Rajasthan

Churu

153/2013

Satar - Complainant(s)

Versus

BRGB Bank - Opp.Party(s)

Narendra Sharma

19 Dec 2014

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. 153/2013
 
1. Satar
Ismilia Vill Bhaleri Taranagar
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Shiv Shankar PRESIDENT
  Subash Chandra MEMBER
  Nasim Bano MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

प्रार्थी की ओर से श्री नरेन्द्र शर्मा अधिवक्ता उपस्थित।  अप्रार्थीगण की ओर से श्री सुरेश शर्मा अधिवक्ता उपस्थित। प्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस में परिवाद के तथ्यों केा दौहराते हुए तर्क दिया कि प्रार्थी का अप्रार्थीगण बैंक में एक बचत खाता संख्या 62 था। उक्त बचत खाते में जमाशुदा राशि जब प्रार्थी निकालने गया तो अप्रार्थीगण बैंक ने खाता बन्द होने का कहते हुए राशि निकालने से मना कर दिया। जिस पर प्रार्थी ने अप्रार्थीगण बैंक को विधिक नोटिस दिया व इस मंच में परिवाद प्रस्तुत करने पर अप्रार्थीगण ने प्रार्थी का उक्त खाता चालू किया। यदि अप्रार्थीगण मंच में परिवाद करने से पूर्व ही प्रार्थी का खाता चालू कर देते तो प्रार्थी को अपना समय व धन व्यय कर इस मंच में यह परिवाद प्रस्तुत नहीं करना पड़ता। इसलिए प्रार्थी अधिवक्ता ने परिवाद व्यय दिलाने का तर्क दिया। अप्रार्थीगण अधिवक्ता ने प्रार्थी अधिवक्ता के तर्कों का विरोध किया और तर्क दिया कि प्रार्थी द्वारा अपने खाते का लगातार 3 वर्ष से अधिक तक संचालन नहीं करने के कारण बैंकिग नियमों के अनुसार प्रार्थी का खाता डोरमेन्ट हो गया और जब प्रार्थी अप्रार्थीगण बैंक में प्रश्नगत खाते की राशि विड्रा करने आया तो उसे पहचान कार्ड के साथ पुनः आवेदन करने का कहा गया। परन्तु प्रार्थी अपने अड़ियल रवैय के कारण आवेदन देने से मना कर दिया। जिस पर अप्रार्थीगण ने परिवाद के दौरान प्रार्थी के नाम नया बचत खाता संख्या 1/4606 खोलते हुए पुराने खाते की जमाशुदा राशि मय ब्याज उक्त नये खाते में अन्तरण कर दी जो प्रार्थी प्राप्त कर चुका है इसलिए प्रार्थी का परिवाद व्यर्थ हो चुका है। परिवाद खारिज करने का तर्क दिया।

           पक्षकारान की बहस सुनी गई। पत्रावली का ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया। मंच का निष्कर्ष निम्न प्रकार है।

           हमने उभय पक्षों के तर्कों पर मनन किया। वर्तमान प्रकरण में प्रार्थी द्वारा अप्रार्थीगण बैंक से अपनी जमाशुदा राशि मय ब्याज प्राप्त किया जाना स्वीकृत तथ्य है। विवादक बिन्दु केवल यह है कि अप्रार्थीगण ने प्रार्थी के प्रश्नगत खाता संख्या 62 बिना प्रार्थी को सूचना दिये बन्द कर दिया जिस कारण प्रार्थी को यह परिवाद करना पड़ा। इसलिए प्रार्थी परिवाद व्यय प्राप्त करने का अधिकारी है।

           अप्रार्थीगण अधिवक्ता ने यह तर्क दिया कि प्रार्थी द्वारा प्रश्नगत खाता का संचालन लगातार 3 वर्ष तक नहीं करने के कारण प्रार्थी का खाता डोरमेन्ट हो चुका। जिसे शुरू करवाने हेतु प्रार्थी ने नया आवेदन पत्र प्रस्तुत नहीं किया। अप्रार्थीगण द्वारा पत्रावली पर बैंकिंग नियम प्रस्तुत नहीं किये। जिसमें यह अंकित हो कि यदि प्रार्थी द्वारा लगातार 3 वर्ष तक खाते का संचालन नहीं किया जाता है तो प्रार्थी के बिना सूचना दिये ही प्रार्थी का खाता डोरमेन्ट किया जा सकता हो। यदि वास्तव में बैंकिंग नियमों में अप्रार्थीगण के अनुसार ऐसा नियम था तो फिर अप्रार्थीगण बैंक ने परिवाद के दौरान अपने स्तर पर क्यों प्रार्थी का नया खाता खोलते हुए पुराने खाते की जमाशुदा राशि नये खाते में ट्रांन्सफर की। अप्रार्थीगण बैंक ने अपने जवाब में ऐसा कथन भी नहीं किया कि प्रार्थी ने अप्रार्थीगण बैंक में नियमानुसार पुनः अपना पहचान-पत्र व आवेदन पत्र जमा करवाया था जिस कारण अप्रार्थीगण बैंक ने प्रार्थी का नया अकाउन्ट शुरू किया। अप्रार्थीगण द्वारा उक्त सम्बंध में कोई दस्तावेज भी पत्रावली पर पेश नहीं किया। इससे यह तथ्य प्रार्थी के पक्ष में साबित होता है कि अप्रार्थीगण बैंक ने अपने स्तर पर प्रार्थी का खाता डोरमेन्ट कर दिया था और परिवाद प्रस्तुत होने के बाद अप्रार्थीगण ने अपने स्तर पर ही प्रार्थी का नया खाता शुरू कर पासबुक उसके निवास पते पर भिजवायी गयी। यदि अप्रार्थीगण उपरोक्त प्रक्रिया प्रार्थी के बैंक में उपस्थित होने पर ही अपना लेते तो प्रार्थी को अपना धन व समय व्यय कर इस मंच में परिवाद प्रस्तुत नहीं करना पड़ता। अप्रार्थीगण ने प्रार्थी का प्रश्नगत खाता डोरमेन्ट करने से पूर्व प्रार्थी को कोई सूचना दी हो ऐसा कोई दस्तावेज भी पत्रावली पर प्रस्तुत नहीं है। इसलिए अप्रार्थीगण का कृत्य सेवादोष की श्रेणी में आता है। ऐसा ही मत माननीय राज्य आयोग नयी दिल्ली द्वारा अपने न्यायिक दृष्टान्त कैनरा बैंक बनाम अर्जुन दास 2 सी.पी.जे. 2010 पेज 534 में दिया है। माननीय राज्य आयोग के उपरोक्त न्यायिक दृष्टान्त की रोशनी में हम अप्रार्थीगण बैंक का सेवादोष मानते हुए प्रार्थी को परिवाद व्यय दिलाया जाना उचित समझते है।

           अतः प्रार्थी का परिवाद अप्रार्थीगण बैंक के विरूद्ध स्वीकार किया जाकर अप्रार्थीगण बैंक को आदेश दिया जाता है कि वह 2,000 रूपये परिवाद व्यय के रूप में प्रार्थी को अदा करेंगे। अप्रार्थीगण उक्त आदेश की पालना आदेश की दिनांक से 2 माह के अन्दर-अन्दर करंेगे। पत्रावली फैसला शुमार होकर दाखिल दफ्तर हो।

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Shiv Shankar]
PRESIDENT
 
[ Subash Chandra]
MEMBER
 
[ Nasim Bano]
MEMBER

Consumer Court Lawyer

Best Law Firm for all your Consumer Court related cases.

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!
5.0 (615)

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!

Experties

Consumer Court | Cheque Bounce | Civil Cases | Criminal Cases | Matrimonial Disputes

Phone Number

7982270319

Dedicated team of best lawyers for all your legal queries. Our lawyers can help you for you Consumer Court related cases at very affordable fee.