जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद सं. 173/2014
करणसिंह राठौड पुत्र श्री मदनसिंह राठौड, जाति-राजपूत, निवासी-बालवा, नागौर (राज.)। -परिवादी
बनाम
1. भारत संचार निगम लिमिटेड, नागौर जरिये महाप्रबन्धक दूरसंचार, भारत संचार निगम लिमिटेड, बी.आर. मिर्धा काॅलेज के पास, दूरसंचार भवन, नागौर (राज.)।
2. मुख्य महाप्रबन्धक दूरसंचार (ब्ळडज् त्ंरंेजींद) राजस्थान, भारत संचार निगम लिमिटेड, सरदार पटेल मार्ग सी-स्कीम, जयपुर-302008
-अप्रार्थीगण
समक्षः
1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री कुन्दनसिंह आचीणा, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री गोविन्दप्रकाष सोनी, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थीगण।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
निर्णय दिनांक 18.05.2016
1. यह परिवाद अन्तर्गत धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 संक्षिप्ततः इन सुसंगत तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया कि परिवादी ने अप्रार्थी के कार्यालय से एक बेसिक टेलीफोन मय ब्राॅडबैंड इंटरनेट कनेक्षन ले रखा था। जिसके नम्बर 01582-253004 एवं उपभोक्ता क्रमांक 1013887381 है। उक्त टेलीफोन के उपयोग व उपभोग के फलस्वरूप जारी बिल का भुगतान परिवादी द्वारा नियमित समयावधि में किया जाता रहा है। लेकिन दिनांक 28.07.2014 से तकनीकी खराबी के चलते परिवादी का टेलीफोन मय ब्राॅडबैंड कनेक्षन बन्द पडा है। इस पर परिवादी ने इसकी षिकायत अप्रार्थी के कार्मिकों को उनके मोबाइल पर काॅल कर की। लेकिन उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की। इस पर परिवादी ने दिनांक 13.08.2014 एवं 17.08.2014 को जरिये ईमेल व साधारण डाक से भी षिकायत भेजी। फिर भी कोई कार्रवाई नहीं होने पर परिवादी ने दिनांक 19.09.2014 को रजिस्टर्ड डाक से षिकायत भेजी। इस तरह परिवादी के बार-बार षिकायत करने पर भी अप्रार्थी के टेलीफोन कनेक्षन को दुरूस्त नहीं किया गया। बल्कि टेलीफोन कनेक्षन बंद होने के उपरांत भी परिवादी को बिल भेजे जाते रहे, जिसका भुगतान भी परिवादी द्वारा किया जाता रहा। इन सब के बावजूद अप्रार्थीगण ने परिवादी के टेलीफोन कनेक्षन को चालू नहीं किया। अप्रार्थीगण का उक्त कृत्य सेवा में कमी एवं अनफेयर टेªड प्रेक्टिस की श्रेणी में आता है। अतः परिवादी का टेलीफोन संयोजन को उपयोग के लिए पूर्णतः दुरूस्त किया जावे। इसके अलावा टेलीफोन बंद की अवधि में जुलाई 2014, अगस्त 2014 एवं सितम्बर 2014 में जारी बिल निरस्त किय जावे तथा परिवाद में अंकितानुसार अन्य अनुतोश दिलाये जावे।
2. अप्रार्थीगण द्वारा परिवाद की मद संख्या 1 व 2 में अंकित तथ्यों को स्वीकार करते हुए आगे बताया कि परिवादी का टेलीफोन खराब रहने की सूचना दिनांक 01.08.2014 को प्राप्त होते ही विभागीय कर्मचारी मौके पर जांच हेतु गया तो पाया कि मौके पर पाईप लाईन की खुदाई का कार्य चलने से भूमिगत केबल करीब 400 मीटर खराब होने के कारण टेलीफोन तुरन्त ठीक नहीं हो सका तथा जब भूमिगत केबल सुधारने का कार्य चालू करने लगे तो गांव के कुछ व्यक्तियों द्वारा कार्य में बाधा डालने से केबल ठीक नहीं हो सकी, जिसे बाद में सुधारकर परिवादी का टेलीफोन दिनांक 09.10.2014 को पूर्ण रूप से ठीक कर चालू कर दिया गया था। यह भी बताया गया है कि जिस अवधि में परिवादी का टेलीफोन बंद रहा उस अवधि बाबत् परिवादी को छूट प्रदान की जा चुकी है। ऐसी स्थिति में परिवाद खारिज किया जावे।
3. दोनों पक्षों की ओर से अपने-अपने षपथ-पत्र एवं दस्तावेजात पेष किये गये।
4. बहस सुनी जाकर पत्रावली का अवलोकन किया गया। इस मामले में परिवादी स्वीकृत रूप से अप्रार्थी दूरसंचार विभाग का उपभोक्ता रहा है तथा टेलीफोन बंद रहने की अवधि बाबत् बिल जारी होने से परिवादी का विवाद उपभोक्ता मामले का रहा है। परिवादी ने आवेदन के समर्थन में दिनांक 13.08.2014 को की गई षिकायत प्रदर्ष 1, टेलीफोन के बिल प्रदर्ष 2, 3 व 4, बिल जमा कराने की रसीदें प्रदर्ष 5, ई मेल से की गई षिकायत प्रदर्ष 6 व 8, दिनांक 13.08.2014 को की गई लिखित षिकायत प्रदर्ष 7 एवं बिल जमा कराने की रसीद प्रदर्ष 9 की फोटो प्रतियां पेष की है। परिवादी के कथानुसार उसका टेलीफोन मय ब्राॅडबैंड इंटरनेट कनेक्षन दिनांक 28.07.2014 से खराब रहा है। जिसे अप्रार्थी पक्ष द्वारा अपने लिखित जवाब में स्वीकार करते हुए बताया गया है कि परिवादी का टेलीफोन ठीक करके दिनांक 09.10.2014 से चालू कर दिया गया। बहस के दौरान परिवादी के विद्वान अधिवक्ता भी इस तथ्य पर सहमत हैं कि दिनांक 09.10.2014 से सही होकर चालू है। परिवादी की ओर से यह परिवाद प्रस्तुत कर माह जुलाई, अगस्त व सितम्बर, 2014 की अवधि बाबत् जारी बिल निरस्त किये जाने का अनुतोश चाहा है, जिसे अप्रार्थी पक्ष द्वारा अपने जवाब में भी स्वीकार करते हुए बताया गया है कि परिवादी का टेलीफोन बंद रहने की अवधि बाबत् जारी बिल की छूट परिवादी को प्रदान की जा चुकी है। जबकि परिवादी के विद्वान अधिवक्ता की आपति है कि जो छूट प्रदान किया जाना बताया जा रहा है वह राषि परिवादी को प्राप्त नहीं हुई है। इस सम्बन्ध में पक्षकारान को सुना जाकर पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री को देखते हुए यह आदेष दिया जाना न्यायोचित होगा कि परिवादी का टेलीफोन बंद रहने की अवधि बाबत् जो छूट प्रदान करना बताया गया है वह राषि यदि परिवादी के खाता में समायोजित नहीं की गई हो तो भविश्य में जारी होने वाले बिलों में समायोजित कर ली जावे।
5. परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि अप्रार्थीगण को मौखिक निवेदन किये जाने पर उसे कोई छूट प्रदान नहीं की गई बल्कि यह परिवाद प्रस्तुत किये जाने के पष्चात् ऐसी छूट दिया जाना बताया गया है। ऐसी स्थिति में परिवादी को मानसिक संताप पेटे क्षतिपूर्ति दिलाये जाने के साथ ही परिवाद व्यय भी दिलाया जावे। इस बिन्दु पर सुना जाकर बाद अवलोकन पत्रावली परिवादी को मानसिक परेषानी बाबत् 1,000/- रूपये दिलाये जाने के साथ ही परिवाद व्यय 1,000/- दिलाया जाना न्यायोचित होगा।
आदेश
6. परिणामतः परिवादी करणसिंह राठौड द्वारा प्रस्तुत परिवाद अन्तर्गत धारा-12, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 खिलाफ अप्रार्थीगण स्वीकार किया जाकर आदेष दिया जाता है कि परिवाद में वर्णित परिवादी के बेसिक टेलीफोन मय ब्राॅडबैंड इंटरनेट के खाता बाबत् दिनांक 28.07.2014 से लेकर दिनांक 09.10.2014 की अवधि में टेलीफोन बंद/खराब रहने के कारण इस अवधि बाबत् जारी बिल की राषि परिवादी के खाता के सम्बन्ध में भविश्य में जारी होने वाले बिलों में समायोजित की जावे। यह भी आदेष दिया जाता है कि अप्रार्थीगण अपने सेवा दोश के कारण परिवादी को हुई मानसिक परेषानी की एवज में 1,000/- रूपये प्रदान करने के साथ ही परिवाद व्यय के भी 1,000/- रूपये अदा करेंगे। यह स्पश्ट किया जाता है कि उपर्युक्त राषि भी परिवाद के खाता के सम्बन्ध में भविश्य में जारी होने वाले बिलों में समायोजित की जावे। आदेष की पालना एक माह में की जावे।
7. आदेष आज दिनांक 18.05.2016 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
नोटः- आदेष की पालना नहीं किया जाना उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 27 के तहत तीन वर्श तक के कारावास या 10,000/- रूपये तक के जुर्माने से दण्डनीय अपराध है।
।बलवीर खुडखुडिया। ।ईष्वर जयपाल। ।राजलक्ष्मी आचार्य। सदस्य अध्यक्ष सदस्या