न्यायालय-जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, रायपुर (छ.ग.)
समक्ष :-
सदस्य - श्रीमती अंजू अग्रवाल
सदस्य - श्रीमती प्रिया अग्रवाल
प्रकरण क्रमांक:-59/2013
संस्थित दिनांक:- 04.02.2013
मेसर्स ट्रांसरेल स्ट्रक्चर्स एंड टावर्स,
द्वारा-पार्टनर श्री राजेश तेजवानी,
उम्र 49 वर्ष, पता-फ्लेट नं. 202,
जयश्री प्लाजा, बैरामजी टाउन,
नागपुर - 440013 (महाराष्ट्र) परिवादी
विरूद्ध
शाखा प्रबंधक, यश बैंक लिमिटेड,
राजविला रायगबाढ़ा, म.नं. 830,
प्लाट नं.10/26, सिविल लाईन्स,
रायपुर (छ.ग.) 492 001. अनावेदक
परिवादी की ओर से श्री आशुतोष सिंह अधिवक्ता।
अनावेदक की ओर से श्री हितेन्द्र तिवारी अधिवक्ता ।
// आदेश //
आज दिनांक:- 09 फरवरी 2015 को पारित
श्रीमती प्रिया अग्रवाल - सदस्य
1. परिवादी, अनावेदक से राशि रू0 50000/- मय ब्याज, मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में रू0 20000/-, सेवा में निम्नता के मद में रू0 10000/-, वादव्यय रू0 5000/- व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है ।
2. प्रकरण में स्वीकृत तथ्य यह है कि परिवादी का एक चालू खाता क्रमांक-004785800000142 अनावेदक बैंक के रायपुर शाखा में हैं । दि0 03.09.2012 को परिवादी के मोबाईल नं. 9422113405 में अनावेदक बैंक के द्वारा यह एस.एम.एस.आया कि उसके खाते से रू0 50000/-चेक क्लीयरेंस के द्वारा कमी कर दी गई है । परिवादी द्वारा पुलिस थाना, गोल बाजार, रायपुर में इस संबंध में कि उसके फर्जी हस्ताक्षर से बैंक से रूपये निकाल लिया गया है, एक लिखित शिकायत की गई है ।
परिवाद:-
3. परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी ने किसी के भी पक्ष में उक्त अवधि के दौरान रू0 50000/-का चेक जारी नहीं किया था । अतः उसने तत्काल दि0 04.09.2012 को बैंक को इस संबंध में सूचना दिया और उस व्यक्ति का नाम जानना चाहा जिसे उस राशि का भुगतान उक्त चेक के माध्यम से किया गया है। अनावेदक बैंक द्वारा परिवादी को यह सूचित किया गया कि मेसर्स अर्चना स्ट्रक्चर्स एवं टॉवर के खाते में उक्त चेक का भुगतान प्राप्त किया गया है तथा फर्म का खाता अनावेदक बैंक में निकट भूतकाल में ही खोला गया है तथा परिवादी के चेक का उस खाते में एक मात्र ट्रांजेक्शन है । अनावेदक बैंक द्वारा परिवादी को मूल चेक भी दिखाया गया जिस पर किसी व्यक्ति ने परिवादी के फर्जी हस्ताक्षर किये थे तथा जो परिवादी के हस्ताक्षर से काफी भिन्न है, मेल नहीं खाता है । परिवादी द्वारा अनावेदक बैंक से मूल चेक की छायाप्रति मांगने पर अनावेदक द्वारा उसे परिवादी को देने से इंकार कर दिया गया । परिवादी ने तत्पश्चात् अनावेदक बैंक को मेसर्स अर्चना स्ट्रक्चर्स एवं टाॅवर के खाते से रू0 50000/-भुगतान रोके जाने हेतु लिखित मंे आवेदन दिया किन्तु अनावेदक बैंक ने ऐसा करने से भी इंकार कर दिया । परिवादी द्वारा पुलिस थाना, गोल बाजार, रायपुर में इस संबंध में कि उसके फर्जी हस्ताक्षर से बैंक से रूपये निकाल लिया गया है, एक लिखित शिकायत की गई है । अनावेदक बैंक द्वारा बिना किसी विधिक अधिकार के परिवादी के फर्जी हस्ताक्षर के आधार पर परिवादी के खाते से रू0 50000/-की कमी करके सेवा में कमी की गई है । अतः परिवादी यह परिवाद पेश कर अनावेदक से रू0 50000/- मय ब्याज, मानसिक क्षतिपूर्ति तथा सेवा में निम्नता के मद में कुल रू0 30000/-दिलाये जाने की याचना कर परिवादी राजेश तेजवानी ने परिवाद पत्र में किये अभिकथन के समर्थन में स्वयं का शपथपत्र तथा सूची अनुसार 03 दस्तावेजों की फोटोप्रति पेश किया है ।
जवाबदावा:-
4. अनावेदक बैंक ने स्वीकृत तथ्य के अलावा परिवादी के परिवाद को अस्वीकार करते हुए अपने प्रतिरक्षा में निम्नानुसार उत्तर पेश कर यह अभिकथन किया है कि परिवादी के द्वारा मेसर्स अर्चना स्ट्रक्चर्स एंड टॉवर के पक्ष में चेक क्रमांक-088903 राशि रू0 50000/- दि0 03.09.2012 का जारी किया था जो क्लीयरिंग के माध्यम से प्राप्त होने पर चैक को विधिवत् दि0 04.09.2012 को परिवादी के खाते से उसका भुगतान किया गया था । अनावेदक को समाशोधन में प्राप्त चेक परिवादी को जारी चैक बुक सीरिज में से ही एक था । परिवादी को जिसके खाते में रकम क्रेडिट की गई थी उसकी जानकारी उपलब्ध करवा दिया गया था । परिवादी को मेसर्स अर्चना स्ट्रक्चर्स एंड टॉवर के पक्ष में जारी चैक को क्रेडिट करने की जानकारी प्रदान की गई थी । अनावेदक ने चैक क्लीयर करने के पूर्व सभी उन बातों का ध्यान रखा था जो चैक का भुगतान करने में किया जाता है । यदि किसी चैक का भुगतान रोकना होता है तो वह भुगतान किये जाने के पूर्व आवेदन किया जाता है तथा आवेदन में चैक नंबर का उल्लेख तथा भुगतान को रोके जाने का स्पष्ट कारण देना होता है । परिवादी के पत्र में राशि को होल्ड करने का निवेदन किया गया था वह भी मेसर्स अर्चना स्ट्रक्चर्स एवं टाॅवर के खाते का जो कि नहीं किया जा सकता है । परिवादी की शिकायत पर पुलिस ने जांच की थी जिसमें अनावेदक बैंक की कोई त्रुटि या अनियमितता किया जाना नहीं पाया गया था । अनावेदक बैंक द्वारा किसी भी प्रकार की सेवा में निम्नता नहीं की गई है ।
अनावेदक बैंक का आगे यह भी कथन है कि भारतीय रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया के द्वारा वर्ष 1995 में बैंकिंग के सफल संचालन के लिये बैंकिंग ओम्बुड्समेन का गठन किया गया है जिसमें खातेधारकों की शिकायत का निराकरण किया जाता है । रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के द्वारा बैंकिंग कार्य प्रणाली के विशेषज्ञों की नियुक्ति जिसमें की जाती है । जहां परिवादी अपना शिकायत दर्ज करवा सकता है जिनके आदेशों का पालन करना सभी पक्षकारों के लिये आवश्यक होता है । परिवादी बैंकिंग ओम्बुड्समेन में शिकायत न कर फोरम के समक्ष परिवाद किया है । उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम का लाभ उन्हीं व्यक्तियों को दिया जा सकता है जो कि स्वच्छ हाथों से फोरम के समक्ष आये, जैसा कि परिवादी ने नहीं किया । परिवादी द्वारा यह परिवाद सत्य तथ्यों को छिपाकर झूठे कथनों के आधार पर अधिनियम का अनुचित लाभ पाने के लिये प्रस्तुत किया गया है । परिवादी अनावेदक से किसी भी प्रकार की कोई सहायता व अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी नहीं हैं । अतः पेश परिवाद निरस्त किये जाने की प्रार्थना कर अमित देशपाण्डे-मैनेजर ने जवाब के समर्थन में स्वयं का शपथपत्र तथा दस्तावेज के रूप में अर्चना स्ट्रक्चर एंड टाॅवर्स द्वारा अनावेदक बैंक को लिखे गये पत्र दि0 12.12.2012 की फोटोप्रति पेश किया है ।
5. उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण में निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं कि:-
(1) क्या परिवादी, अनावेदक से रू0 50000/- मय ‘‘नहीं''
ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी है ?
(2) क्या परिवादी, अनावेदक से मानसिक क्षतिपूर्ति ‘‘नहीं''
तथा सेवा में निम्नता के मद में कुल रू 30000/-
प्राप्त करने का अधिकारी है ?
(3) अन्य सहायता एवं वादव्यय ? परिवाद अस्वीकृत।
:: विचारणीय बिन्दुओं के निष्कर्ष के आधार ::
6. प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है ।
फोरम का निष्कर्ष:-
7. फोरम द्वारा उभयपक्ष के अभिवचनों, दस्तावेजों, शपथपत्र एवं तर्क का अवलोकन किया गया । परिवादी को दि0 03.09.2012 को अनावेदक बैंक से मोबाईल पर एस.एम.एस. आया कि परिवादी के खाते से रू 50000/-चेक क्लीयरेंस के द्वारा कमी कर दी गई है। परिवादी का कहना है कि उसने उस अवधि के दौरान रू 50000/-का चेक किसी के पक्ष में जारी नहीं किया है । परिवादी ने तत्काल दि0 04.09.2012 को बैंक से संपर्क कर किस व्यक्ति के नाम से उस राशि का भुगतान हुआ जानना चाहा । अनावेदक बैंक ने परिवादी को इस बात की जानकारी तुरंत ही दी कि उक्त रू 50000/-राशि का भुगतान मेसर्स अर्चना स्ट्रक्चर्स एंड टाॅवर के खाते में किया गया है । अनावेदक बैंक ने अपने जवाबदावा में इस बात का उल्लेख किया है कि परिवादी द्वारा मेसर्स अर्चना स्ट्रक्चर्स एंड टाॅवर के पक्ष में चेक क्रमांक-088903 राशि रू 50000/- दि0 03.09.2012 का जारी किया था, जो क्लीयरिंग के माध्यम से प्राप्त होने पर चैक को विधिवत् दि0 04.09.2012 को परिवादी के खाते से उसका भुगतान किया गया था जिसकी सूचना अनावेदक बैंक ने परिवादी को एस.एम.एस. के माध्यम से दे दी। परिवादी का अपने परिवाद में कथन है कि उसने किसी को भी रू 50000/-का चेक जारी नहीं किया है कि अनावेदक को समाशोधन में प्राप्त चेक क्रमांक-088903 परिवादी को जारी चेक क्रम की सीरिज में ही था ।
8. उक्त चेक अनावेदक द्वारा दि0 08.07.2011 को जारी कर परिवादी को प्रदान किया गया था । उक्त चेक क्रमांक-088903 दि0 03.09.2012 को क्लीयरिंग हेतु 14 माह बाद प्रदान किया गया था । अनावेदक द्वारा चेक बुक जारी करने के संबंध में दस्तावेज पेश किया गया है जिसके अवलोकन से स्पष्ट होता है कि परिवादी के पक्ष में चेक बुक जारी की गई थी । फोरम द्वारा उक्त चेक बुक पेश करने हेतु परिवादी को पर्याप्त समय दिया गया किन्तु परिवादी द्वारा आज दिनांक तक उक्त चेक बुक फोरम के समक्ष पेश नहीं किया गया । किन्तु उक्त संबंध में परिवादी द्वारा एक शपथपत्र पेश किया गया कि मुझे बैंक द्वारा दि0 08.07.2011 को जारी चेक बुक क्रमांक-088903 मेंरे या मेंरे किसी अधिकृत व्यक्ति द्वारा प्राप्त नहीं किया गया है किन्तु परिवादी द्वारा अपने परिवाद में यह कहीं भी उल्लेख नहीं किया गया हे कि बैंक द्वारा जारी चेक बुक उन्हें प्राप्त नहीं हुआ है और न ही उक्त चेक या चेक बुक के गुमने की कोई शिकायत पूर्व या उसके बाद ही किया गया । परिवादी ने अपने परिवाद में इस बात का उल्लेख किया है कि अनावेदक ने उन्हें मूल चेक दिखाया है जिसमें परिवादी के फर्जी हस्ताक्षर किये गये थे किन्तु फोरम का यह मत है कि यदि चेक के हस्ताक्षर में भिन्नता हो तो चेक क्लीयर नहीं होता ।
9. परिवादी ने पुलिस थाना गोलबाजार में एक आवेदन दिया कि उनका उक्त चेक किसी व्यक्ति ने गैर कानूनी ढंग से प्राप्त कर उस पर उनका जाली हस्ताक्षर कर रू0 50000/-की राशि उसी बैंक में खातेदार मेसर्स अर्चना स्ट्रक्चर एवं टावर के नाम से स्थानांतरित कर ली है । इस संबंध में परिवादी द्वारा दस्तावेज पेश है इसमें भी परिवादी ने इस बात का उल्लेख नहीं किया है कि उसको अनावेदक द्वारा जारी चेक बुक प्राप्त नहीं हुई है इसलिये यह नहीं माना जा सकता है कि अनावेदक द्वारा जारी परिवादी के नाम से चेक बुक परिवादी को प्राप्त नहीं हुई है ।
10. अनावेदक ने स्पष्ट किया है कि परिवादी ने जब अनावेदक बैंक को मेसर्स अर्चना स्ट्रक्चर्स एवं टॉवर के खाते रू 50000/- का भुगतान रोके जाने हेतु लिखित आवेदन दिया उस समय चैक का भुगतान प्रदान किया जा चुका था । यदि चेक भुगतान रोकना होता है, तो वह भुगतान किये जाने से पूर्व स्टॉप पेमेंट हेतु आवेदन दिया जाता है तथा चेक नंबर का उल्लेख एवं भुगतान रोके जाने का कारण देना होता है जिसे परिवादी द्वारा अनावेदक बैंक को नहीं दिया गया, जिससे स्पष्ट है कि बैंक ने कोई सेवा में कमी नहीं की है ।
11. चॅूकि उक्त चेक अनावेदक द्वारा दि0 08.07.2011 को जारी कर परिवादी को प्रदान किया गया था और उक्त चेक क्रमांक-088903 दि0 03.09.2012 को क्लीयरेंस हुआ यानि लगभग 14 माह के बाद चेक को बैंक क्लीयरेंस हेतु प्रदान किया गया । परिवादी ने पुलिस थाना गोलबाजार को एक आवेदन दिया है कि उनका उक्त चेक किसी व्यक्ति ने गैरकानूनी ढंग से प्राप्त कर उस पर उनका जाली हस्ताक्षर कर रू 50000/-की राशि उसी बैंक में खातेदार मेसर्स अर्चना स्ट्रक्चर्स एवं टाॅवर के नाम स्थानांतरण कर ली । यदि फोरम द्वारा यह मान भी लिया जाये कि परिवादी का उक्त चेक किसी ने गैरकानूनी ढंग से प्राप्त कर लिया पर परिवादी ने जिस चेक के माध्यम से भुगतान किया था उस सीरिज की चेक बुक 14 माह यानि दि0 08.07.2011 को प्रदान किया गया था । यदि 14 माह पूर्व से उक्त सीरिज के किसी चेक या चेक बुक को किसी ने गैरकानूनी ढंग से प्राप्त कर लिया तो परिवादी की ही लापरवाही है, क्योंकि क्या 14 माह तक परिवादी ने अपनी चेक बुक नहीं देखी और यदि देखी होती तो उक्त सीरिज के किसी भी चेक के गुम होने की कोई शिकायत पुलिस या अनावेदक बैंक को दिया जाना था किन्तु परिवादी ने ऐसा नहीं किया क्योंकि इस संबंध में परिवादी ने कोई भी दस्तावेज पेश नहीं किया है, जिससे यह प्रमाणित होता है कि अनावेदक बैंक द्वारा किसी भी प्रकार की सेवा में निम्नता की गई है, प्रमाणित नहीं होता है । फलतः परिवादी का परिवाद प्रमाणाभाव में निरस्त किया जाता है । प्रकरण की परिस्थितियों में उभयपक्षकार अपना-अपना वादव्यय स्वयं वहन करेंगे ।
(श्रीमती अंजू अग्रवाल) (श्रीमती प्रिया अग्रवाल)
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