//जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, जांजगीर (छ0ग0)//
प्रकरण क्रमांक:- CC/15/2015
प्रस्तुति दिनांक:- 20/02/2015
श्रीमती गेंदबाई सोनवानी उम्र 55 वर्ष
पति श्री गणेषराम सोनवानी
जाति सतनामी निवासी ग्राम कोटमी सोनार
तहसील व थाना अकलतरा
जिला जांजगीर-चाम्पा छ.ग. ...................आवेदिका/परिवादी
( विरूद्ध )
शाखा प्रबंधक महेन्द्रा एण्ड महेन्द्रा फा.सा.लि.
फस्ट फ्लोर तिवारी काम्प्लेक्स रजनीष बुक डिपो के सामने
केरा रोड जांजगीर तहसील जांजगीर
जिला जांजगीर-चाम्पा छ.ग. .........अनावेदक/विरोधी पक्षकार
///आदेश्ा///
( आज दिनांक 21/08/2015 को पारित)
1. आवेदिका/परिवादी ने वाहन ट्रेक्टर पंजीयन क्रमांक सी.जी. 11 डी-2834 एवं ट्राली वापस दिलाए जाने तथा 1,20,000/-रू. नुकसानी अनावेदक/विरोधी पक्षकार से दिलाए जाने हेतु दिनांक 20.02.2015 को यह परिवाद प्रस्तुत की है ।
2. परिवाद अंतर्गत यह स्वीकृत तथ्य है कि आवेदिका को अनावेदक/विरोधी पक्षकार द्वारा ट्रेक्टर व ट्राली क्रय करने हेतु ऋण सुविधा अनुबंध के अंतर्गत प्रदान की गई है ।
3. परिवाद के आवष्यक तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि आवेदिका/परिवादी द्वारा दिनांक 25.03.2011 को अनावेदक/विरोधी पक्षकार महेन्द्रा एण्ड महेन्द्रा फाईनेंस से 4,80,000/-रू. फायनेंस कराकर ट्रेक्टर व ट्राली जैन ट्रेक्टर्स अकलतरा से दिनांक 12.04.2011 को डिलवरी प्राप्त की आवेदिका को ऋण अनुबंध अनुसार फाईनेंस रकम 47 किष्तों में दिनांक 25.02.2015 तक अनावेदक कंपनी को अदा करना था । अनावेदक कंपनी द्वारा 47 किष्त पूरा होने के पहले ही दिनांक 18.07.2014 को आवेदिका के घर में खड़ी ट्रेक्टर क्रमांक सी.जी. 11 डी-2834 को बल पूर्वक खींच कर ले आए तथा माह जुलाई अंतिम में आवेदिका को झूठा आष्वासन देकर कि गाड़ी
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को वापस करेंगे आॅफिस बुलाकर अनेक कागजों में हस्ताक्षर करा लिए, किंतु गाड़ी वापस नहीं किए । उक्त वाहन से आवेदिका प्रति माह 15,000/-रू. की आमदनी करती थी, दिनांक 25.02.2015 तक कुल 8 महीनों में 1,20,000/-रू. कर वाहन खींचे जाने से उक्त की नुकसानी हुई, जिसे अनावेदक से दिलाए जाने योग्य है । अनावेदक ने अनुबंध के शर्तो खुला उल्लंघन कर अवैधानिक कृत्य किया है, जो दण्डनीय है । आवेदिका के परिवार का जीविकोपार्जन हेतु उक्त ट्रक एकमात्र साधन है। इस प्रकार आवेदिका ने अनावेदक से वाहन ट्रेक्टर व ट्राली क्षति सहित दिलाए जाने की प्रार्थना की है ।
4. अनावेदक/विरोधी पक्षकार कंपनी ने प्रारंभिक आपत्ति कि आवेदिका तथा अनावेदक के मध्य ऋण अनुबंध अनुसार प्रकरण का निराकरण का क्षेत्राधिकार मुम्बई स्थित न्यायालय को है, उभय पक्ष के मध्य उत्पन्न विवाद के निराकरण हेतु माध्यस्थम (।तइपजतंजपवद) का प्रावधान रखा गया है तथा उभय पक्ष के अनुबंध की शर्तों के अनुसार कार्यवाही की गई है, जिसके लिए विस्तृत साक्ष्य की आवष्यकता है, जिसके निराकरण उपभोक्ता न्यायालय की संक्षिप्त व सीमित प्रक्रिया में किया जाना संभव नहीं है आधार पर परिवाद सव्यय निरस्त किए जाने का निवेदन किया है। साथ ही परिवाद पत्र में उल्लेखित विवाद के तथ्यों को इंकार करते हुए अनावेदक ने अभिकथन किया है कि आवेदक ने ऋण अनुबंध अनुसार किष्तों का नियमित संदाय नहीं किया है, किष्तों के संदाय करने में व्यतिक्रम किया है । अनुबंध पत्र क्रमांक 26 के अनुसार माध्यस्थ नियुक्त करते हुए विधिवत प्रकरण क्रमांक 112/2013 पंजीबद्ध हुआ था, जिसकी जानकारी आवेदिका को भलीभाॅति रही है, जिसमें आवेदिका द्वारा उक्त वाहन ट्रेक्टर को अनावेदक कंपनी के सुपूर्द किया था तथा समय पर राषि का भुगतान कर वाहन को वापस लेने का कथन किया था, किंतु आवेदिका द्वारा किष्तों की राषि का भुगतान नहीं किया गया है । किष्तों का भुगतान करने में आवेदिका ने कोई रूचि नहीं दिखाई है । आवेदिका के साथ अनावेदक कंपनी द्वारा किसी भी प्रकार की कोई सेवा में कमी नहीं की गई है और न ही आवेदिका अनावेदक कंपनी की ’’उपभोक्ता’’ है के आधार पर परिवाद सव्यय निरस्त किया जाने का निवेदन किया है ।
5. आवेदिका/परिवादी ने परिवाद के समर्थन में शपथ पत्र तथा सूची अनुसार दस्तावेज प्रस्तुत की है, वहीं अनावेदक कंपनी की ओर से प्रसून श्रीवास्तव अधिकृत प्रतिनिधि ने जवाब के समर्थन में शपथ पत्र तथा सूची अनुसार दस्तावेज प्रस्तुत किया है।
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6. प्रकरण में विचारणीय प्रष्न यह है कि:-
1. क्या परिवाद की सुनवाई क्षेत्राधिकार इस फोरम को प्राप्त है ?
2. क्या अनावेदक कंपनी द्वारा आवेदिका के साथ किसी भी प्रकार की सेवा में कोई कमी की गई है ?
निष्कर्ष के आधार
विचारणीय प्रष्न क्रमांक 1:-
7. अनावेदक कंपनी ने जवाब में प्रारंभिक आपत्ति कि आवेदिका तथा विपक्षी कंपनी के मध्य आपस में उपभोक्ता का संबंध नहीं है। उभय पक्ष में विवाद का निराकरण का क्षेत्राधिकार मुंबई स्थित न्यायालय को प्राप्त होना ऋण अनुबंध अनुसार स्वीकार किया गया है तथा ऋण अनुबंध की कंडिका 26 अनुसार उभय पक्ष के मध्य उत्पन्न विवाद के निराकरण हेतु माध्यस्थम (।तइपजतंजपवद) प्रावधान रखा गया है । उक्त स्थिति में इस जिला फोरम को परिवाद को सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है, जबकि आवेदिका की ओर से परिवाद के तथ्यों पर तर्क किया है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 (आगे अधिनियम 1986 कहा जावेगा) के उपबंध के अनुसार परिवादी अनावेदक कंपनी द्वारा ऋण फाईनेंस किए जाने से उपभोक्ता होकर परिवादी है तथा परिवाद इस जिला फोरम में चलने योग्य है ।
8. अनावेदक कंपनी महेन्द्रा एण्ड महेन्द्रा फाईनेंस सर्विस लिमिटेड द्वारा दिए जवाब एवं सूची अनुसार संलग्न दस्तावेजों से वह कंपनी अधिनियम 1956 अंतर्गत पंजीकृत कंपनी है तथा उसने आवेदिका को ट्रेक्टर एवं ट्राली क्रय करने के लिए ऋण उपलब्ध कराया जिसके लिए एग्रीमेंट दिनांक 30.03.2011 उभय पक्ष द्वारा निष्पादित किया गया, जिसके तहत अनावेदक कंपनी ने आवेदिका को कुल 4,80,000/-रू. का लोन फाईनेंस किया, जिसके तहत आवेदिका ने अनावेदक से लोन प्राप्त किया, जिससे लोन प्राप्तकर्ता आवेदिका ’’उपभोक्ता’’ है । इस प्रकार आवेदिका एवं अनावेदक कंपनी के मध्य आपस में उपभोक्ता का संबंध है ।
9. अनावेदक कंपनी ने लोन एग्रीमेंट की कंडिका 26 में पक्षकारों के मध्य विवाद की स्थिति में माध्यस्थम (।तइपजतंजपवद) का उपबंध है अतः माध्यस्थ एवं सुलह अधिनियम के उपबंधों के अनुसार बाधित है का तर्क किया है ।
10. लोन एग्रीमेंट दिनांक 30.03.2011 के कंडिका 26 में माध्यस्थम करार होने के प्रभाव पर विचार करने तथा माध्यस्थम खण्ड के कारण अधिनियम 1986 के तहत परिवाद वर्जित नहीं हो जाता। करार होने के बावजूद भी अधिनियम 1986 के अंतर्गत
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परिवाद प्रचलनषील है, क्योंकि अधिनियम के प्रावधान अतिरिक्त रूप में है । अतः इस आधार पर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत परिवाद अप्रचलन योग्य नहीं हो जाएगा कि पक्षकारों को माध्यस्थम कार्यवाही का अवलंब देने का अधिकार उपलब्ध था।
11. अनावेदक कंपनी लोन एग्रीमेंट दिनांक 30.03.2011 के कंडिका 26 में लिखे अनुसार उपबंध का लाभ लेते हुए माध्यस्थम के समक्ष विधिवत प्रक्ररण क्रमांक 212/13 पंजीबद्ध हुआ तथा उस पर दिनांक 18 जनवरी 2013 को आदेष की प्रतिलिपि संलग्न किया है, जिसके अनुसार आवेदिका द्वारा क्रय की गई महेन्द्रा वाहन ट्रेक्टर 275 डी आई पंजीयन क्रमांक सी. जी 11 डी 2834 को आवेदिका से पुनः आधिपत्य लिया पुनः आधिपत्य में प्राप्त करते हुए आदेष पारित किया । इस प्रकार लोन एग्रीमेंट में माध्यस्थम करार होने के आधार पर अधिनियम 1986 की धारा 3 के उपबंधों से प्रस्तुत परिवाद प्रचलन योग्य है। मेसर्स नेषनल सीड्स कार्पोरेषन लिमिटेड विरूद्ध एम.मधुसुदन रेड्डी एवं अन्य 2013 (4) ब्च्त् 345 ( ैब्) में प्रतिपादित अनुसार परिवादी को उपभोक्ता फोरम के समक्ष परिवाद प्रस्तुत करने का विकल्प उपलब्ध है ।
12. अनावेदक कंपनी ने लोन एग्रीमेंट अनुसार पक्षकारों के मध्य विवाद का निराकरण मुम्बई स्थित न्यायालय को होना बताया है । आवेदिका के साथ लोन एग्रीमेंट अनावेदक कंपनी के प्राधिकृत प्रतिनिधि द्वारा किया गया है, जिसने उसके विरूद्ध किए परिवाद में उपस्थिति हेतु समंस तामिली पर उपस्थित होकर प्रसून श्रीवास्तव विधि अधिकारी द्वारा जवाब व षपथ पत्र तथा दस्तावेज प्रस्तुत किया है । इस प्रकार परिवादी ने अधिनियम 1986 की धारा 11 अंतर्गत अनावेदक कंपनी को पक्षकार बनाते हुए परिवाद प्रस्तुत किया है, जिसमें विवाद के तथ्य के साथ वाद हेतुक का विवरण दिया है, से प्रस्तुत परिवाद इस जिला फोरम के अधिकारिता अंतर्गत सुनवाई योग्य है।
13. इस प्रकार आवेदिका द्वारा अनावेदक कंपनी के विरूद्ध प्रस्तुत यह परिवाद का सुनवाई क्षेत्राधिकार इस जिला फोरम को प्राप्त है पाते हुए निष्कर्ष सकारात्मक रूप से ’’हाॅं ’’ में दिया जाता है ।
विचारणीय प्रष्न क्रमांक 2:-
14. आवेदिका/परिवादी ने परिवाद अंतर्गत वाहन ट्रेक्टर पंजीयन क्रमांक सी.जी. 11 डी 2834 एवं ट्राली वापस दिलाए जाने का निवेदन की है । अनावेदक कंपनी की ओर से तर्क किया गया है कि आवेदिका द्वारा क्रय की गई ट्राली को अनावेदक
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कंपनी द्वारा पुनः आधिपत्य में प्राप्त नहीं किया है वह ट्राली आवेदिका के पास में है, केवल ट्रेक्टर को आधिपत्य में लिया गया है। यह तर्क भी किया गया है कि आवेदिका ने स्वयं ट्रेक्टर को अनावेदक कंपनी के सुपूर्द कर दिया है जिसके लिए दिनांक 29.08.
2014 को पत्र लिख कर दी गई है । आवेदिका की ओर से स्वीकार किया गया है कि क्रय की गई ट्राली को अनावेदक कंपनी ने आधिपत्य में नहीं लिया है केवल ट्रेक्टर इंजन को जबरन आधिपत्य में लिया है का निवेदन किया है । इस तरह स्पष्ट है कि परिवाद अंतर्गत अनावेदक के विरूद्ध ट्रेक्टर ट्राली वापसी से संबंधी कोई विवाद नहीं है।
15. परिवाद अंतर्गत आवेदिका/परिवादी ने अनावेदक/विरोधी पक्षकार कंपनी के विरूद्ध मुख्य रूप से यह आरोप लगाया है कि अनावेदक कंपनी से की गई ऋण अनुबंध अनुसार दिनांक 25.02.2015 तक कुल 47 किष्तों में जमा करनी थी । आवेदिका द्वारा 4,92,500/-रू. फाईनेंस कंपनी को जमा किया जा चुका है। 47 किष्त पूरा होने के पहले ही दिनांक 18.07.2014 को आवेदिका के घर में खड़ी ट्रेक्टर को अनावेदक कंपनी द्वारा बल पूर्वक खींच कर ले गए, जिससे 15,000/-रू. मासिक आय की हानि होने से कुल 8 महीने का 1,20,000/-रू. की हानि हुई, फलस्वरूप अनावेदक कंपनी से वाहन क्षति सहित दिलाए जाने की प्रार्थना की गई है।
16. आवेदिका/परिवादी ने परिवाद के समर्थन में सूची अनुसार प्रस्तुत दस्तावेजों में अनावेदक महेन्द्रा एण्ड महेन्द्रा फाईनेंस सर्विस लिमिटेड द्वारा उससे की गई अनुबंध का विवरण दिनांक 25.03.2011 है ।
17. अनावेदक कंपनी तथा आवेदिका द्वारा निष्पादित पत्र दिनांक 25.03.2011 अनुसार अनावेदक कंपनी ने आवेदिका को ट्रेक्टर क्रमांक सी.जी. 11 डी 2834 हेतु 3,70,000/-रू. का लोन अनुबंध किया, जिसका 5,72,000/-रू. 47 किष्तों में जमा करनी थी, जिसमें प्रथम किष्त एडवांस 3,000/-रू., 38 किष्त मासिक 3,000/-रू., एक किष्त अर्धवार्षिक 56,000/-रू. तथा 7 किष्त अर्धवार्षिक 57,000/-रू. अनुसार अदा करनी थी । किष्तों का भुगतान प्रत्येक माह की 20 तारीख को किया जाना था, विलंब होने की स्थिति में 36 प्रतिषत ब्याज सालाना अलग से देना होगा पक्षकारों ने तय किया था ।
18. आवेदिका/परिवादी ने 4,92,500/-रू. फाईनेंस कंपनी को जमा कर चुकी है। परिवाद की कंडिका 3 में उल्लेख की है । किष्त जमा करने की रसीद की फोटोप्रति सूची अनुसार दस्तावेज में कुल 52 नग जमा की है, जिसके अनुसार कुल
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5,17,500/-रू. की रसीद है, जिसे आवेदिका ने रकम जमा करने पर अनावेदक कंपनी द्वारा दिया जाना बताया है ।
19. अनावेदक कंपनी ने वाहन ट्रेक्टर महिन्द्रा ट्रेक्टर 275 डी आई क्रमांक सी.जी. 11 डी 2834 का स्टेटमेंट आॅफ एकाउंट प्रस्तुत किया है, जिसके अनुसार
4,38,500/-रू. जमा हुआ है तथा 1,74,500/-रू. बकाया होना तथा ए.एफ.सी. अंतर्गत 21,218/-रू. देय होना बताया गया है ।
20. अनावेदक कंपनी ने आवेदिका का ट्रेक्टर एवं ट्राली दोनों के लिए फाईनेंस किया था। आवेदिका द्वारा जमा की गई राषि का अनावेदक कंपनी द्वारा दिए गए रसीद से स्पष्ट नहीं हो रहा है कि आवेदिका द्वारा जमा की गई राषि को ट्रेक्टर लोन के विरूद्ध या ट्राली लोन के विरूद्ध जमा की गई । इसी प्रकार आवेदिका द्वारा जमा की गई राषि की दी गई रसीद के दिनांक एवं राषि के विवरण स्टेटमेंट आॅफ एकाउंट के विवरण से समान रूप से मेल नहीं खा रहे हैं ।
21. यह स्वीकृत स्थिति है कि अनावेदक कंपनी ने लोन एग्रीमेंट के तहत आवेदिका को ट्रेक्टर क्रमांक सी.जी. 11 डी 2834 क्रय करने में लोन उपलब्ध कराया था तथा आवेदिका द्वारा जैन ट्रेक्टर्स अकलतरा से क्रय की गई उक्त ट्रेक्टर को अपने आधिपत्य में ले लिया है ।
22. अनावेदक कंपनी ने दस्तावेज दिनांक 29.08.2014 प्रस्तुत कर आर्बिट्रेटर के आदेष दिनांक 18 जनवारी 2013 अनुसार वाहन ट्रेक्टर क्रमांक सी.जी. 11 डी 2834 को आधिपत्य में लिया है । एकाउंट आॅफ स्टेटमेंट को आधारित करते हुए तर्क किया है कि लोन की शेष राषि जमा करने पर आवेदिका अपना ट्रेक्टर वापस ले सकती है। शेष लोन की राषि प्राप्त कर अनावेदक बीमा कंपनी आवेदिका को ट्रेक्टर वापस करने को तत्पर है । इस प्रकार अनावेदक बीमा कंपनी ने लोन एग्रीमेंट दिनांक 30.03.2011 अनुसार आवेदिका के ट्रेक्टर के संबंध में कार्यवाही किए जाना बतलाया है, जिसके संबंध में समय समय पर पंजीकृत सूचना पत्र द्वारा आवेदिका को जानकारी दिया जाना व्यक्त कर पंजीकृत सूचना पत्र दिनांक 07.08.2014, 20.08.2014 की प्रति प्रस्तुत किया है। परिवाद अंतर्गत परिवादी ने परिवाद प्रस्तुति के पूर्व अनावेदक कंपनी को पंजीकृत सूचना पत्र दिनांक 03.09.2014 एवं 19.01.2015 की प्रति प्रस्तुत किया है, जिसके जवाब में अनावेदक महेन्द्रा फाईनेंस कंपनी ने दिनांक 20.01.2015 को जवाब प्रस्तुत किया है । इस प्रकार पक्षकारों की ओर से किए अभिवचन एवं प्रस्तुत साक्ष्य से लोन एग्रीमेंट अनुसार लोन राषि की नियमित अदायगी नहीं होने पर आवेदिका की वाहन
प्रकरण क्रमांक:- CC/15/2015
ट्रेक्टर क्रमांक सी.जी. 11 डी 2834 को आर्बिट्रेटर के आदेष अनुसार आधिपत्य में लेना तथा आवेदिका द्वारा शेष लोन की राषि अदायगी करने पर ट्रेक्टर वापस कर देना बताया गया है ।
23. परिवाद अंतर्गत मुख्यतः ट्रेक्टर क्रमांक सी.जी. 11 डी 2834 वापस दिलाए जाने एवं 1,20,000/-रू. की क्षति अनावेदक से दिलाए जाने की प्रार्थना की गई है ।
15,000/-रू. मासिक क्षति होना बताया गया है । उक्त 15,000/-रू. का आंकलन किस प्रकार से किया गया है दस्तावेजी प्रमाण द्वारा स्पष्ट नहीं किया गया है । इस प्रकार पक्षकारों के मध्य विवाद के संबंध में उभय पक्ष को सारवान साक्ष्य द्वारा तथ्यों को प्रमाणित किए जाने की स्थिति बनी है।
24. अनावेदक कंपनी द्वारा दिनांक 25.03.2011 को आवेदिका के साथ हुए लिखित अनुबंध अनुसार कार्यवाही की गई, जिसमें विलंब होने की स्थिति में 36 प्रतिषत ब्याज अलग से देय होगा, उल्लेखित है । पक्षकारों के मध्य विवाद के संबंध में उपरोक्त संपूर्ण स्थिति में लोन एग्रीमेंट तथा एग्रीमेंट अनुसार किष्त अदायगी के संबंध में विवाद किये गये हैं । ऐसी स्थिति में व्यापक अभिवचन लिया जाकर साक्ष्य लिया जाकर निराकृत किए जाने योग्य है । सिविल वाद किए जाने की स्थिति में प्रस्तुत परिवाद की समयावधि की छूट पाने योग्य होगी ।
25. उपरोक्तानुसार अभिलेख अंतर्गत की सामग्री से अनावेदक/विरूद्ध पक्षकार फाईनेंस कंपनी द्वारा आवेदिका के साथ लोन एग्रीमेंट अनुसार किसी प्रकार से सेवा में कोई की गई है प्रमाणित नहीं हुआ है । परिणामतः विचारणीय प्रष्न क्रमांक 2 का निष्कर्ष , ’’नहीं’’ में दिया जाता है ।
26. उपरोक्त अनुसार परिवादी/आवेदिका द्वारा अनावेदक/विरूद्ध पक्षकार के विरूद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत जिला उपभोक्ता फोरम के समक्ष प्रस्तुत परिवाद स्वीकार करने योग्य नहीं है । फलस्वरूप दिनांक 20.02.2015 का प्रस्तुत परिवाद निरस्त किया जाता है ।
27. उभय पक्ष अपना-अपना वाद-व्यय स्वयं वहन करेंगे ।
( श्रीमती शशि राठौर) (मणिशंकर गौरहा) (बी.पी. पाण्डेय)
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