राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-2981/2001
(जिला उपभोक्ता फोरम, मैनपुरी द्वारा परिवाद संख्या-62/2000 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 07.09.2001 के विरूद्ध)
1. यूनियन आफ इण्डिया द्वारा चीफ पोस्ट मास्टर जनरल, यू0पी0 सर्कल, लखनऊ।
2. पोस्ट मास्टर हेड पोस्ट आफिस, मैनपुरी जिला मैनपुरी।
3. पोस्ट मास्टर दिलकुशा, लखनऊ-2 ।
.........................अपीलार्थीगण/विपक्षीगण।
बनाम्
बृजेश कुमार नम्बर 14247759/लांस नईक सेण्ट्रल कमाण्ड सिग्नल, रेजिमेंट, लखनऊ-2, प्रेसेंटली पोस्टेड-बृजेश कुमार द्वारा श्री देवी शाक्य, निवासी बालाजी पुरम (बिहाइंड कोआपरेटिव बैंक) मैनपुरी।
.....................................प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
1. माननीय श्री राम चरन चौधरी, पीठासीन सदस्य।
2. माननीय श्री जुगुल किशोर, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : डा0 उदय वीर सिंह, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक 10.12.2014
माननीय श्री जुगुल किशोर, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता डा0 उदय वीर सिंह उपस्थित हैं। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है जबकि उन पर नोटिस की तामिला पर्याप्त है। तदनुसार अपीलार्थीगण को विस्तार से सुना गया एवं अभिलेखों का अवलोकन किया गया। चूंकि प्रस्तुत अपील वर्ष 2001 से आयोग के समक्ष विचाराधीन है, इसलिए पीठ द्वारा यह समीचीन पाया गया कि प्रस्तुत अपील का निर्णय गुणदोष के आधार पर कर दिया जाए।
अपीलार्थीगण द्वारा यह अपील, जिला फोरम, मैनपुरी द्वारा परिवाद संख्या-62/2000 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 07.09.2001 से क्षुब्ध होकर दिनांक 11.12.2001 को योजित की गयी है।
प्रकरण संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी द्वारा दिनांक 01.04.1998 को एक मनी आर्डर रू0 500/- का श्रीमती ब्रजेश कुमार पत्नी को द्वारा राज बहादुर सिंह,
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एडवोकेट राज का बाग शहर व जिला मैनपुरी के पते पर भेजा गया था, जिसकी रसीद संख्या-1869 दिनांक 01.04.1998 है। उक्त मनीआर्डर की धनराशि दिनांक 19.05.1998 तक प्राप्तकर्ता के पते पर भेजी नहीं गयी। तब परिवादी ने इसकी सूचना लिखित रूप से दिनांक 20.05.1998 को विपक्षी संख्या-1 को दी, परन्तु एक माह का समय व्यतीत हो जाने के उपरान्त भी उसे मनीआर्डर के वितरित होने की सूचना उपलब्ध नहीं करायी गयी। इस प्रकार विपक्षीगण द्वारा मनीआर्डर को समय से न वितरित करना और इसकी सूचना न उपलब्ध कराने से क्षुब्ध होकर परिवादी द्वारा जिला फोरम के समक्ष प्रश्नगत परिवाद योजित किया गया।
विपक्षीगण द्वारा लिखित अभिकथन दाखिल करते हुए कहा गया कि श्रीमती ब्रजेश कुमार नाम की कोई महिला राजा के बाग में न होने के कारण उक्त मनीआर्डर दिनांक 1.4.1998 वितरित नहीं किया जा सका और परिवादी की इच्छानुसार दूसरा मनीआर्डर बिना अतिरिक्त चार्ज के पुन: जारी किया गया, परन्तु पते की त्रुटि के कारण अथवा प्राप्तकर्ता के उक्त पते पर न मिलने के कारण उक्त मनीआर्डर वितरित नहीं हो सका। इस सम्बन्ध में उल्लेखनीय है कि प्रश्नगत धनादेश की अनुलिपि प्रधान डाकघर मैनपुरी में भुगतान हेतु प्राप्त हुई, जिसे भुगतान हेतु संबंधित डाकिया को दिया गया, जिसके तलाश करने पर पता चला कि प्राप्तकर्ता कहीं बाहर सर्विस करती है, ‘’प्रेषक को वापस किया जाता है’’ का रिमार्क इस अनुलिपि पर दिनांक 27.10.1998 को लगाया था। अत: यह अनुलिपि प्रेषक को भुगतान हेतु वापस कर दिया गया। प्रश्नगत धनादेश की अनुलिपि को भुगतान की दृष्टि से दिनांक 08.03.1999 को पुन: संबंधित डाकिया को दिया गया। संबंधित डाकिया ने पुन: रिमार्क लगाया सीएचएन द्वारा ज्ञात हुआ कि प्राप्तकर्ता दो माह की छुट्टी पर गया है। संबंधित डाकिया द्वारा विषम परिस्थितियों में धनादेश के धन की वितरित करने का भरसक प्रयास किया गया, जिसके फलस्वरूप उक्त मनीआर्डर की राशि दिनांक 08.07.2000 को परिवादी द्वारा प्रधान डाकघर मैनपुरी से बिना किसी आपत्ति के प्राप्त की जा चुकी है, इसलिए अब परिवादी का कोई वाद कारण उत्पन्न नहीं होता है। परिवादी/विपक्षीगण के मध्य कोई संबंध उपभोक्ता और व्यवसायी का नहीं है और न हो सकता है, क्योंकि डाक मनी आर्डर आदि की सेवा भारत संघ के डाक विभाग द्वारा उपलब्ध करायी जाती है। तदनुसार परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।
जिला फोरम द्वारा पक्षकारों को सुनने तथा पत्रावली का अवलोकरन करने के पश्चात पाया कि चूंकि प्रश्नगत मनीआर्डर की धनराशि दिनांक 01.04.1998 को भेजी गयी, जिसे प्रेषक ने स्वंय दिनांक 08.07.2000 को प्राप्त किया है। इस प्रकार उसे मनीआर्डर की धनराशि प्राप्त हो चुकी है, लेकिन उक्त धनादेश विपक्षीगण के गैर
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जिम्मेदाराना रवैये के कारण मनीआर्डर की धनराशि प्रेषक को इतने लम्बे समय के बाद वापस की गयी है, उसके लिए उसे मनीआर्डर की धनराशि पर 09 प्रतिशत ब्याज दिलाया जाना उचित प्रतीत होता है। तदनुसार जिला फोरम द्वारा विपक्षीगण को आदेशित किया गया कि वह 09 प्रतिशत वार्षिक ब्याज धनादेश की तिथि दिनांक 01.04.1998 से हस्तगत करायी गयी तिथि दिनांक 08.07.2000 तक व रू0 1,000/- बतौर मानसिक व शारीरिक कष्ट हेतु व रू0 500/- वाद व्यय हेतु धनराशि एक माह में परिवादी को अदा करें।
पीठ द्वारा अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता को सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का परिशीलन किया गया।
जैसाकि मा0 राष्ट्रीय आयोग, नई दिल्ली द्वारा यूनियन आफ इंडिया व अन्य बनाम एम0एल0 बोरा रिवीजन पिटीशन संख्या 2411/2006 में पारित निर्णय दिनांक 13.10.2010 में निम्नानुसार अवधारित किया गया है:-
"………….Section 6 of the Indian Post Office Act, 1898 reads as under:
"Exemption from liability for loss, misdelivery, delay or damage. – The Government shall not incur any liability by reason of the loss, misdelivery or delay of, or damage to, any postal article in course of transmission by post, except in so far as such liability may in express terms be undertaken by the Central Government as hereinafter provided and no officer of the Post Office shall incur any liability by reason of any such loss, misdelivery, delay or damage unless he has caused the same fraudulently or by his willful act of default."
…………..Section 6 grants complete immunity to the government for the loss, misdelivery or damage to the postal articles. In the present case neither any allegation has been made against any officer of the Postal Department that the loss or damage was caused due to fraudulent or willful act or default of such an officer, nor any of the employees of the Department has been impleaded as a party-Respondent making allegations as stated above. In the absence of same no relief can be granted against any of the officers of the department."
उपरोक्त तथ्यों, परिस्थितियों एवं विधि व्यवस्था को दृष्टिगत रखते हुए पीठ इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि विपक्षीगण द्वारा परिवादी के मनी आर्डर भेजने में कोई उदासीनता एवं लापरवाही नहीं बरती है, बल्कि मनीआर्डर की धनराशि वितरित करने हेतु संबंधित डाकिया द्वारा प्राप्तकर्ता को काफी तलाश करने पर उसका पता न मिलने के कारण प्रेषक को दिनांक 08.07.2000 को प्रेषक को प्राप्त करा दी गयी है। अत: विपक्षीगण द्वारा कोई सेवा में कमी नहीं की गई है। तदनुसार जिला मंच का प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक 07.09.2001 अपास्त किये जाने योग्य है। तदनुसार, प्रस्तुत अपील स्वीकार किये जाने योग्य है।
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आदेश
प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है और जिला मंच मैनपुरी द्वारा परिवाद संख्या-62/2000 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 07.09.2001 निरस्त किया जाता है।
अपील के व्यय के सम्बन्ध में कोई आदेश पारित नहीं किया जा रहा है।
इस निर्णय/आदेश की प्रमाणित प्रतिलिपि उभय पक्ष को नियमानुसार उपलब्ध करा दी जाये। पत्रावली दाखिल अभिलेखागार हो।
(राम चरन चौधरी) (जुगुल किशोर)
पीठासीन सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0-2
कोर्ट-5