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Mukesh Agrawal filed a consumer case on 21 Jul 2015 against Branch Manager, The Oriental Insurance Company Ltd. in the Kota Consumer Court. The case no is CC/193/2010 and the judgment uploaded on 03 Aug 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, कोटा (राजस्थान)।
पीठासीन:
अध्यक्ष : नंद लाल शर्मा,
सदस्या : हेमलता भार्गव
परिवाद सं. 193/10
मुकेश अग्रवाल पुत्र डी0सी0 अग्रवाल, उम्र 33 साल निवासी अग्रवाल भवन, लाडपुरा, कोटा, राजस्थान। -परिवादी।
बनाम
शाखा प्रबंधक, दी ओरियन्टल इन्श्योरेन्स कंपनी लि0, शाखा कार्यालय द्धितीय, सहयोग भवन, एरोड्राम सर्किल, कोटा, राजस्थान।
-अप्रार्थी।
परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986
उपस्थिति-
1 श्री गोविन्द नामदेव, अधिवक्ता, परिवादी की ओर से।
2 श्री के0एस0 जादौन, अधिवक्ता,विपक्षी सं01 की ओर से।
निर्णय दिनांक 21.07.2015
परिवादी ने इस मंच में परिवाद पेश किया जिसमें अंकित किया कि वह मोटर सायकिल हीरो होण्डा स्पेलेण्डर सं. आर जे 20/ 13एम/6407 का स्वामी है। परिवादी ने उक्त वाहन का बीमा अप्रार्थी के माध्यम से दिनांक 04.03.09 को करवाया था। पालिसी दिनांक 05.03.09 के मध्य रात्रि तक 04.03.10 तक प्रभावित थी। दिनांक 21.09.09 को परिवादी का उक्त वाहन चोरी हो गया, जिसकी काफी तलाश की परन्तु वह नही मिलने पर उसके भाई संजय अग्रवाल ने थाना जवाहर नगर कोटा में रिपोर्ट दर्ज करवाई, वाहन के मूल कागजात भी वाहन के साथ चोरी हो गये। अप्रार्थी ने बीमा पालिसी जारी करते समय वाहन का रजिस्ट्रेशन सं. 13 एम के स्थान पर 14 एम गलती से अंकित कर दिया। वाहन चोरी होने की सूचना पहले अप्रार्थी के एजेन्ट को दी फिर बाद में लिखित सूचना पत्र भी दिया। थाना जवाहर नगर कोटा द्वारा परिवादी की यह जानकारी में लाया गया कि उसके वाहन का रजिस्टर नं. 14 एम न होकर 13 एम है। उक्त गलती अप्रार्थी द्वारा जारी पालिसी के कारण हुई। परिवादी पंजीयन की डूप्लीकेट कापी लेकर प्रथम सूचना रिपोर्ट में वाहन के नम्बर सही करवाने गया तो थानाधिकारी द्वारा उक्त गलती को ठीक करने से इंकार कर दिया। उक्त त्रुटि अदालत के माध्यम से ही ठीक करवाने को कहा । दिनांक 15.04.10 को अतिरिक्त सिविल न्यायाधीश उतर-4 कोटा द्वारा उक्त गलती को ठीक करने के आदेश दिये उस पर उक्त गलती को ठीक किया गया। अप्रार्थी की उक्त गलती के कारण परिवादी को शारीरिक, मानसिक क्षति उठानी पडी। दिनांक 31.03.10 को अप्रार्थी ने परिवादी का बीमा क्लेम बिना किसी सुनवाई का अवसर दिये खारिज कर दिया। परिवादी ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से कानूनी नोटिस भी दिलवाया उसके बावजूद भी अप्रार्थी ने परिवादी को सुनवाई का अवसर प्रदान नहीं किया। अप्रार्थी ने परिवादी का बीमा क्लेम खारिज कर उसकी सेवा में कमी की है, इसलिये परिवादी को अप्रार्थी से बीमा क्लेम की राशि, मानसिक, शारीरिक संताप की राशि, परिवाद खर्च दिलवाया जावे।
अप्रार्थी ने परिवादी के परिवाद का विरोध करते हुये जवाब पेश किया उसमें अंकित किया कि उसने वाहन संख्या आर जे 20-14एम-6407 इंजन नम्बर 11825 क दिनांक 05.03.09 से दिनांक 04.03.10 तक की अवधि के लिये परिादी के नाम बीमा कर पालिसी सं. 243201/31/2009/5097जारी की गई। परिवादी ने वाहन चोरी जाने की घटना की मौखिक सूचना एजेन्ट जुआरी चम्बल को देना परिवाद में अंकित किया है, परन्तु कंपनी ने एजेन्ट को क्लेम सूचना बाबत् अधिकृत नहीं किया। एजेन्ट कार्य केवल प्रिमियम राशि का क्लेक्शन करना है। घटना की सूचना, क्लेम प्राप्त करने, क्लेम निस्तारण करने के लिये कंपनी ही सक्षम प्राधिकारी है। अप्रार्थी द्वारा परिवादी के बीमा क्लेम के बारे में सदभावी निर्णय लिया गया है, उसमें किसी भी प्रकार की कोई सेवा में कमी या अनुचित व्यापार व्यवहार प्रक्रिया नहीं अपनाई गई है। परिवादी ने स्वेच्छा बीमा संविदा शर्तो का उल्लधंन किया है इसलिये उसका बीमा क्लेम नियमानुसार खारिज किया गया है। परिवादी अप्रार्थी से किसी भी प्रकार की कोई राहत पाने का अधिकारी नहीं है। परिवादी ने वाहन चोरी चले जाने के 48 घंटे के अन्दर बीमा कंपनी को सूचना नहीं दी। उक्त वाहन चोरी जाने के समय संजच अग्रवाल के पास बीमित वाहन को चलाने का वैद्य एवं प्रभावी लाइसेन्स नहीं था। संजय अग्रवाल ने बीमित वाहन को जानबूझकर साईकिल स्टेण्ड पर नहीं रखा,बल्कि उक्त वाहन को बिना सुरक्षा के खुले स्थान पर छोड कर चला गया। बीमित वाहन की सुरक्षा का संजय अग्रवाल ने कोई ध्याान नहीं रखा, इसलिये उत्पन्न क्षति के लिये वह स्वयं जिम्मेदार है। परिवादी ने उसके वाहन के चोरी जाने की प्रथम सूचना रिपोर्ट दिनांक 22.09.09 को थाना जवाहर नगर में दर्ज करवाई, परिवादी ने अप्रार्थी बीमा कंपनी को उसके वाहन के चोरी जाने के 30 दिन बाद प्रथम बार दिनांक 20.10.09 को दी। बीमा धारक द्वारा चोरी गये वाहन की दोनो चाबियां चोरी चले जाने पर भी ताला नहीं बदलवाना, बिना वैद्य लाइसेन्स वाले व्यक्ति को बीमित वाहन चलाने के लिये देना, वाहन के चोरी चले जाने की सूचना देरी से देना पालिसी शर्तो का उल्लघंन है, इसलिये परिवादी के बीमा क्लेम को नियमानुसार सही रूप से खारिज किया गया है। अप्रार्थी कंपनी ने परिवादी का बीमा क्लेम खारिज कर उसकी सेवा में कोई कमी नहीं की है। परिवादी का परिवाद सव्यय खारिज किया जावे।
उपरोक्त अभिकथनों के आधार पर बिन्दुवार हमारा निर्णय निम्न प्रकार हैः-
01. आया परिवादी अप्रार्थी का उपभोक्ता है ?
परिवादी के परिवाद, शपथ-पत्र, बीमा पालिसी से परिवादी, अप्रार्थी का उपभोक्ता है।
02. आया अप्रार्थी ने सेवा दोष किया है ?
उभय पक्षों को सुना गया। पत्रावली में उपलब्ध दस्तावेजी रेकार्ड का अवलोकन किया गया तो स्पष्ट हुआ कि परिवादी ने अपने वाहन सं. आर जे 20/13एम/6407 के चोरी जाने की सूचना दिनांक 21.09.09 को अप्रार्थीके एजेन्ट जुवारी चम्बल को मौखिक रूप से देने का कथन किया है और बाद में लिखित सूचना अप्रार्थी को देने का कथन किया है। अप्रार्थी ने उक्त कथन का विरोध करते हुये अपने जवाब के पैरा नम्बर 2 में अंकित किया है कि अप्रार्थी ने एजेन्ट जुआरी चम्बल को बीमा की प्रिमियम कलेक्शन करने के लिये अधिकृत कर रखा है। वाहन दुर्घटना की सूचना प्राप्त करने, बीमा क्लेम प्राप्त करने के लिये अधिकृत नहीं कर रखा है। वाहन की दुर्घटना की लिखित में सूचना प्राप्त करने, बीमा क्लेम को प्राप्त करने, बीमा क्लेम के निर्णय के लिये अप्रार्थी बीमा कंपनी ही सक्षम प्राधिकारी है न की एजेन्ट। परिवादी का वाहन दिनांक 21.09.09 को चोरी चला गया, और उसकी थाने में रिपोर्ट दिनांक 22.09.09 को दर्ज कराई और उक्त वाहन के चोरी जाने की सूचना प्रथम बार दिनांक 20.10.09 को अप्रार्थी को प्राप्त हुई, जबकि उक्त घटना की सूचना अप्रार्थी को घटना के 48 घंटे के अन्दर-अंदर देना चाहिये था, जो नहीं दी। परिवादी ने अपना वाहन अपने भाई संजय अग्रवाल को वक्त दुर्घटना चलाने के लिये दे रखा था उसके पास वैद्य लाइसेन्स नही था, संजय अग्रवाल ने ही उक्त दुर्घटना की रिपोर्ट थाने में दर्ज करवाई है। परिवादी ने संजय अग्रवाल का डी0एल0 भी मंच में पेश नहीं किया जिससे यह ज्ञात होता कि उसका लाइसेन्स वक्त घटना वैद्य एवं प्रभावी नहीं था। परिवादी ने उक्त तथ्यों का खंडन नहीं किया है।
उभय पक्षों के उक्त तर्को के बाद प्रथम प्रश्न आता है कि क्या परिवादी ने संजय अग्रवाल का डी0एल0 पेश नहीं किया है ? इस संबंधमें परिवादी का तर्क है कि दुर्घटना के मामलें में डी0एल0 महत्वपूर्ण साक्ष्य है, लेकिन चोरी के मामलें में डी0 एल0 की वैद्यता की कोई आवश्यकता नहीं है। न्यायिक दृष्टान्तों में प्रतिपाद्धित निर्णयों से परिवादी के तर्क की पुष्टि होती है। अप्रार्थी के अभिभाषक द्वारा प्रस्तुत न्यायिक दृष्टान्त आर0ए0आर0 2010 पेज 435 राजस्थान में भी दुर्घटना के संबंध में वैद्य एवं प्रभावी लाइसेन्स की आवश्यकता का सिद्धान्त प्रतिपाद्धित किया है, इसलिये इस प्रकरण में इस न्यायिक दृष्टान्त से कोई प्रकाश प्राप्त नहीं होता है।
जहाॅ तक अप्रार्थी का विलम्ब से सूचना देने का तर्क है यह बीमा की शर्तो के अनुसार सही और तर्कपूर्ण है। परन्तु परिवादी का तर्क है कि उसने सूचना दिनांक 21.09.09 को अप्रार्थी के एजेन्ट जुआरी चम्बल को दे दी थी, इस बिन्दु पर अप्रार्थी का यह तर्क तो मान्य है कि एजेन्ट सिर्फ प्रिमियम कलेक्शन के लिये होता है। लेकिन औपचारिक सूचना तो परिवादी ने उनके एजेन्ट को दे दी तो अप्रार्थी को सूचना समय पर प्राप्त होना मानने में कोई वैद्यानिक अडचन नहीं है, क्योंकि अप्रार्थी को मात्र वाहन के चोरी की सूचना होना ही तो आवश्यक है, जो सूचना उनके एजेन्ट द्वारा भिजवा दी, लेकिन लिखित में दिनांक 20.10..09 को सूचना अप्रार्थी को प्राप्त हुई। इसके अतिरिक्त यह नहीं की परिवादी ने सूचना ही नही दी यह भी उस समय जब अप्रार्थी ने पालिसी की कवर नोट में वाहन का नम्बर गलत लिख रखा है। पालिसी कवर नोट में अप्रार्थी ने वाहन का नम्बर आर जे 20/14 एम-6407 अंकित कर रखी है जबकि रजिस्ट्रेशन में आर जे 20/13 एम 6407है, यह गलती परिवादी की नहीं है। बल्कि अप्रार्थी की है और अप्रार्थी परिवादी की इस गलती के संबंध में सूचना नही देने के आधार पर परिवादी का बीमा क्लेम को खारिज कर रहा है। अप्रार्थी की इस गलती के कारण परिवादी की एफ0 आई0 आर0 भी एन्टरटेन नहीं की गई। अप्रार्थी इस भूल को स्वीकार नहीं करते, बल्कि परिवादी द्वारा इस भूल पर जोर देते है कि उसने समय पर सूचना नही दी, जबकि वास्तव में गलती अप्रार्थी द्वारा जारी की गई पालिसी कवर नोट में हुई है और यही अप्रार्थी का सेवादोष स्पष्ट रूप से प्रमाणित होता है, इसी आधार पर अप्रार्थी गौण रूप से आक्षेप उठाता है कि चाबी खो गई तो चाबियां नही बनवाई, वाहन को सुरक्षित स्थान पर नही रखा गया, यह सभी औपचारिक आक्षेप है। वाहन चालक वाहन को अपने काम में लेता है तो उस वाहन को सामान्य रूप से दुकान के सामने ही खडा करते है ऐसे स्थान पर न तो कोई सुरक्षित जगह होती है और ना ही कोई पार्किग जगह होती है। परन्तु फिर भी अगर चोरी हो जाती है तो इस संभावना और आंशका के लिये ही तो पालिसी करवाई जाती है, वरणा तो पालिसी करवाने की आवश्यकता ही क्या है? इस स्थिति में उपरोक्त विश्लेषण, विवेचन से यह स्पष्ट है कि गलती, लापरवाही,उपेक्षा अप्रार्थी से हुई है न की परिवादी से। परिणामतः उपरोक्तानुसार अप्रार्थी का सेवादोष पूर्ण प्रमाणित है। अप्रार्थी द्वारा प्रस्तुत न्यायिक दृष्टान्तों ं 01. सिविल अपील सं. 3055/08 ओरियन्टल इंशोरेनस कंपनी लि0 बनाम जेहरूनिसा और अन्य आदेश दिनांक 29.04.08, 02. प्रथम अपील सं. 321/05 राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, नई देहली न्यू इंडिया एश्योरेन्स कंपनी लि0 बनाम त्रिलोचन जने आदेश दिनांक 09.12.09, 03. राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, नई देहली रीविजन पीटीशन सं0 4762/12 सुरेन्द्र बनाम नेशनल इंशारेन्स कं0 लि0 आदेश दिनांक 18.01.13 के तथ्यो एवं परिस्थितियो में और वर्तमान प्रकरण के तथ्यो एवं परिस्थितियांे में अन्तर होने से कोई प्रकाश प्राप्त नहीं होता है।
03. अनुतोष ?
परिवादी का परिवाद अप्रार्थी के खिलाफ आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादी मुकेश अग्रवाल का परिवाद अप्रार्थी के खिलाफ आंशिक रूप से स्वीकार किया जाकर आदेश दिया जाता है कि:-
01. अप्रार्थी परिवादी को बीमा क्लेम की राशि 20,000/- रूपये अदा करे।
02. अप्रार्थी, परिवादी को मानसिक संताप की राश्शि 5,000/- रूपये अक्षरे पांच हजार रूपये, परिवाद खर्च 2,000/- रूपये, अक्षरे दो हजार रूपये अदा करे।
03. अप्रार्थी आदेश की पालना निर्णय की दिनांक से दो माह के अंदर करे। अन्यथा अप्रार्थी 20,000/- रूपये पर निर्णय की दिनांक से ता अदायगी संपूर्ण भुगतान 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से ब्याज भी अदा करेगा।
(हेमलता भार्गव) (नंद लाल शर्मा)
सदस्या अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषश्
मंच,कोटा। मंच, कोटा।
निर्णय आज दिनंाक 21.07.15 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
सदस्या अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष
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