राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
(मौखिक)
अपील संख्या-508/2021
इण्डियन बैंक (पूर्व में इलाहाबाद बैंक) व एक अन्य
बनाम
बृजभूषण शर्मा पुत्र श्री राम प्रसाद शर्मा
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री शरद कुमार शुक्ला,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री संकल्प मेहरोत्रा,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 20.02.2024
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील इस न्यायालय के सम्मुख जिला उपभोक्ता आयोग, सीतापुर द्वारा परिवाद संख्या-124/2020 बृजभूषण शर्मा बनाम इलाहाबाद बैंक (संशोधित नाम इण्डियन बैंक) व एक अन्य में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 08.07.2021 के विरूद्ध योजित की गयी है। प्रस्तुत अपील विगत लगभग 03 वर्ष से लम्बित है।
मेरे द्वारा अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता श्री शरद कुमार शुक्ला एवं प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता श्री संकल्प मेहरोत्रा को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का अवलोकन किया गया।
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादी ने व्यवसायिक वृद्धि के लिए विपक्षीगण से 2008 में कुल 15,00,000/-रू0 का टर्म लोन खाता सं0-21557839514 एवं 24,00,000/-रू0 की कैश क्रेडिट लिमिट सुविधा खाता सं०-21557825284 के माध्यम से बैंक द्वारा शर्तों एवं ब्याज राशि पर प्राप्त की गयी थी। परिवादी द्वारा निरन्तर रूप से लेन देन किया
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जाता रहा था। परिवादी के दोनों ऋण खातों का बैंक शाखा द्वारा स्वयं ही मेसर्स यूनिवर्सल सोम्पो जनरल इंश्योरेंस कं0लि0 पंजीकृत कार्यालय मुम्बई बीमा कम्पनी से निष्पादित अनुबन्ध के क्रम में बीमा कराया गया था, जो दिनांक 05 सितम्बर, 2009 से 04 अक्टूबर, 2020 तक के लिए प्रभावी था।
परिवादी का कथन है कि परिवादी द्वारा अपने संचालित पेट्रोल पम्प के 24 घंटे कार्यरत रहने के कारण 01 सितम्बर 2009 से एक व्यक्ति श्री राम सिंह पुत्र श्री रामपाल सिंह को प्रबन्धक के रूप में कार्य करने के लिए पेट्रोल पम्प पर रखा था, उक्त श्री राम सिंह ने परिवादी के विश्वास को भंग करते हुए योजनाबद्ध रूप से पेट्रोल पम्प पर मौजूद पेट्रोल डीजल बेचकर उसकी धनराशि मु० 18,75,410/-रू० गबन करने की जानकारी दिनांक 26 अगस्त, 2010 को होने पर परिवादी द्वारा उक्त क्षति का बीमा क्षतिपूर्ति किए जाने के लिए क्लेम भुगतान हेतु इलाहाबाद बैंक शाखा महोली, सीतापुर विपक्षी सं०-1 को दिनांक 01 सितम्बर, 2010 को सूचना भी उपलब्ध करा दी थी, साथ ही सम्बन्धित बीमा कम्पनी को साधारण डाक से उसी दिन सूचना प्रेषित की गयी थी। बीमा कम्पनी का यह दायित्व था कि परिवादी के पेट्रोल पम्प के बीमे से आच्छादित होने के कारण तत्काल सम्पूर्ण बीमा धनराशि का भुगतान इलाहाबाद बैंक शाखा महोली सीतापुर को करता। विपक्षी का यह दायित्व था कि उक्त कारित क्षति की सूचना बीमा कम्पनी को सीधे कराये जाने, बीमा कम्पनी बीमित राशि को स्वयं प्राप्त करके उक्त राशि को परिवादी के कैश क्रेडिट लिमिट तथा टर्म लोन में जमा कर समायोजित करते, परन्तु किसी के द्वारा दायित्वों का निर्वहन नहीं किया गया तथा सेवा में कमी कारित की गयी।
परिवादी का कथन है कि सम्बन्धित बीमा कम्पनी द्वारा विपक्षी सं0-1 को उक्त बीमित राशि का समय से क्लेम पेमेन्ट न किये जाने और विपक्षी सं०-1 द्वारा उक्त धनराशि की उनसे निश्चित
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समय पर मांग कर उसे परिवादी के सम्बन्धित कैश क्रेडिट लिमिट खाता तथा टर्म लोन खाता में परिवादी के पक्ष में क्रेडिट न किये जाने के कारण इलाहाबाद बैंक शाखा महोली विपक्षी सं०-1 की उक्त धनराशि परिवादी पर अतिरिक्त रूप से अकारण ही बकाया हो गयी थी, जिस पर ब्याज, अतिरिक्त ब्याज एवं दण्ड व्याज राशि का भी अतिरिक्त प्रभार विपक्षी सं०1 द्वारा जोड़ा गया, अकारण ही परिवादी पर अतिरिक्त बकाया हो गयी। यदि उक्त बीमा क्लेम राशि का समय से ही बैंक शाखा को भुगतान कर दिया जाता तो बैंक द्वारा उक्त धनराशि नोटिसदाता पर कुल बकाया के सापेक्ष समायोजित करके अधिशेष बकाया धनराशि का निर्धारण करके उस पर बनने वाली ब्याज राशि की गणना करके उसे नोटिसदाता के खाते में जोड़ा जाता, परन्तु ऐसा न किए जाने के कारण अतिरिक्त बकाया व उस पर ब्याज, अतिरिक्त व्याज, दण्ड ब्याज राशि जुड़ती चली गयी। बीमा क्लेम राशि का भुगतान न करके सेवा में कमी की गयी है। बीमा कम्पनी से विपक्षी सं०1 द्वारा परिवादी के संबंधित कैश क्रेडिट लिमिट तथा टर्म लोन की सम्पूर्ण राशि का क्लेम स्वयं द्वारा ही उक्त बीमा कराये जाने के उपरान्त भी प्राप्त न करके और परिवादी के उक्त खातों में क्रेडिट न किए जाने के कारण मात्र परिवादी के नाम पर दिनांक 26 अगस्त, 2010 से वास्तविक भुगतान की तिथि तक विपक्षी सं०-1 द्वारा डाली गयी सम्पूर्ण ब्याज, अतिरिक्त ब्याज, दण्ड व्याज राशि एवं उस पर लगने वाले सभी अन्य व्ययों की गणना करके उन्हें सम्पूर्ण रूप से परिवादी के कैश क्रेडिट लिमिट खाता एवं टर्म लोन खाता के सापेक्ष सम्पूर्ण अदायगी किये जाने का दायित्व सम्बन्धित बीमा कम्पनी का ही होता था और उनसे उक्त धनराशि को प्राप्त करने का सम्पूर्ण विधिक उत्तरदायित्व उक्त विपक्षी का ही सम्पूर्ण रूप में, स्वयं विपक्षी सं०-1 द्वारा सम्पूर्ण ऋण राशि का बीमा अपने आप ही सम्बन्धित बीमा कम्पनी से कराये जाने के कारण उनका ही है।
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परिवादी का कथन है कि उपरोक्त परिस्थितियों के कारण परिवादी के समक्ष आकस्मिक रूप से व्यापार में उत्पन्न हो गयी विपरीत परिस्थितियों के कारण परिवादी के द्वारा उक्त राशियों की समय पर अदायगी नहीं की जा सकी थी और उक्त को ही आधार बनाकर विपक्षी द्वारा वर्ष 2016 में स्वयं को प्रदत्त विधिक शक्तियों एवं अधिकारों का किसी भी संदेह के इतर जाकर दुरुपयोग करते हुए परिवादी को धारा-13 (2) वित्तीय परिसंपत्तियों के प्रतिभूतिकरण तथा पुनर्निर्माण एवं प्रतिभूतिहित प्रवर्तन (सरफेसी) अधिनियम, 2002 के अन्तर्गत नोटिस प्रेषित कर परिवादी के उक्त ऋणों को नान परफामिंग एसेट (एनपीए) घोषित कर दिया गया था, जिससे परिवादी की साख बुरी तरह से कुप्रभावित हुई। परिवादी द्वारा अपनी उक्त सम्पूर्ण ऋण राशि का वन टाइम सेटलमेन्ट करने के लिए विपक्षी सं0-1 के समक्ष प्रस्तुत किये गये आफर के अनुकम में दिनांक 29 सितम्बर, 2018 के साथ कुल तीन खाता आदेय चेक, कमशः रु0-1,50,000/- 1,50,000/- एवं 2,00,000/- के माध्यम से किये गये कुल रूपये 5,00,000/-रू0 के प्रारंभिक भुगतान सहित कुल रूपये 38,00,000/- में किये जाने निमित्त अनुरोध पत्र प्रस्तुत किया गया था, जिसे विपक्षी द्वारा अपने उच्चाधिकारियों का अनुमोदन प्राप्त करके यथावत स्वीकार करते हुये उक्त धनराशि का सम्पूर्ण बकाया टर्म लोन एवं कैश क्रेडिट लिमिट ऋण राशि का उन पर देय सम्पूर्ण ब्याज सहित अंतिम सेटलमेन्ट स्वीकार कर लिया गया था, जिसके अनुसार परिवादी को कुल वन टाइम सेटलमेंट राशि रु0-38,00,000/- में से अनुरोध पत्र के साथ भुगतान की गयी रूपये पाँच लाख की धनराशि को छोड़कर शेष राशि का भुगतान उसके उपरान्त साठ दिनों की समयावधि में अनिवार्य रूप से करना था, जो दिनांक-28 नवम्बर, 2018 को पूर्ण होती थी।
परिवादी का कथन है कि परिवादी के साथ विपक्षी का बकाया ऋण राशि के सम्पूर्ण भुगतान वन टाइम सेटलमेंट
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दिनांक-29 सितम्बर, 2018 को होने के उपरान्त यह उनका नितांत अनिवार्य एवं बाध्यकारी दायित्व था कि वह उसकी सूचना तुरन्त ही लिखित रूप में न्यायालय जिलाधिकारी, लखीमपुर खीरी के समक्ष स्वयं धारा-14, वित्तीय परिसंपत्तियों के प्रतिभूतिकरण तथा पुनर्निर्माण एवं प्रतिभूतिहित प्रवर्तन (सरफेसी) अधिनियम, 2002 के अन्तर्गत संस्थित वाद सं०-00526/2018 प्राधिकृत अधिकारी/चीफ मैनेजर इलाहाबाद बैंक सीतापुर बनाम मेसर्स न्यू डायमण्ड फिलिंग स्टेशन में प्रस्तुत करके उक्त न्यायालय से आवेदक के साथ उक्त संपन्न किये गये वन टाइम सेटलमेंट दिनांकित 29 सितम्बर, 2018 के बारे में जानकारी देकर अनुपालन निमित्त 60 दिन की समय सीमा पूर्ण होने तक के लिये उक्त वाद कार्यवाही को स्थगित रखे जाने का अनुरोध करते, परन्तु विपक्षी द्वारा योजनाबद्ध रूप से कार्यवाही अत्यावश्यक होने के बाद भी कदापि नहीं की गयी। विपक्षी के लिये विधिक रूप से अनिवार्य एवं आवश्यक था कि वह परिवादी द्वारा अपने सम्बन्धित व्यापारिक संस्थान की बन्धक रखी गयी परिसंपत्तियों के माध्यम से ऋण राशि की वसूली करने का प्रयास करते, वसूली न होने की दशा में गारंटर को अपने कब्जे में लेने का उचित आधार बनता था, परन्तु विपक्षी द्वारा विधि विरुद्ध तरीके एवं दूषित मंतव्य से आवेदक के संबंधित व्यापारिक संस्थान की विपक्षी के पास बन्धक रखी सम्पत्तियों के माध्यम से वसूली करने के स्थान पर उक्त ऋण की गारंटर श्रीमती सुमन देवी शर्मा पत्नी बृजभूषण शर्मा निवासी मोहल्ला गोकुलपुरी, गढ़ी रोड, शहर लखीमपुर, तहसील लखीमपुर, जनपद लखीमपुर खीरी का मकान वाद सं0-00526/2018 प्राधिकृत अधिकारी/चीफ मैनेजर, इलाहाबाद बैंक, सीतापुर बनाम मेसर्स न्यू डायमण्ड फिलिंग स्टेशन, न्यायालय जिलाधिकारी लखीमपुर खीरी के समक्ष संस्थित कर उनके उक्त मकान को अपने
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कब्जे में देने का आदेश पारित करने का अनुरोध करते हुए वाद में पारित अंतिम आदेश/निर्णय दिनांकित 15 अक्टूबर, 2018 द्वारा उक्त सम्पत्ति का कब्जा प्राप्त करने का आदेश करा लिया गया था।
परिवादी का कथन है कि विपक्षीगण द्वारा उक्त वन टाइम सेटलमेंट दिनांकित-29 सितम्बर, 2018 की निश्चित समयावधि 60 दिन के दिनांक- 28 नवम्बर, 2018 को समाप्त होने के पूर्व ही विधि विरुद्ध तरीके से 15 नवम्बर, 2018 को ही विपक्षी द्वारा परिवादी के उक्त ऋण की गारंटर श्रीमती सुमन देवी शर्मा के मकान का, उसमें रखे सभी सामान सहित अपने कब्जे में लिया था। परिवादी द्वारा वन टाइम सेटलमेन्ट दिनांकित-29 सितम्बर, 2018 को निश्चित समयावधि के अन्तर्गत ही दिनांक 19 नवम्बर, 2018 को ही सम्पूर्ण कुल बकाया ऋण राशि रु०-33,00,000/- का एकमुश्त भुगतान अपने मित्रों-परिचितों से अनसिक्योर्ड ऋण राशियों को प्राप्त करके उनके तथा स्वयं के बैंक खातों के माध्यम से आरटीजीएस द्वारा विपक्षी को कर दी गयी थी।
परिवादी का कथन है कि उक्त सम्पूर्ण ऋण अदायगी के अनुक्रम में बैंक द्वारा परिवादी के उक्त ऋण की गारंटर श्रीमती सुमन देवी शर्मा के बार-बार अनुरोध किये जाने पर उन्हें उनके उक्त मकान का, उसमें रखे सभी सामान सहित कब्जा दिनांक 26 नवम्बर, 2018 को उन्हें वापस कर दिया गया था। उक्त सम्पूर्ण ऋण राशि की उस पर देय संपूर्ण ब्याज राशि व अन्य देयों सहित वन टाइम सेटलमेंट के आधार पर की गयी वर्णित अदायगी के सापेक्ष विपक्षी की ओर से नो-डयूज प्रमाण पत्र दिनांकित-27 नवम्बर, 2018 परिवादी को प्रदान किया गया था। उक्त सम्पूर्ण ऋण राशि की उस पर बनने वाले समस्त देयों सहित पूर्ण अदायगी होने के उपरान्त भी विपक्षी द्वारा उक्त ऋण के सापेक्ष स्वयं के पास ऋण सुविधा प्रदान करते समय परिवादी के स्वयं के पास मूल रूप में बंधक रखे गये, विक्रय विलेख पत्रों (01) जिल्द संख्या-01, खण्ड
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संख्या-1234 के पृष्ठ सं0-223 से 242 तक में, कमांक 1983 पर, दिनांक 31 मार्च, 2006, को उपनिबंधक, मिश्रिख, जनपद सीतापुर द्वारा निबंधित, (02) जिल्द सं0-01 खण्ड सं0-1234 के पृष्ठ सं0-243 से 262 तक में, क्रमांक-1984 पर, दिनांक 31 मार्च, 2006, को उपनिबंधक, मिश्रिख, जनपद सीतापुर द्वारा निबंधित, (03) जिल्द संख्या-01 खण्ड संख्या 1234 के पृष्ठ संख्या-263 से 282 तक में, क्रमांक 1985 पर, दिनांक 31 मार्च, 2006 को उपनिबंधक, मिश्रिख जनपद सीतापुर द्वारा निबंधित, (04) जिल्द सं0-01, खण्ड सं0-1448 के पृष्ठ सं0-291 से 304 तक में, क्रमांक-922 पर, दिनांक 23 फरवरी, 2007 को उपनिबंधक, मिश्रिख जनपद सीतापुर द्वारा निबंधित, (05), जिल्द सं0-01, खण्ड सं0-1448 के पृष्ठ सं0-305 से 322 तक में, क्रमांक-923 पर, दिनांक 23 फरवरी, 2007 को उपनिबंधक, मिश्रिख, जनपद सीतापुर द्वारा निबंधित एवं (06), जिल्द सं0-01, खण्ड सं0-1510 के पृष्ठ संख्या-145 से 156 तक में, क्रमांक-5576 पर, दिनांक 20 जुलाई, 1999 को उपनिबंधक, सदर, जनपद लखीमपुर-खीरी द्वारा निबंधित तथा कुल प्राप्त की गयी धनराशि में से रूपये 2,00,000/-की प्राप्ति रसीद को परिवादी को उसके द्वारा बार-बार लगातार अनुरोध करने के उपरान्त भी वापस नहीं किया गया, जिन्हें कि उनके द्वारा विधिक रूप से दिनांक-27 नवम्बर, 2018 को नो डयूज सर्टिफिकेट प्रदान किये जाते समय उसके साथ में ही संलग्न कर मूल रूप में वापस किया जाना प्रत्येक प्रकार से अनिवार्य एवं अत्यावश्यक था। साथ ही उसी तिथि को ही विपक्षी द्वारा परिवादी के द्वारा उक्त सम्पूर्ण ऋण राशि की उस पर बनने वाली समस्त राशि सहित पूर्णरूपेण अदायगी किये जाने का पूर्ण सुस्पष्ट अंकन परिवादी के सिविल विवरण में भी तत्काल ही अंकित कराया जाना अनिवार्य एवं अत्यावश्यक था, जिससे परिवादी के नाम पर उक्त ऋण की सम्पूर्ण अदायगी हो चुकने के उपरान्त भी बकाया न दिखना पूर्णरूपेण सुनिश्चित हो सके
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और परिवादी द्वारा अपने कार्य व्यवसाय के संचालन के लिये अन्य बैंकों/वित्तीय संस्थानों से ऋण राशि प्राप्त करने की स्थिति में उसकी ऋण अदायगी क्षमता को संदेहास्पद होना कदापि भी न अवधारित किया जा सके, परन्तु विपक्षी द्वारा परिवादी के बार-बार लिखित व मौखिक अनुरोध निरन्तर रूप से किये जाने के उपरान्त भी उक्त किसी भी मामले में कोई भी कार्यवाही नहीं की गयी, जो कि उनके द्वारा अपनाये जाने वाले उपभोक्ता विरोधी, हठधर्मिता पूर्ण कुआचरण एवं दूषित मंतव्य का स्वयं में ही पूर्ण सुस्पष्ट प्रमाण है कि उनके द्वारा परिवादी को प्रदत्त स्वयं से ऋण प्राप्त करने के कारण स्वयं को उपभोक्ता होने के कारण प्रदत्त सेवा में अति गम्भीर कमी का भी पूर्ण प्रमाणित साक्ष्य है। अत: क्षुब्ध होकर परिवादी द्वारा विपक्षीगण के विरूद्ध परिवाद जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख प्रस्तुत करते हुए वांछित अनुतोष की मांग की गयी।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख विपक्षीगण की ओर से लिखित कथन दाखिल किया गया, जिसमें मुख्य रूप से यह कथन किया गया कि परिवादी द्वारा परिवादी के व्यापार स्टॉक का अग्नि एवं सेंधमारी का बीमा मेसर्स यूनिवर्सल सोम्पो जनरल इंश्योरेन्स कम्पनी लिमिटेड से कराया गया था, प्रश्नगत बीमा से विपक्षी का कोई सम्बन्ध नहीं है एवं सम्बन्धित बीमा कम्पनी को विपक्षी भी नहीं बनाया गया एवं बीमा अनुबंध परिवादी एवं बीमा कम्पनी के मध्य का है। परिवादी द्वारा अपने व्यापार के संचालन हेतु किसी भी व्यक्ति को नियुक्त किया जाता है, इससे विपक्षी का कोई सम्बन्ध नहीं है। यदि परिवादी के व्यापार में किसी कर्मचारी द्वारा कोई कृत्य कारित किया जाता है तो कारित कृत्य से विपक्षी का कोई सरोकार नहीं होता है एवं परिवादी द्वारा सम्बन्धित व्यापारिक प्रतिष्ठान पर किसी भी घटना की जानकारी विपक्षी को नहीं प्रदान की गयी थी। परिवादी द्वारा बीमा क्लेम की परिधि में आने वाली गतिविधि का दायित्व संबंधित बीमा कम्पनी का होता है
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एवं क्लेम से बैंक का कोई सम्बन्ध नहीं होता है। विपक्षी इण्डियन बैंक (पूर्ववर्ती इलाहाबाद बैंक), के०आई०सी० महोली, शाखा सीतापुर द्वारा परिवादी के आवेदन पर सम्बन्धित औपचारिकताओं को पूर्ण करने के उपरान्त कैश क्रेडिट ऋण रूपये 24,00,000/- एवं टर्म ऋण रूपये 15,00,000/- का व्यापार संचालन हेतु परिवादी को प्रदान किया गया था, जिसको परिवादी न बैंक विधि एवं बैंक नियमों के अनुरूप बैंक को अदा नहीं किया गया था। बैंक के संबंधित अधिकारियों द्वारा लगातार परिवादी से ऋण राशि की अदायगी का निवेदन किया जाता रहा, परन्तु परिवादी द्वारा ऋण धनराशि की अदायगी बैंक को नहीं की गयी थी। तत्पश्चात बैंक निर्धारित विधियों एवं नियमों के अनुसार बैंक ने परिवादी के कैश क्रेडिट ऋण खाता एवं टर्म लोन खाता को दिनांक-22.02.2015 को नान परफार्मिंग एसेट (एनपीए) घोषित कर दिया गया था। विपक्षी इण्डियन बैंक के संबंधित अधिकारी द्वारा नान परफार्मिंग एसेट एनपीए खातों की बकाया धनराशि को बैंक को भुगतान करने का निवेदन परिवादी से किया जाता रहा, परन्तु परिवादी द्वारा बकाया राशि ओवरड्यूज का भुगतान नहीं किया गया। तत्पश्चात विपक्षी द्वारा विवश होकर परिवादी एवं ऋण खातों के गांरटर के विरुद्ध वित्तीय परिसम्पत्तियों के प्रतिभूतिकरण तथा पुनर्निर्माण एवं प्रतिभूतिहित प्रवर्तन (सरफेसी) अधिनियम, 2002 की प्रक्रिया सक्षम प्राधिकारी/न्यायालय के समक्ष योजित की गयी थी एवं सक्षम प्राधिकारी/न्यायालय के आदेशों का अनुपालन विपक्षी द्वारा किया गया था। परिवादी द्वारा वन टाइम सेटेलमेन्ट का प्रस्ताव विपक्षी के समक्ष दिनांक 29.09.2018 को रखा गया था, परन्तु वन टाइम सेटेलमेंट के प्रस्ताव में वित्तीय परिसम्पत्तियों के प्रतिभूतिकरण तथा पुनर्निर्माण एवं प्रतिभूतिहित प्रवर्तन (सरफेसी) अधिनियम, 2002 की प्रचालित प्रक्रिया को रोकने की कोई शर्त नहीं थी। वित्तीय परिसम्पत्तियों के प्रतिभूतिकरण तथा पुनर्निर्माण
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एवं प्रतिभूतिहित प्रवर्तन सरफेसी अधिनियम, 2002 की कार्यवही सभी बंधक सम्पत्तियों पर एक साथ संचालित की जाती है। परिवादी के प्रस्ताव पर परिवादी के खातों का वन टाइम सेटलमेंट विपक्षी बैंक द्वारा किया गया है, जो कि राइट ऑफ (बट्टे खाते में डालना) की श्रेणी में आता है एवं पूर्ण अदायगी की श्रेणी में नहीं आता है। परिवादी के ऋण खातों में विभिन्न बन्धककर्ता द्वारा बंधक की गयी सम्पत्तिों के मूल दस्तावेज संबंधित बंधककर्ता/सम्पत्ति-स्वामी के द्वारा बैंक से प्राप्त किये जा सकते हैं। यदि किसी ऋणी द्वारा ऋण अनुबन्ध के अनुरूप ऋण प्रदाता को भुगतान नहीं किया जाता है तब ऐसी स्थिति में ऋणी का कम्प्यूटर जनित सिबिल खराब हो जाता है, सिबिल के खराब होने में किसी ऋण प्रदाता की कोई भूमिका नहीं होती है। बैंक के बड़े बकायेदारों के नाम का प्रदशन बैंक के सूचना पट पर एवं बैंक के मुख्य द्वार पर किया जाता है, परन्तु परिवादी के नाम को वन टाइम सेटलमेंट के अन्तर्गत धनराशि को जमा करने के उपरान्त बैंक के सूचना पट एवं बैंक के मुख्य द्वार से हटा दिया गया था। परिवाद निरस्त होने योग्य है।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों/प्रपत्रों पर विचार करने के उपरान्त परिवाद निर्णीत करते हुए निम्न आदेश पारित किया गया है:-
''इस प्रकार उपरोक्त तथ्यों एवं परिस्थितियों में यह आदेश दिया जाता है कि विपक्षी बैंक द्वारा परिवादी को मानसिक संत्रास एवं व्यवसायिक हानि के लिए मु०-50,000/-(रू0 पचास हजार) क्षतिपूर्ति के रूप में तथा वाद व्यय के रूप में 10,000/-(रू0 दस हजार) तीस दिन के अन्दर अदा करेगा अन्यथा परिवादी को उक्त आदेश का अनुपालन इस जिला उपभोक्ता आयोग से कराने का अधिकार होगा।''
उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण को सुनने तथा समस्त तथ्यों एवं परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए तथा जिला उपभोक्ता
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आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश का परिशीलन व परीक्षण करने के उपरान्त मैं इस मत का हूँ कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा समस्त तथ्यों का सम्यक अवलोकन/परिशीलन व परीक्षण करने के उपरान्त विधि अनुसार निर्णय एवं आदेश पारित किया गया, परन्तु मेरे विचार से जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा जो वाद व्यय के रूप में 10,000/-रू0 (दस हजार रूपये) की देयता निर्धारित की गयी है, उसे न्यायहित में कम कर 5000/-रू0 (पॉंच हजार रूपये) किया जाना उचित है।
तदनुसार प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है तथा जिला उपभोक्ता आयोग, सीतापुर द्वारा परिवाद संख्या-124/2020 बृजभूषण शर्मा बनाम इलाहाबाद बैंक (संशोधित नाम इण्डियन बैंक) व एक अन्य में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 08.07.2021 को संशोधित करते हुए वाद व्यय के रूप में 5000/-रू0 (पॉंच हजार रूपये) की देयता निर्धारित की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग का शेष आदेश यथावत् रहेगा।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थीगण द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गयी हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित सम्बन्धित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1