विपक्षी बैंक की ओर से लिखित कथन के प्रस्तर 3 व 4 में कहा गया है कि परिवादी उपभोक्ता नहीं है, और उसे परिवाद योजित करने का अधिकार नहीं है। अत: परिवाद खारिज होने योग्य है। इस बिन्दु पर निर्णय करने की अपेक्षा पक्षों द्वारा की गयी है।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का संक्षेप में कथन इस प्रकार है कि उसके पिता तेजू राम का यू0बी0आई0 शाखा मरदह जिला गाजीपुर में खाता सं0-344702010052283 है और उस पर ए0टी0एम0 सं0 421368344703540 की सुविधा प्राप्त है। दिनांक 03-07-13 को सुबह 11 बजे से 12.30 बजे के बीच परिवादी ने यू0बी0आई0 नरई बॉध जिला मऊ में खाते का बैलेंस चेक किया और दूसरी बार रू0 5,000/- निकालने की कोशिश की, लेकिन ए0टी0एम0 मशीन ने कोड नहीं पकड़ा और एस.नो किया तो परिवादी ने इन दोनों ट्रॉजेक्शन को निरस्त कर दिया। 5 मिनट के उपरांत उक्त ए0टी0एम0 मशीन ठीक हुई तो परिवादी ने तीसरी बार धन निकालने का प्रयास किया तो पुन: उपरोक्त प्रक्रिया पुन: होने लगी । 2-4-10 मिनट बाद परिवादी ने पुन: प्रयास किया, तो मशीन ने कोड पकड़ा और उसने रू0 5,000/- के लिए बटन दबाया, तो एस किया लेकिन पैसा नहीं निकला। इसके बाद परिवादीने अपने पिता के उक्त खाते का बैलेंस चेक किया तो उससे रू0 25,000/- आहरित होकर कट चुके थे। दिनांक 03-07-2013 को परिवादी ने यू0बी0आई0 शाखा मरदह में शिकायती प्रार्थना पत्र दिया और रू0 25,000/-कटने को ठीक करने को कहा लेकिन बैंक ने अपने पत्र दिनांकित 04-07-13 द्वारा इनकार कर दिया। परिवादी यू0बी0आई0 शाखा मरदह गया, तो कहा गया कि कम्प्यूटर में ट्रान्जैक्सन सक्सेसफुल बता रहा है जबकि वास्तव में रू0 25,000/- उस दिन नहीं निकले थे। धन निकासी की रसीद भी परिवादी को नहीं मिली थी। परिवादी का यह कहना है कि यदि पैसा निकला है, तो परिवादी द्वारा पैसा लेने का चित्र भी सी-सी कैमरा पर आया होगा। परिवादी के पिता के खाते में रू0 25,000/- का समायोजन नहीं किया गया, तो परिवादी ने दिनांक 16-08-13 को यू0बी0आई0 शाखा मरदह को विधिक नोटिस जरिये पंजीकृत डाक भेजी, लेकिन परिवदी के पिता के खाते में रू0 25,000/- की बढ़ोत्तरी नहीं की गयी।
विपक्षी बैंक ने अपने प्रतिवाद पत्र में यह स्वीकार किया है कि बैंक में उक्त तेजू राम के नाम से उक्त खाता है उक्त खाता तेजू राम के नाम होने के कारण परिवादी न तो उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है और न उसे परिवाद योजित करने का अधिकार प्राप्त है। परिवाद पत्र के कथनों से प्रकट होता है कि दिनांक 03-07-13 को परिवादी ने अपने पिता के खाता संख्या 344702010052283 का संचालन जरिये ए0टी0एम0 संख्या- 421368344703540 किया था। परिवादी का यह कृत्य अवैध है। ए0टी0एम0 का प्रयोग उसी व्यक्ति द्वारा किया जाना चाहिए, जिस व्यक्ति के नाम इसे जारी किया गया है। ए0टी0एम0 के प्रयोग के लिए कार्ड तथा पिन नम्बर की आवश्यकता होती है। पिन नम्बर गोपनीय होता है, इसे किसी अन्य व्यक्ति को देने के लिए खाता धारक अधिकृत नहीं है। परिवादी ने अपने पिता के खाते का संचालन ए0टी0एम0 के जरिये करके अवैध कार्य किया है। ऐसी स्थिति में यदि किसी तरह का नुकसान हुआ है, तो उसकी क्षतिपूर्ति करने के लिए विपक्षी बैंक उत्तरदायी नहीं है। परिवादी ने अकारण परिवाद योजित करके विपक्षी बैंक को परेशान किया है। उसका परिवाद पोषणीय नहीं है और हर्जा सहित खारिज होने योग्य है।
वर्तमान मामले में विपक्षी बैंक की ओर से यह तर्क उठाया गया है कि परिवादी उसका उपभोक्ता नहीं है और उसे परिवाद योजित का अधिकार भी नहीं है, जिससे परिवाद खारिज होने योग्य है। परिवादी की ओर से स्वीकार किया गया हे कि उसका विपक्षी बैंक में खाता नहीं है और वह अपने पिता के खाते से सम्बन्धित ए0टी0एम0 का प्रयोग अपनेपिता की सहमति से कर रहा था। पक्षों ने इस बिन्दु पर कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं की हैं। प्रश्नगत बिन्दु पर पक्षों के कथनों को देखते हुए इस बिन्दु का निस्तारण हेतु साक्ष्य की आवयकता भी नहीं है।
परिवाद पत्र, आपत्ति पत्र तथा ए0टी0एम0 के प्रयोग सम्बन्धी निर्देश का परिशीलन किया गया तथा पक्षों के विद्वान अधिवक्ता गण को सुना गया।
विपक्षी बैंक की ओर से कहा गया है कि परिवादी उसका उपभोक्ता नहीं है क्योंकि प्रश्नगत खाता परिवादी के नाम नहीं है। उक्त तर्क का खण्डन करते हुए परिवादी की ओर से कहा गया है कि परिवादी अपने पिता की सहमति से प्रश्नगत ए0टी0एम0 का प्रयोग कर रहा था अत: वह भी उपभोक्ता की श्रेणी में है। स्वीकृत रूप से वर्तमान मामले में परिवादी का विपक्षी बैंक में खाता नहीं था और प्रश्नगत खाता परिवादी के पिता तेजू राम के नाम था, जिस पर तेजू राम को ए0टी0एम0 की सुविधा विपक्षी बैंक द्वारा उपलब्ध कराई गई थी।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2(1) (घ) में शब्द ‘उपभोक्ता’’ परिभाषित किया गया है। वर्तमान मामले में यह स्वीकृत तथ्य है कि परिवादी के नाम विपक्षी बैंक में प्रश्नगत खाता नहीं था न परिवादी को ए0टी0एम0 की सुविधा उपलब्ध कराई गई थी । ऐसी स्थिति में विपक्षी बैंक की ओर से दिया गया यह तर्क कि परिवादी उसका उपभोक्ता नहीं है, सही प्रतीत होता है।
विपक्षी बैंक की ओर से कहा गया है कि परिवादी को न तो परिवाद पत्र योजित करने का अधिकार है और न उसे इस हेतु Locus Standii है। शब्द ‘’परिवादी’’ उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2(1) (ख) में निम्न प्रकार परिभाषित किया गया है-
“(i) a consumer; or
(ii) any voluntary consumer association registered under the Companies Act, 1956 (1 of 1956), or under any other law for the time being in force; or
(iii) the Central Government or any State Government, who or which makes a complaint; or
(iv) one or more consumers, where there are numerous consumers having the same interest;]
(v) in case of death of a consumer, his legal heir or representative;]”
ऊपर विचार करते हुए यह प्रतिपादित किया जा चुका है कि विपक्षी बैंक में परिवादी का न तो खाता था और न उसे ए0टी0एम0 की सुविधा विपक्षी बैंक द्वारा उपलब्ध कराई गई थी ऐसी दशा में वह विपक्षी बैंक का उपभोक्ता नहीं है। परिवादी एक व्यक्ति है,और वह स्वैच्छिक उपभोक्ता असोसिएशन नहीं है, परिवादी को केन्द्र सरकार अथवा राज्य सरकार द्वारा परिवाद योजित करने हेतु अधिकृत भी नहीं किया गया है। परिवादी का खातेदार पिता स्वीकृत रूप से जीवित व्यक्ति है ऐसी दशा में वर्तमान में अपने पिता का उत्तराधिकारी भी नहीं है, ऐसी दशा में उक्त धारा 2(1) (ख) में दी गई ‘’परिवादी’’ की परिभाषा में परिवादी नहीं आता है। मामले की इन परिस्थितियों में परिवादी की ओर से दिये गये इस तर्क में भी बल नहीं है कि पिता के उत्तराधिकारी के रूप में उसे परिवाद योजित करने का अधिकार है।
विपक्षी की ओर से कहा गया है कि परिवादी तथा विपक्षी बैंक के मध्य कोई अनुबंध नहीं था और न परिवादी द्वारा विपक्षी बैंक की सेवाएं हायर की गई थीं इसलिए परिवादी को परिवाद योजित करने की Locus Standi नहीं है इसलिए अनाधिकृत रूप से परिवाद योजित करने के कारण परिवाद पत्र अस्वीकृत होने योग्य है। मा0 राष्ट्रीय आयोग ने 2012 (4) सी पी आर 477 (एन सी) हिमकाष्ठ सेल्स डिपो नूरपुर बनाम ब्रान्च मैनेजर स्टेट बैंक आफ पटियाला में प्रतिपादित किया है कि परिवाद योजित करने के लिए Locus Standi होना आवश्यक है, ऐसी स्थिति में मेरे विचार से विपक्षी बैंक द्वारा दिया गया तर्क उचित है और परिवादी को परिवाद योजित करने की Locus Standi नहीं है।
विपक्षी बैंक द्वारा ए0टी0एम0 जारी किये जाने तथा इसके सुरक्षित प्रयोग के सम्त्बन्ध में सुसंगत निर्देशों तथा प्रयोग करने की शर्तों उपलब्ध करायी गयी हैं। इन शर्तों से ए0टी0एम0 सुविधा प्राप्त व्यक्ति बाध्य है। ए0टी0एम0 धारक को PIN किसी को बताने तथा ए0टी0एम0 को अन्य व्यक्ति को प्रयाग हेतु देने से स्पष्ट रूप से रोका गया है, लेकिन वर्तमान मामले में बिना विपक्षी बैंक की सहमति के ए0टी0एम0 परिवादी द्वारा प्रयोग किया जाना प्रकट है। इस प्रकार ए0टी0एम0 धारक द्वारा ए0टी0एम0 सुविधा का अनधिकृत प्रयोग हेतु परिवादी को दिया जाना स्पष्ट है।
उपरोक्त सम्पूर्ण विवेचन से प्रकट है कि परिवादी न तो विपक्षी बैंक का उपभोक्ता है और न उसे यह परिवाद योजित करने का अधिकार है ऐसी दशा में परिवाद खारिज होने योग्य है।
परिवादी का परिवाद विपक्षी बैंक को परिवादी द्वारा देय रू0 1000/- वाद व्यय सहित खारिज किया जाता है।
इस आदेश की एक-एक प्रति पक्षकारों को नि:शुल्क दी जाय।
आदेश आज खुले न्यायालय में, हस्ताक्षरित, दिनांकित कर, उद्घोषित किया गया।