राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग उ0प्र0, लखनऊ
(मौखिक)
अपील सं0- 2758/2003
कानपुर डेवलपमेंट अथारिटी।
बनाम
बृजेन्द्र कुमार पाण्डेय।
दिनांक :- 30.09.2024
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील विगत लगभग 21 वर्षों से लम्बित है जो कानपुर विकास प्राधिकरण द्वारा जिला उपभोक्ता आयोग कानपुर नगर द्वारा परिवाद सं0- 551/2002 में पारित निर्णय एवं आदेश दि0 22.08.2003 के विरुद्ध योजित की गई है।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा सम्पूर्ण तथ्यों को उल्लिखित करते हुये निम्न आदेश पारित किया गया:-
‘’परिवादी का वाद इस प्रकार स्वीकार किया जाता है कि विपक्षी परिवादी को 10,000/- (दस हजार रू0) दिनांक 30.03.94 से 18 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से ब्याज सहित भुगतान करे। शेष 10,000/-रू0 के लिए विपक्षी परिवादी से मूल रसीद मांगकर निर्णय के तीन माह के अंदर अपने अभिलेख का परीक्षण करके यह पता लगाये कि परिवादी की रसीद में अंकित दिनांक व रसीद नम्बर पर परिवादी का धन विपक्षी के अभिलेख में जमा किया गया है अथवा नहीं, यदि विपक्षी के अभिलेख में धन 10,000/-रू0 जमा होना पाया जाता है तो विपक्षी उस धन को भी जमा करने के दिनांक के तीन माह बाद से 18 प्रतिशत ब्याज सहित परिवादी को वापस करे तथा 500/- (पांच सौ रू0) वाद व्यय भी विपक्षी परिवादी को भुगतान करे। विपक्षी परिवादी को देय भुगतान धनराशि निर्णय के दो माह के अंदर भुगतान करे।‘’
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता श्री टी0एन0 सिंह यादव अनुपस्थित हैं जब कि अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से विद्वान अधिवक्ता सुश्री तरुषि गोयल उपस्थित हैं, जिन्हें विस्तार से सुना और हमारे द्वारा प्रश्नगत निर्णय व आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का सम्यक परीक्षण एवं परिशीलन करने के उपरांत पाया गया कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा जो निर्णय अंकित किया गया है उसमें सभी तथ्यों को सुविचारित करते हुये प्रश्नगत निर्णय पारित किया गया है। विद्वान अधिवक्ता सुश्री तरुषि गोयल द्वारा अपने कथनों के अनुसार इस न्यायालय के सम्मुख उल्लिखित किया गया कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा जो शेष भुगतान प्रत्यर्थी/परिवादी को 10,000/-रू0 दि0 30.03.1994 से वापस किये जाने हेतु आदेश पारित किया गया है और उसके साथ जो ब्याज की गणना की देयता निर्धारित की गई है वह अत्यधिक है। अर्थात 18 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की देयता निर्धारण अनुचित है। साथ ही कथन किया गया कि 500/-रू0 वाद व्यय भी अपीलार्थी/विपक्षी के विरुद्ध हर्जाना के रूप में अधिरोपित किया गया है जो अनुचित है।
हमारे द्वारा सम्पूर्ण तथ्यों को दृष्टिगत रखने के उपरांत विद्वान अधिवक्ता के कथन में कुछ बल पाया जाता है। तदनुसार विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग के उपरोक्त ऊपर उल्लिखित आदेश मात्र ब्याज की देयता 18 प्रतिशत वार्षिक के स्थान पर 09 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज की दर से भुगतान रू0 10,000/- पर दि0 30.03.1994 से गणना करते हुये 45 दिन की अवधि में प्रत्यर्थी/परिवादी को प्राप्त कराया जावेगा। वाद व्यय की धनराशि में किसी प्रकार की कोई कमी अपेक्षित नहीं है। तदनुसार अपील अन्तिम रूप से आंशिक स्वीकृत करते हुये निस्तारित की जाती है।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित सम्बन्धित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाये।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (विकास सक्सेना)
अध्यक्ष सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0- 1