जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद सं. 105/2015
महेन्द्र कुमार षर्मा पुत्र श्री लक्ष्मीचन्द, जाति-षर्मा ब्राह्मण, हाल निवासी-मेडतासिटी, तहसील-मेडता, जिला-नागौर (राज.)। -परिवादी
बनाम
1. भारत संचार निगम लिमिटेड द्वारा महाप्रबन्धक, नागौर (राज.)।
2. भारत संचार निगम लिमिटेड द्वारा मुख्य महाप्रबन्धक, बीएसएनएल सर्किल आॅफिस, सरदार पटेल मार्ग, जयपुर (राज.)।
3. भारत संचार निगम लिमिटेड द्वारा प्रभारी मेडतासिटी।
-अप्रार्थी
समक्षः
1. श्री बृजलाल मीणा, अध्यक्ष।
2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री विक्रम जोषी, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री गोविन्द प्रकाष सोनी, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थी।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
आ दे ष दिनांक 16.12..2015
1. परिवाद-पत्र के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी सरकारी सेवा में वर्तमान में पारिवारिक न्यायालय, मेडतासिटी में न्यायाधीष के पद पर पदस्थापित है।
परिवादी ने नियमानुसार एक मोबाइल कनेक्षन अप्रार्थीगण से प्राप्त किया हुआ है, जिसका मोबाइल नम्बर 9413330185 है। अप्रार्थीगण ने परिवादी को उपरोक्त मोबाइल नम्बर के लिए देय राषि के भुगतान हेतु बिल जारी किया, जिसके भुगतान की अंतिम तिथि 27.02.2015 थी। परिवादी ने उक्त बिल को भुगतान की अदायगी हेतु 26.02.2015 को प्रातः 11ः00 एएम पर अप्रार्थी संख्या 3 के कार्यालय में विजय पारीक, सहायक कर्मचारी के साथ भिजवाया। जहां पर अप्रार्थीगण के सम्बन्धित कार्यालय से यह सूचना दी गई कि सम्बन्धित लिपिक अवकाष पर है, इसलिए बिल जमा नहीं किया जाएगा। अप्रार्थीगण द्वारा यह सूचित करना कि सम्बन्धित लिपिक अवकाष पर है, इसलिए बिल जमा नहीं किया जाएगा। अप्रार्थीगण द्वारा उपलब्ध करवाई जाने वाली सेवा में कमी का परिचायक है और अनफेयर टेªड प्रेक्टिस की श्रेणी में आता है।
दिनांक 26.02.2015 को जब परिवादी के सहायक कर्मचारी ने परिवादी को बिल जमा नहीं किये जाने बाबत् बताया गया तो परिवादी ने अप्रार्थी संख्या 3 के प्रभारी श्री मिर्धा से मोबाइल नम्बर पर सम्पर्क किया और उन्हें निवेदन किया कि वह यह सूचना लिखित में उपलब्ध करावें। लेकिन करीब 03ः00-03ः30 बजे तक उन्होंने लिखित में देने से इन्कार कर विभाग में सम्पर्क करने हेतु कहा। इस प्रकार से अप्रार्थीगण द्वारा सम्बन्धित लिपिक के अवकाष पर होने का बहाना बनाकर बिल जमा नहीं किया और इस सम्बन्ध में लिखित में सूचना देने में भी कोताही बरती और किसी भी प्रकार की कोई सुविधा अप्रार्थीगण द्वारा समय पर उपलब्ध नहीं करवाई जा रही है, जो अनफेयर ट्रेड प्रेक्टिस और सेवा दोश की श्रेणी में आता है।
परिवादी ने अप्रार्थीगण से दिनांक 26.02.2015 से दिनांक 31.03.2015 तक इस सम्बन्ध में सम्बन्धित के खिलाफ कार्रवाई करने के सम्बन्ध में निवेदन किया और अप्रार्थीगण को यह सूचित किया कि आप सम्बन्धित कर्मचारी के विरूद्ध सेवाएं उपलब्ध नहीं कराने के सम्बन्ध में क्या कार्रवाई कर रहे है? वह उपलब्ध करवावें, लेकिन अप्रार्थीगण ने इस सम्बन्ध में टालमटोल का रवैया अपनाया और अप्रार्थी संख्या 2 के द्वारा अपने पत्र दिनांक 25.03.2015 के द्वारा यह सूचित किया गया कि दिनांक 26.02.2013 को मेडता में कार्यरत सिस्टम, षाॅर्ट सर्किट के कारण बंद हो गया था और सम्बन्धित कर्मचारी इस फाॅल्ट को एटेंड करने के लिए गये हुए थे तथा बीएसएनएल, मेडतासिटी में और कोई भी कर्मचारी उपलब्ध नहीं था।
गौरतलब है कि किसी भी सरकारी कार्यालय को कार्य अवधि के दौरान किसी भी प्रकार से बिना कर्मचारियों के खुला नहीं छोडा जा सकता। प्रत्येक सरकारी कार्यालय में हर समय कोई न कोई प्रभारी अधिकारी/कर्मचारी को उपस्थित रखने का उतरदायित्व सम्बन्धित विभाग के आॅफिसर इंजार्ज का और महाप्रबन्धक का होता है। इस प्रकार से अप्रार्थीगण ़द्वारा लिखित में यह सूचना दिया जाना कि तत्समय बीएसएनएल कार्यालय, मेडतासिटीे में कोई कर्मचारी उपस्थित नहीं था। यह पूर्णतया प्रमाणित करता है कि अप्रार्थीगण का रवैया गौर उपेक्षापूर्ण एवं सेवा दोश से ग्रसित है। अप्रार्थीगण का उपरोक्त सम्पूर्ण कृत्य अनफेयर टेªड प्रेक्टिस एवं सेवा दोश की श्रेणी में आता है।
2. अप्रार्थी संख्या 2 के पत्र दिनाांक 25.03.2015 के अनुसरण में दिनांक 31.03.2015 को परिवादी ने यह जानकारी चाही कि सम्बन्धित कर्मचारी को आपने किन सेवा नियमों के तहत तथाकथित चेतावनी दी है और क्या आप स्वयं इस प्रकार की सेवाओं से संतुश्ट हैं? लेकिन अप्रार्थीगण ने परिवादी के उक्त प्रकरण के अनुसरण में कोई भी जांच/सूचना परिवादी को उपलब्ध नहीं करवाई। अप्रार्थीगण के उपरोक्त सम्पूर्ण कृत्य एवं रवैये से यह पूर्णतया प्रमाणित है कि अप्रार्थीगण आमजन को किस प्रकार की सेवाएं उपलब्ध करवा रहे हैं। अप्रार्थीगण के उपरोक्त सम्पूर्ण रवैये से परिवादी को गौर मानसिक संपीडन पहुंच रहा है और वो गौर मानसिक पीडा से गुजर रहा है। जिससे परिवादी के समक्ष वर्तमान कार्यवाही करने के अतिरिक्त कोई विकल्प मौजूद नहीं है।
3. अप्रार्थीगण का मुख्य रूप से यह कहना है कि अप्रार्थी संख्या 3 के कार्यालय में कार्यरत उपमण्डल अभियंता, मेडता दिनांक 26.02.2015 को नागौर मिटिंग में थे तथा टेलीकाॅम तकनीकी सहायक भी उनके साथ मिटिंग में थे। उस दिन कोई भी कर्मचारी अवकाष पर नहीं था। परन्तु कनिश्ठ दूरसंचार अधिकारी श्री मिर्धा मेडतासिटी के जीएसएम टाॅवर-04 (चैतन्य काॅलोनी, मेडता) के खराब होने के कारण ठीक करने के लिए गये हुए थे तथा मेडतासिटी में कार्यरत दो लाईन मैन फाल्ट ठीक करने गये हुए थे तथा एक मात्र आरएम ही कार्यालय में थी। इस कारण से दिनांक 26.02.2015 को बिल राषि जमा नहीं हो सकी तथा बिल की अंतिम तारीख 27.02.2015 थी। इस प्रकार से सभी कर्मचारियों के राजकीय ड्यूटी पर अलग- अलग कार्य करने से इसे सेवा में कमी नहीं माना जा सकता। श्री मिर्धा मोबाइल टाॅवर फाॅल्ट एटेंड करने गये हुए थे, इस कारण केष काउंटर का कार्य करने हेतु उस समय कर्मचारी मौजूद नहीं था। परन्तु दिनांक 27.02.2015 को अप्रार्थी का कर्मचारी परिवादी के यहां अदालत में भेजा गया और विवादित बिल की राषि प्राप्त कर परिवादी को रसीद भिजवा दी गई। परिवादी की षिकायत पर सम्बन्धित को नोटिस देकर सम्पूर्ण प्रकरण की जांच कर अ.सं. 2 को उतर भी प्रेशित किया गया था परन्तु उसमें पूर्ण समयावधि 27.02.2015 को ही अप्रार्थी का कर्मचारी द्वारा न्यायालय में जाकर बिल राषि प्राप्त कर रसीद प्रदत कर दी गई थी। चूंकि कार्यालय में कार्यरत अधिकारी एवं कर्मचारी विभिन्न राजकीय ड्यूटी पर अलग-अलग जगह होने के कारण दिनांक 26.02.2015 को बिल राषि जमा नहीं हो सकी परन्तु बिल राषि अगले दिन समयावधि में जमा कर ली गई थी। परिवादी की षिकायत पर ही जांच कर उन्हें पत्र भेजा गया था।
4. बहस उभय पक्षकारान सुनी गई। पत्रावली का ध्यानपूर्वक अध्ययन एवं मनन किया गया। परिवादी का अप्रार्थीगण का उपभोक्ता होने के सम्बन्ध में कोई विवाद नहीं है। विवाद सेवा में कमी/सेवा दोश के सम्बन्ध में है। यह भी निर्विवाद है कि परिवादी का सहायक कर्मचारी परिवादी के उक्त मोबाइल बिल की देय राषि जमा कराने के लिए दिनांक 26.02.2015 को अप्रार्थीगण के कार्यालय में उपस्थित हुआ। परन्तु उक्त बिल 26.02.2015 को जमा नहीं हुआ।
5. परिवादी के सहायक कर्मचारी ने जब परिवादी को सूचित किया कि अप्रार्थीगण के कार्यालय में यह बताया गया कि सम्बन्धित लिपिक अवकाष पर है इसलिए बिल जमा नहीं होगा। इस बात की सूचना जब परिवादी ने अप्रार्थीगण से मांगी तो इस बात की कोई सूचना अप्रार्थीगण ने नहीं दी कि उनका सम्बन्धित कर्मचारी अवकाष पर है। यद्यपि अप्रार्थीगण ने अपने जवाब में किसी भी कर्मचारी को दिनांक 26.02.2015 को अवकाष पर नहीं होना बताया है। परन्तु कनिश्ठ दूरसंचार अधिकारी श्री मिर्धा को मेडतासिटी के जीएसएम टाॅवर-04 (चैतन्य काॅलोनी, मेडता) के खराब होने के कारण ठीक करने के लिए जाना बताया है। मेडतासिटी में कार्यरत दो लाईन मैन को फाॅल्ट ठीक करने जाना बताया है। उपमण्डल अभियंता, मेडता को दिनांक 26.02.2015 को नागौर में मिटिंग में एवं टेलीकाॅम तकनीकी सहायक को भी उपमण्डल अभियंता के साथ मिटिंग में जाना बताया है।
6. यदि अप्रार्थीगण के इस कथन पर विचार किया जावे कि उपरोक्त प्रकार से उसके द्वारा बताये गये कर्मचारी ड्यूटी पर गये हुए थे। प्रष्न उत्पन्न होता है कि यदि उनका उक्त कथन सही है तो अप्रार्थीगण को दिनांक 26.02.2015 का ड्यूटी चार्ट पेष करना चाहिए था। कहां-कहां, किस-किस जगह क्या खराबी थी? किस-किस कर्मचारी को कहां-कहां भेजा गया? कौनसी मिटिंग नागौर में थी? क्या उसकी मिनिट्स रही? क्या उक्त मिटिंग के लिए कोई निर्देष/आदेष प्राप्त हुए थे? नागौर में मिटिंग के लिए जो उपरोक्त अधिकारी/कर्मचारी जिसका जाना बताया, उन्हें उपस्थिति पत्र मिला क्या? उनके द्वारा टीए-डीए उठाया गया। यदि सरकारी वाहन से गये तो लोग बुक में दिनांक 26.02.2015 को नागौर मिटिंग में आने-जाने का इन्द्राज किया गया क्या? उपरोक्त सम्बन्ध में अप्रार्थीगण की ओर से कोई लिखित दस्तावेज/सबूत प्रस्तुत नहीं किये गये हैं। इसलिए अप्रार्थीगण के उक्त कथन पर लेष मात्र भी विष्वास नहीं किया जा सकता। ऐसा प्रतीत होता है कि एक प्रबुद्ध नागरिक ने अपने अधिकारों के तहत अप्रार्थीगण से पूछताछ व पत्र व्यवहार किया तो उपरोक्त झूंठा बचाव तैयार कर लिया।
7. परिवादी के मामले में यह भी बडा आष्चर्यजनक एवं हास्यास्पद वाक्या सामने आया कि अप्रार्थीगण ने अपने कार्यालय में किसी जिम्मेदार अधिकारी/कर्मचारी का उपस्थित होना ही नहीं बताया और सभी कर्मचारियों का कार्यालय से बाहर होना बताया। किसी भी सूरत में यह नहीं हो सकता कि कार्य दिवस में कोई कार्यालय बिना कर्मचारी के संचालित हो। प्रत्येक कार्य के लिए सम्बन्धित अधिकारी द्वारा सम्बन्धित कर्मचारी की ड्यूटी निर्धारित की जाती है, जो कि अनिवार्य है। केष काउंटर पर कोई कर्मचारी नहीं होना ही अपने आप में सेवा दोश है। बिल जारी होने के पष्चात् देय राषि को उपभोक्ता अंतिम तिथि का बगैर इंतजार किये कभी भी जमा करा सकता है। लेकिन इस मामले में अप्रार्थीगण ने परिवादी के सहायक कर्मचारी से परिवादी का बिल ही जमा नहीं किया और परिवादी के कारण जानने पर कोई संतोशजनक जवाब नहीं दिया। स्पश्टतः सेवा में कमी एवं सेवा दोश है।
8. सामान्यतः आम धारणा है कि सरकारी कार्यालयों में कर्मचारी कोई परवाह नहीं करते और न ही समय पर काम करते। काम के लिए लोगों को बार-बार परेषान करते रहते हैं। टहलाते रहते हैं परन्तु अधिकांषजन पीडा को सहन कर कुछ नहीं कर पाते। ना कोई षिकायत करता है ना कोई न्यायालय में आने का साहस जुटाता है। परन्तु इस मामले में परिवादी ने अपने अधिकारों की जागरूकता का परिचय दिया, जो कि आमजन को करना चाहिए। वर्तमान प्रकरण में परिवादी जो स्वयं न्यायाधीष है, उनके साथ भी अप्रार्थीगण का इस तरह का व्यवहार रहा है तो आम उपभोक्ता के बारे में सोचा जा सकता है कि उनके साथ कैसा व्यवहार रहता होगा। यह चिंता का विशय है। ऐसा प्रतीत होता है कि अप्रार्थीगण के उच्च अधिकारी भी ऐसे मामलों में जनता की कोई परवाह नहीं करते हैं और लापरवाही अधिकारी/कर्मचारी के विरूद्ध कोई कार्रवाई नहीं करते और उनका गलत पक्ष लेकर बचाव करते हैं। जो किसी भी सूरत में उचित एवं न्याय संगत नहीं है। अप्रार्थीगण के उक्त कृत्य से परिवादी की मानसिक पीडा को भली-भांति समझा जा सकता है। अप्रार्थीगण की लापरवाही एवं सेवा दोश के कारण परिवादी को मंच में अपना परिवादी प्रस्तुत करना पडा है। इस प्रकार से परिवादी, अप्रार्थीगण के विरूद्ध अपना परिवाद साबित करने में सफल रहा है। परिवादी का परिवाद अप्रार्थीगण के विरूद्ध निम्न प्रकार से स्वीकार किया जाता है तथा आदेष दिया जाता है किः-
आदेश
9. अप्रार्थीगण, परिवादी को मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में 10,000/- रूपये अदा करें। साथ ही परिवाद-व्यय के 5,000/- रूपये भी अदा करें। उक्त राषि अप्रार्थीगण, परिवादी को एक माह के अंदर अदा करें। साथ ही भारत संचार निगम लिमिटेड, जयपुर सर्किल के मुख्य महाप्रबन्धक को आदेषित किया जाता है कि वह उक्त प्रकरण में लापरवाह/दोशी, अधिकारी/कर्मचारी के विरूद्ध नियमानुसार कार्यवाही कर मंच (न्यायालय) को एक माह में सूचित करें और जो भी दोशी अधिकारी/कर्मचारी पाया जावे, चाहें तो उससे उक्त राषि वसूल करने के लिए स्वतंत्र है।
आदेश आज दिनांक 16.12.2015 को लिखाया जाकर खुले न्यायालय में सुनाया गया।
।बलवीर खुडखुडिया। ।बृजलाल मीणा। ।श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य।
सदस्य अध्यक्ष सदस्या