Uttar Pradesh

Ghazipur

CC/294/2014

Shyam Naraian Prasad - Complainant(s)

Versus

Branch Manager, State Bank of India - Opp.Party(s)

Shri Murli Manohar Sinha

09 Sep 2015

ORDER

DISTRICT CONSUMER DISPUTES REDRESSAL FORUM GHAZIPUR
COLLECTORATE COMPOUND, DISTRICT- GHAZIPUR
 
Complaint Case No. CC/294/2014
 
1. Shyam Naraian Prasad
S/O Late Mahabeer Prasad, Kidwain Nagar, Ward No-5, Jangipur, Post- Jangipur
Ghazipur
...........Complainant(s)
Versus
1. Branch Manager, State Bank of India
K.U.M.S. Jangipur
Ghazipur
2. Shravan Kumar Sharaf
S/O Badri PRasad Shraf, House No- 166, Sector No- 15
Faridabad
Haryana
3. Sarvan Kumar Sharaf Proprietor Compaq Home Private Limited
Khasara No- 111, Raipur Industrial Area Bhagwanpur Rurki
Haridwar
Uttaranchal
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 JUDGES HONOURABLE MR Ram Prakash Verma PRESIDENT
 HON'BLE MR. Manoj Kumar MEMBER
 
For the Complainant:Shri Murli Manohar Sinha, Advocate
For the Opp. Party: Shri Dayashankar Singh Kushwaha, Advocate
 Shri Liyakat Ali, Advocate
 Shri Liyakat Ali, Advocate
ORDER

परिवादी ने यह परिवाद इस आशय से योजित किया है कि विपक्षी सं02 व 3 से उसे रू0 328778-00/- तथा दो अदद फार्म-38 वापस दिलाने के साथ ही उसे इस धनराशि पर 18 प्रतिशत ब्‍याज दिलाया जाय। परिवादी ने यह भी चाहा है कि उसे रोजगार में बाधा के लिए रू0 50000/- प्रतिकर तथा वाद व्‍यय के रूप में रू0 5000/- दिलाये जायॅ।

 

          परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का संक्षेप में कथन इस प्रकार है कि परिवादी स्‍वरोजगार तथा जीविकोपार्जन के लिए कस्‍बा जंगीपुर में ‘’मॉ वैष्‍णों पत्‍त्‍ल भण्‍डार’’ नाम से दूकान करता है तथा दूकान की आमदनी के माध्‍यम से वह अपने तथा अपने परिवार का जीविकोपार्जन करता है। विपक्षी सं02 व 3 एक ही हैं तथा विपक्षी सं03 व्‍यवसाय स्‍थल है। परिवादी ने अपने व्‍यवसाय के लिए विपक्षी सं0 2 व 3 को रू0 600000/- विपक्षी नं01 के माध्‍यम से आर0टी0जी0एस0 के जरिये भेजे, जिसके बदले में विपक्षी सं0 2 व 3 ने सामान की आपूर्ति करके विश्‍वास जमाया ।परिवादी ने टेलीफोन करके विपक्षी सं02 व 3 से कुछ और सामान भेजने को कहा, तो उन्‍होंने दि0 21-05-14 को रू0 328778/- की मॉग की जिसे परिवादी ने दि0 21-05-14 को विपक्षी सं01 के माध्‍यम से आर0टी0जी0एस0 के जरिये उक्‍त धनराशि भेजवायी। इस धनराशि के लिए परिवादी ने विपक्षी सं01 को उक्‍त धनराशि का चेक सं0 181679 दिया, जिसके बावत विपक्षी सं01 ने परिवादी के खाते से निकासी की। विपक्षी सं0 2व 3 के मॉंगे जाने पर परिवादी ने वाणिज्य कर विभाग गाजीपुर से जारी दो अदद फार्म-38 (रोड परमिट)भेजे, उक्‍त धनराशि भेजे जाने के बावजूद, विपक्षी सं02 व 3 ने माल नहीं भेजा, तो परिवादी ने मोबाइल के जरिये विपक्षी सं02 व 3 से बात की, तो उन्‍होंने यह स्‍वीकार किया परिवादी द्वारा कि भेजा गया धन उन्‍हें प्राप्‍त हो गया है लेकिन कच्‍चा माल के अभाव में माल तैयार नहीं हो पा रहा है और वे कुछ दिनों में सामान भेज देंगे। कुछ समय व्‍यतीत होने के उपरांत विपक्षी सं02 व 3 से टेलीफोन पर परिवादी ने बात करना चाहा तो परिवादी का फोन काट देते थे अत: परिवादी को संदेह हुआ। विपक्षी सं02 व 3 की सूचना न मिलने पर परिवादी व्‍यक्तिगत‍ रूप से उनके कार्यस्‍थल पर गया जहॉ उनकी फैक्‍ट्री बंद मिली। स्‍थानीय लोंगो से विपक्षी सं02 के निवास का पता चला। परिवादी ने पंजीकृत डाक से विपक्षी सं02 व 3 को विधिक नोटिस दिया, लेकिन उन्‍होंने कोई जवाब नहीं दिया। विपक्षी सं02 व 3 का यह कृत्‍य अनफेयर ट्रेड प्रेक्टिस तथा सेवा में कमी है।

 

     विपक्षी सं01 ने अपने लिखित कथन में कहा है कि उसे अनावश्‍यक रूप से पक्षकार बनाया गया है। विपक्षी सं01 किसी व्‍यक्ति के चेक या किसी प्रकार का अन्‍तरण कानून के अन्‍तर्गत करता है, उसने बैंक के नियमों के अनुसार ही धनराशि का अन्‍तरण किया था। परिवादी तथा विपक्षी सं02 व 3 के बीच सामान की आपूर्ति का विवाद है। इसका विपक्षी बैंक से कोई सबन्‍ध नहीं है। परिवादी को विपक्षी सं01 को पक्षकार बनाने का अधिकार नहीं है। स्‍वयं परिवादी ने इस आशय का कथन किया है कि उसने विपक्षी सं01 को औपचारिक पक्षकार बनाया है। उससे उसे कोई शिकायत नहीं है तथा उससे किसी अनुतोष की भी मॉंग नहीं है। परिवादी ने विपक्षी बैंक को पक्षकार बनाकर बैंक के कार्यों में बाधा उत्‍पन्‍न किया है इसलिए उससे विपक्षी बैंक को रू0 5000/- प्रतिकर दिलाया जाय।

         

          नोटिस भेजने के उपरांत विपक्षी सं02 व 3 की ओर से उत्‍तर प्रस्‍तुत करनेके लिए समय दिये जाने हेतु प्रार्थना पत्र जरिये अधिवक्‍ता प्रस्‍तुत किया गया,  लेकिन बाद में उनकी ओर से कोई उपस्थित नहीं आया। ऐसी स्थिति में विपक्षी सं02 व3 के विरुद्ध एक पक्षीय सुनवाई की गयी ।

 

          परिवादी श्‍याम नारायण प्रसाद ने परिवाद पत्र में किये गये कथनों के समर्थन में अपना शपथ पत्र प्रस्‍तुत किया है और साक्ष्‍य में अभिलेख कागज सं0 8ग व 9ग प्रस्‍तुत किये हैं। परिवादी की ओर से लिखित बहस 18ग भी प्रस्‍तुत की गयी है।

 

          विपक्षी सं01 की ओर से साक्ष्‍य में कागज सं0 14ग प्रस्‍तुत करने के साथ ही लिखित बहस कागज सं0 17ग प्रस्‍तुत की गयी है।

 

          परिवादी तथा विपक्षी सं01 के विद्वान अधिवक्‍ता गण को सुना गया। विपक्षी सं02 व 3 की ओर से न तो लिखित कथन प्रस्‍तुत किया गया है और न उनकी ओर से कोई लिखित बहस प्रस्तुत की गयी है और न कोई मौखिक बहस करने हेतु उपस्थित हुआ। ऐसी स्थिति में परिवाद पत्र, लिखित कथन, साक्ष्‍य तथा लिखित बहस का परिशीलन किया गया।

 

          परिवादी के अनुसार वह स्‍वरोजगार तथा परिवार के पालन हेतु कस्‍बा जंगीपुर में ‘’मॉ वैष्‍णों पत्‍तल भण्‍डार’’ नाम से दूकान करता है। उसका कहना है कि उसने अपने व्‍यवसाय के लिए विपक्षी सं0 2,3 से कुछ सामान मँगाया था और उनकी मॉंग पर उसने रू0 600000/- आर.टी.जी.एस. के जरिये उन्‍हें भेजे थे तो उन्होंने सामान भेजा था। विपक्षी सं0 2,3 से पुन: सामान भेजने के लिए कहने पर उन्‍होंने रू0 328778/- की मॉंग की थी, तो उसने उन्‍हें उक्‍त धनराशि भी आर.टी.जी.एस. के जरिये भेजी थी लेकिन विपक्षीगण ने उसे सामान नहीं भेजा इसलिए उनके द्वारा सेवा में त्रुटि व कमी की गई है। परिवादी की ओर से अपने तर्क के समर्थन में प्रथम अपील संख्‍या ए/2001/478 यू.पी. हैण्‍डलूम कारपोरेशन बनाम मे0 उमारामी वस्‍त्रालय में मा0 उ0प्र0 राज्‍य उपभोक्‍ता आयोग द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत का सहारा लिया गया है। उपरोक्‍त मामले में धनराशि प्राप्‍त करने के बावजूद वस्‍त्रों की आपूर्ति न किया जाना सेवा की त्रुटि एवं कमी मानी गयी है। मेरे विचार से उपरोक्‍त मामले में प्रतिपादित सिद्धांत यहॉ पूर्णरूपेण सुसंगत है। विपक्षी सं01 ने परिवादी द्वारा अपने माध्‍यम से विपक्षी सं0 2,3 को उपरोक्‍त धन भेजे जाने का खण्‍डन नहीं किया गया है। ऐसी स्थिति में इस बिन्‍दु पर परिवादी का कथन विश्‍वसनीय है। परिवादी स्‍वरोजगार हेतु विपक्षी सं0 2, 3 से सामान मंगा रहा था, इसलिए वह उपभोक्‍ता है और विपक्षी सं02, 3 सेवा प्रदाता हैं।

 

     उपरोक्‍त विवेचन से प्रकट है कि परिवादी द्वारा प्रेषित धनराशि प्राप्‍त करने के बावजूद विपक्षी सं0 2, 3 द्वारा सामान की आपूर्ति न किया जाना सेवा की कमी तथा त्रुटि है, ऐसी स्थिति में परिवादी विपक्षी सं0 2, 3 से 08% वार्षिक दर से ब्‍याज सहित रू0 328778/- वसूल पाने का अधिकारी है। परिवादी केा व्‍यवसाय में बाधा के लिए रू0 5000/- प्रतिकर तथा वाद व्‍यय के रूप में रू0 1000/- भी दिलाना उचित है। तद्नुसार विपक्षी सं02 व 3 के विरुद्ध परिवाद स्‍वीकार होने योग्‍य है।

                             आदेश

 

          परिवादी का परिवाद विपक्षी सं02 ता 3 के विरुद्ध स्‍वीकार किया जाता है। विपक्षी संख्‍या 2 तथा 3 को निर्देश दिया जाता है कि वे परिवाद योजित करने के दिनांक 31-12-2012 से वास्‍तविक अदायगी की दिनांक की अवधि के लिए 08% वार्षिक दर से साधारण ब्‍याज सहित रू0 328778/- ( तीन लाख अट्ठाइस हजार सात सौ अठहत्‍तर रूपये मात्र) परिवादी को भुगतान करे। विपक्षी सं02 व 3 को यह भी निर्देश दिया जाता है कि व्‍यवसाय की हानि के लिए रू0 5000/- प्रतिकर तथा वाद व्‍यय के रूप में रू0 1000/-(एक हजार रूपये मात्र) भी परिवादी को भुगतान करने के साथ ही उन्‍हें दो अदद फार्म-38 भी वापस करे ।

          इस निर्णय की एक-एक प्रति पक्षकारों को नि:शुल्‍क दी जाय। निर्णय आज खुले न्‍यायालय में, हस्‍ताक्षरित, दिनांकित कर, उद्घोषित किया गया।

 
 
[JUDGES HONOURABLE MR Ram Prakash Verma]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. Manoj Kumar]
MEMBER

Consumer Court Lawyer

Best Law Firm for all your Consumer Court related cases.

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!
5.0 (615)

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!

Experties

Consumer Court | Cheque Bounce | Civil Cases | Criminal Cases | Matrimonial Disputes

Phone Number

7982270319

Dedicated team of best lawyers for all your legal queries. Our lawyers can help you for you Consumer Court related cases at very affordable fee.