन को तत्काल बंद करने का निवेदन अनावेदक से किए जाने पर अनावेदक द्वारा कनेक्शन बंद कर दिया गया एवं परिवादी द्वारा टेलीफोन उपकरण, बैट्र्ी, चार्जर, एन्टीना आदि भी उसी दिन अनावेदक कार्यालय में जमा कर पावति प्राप्त कर ली थी तथा अनावेदक के यहां उक्त कनेक्शन के संबंध में जमानत बतौर जमा कराई गयी राशि 625रू एवं एडवांस बिल के रूपमें जमा कराई गयी राशि 500रू कुल 1125रू अनावेदक द्वारा कनेक्शन बंद करने के उपरांत वापस न करते हुए परिवादी के विरूद्ध न्यायालय विधिक सेवा प्राधिकरण जिला ग्वालियर में एक मिथ्या आवेदन देकर प्रीलिटेगेशन प्रकरण क्रमांक विस/14-151011/सीडीलएमए/ग्वालियर परिवादी के विरूद्ध प्रस्तुत कर परिवादी के विरूद्ध दिनांक 10.11.2014 को एक सूचना पत्र जारी कराया जाकर परिवादी के विरूद्ध 816रू एवं ब्याज राशि बकया जोना दर्शाया जब कि परिवादी द्वारा प्राप्त किए गए कनेक्शन का कोई उपयोग ही नहंी किया था। इस प्रकार अनावेदक द्वारा भेजा गया सूचना पत्र अवैधानिक होकर अनावेदक की अनुचित व्यापार व्यवहार एवं सेवा में त्रुटि है। परिवादी ने अनावेदक को रजिस्डर्ड सूचना पत्र दिनांक 17.12.2014 का भेजकर अनावेदक से जमा राशि व क्षतिपूर्ति की मांग की तत्पश्चात यह पविाद पेश किया है।   
                    परिवादी स्वयं के अभिवचनो से ही स्पष्ट है कि उसके द्वारा अनावेदकगण से प्राप्त दूरभाष कनेक्शन को दिनंाक 13.12.2011 को बंद कराकर वापस कर दिया गया था तथा अनावेदक से दिनांक 2.12.11 के पत्र द्वारा जमा राशि वापस किए जाने की मांग कर दी गयी थी तब उसी दिनांक को अधिक से अधिक कनेक्शन बंद दिए जाने की दिनांक 13.12.2011 को परिवादी को उक्त कनेक्शन हेतु जमा कराई गयी राशि 1125रू वापसी के संबंध मे परिवादी को वाद कारण उत्पन्न हो गया था। जिसकी दो वर्ष की समयावधि के भीतर पविादी को अनावेदक के विरूद्ध परिवाद प्रस्तुत कर देना चाहिए था परिवादी विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क कतई स्वीकार के योग्य नहंी है कि परिवादी द्वारा अनावेदक से जमा राशि वापसी की मांग हेतु प्रदर्श सी-2 व सी-3 के पत्र भेजे जाते रहे तथा  दिनांक 17.12.2014 को विधिक सूचना पत्र प्रदर्श सी-7 का भेजा गया है। यह सुस्थापित सिद्धांत है कि मात्र पत्र व्यवहार एवं विधिक सूचना पत्र से  अवधि का विस्तार नहीं हो जाता है। जैसा कि न्याय दृष्टांत कान्दीमल्ला राघवैया विरूद्ध नेशनल इंश्योरेंस कंपनी 2009-सी0टी0जे-951 माननीय सर्वोच्च न्यायालय (सी0पी0) में स्पष्ट सिद्धांत प्रति पादित किया गया है।
                  परिवादी विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि अनावेदक द्वारा परिवादी के विरूद्ध विधिक सेवा प्राधिकरण के माध्यम से प्रदर्श सी-9 का सूचना पत्र दिनंाक 10.11.2.14 भेजे जाने से परिवादी को वाद कारण उत्पन्न हुआ  है। किन्तु परिवादी विद्वान अधिवक्ता का तर्क भी स्वीकार के योग्य नहीं है प्रथम तो प्रदर्श सी-9 का सूचना पत्र विधिक कार्यवाही के तहत भेजा गया है जिसे अवैधानिक अथवा वापसी योग्य है अथवा नहीं यह इस फोरम के विचार का विषय  नहीं है। तथा परिवादी द्वारा उक्त सूचना पत्र एवं उसमें वर्णित राशियों के संबंध मे ंइस फोरम से कोई सहायता भी नहीं चाही है केवल परिवादी द्वारा जमा राशि 1125रू मय ब्याज वापसी की सहायता चाही है जिसकी वापसी के संबंध मे ंपरिवादी को वाद कारण दिनांक 13.12.2011 को ही उत्पन्न हो चुका था जिस दिनांक से लगभग तीन वर्ष तीन माह बाद यह परिवाद प्रस्तुत किया गया है एवं विलंब को क्षमा किए जाने संबंधी कोई कारण दर्शाते हुए आवेदन भी प्रस्तुत नहीं किया गया है।   जैसा कि न्याय दृष्टांत कान्दीमल्ला राघवैया विरूद्ध नेशनल इंश्योरेंस कंपनी 2009-सी0टी0जे-951 माननीय सर्वोच्च न्यायालय (सी0पी0) में स्पष्ट सिद्धांत प्रति पादित किया गया है।
                 ऐसी स्थिति में परिवादी द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 24 के प्रावधानो के तहत स्पष्टतः अवधि बाह्य होकर श्रवण योग्य नहंी है। 
                   अतः परिवादी द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद अंतिम सुनवाई हेतु ग्राह्य किए जाने योग्य नहीं पाते हुए इसे प्रारंभिक स्तर पर अवधि बाह्य होने से निरस्त किया जाता है। प्रकरण सांख्यिकीय प्रयोजन हेतु पंजीबद्ध हो। आदेश की प्रतिलिपि परिवादी को निःशुल्क दी जावे। परिणाम दर्ज कर प्रकरण अभिलेखागार में जमा हो। 

 

 
 
[ Smt.Abha Mishra]
PRESIDING MEMBER
 
[ Dr.Mridula Singh]
MEMBER

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