Harakchand filed a consumer case on 25 Jan 2016 against Branch Manager, State Bank Of Bikaner & Jaipur in the Kota Consumer Court. The case no is CC/318/2010 and the judgment uploaded on 27 Jan 2016.
हरक चन्द बनाम शाखा प्रबंधक, एस.बी.बी.जे. राजभवन रोड़, कोटा ।
परिवाद संख्या 318/10
25.01.2016 दोनों पक्षों को सुना जा चुका है। पत्रावली का अवलोकन किया गया।
परिवादी ने विपक्षी-बैंक का संक्षेप में यह सेवा-दोष बताया है कि उसने अपने खाता नं.-51028641309 में से मनोहर लाल अग्रवाल को चेक नं. 494236 तादादी 20000/-रूपये दिनांक 09.01.19 2000 दिया था। जिसे उसने 8 साल बाद तात्विक परिवर्तन करके 27.07.2000 8 की तारीख लगाकर प्रस्तुत कर दिया जो कि पूर्ण रूप से इनवेलिड था क्योंकि उसमें सन 2000 के बाद 8 अंक बढाया गया था फिर भी विपक्षी-बैंक ने लापरवाही करते हुये उस चेक को समाशोधन हेतु स्वीकार कर लिया तथा अपर्याप्त निधि का रिमार्क लगाकर लौटा दिया। मनोहर लाल ने विपक्षी-बैंक की लापरवाही का नाजायज फायदा उठाते हुये उसके विरूद्ध मुकदमा कर दिया जिसकी जानकारी होने पर विपक्षी-बेैंक को नोटिस भेजा गया लेकिन विपक्षी-बैंक ने कोई कार्यवाही नही की। विपक्षी-बैंक की लापरवाही व सेवा-देाष के कारण परिवादी को आर्थिक नुकसान के साथ-साथ मानसिक व शारीरिक पीड़ा हुई है।
विपक्षी-बैंक के जवाब का सार है कि मनोहर लाल अग्रवाल आवश्यक पक्षकार है जिसे पक्षकार नहीं बनाया गया है इसलिये परिवाद खारिज होने योग्य हेै। यह भी कहा गया है कि परिवादी का खाता 25.03.10 को बंद हो चुका है। न्यायालय द्वारा परिवादी को देाषी ठहराने के बाद बदनीयति पूर्वक झूंठा परिवाद पेश किया हैं। न्यायालय ने निर्णय दिनांक 07.07.10 में विपक्षी-बैंक की कोई गलती नहीं मानी है परिवादी ने चेक अनादरण के बारे में 11.02.08 को नोटिस मिलने के बावजूद कोई कार्यवाही नहीें की। दाण्डिक न्यायालय ने सभी तथ्य निर्णित कर दिये हैं उन्हीं तथ्यों पर परिवाद चलने योग्य नहीं है। विपक्षी-बैंक ने कोई लापरवाही नही की है, न ही सेवा में कोई कमी की है। नियमानुसार चेक अपर्याप्त निधि के आधार पर अनादरित किया गया है।
परिवादी ने साक्ष्य मंे अपने शपथ-पत्र के अलावा विवादित चेक, उसे वापस करने के ज्ञापन, विशिष्ट न्यायिक मजिस्टेªट (एन.आई.एक्ट प्रकरण) न्यायालय, कोटा द्वारा आपराधिक प्रकरण संख्या 1787/10 मनोहर लाल बनाम हरक चन्द जैन में पारित निर्णय दिनांक 07.07.10, विपक्षी को प्रेषित नोटिस आदि दस्तावेजात की प्रति प्रस्तुत की है। विपक्षी ने साक्ष्य में अरूण शर्मा- -शाखा प्रबंधक का शपथ-पत्र प्रस्तुत किया है।
हमने विचार किया।
यह विवाद रहित है कि परिवादी ने मनोहर लाल को विपक्षी-बैंक के खाते का चेक न.ं 494236 तादादी 20000/- रूपये दिया था, जिसे मनोहर लाल ने भुगतान हेतु पेश किया जो विपक्षी बेैंक ने अपर्याप्त निधि के आधार पर 29.01.08 को अनादरित करते हुये लौटा दिया ।
परिवादी का केस है कि विपक्षी-बैंक द्वारा वह चेक समाशोधन हेतु स्वीकार ही नहीं जा सकता था क्यांेकि उसमें सन 2000 के बाद 8 अंक बढाया गया था जिस कारण चेक इनवेलिड था। विपक्षी-बैंक ने इस पर गौर नहीं करके लापरवाही व सेवा में त्रूटि की है। जबकि विपक्षी का केस है कि उनके द्वारा नियमानुसार कार्यवाही की गई है, दाण्डिक न्यायालय ने चेक की तिथि में परिवर्तन संबंधी परिवादी के बचाव को स्वीकार नहीं किया है तथा विपक्षी-बैंक के विरूद्ध कोई टिप्पणी भी नहीं की है। परिवादी के खाते में 29.01.08 को पर्याप्तनिधि नहीं होने के कारण सही अनादरित किया गया है।
जहां तक दाण्डिक न्यायालय के निष्कर्ष का प्रश्न है वह चेक अनादरण के आपराधिक मामले पर है। प्रस्तुत मामले में हमें यह देखना है कि क्या चेक की तिथि में कोई तात्विक परिवर्तन था एवं इस आधार पर इनवेलिड होने से विपक्षी-बैंक द्वारा समाशोधन हेतु स्वीकार करके सेवा में कमी या लापरवाही की गई?
हम पाते हैं कि यदि एक क्षण के लिये कल्पना के तौर पर यह माना भी जावे कि चेक की तिथि में कोई परिवर्तन किया गया अर्थात कोई अंक बढ़ाया गया तो भी यह आपराधिक कृत्य ही है जिसके संबंध में सक्षम शिकायत होने पर विधि अनुसार सक्षम दाण्डिक न्यायालय द्वारा ही विचार कर मत व्यक्त किया जा सकता है। ऐसे विवाद के संबंध में इस मंच को सुनवाई का अधिकार नहीं है इसलिये परिवाद खारिज होने योग्य है।
अतः परिवाद खारिज किया जाता है।
आदेश खुले मंच में सुनाया गया। पत्रावली फैसल शुमार होकर रिकार्ड में जमा हो।
(हेमलता भार्गव) (महावीर तॅंवर) (भगवान दास)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
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