प्रकरण क्र.सी.सी./12/157
प्रस्तुती दिनाँक 26.04.2012
1. श्रीमती इंदु बहादुर जौजे स्व.श्री निखलेश बहादुर, उम्र 58 वर्ष,
2. मुदित बहादुर आ. स्व.श्री निखलेश बहादुर, उम्र 35 वर्ष,
3. रचित बहादुर आ. स्व.श्री निखलेश बहादुर,
सभी का निवास/पता-एस.एम.46, पद्मनाभपुर-दुर्ग, तह व जिला-दुर्ग (छ.ग.) - - - - परिवादीगण
विरूद्ध
1. मंडल प्रबंधक, नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमि., आकाश गंगा, सुपेला, भिलाई, तह व जिला-दुर्ग (छ.ग.)
2. जेनिंस इंडिया प्रायवेट लिमि., प्लाट नं.23, गोविंद मेंशन, न्यू जयतला रोड, आनंद पूर्ति सुपर बाजार के पास कामला, नागपुर (छ.ग.)
- - - - अनावेदकगण
आदेश
(आज दिनाँक 10 फरवरी 2015 को पारित)
श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष
परिवादीगण द्वारा अनावेदकगण से चिकित्सा बीमा अंतर्गत देय मृत्यु हो जाने पर देय 5,00,000रू. न प्रदान कर की गई सेवा में कमी के लिए शेष दावा राशि 3,00,000रू., मानसिक कष्ट क्षतिपूर्ति 50,000रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।
(2) प्रकरण मंे स्वीकृत तथ्य है कि अनावेदक क्र.1 के द्वारा अनावेदक क्र.2 के माध्यम से परिवादिनी के पति का चिकित्सा बीमा क्र.205205/48/08/3500000467 किया गया था, जिसकी अवधि दि. 31.03.2009 से दि.30.03.2010 तक थी।
(3) प्रकरण अनावेदक क्र.2 के विरूद्ध एकपक्षीय हैं।
परिवाद-
(4) परिवादीगण का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादिनी के पति ने अपने जीवन काल में अनावेदक क्र.2 के माध्यम से अनावेदक क्र.1 बीमा कंपनी से मेडिक्लेम पाॅलिसी क्र.205205/48/ 08/3500000467 अवधि दि.31.03.09 से दि.30.03.10 के लिए क्रय की थी, जिसके अनुसार बीमाधारक की आकस्मिक मृत्यु हो जाने पर बीमा राशि 5,00,000रू. अनावेदक क्र.1 के द्वारा देय थी। परिवादिनी के पति दिनंाक 27.05.09 में अपने कार्य से दिल्ली गए थे कि अचानक तबीयत खराब होने के कारण सर गंगाराम अस्पताल, राजेन्द्र नगर, दिल्ली में दिखाया, जहां चिकित्सक के द्वारा निखलेश बहादुर को भर्ती रख कर विभिन्न जांच दि.30.05.09 तक की गई, तथा कुछ दिनों के पश्चात उनकी मृत्यु हो गई। मृतक का ईलाज चिकित्सक के निर्देशानुसार कई अस्पतालों में कराया गया, जिसका बिल 6,54,412रू. हुआ, जिसे आवेदिका के द्वारा बीमा कंपनी को दिनंाक 13.07.09 को प्रदान किया गया था एवं दस्तावेज सहित क्लेम फार्म भरकर अनावेदक के कार्यालय में जमा करते हुए राशि की मांग की गई। अनावेदक के द्वारा परिवादिनी को 2,00,000रू. ही प्रदान किए गए जिसे आर्थिक स्थिती कमजोर होने से परिवादिनी के द्वारा ग्रहण कर लिया गया, जबकि परिवादिनी अनावेदक से 5,00,000रू. प्राप्त करने की अधिकारी थी, जिसे अनावेदक के द्वारा पूर्ण भुगतान न कर सेवा में कमी की गयी। अतः परिवादीगण को अनावेदकगण से शेष बीमा दावा राशि 3,00,000रू., मानसिक कष्ट की क्षतिपूर्ति हेतु 50,000रू. व वाद व्यय 5,000रू. दिलाया जावे।
जवाबदावाः-
(5) अनावेदक क्र.1 का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि बीमित व्यक्ति का बीमा पालिसी देने के पहले डाॅक्टरी परीक्षण नहीं हुआ था। बीमित व्यक्ति की मृत्यु दुर्घटनातमक नहीं थी। परिवाद स्वच्छ हाथों से प्रस्तुत नहीं हुआ, क्योंकि उन्होंने मूलभूत तथ्यों को छुपाया है। बीमित व्यक्ति को पूर्व में बीमारी थी, जिसे बीमित व्यक्ति ने बीमा लेते समय बताया नहीं, बीमित व्यक्ति की मृत्यु प्रमाण पत्र प्रस्तुत नहीं किया गया है। बीमा शर्तों के अनुसार बीमा दावा का निराकरण हुआ था यदि बीमा कंपनी दुर्भावना रखती तो परिवादी को 2,00,000रू. स्वीकृत नहीं किया जाता। इस प्रकार अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा किसी भी प्रकार से सेवा में निम्नता या व्यवसायिक कदाचरण नहीं किया गया है।
(6) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-
1. क्या परिवादीगण, अनावेदकगण से संपूर्ण चिकित्सा बीमा पाॅलिसी अंतर्गत देय शेष बीमा दावा राशि 3,00,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँ, अनावेदक क्र.1 से,
2. क्या परिवादीगण, अनावेदकगण से मानसिक परेशानी के एवज में 50,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँ, अनावेदक क्र.1 से,
3. अन्य सहायता एवं वाद व्यय? आदेशानुसार परिवाद स्वीकृत
निष्कर्ष के आधार
(7) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है।
फोरम का निष्कर्षः-
(8) निर्विवादित रूप से बीमित व्यक्ति द्वारा दो बार बीमा कराया गया था, पहला बीमा मेडिक्लेम संबंधित था तथा दूसरा बीमा उसी को आगे बढ़ते हुए संपूर्ण बीमा पालिसी कराई गई थी। एनेक्चर डी.5 के अनुसार बीमा राशि 5,00,000रू. की थी, जिसके अनुसार बीमा दावा राशि 2,00,000रू. का पास किया गया था। अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा इन दो लाख रूपये का बीमा दावा पास किया जाना इसी बात को सिद्ध करता है कि बीमा कंपनी ने बीमित व्यक्ति के बीमा दावा संबंधी प्रपत्र में कोई भी त्रुटियां नहीं पाई थी, जिससे कि जब सारे बिल पेश कर दिये गये तो बीमा राशि प्रदान क्यों नहीं की गई?
(9) पूर्व में ली गयी पालिसियों के तहत ऐसी कोई आपत्ति नहीं की गयी है कि बीमित व्यक्ति द्वारा किसी भी तथ्यों को छुपाया गया है, आज के आधुनिक युग में सभी इंद्राज कम्प्यूटर में अपडेट रहते हैं, जब अनावेदक बीमा कंपनी को इस बात का ज्ञान था कि बीमित व्यक्ति ने एक बीमा कराया है उसे और अब अधिक राशि देकर अन्य बिन्दुओं को समायोजित करते हुए प्रीमियम राशि बढ़ाकर बीमा राशि बढ़ाना चाहा है, तब प्रथमतः बीमा कंपनी को बीमित व्यक्ति द्वारा दिये गये पूर्व बीमा के विवरण का सूक्ष्म अध्ययन करना था और फिर नई पालिसी जिसे हम एक प्रकार से अपग्रेड पाॅलिसी भी कह सकते हैं, को प्रदान करने के पहले संपूर्ण तथ्यों का तथा पूर्व में जारी की गयी पाॅलिसी के बीमा प्रपत्र का सूक्ष्मता से अध्ययन करना था, परंतु यह खेद का विषय है कि किस प्रकार आज के व्यापारिक होड़ मे बीमा कंपनियां अपना व्यापार बढ़ाने के लिए येन-केन प्रकाणेन ग्राहकों का बीमा तो कर देती है, परंतु जब क्लेम देने की बारी आती है तो किसी अन्य संस्था को जांच पड़ताल के लिए आउटसोर्स कर देते हैं।
(10) यदि बीमा कंपनियां बीमा दावा देते समय ऐसी संस्थाओं को आउटसोर्स करते है, जैसा कि इस प्रकरण में जेनिक इंडिया टी.पी.ए. लिमिटेड को आउटसोर्स किया गया है तब ऐसी कार्यवाही बीमा पालिसी प्रदान करने के पहले क्यों नहीं करते हैं यह एक सामाजिक चेतना का विषय है। यदि हम एनेक्चर डी.6 का अवलोकन करें जो कि बीमित व्यक्ति के बीमा संबंधी प्रापोजल फार्म है तो उससे एक आश्चर्यजनक दुखद स्थिति सामने आती है, यह दस्तावेज स्वयं अनावेदक बीमा कंपनी ने अपने आवेदन पत्र दि.03.09.2014 के माध्यम से प्रस्तुत किया है, स्वाभाविक है कि प्रापोजल फार्म बीमा प्रदान करने का एक पुख्ता आधार रहता है जिसमें बीमा कंपनी को बीमित व्यक्ति से सभी जानकारियां प्राप्त करनी चाहिए, परंतु यदि हम एनेक्चर डी.6 प्रापोजल फार्म का अवलोकन करें तो उसमें उससे यह प्रदर्शित होता है कि उक्त प्रापोजल फार्म अत्याधिक असावधानीपूर्वक भरा गया है और अनुचित व्यापारिक प्रथा की पराकाष्ठा यही है कि उक्त प्रापोजल फार्म के पृष्ठ क्र.2 प्रापोजल फार्म में हस्ताक्षर भी नहीं है न ही तारीख डली है न ही स्थान बताया गया है और न ही काॅलम में दो साक्षीगण के पते एवं हस्ताक्षर हैं। जब यह पालिसी चिकित्सा संबंध भी थी तब उक्त तथ्यों का उल्लेख इस प्रापोजल फार्म भरते समय अनावेदक बीमा कंपनी को बीमित व्यक्ति द्वारा पूर्व में लिये गये मेडिक्लेम पालिसी के तथ्यों को अपने सिस्टम से या अपने कार्यालय के फाईल से देखकर जांच पड़ताल करनी थी। ऐसा तो बीमा कंपनी ने किया नहीं और जब बीमा दावा राशि देने की बारी आई तो यह बचाव लिया कि परिवादीगण ने मूलभूत तथ्यों को छुपाया है तथा बीमित व्यक्ति ने अपने पूर्व में बीमारी संबंधी चिकित्सा को छिपाया, जबकि नई पालिसी प्रदान करते समय बीमा कंपनी का यह कर्तव्य था कि बीमित व्यक्ति को बीमा शर्तें सही तरीके से समझाते उसकी स्वीकारोक्ति प्राप्त करते और फिर बीमा प्रापोजल फार्म भरवाते, परंतु बीमा प्रापोजल फार्म को प्रथम दृष्टया अवलोकन से यह सिद्ध हो जाता है कि उक्त प्रापोजल फार्म में यह स्पष्ट नहीं है कि बीमित व्यक्ति का मेडिकल चेकअप किया गया है या नहीं और यदि किया गया है तो किस चिकित्सक द्वारा किन दस्तावेजों के माध्मय से। इन परिस्थितियों में हम यही पाते हैं कि बीमा कंपनी ने परिवादी को नई पालिसी देते समय दिग्भ्रमित किया और उससे प्रीमियम की राशि तो प्राप्त किया, परंतु यह नहीं समझाया कि बीमा कंपनी द्वारा किन कारणों से एवं किन परिस्थितियों में बीमित राशि नहीं दी जा सकेगी। स्वाभाविक है कि यदि सही तरीके से बीमित व्यक्ति का मेडिकल चेकअप किया गया होता तो सही स्थिति सामने आती और तब बीमित व्यक्ति के पास विकल्प रहता कि वह एक्सक्लूजन क्लाॅज को देखते हुए नई बीमा पालिसी लेता या नही, परंतु यह साफ स्पष्ट होता है कि बीमा कंपनी ने व्यापार की होड़ में बीमित व्यक्ति को दिग्भ्रमित किया और बिना शर्तो को समझाये उसको अभिकथित पालिसी जारी कर दी, जबकि बीमा कंपनी के पास सारे तथ्य सामने थे, क्योंकि अनावेदक बीमा कंपनी के पास बीमित व्यक्ति की चिकित्सा जांच के प्रपत्र उपलब्ध थे अतः हम बीमा कंपनी को इस बिन्दु का लाभ नहीं दे सकते कि परिवादीगण ने पूर्व बीमारी को छुपाया। समस्त परिस्थितियों को जानने के बाद भी यदि अनावेदक बीमा कंपनी ने बीमा पाॅलिसी जारी की है तो अब वह बीमा दावा स्वीकार करने से मुकर नहीं सकता कि शर्तें के विपरीत बीमा दावा पेश है। इस स्थिति में पूर्ण बीमा राशि स्वीकृत नहीं करने के कारण अनावेदक बीमा कंपनी को प्रकरण की परिस्थितियों में अनुचित व्यापार प्रथा एवं सेवा में निम्नता का दोषी पाते हैं।
(11) एनेक्चर -28 से भी स्पष्ट होता है कि परिवादी द्वारा 2,00,000रू. का बीमा दावा राशि अण्डरप्रोटेस्ट प्राप्त किया गया है, जिसके पश्चात् एनेक्चर-29 द्वारा अनावेदक बीमा कंपनी को दि.30.10.2011 को अधिवक्ता मार्फत रजिस्टर्ड नोटिस दी गयी है। अतः अनावेदक बीमा कंपनी का तर्क कि प्रकरण समयावधि से बाह्य है को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
(12) यदि हम एनेक्चर डी.1 पूर्व की बीमा पालिसी का अवलोकन करें तो उसके पृष्ठ क्र.2.5 में प्रीएक्जेटिंग डिसीज़ के बारे में उल्लेख है, जिसमें ऐसी बीमारी जो कि बीमा व्यक्ति को पता है या पता नहीं है भी शामिल है अर्थात् बीमा कपंनी की इस शर्त के अनुसार एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी बनती है कि वह प्रापोजल फार्म भरते समय इस बात पर लिखित में बीमित व्यक्ति जानकारी दे कि बीमित व्यक्ति को यदि ऐसी बीमारी भी है जिससे उसे पता नहीं है तो भी उसे बीमा दावा नहीं मिलेगा यदि यह शर्त स्पष्ट रूप से समझाई जाती तो कोई भी व्यक्ति इतनी मोटी प्रीमियम की राशि अदा करने के पहले अनेको बार सोचेगा कि वह अपना पूर्ण उच्चस्तरी चिकित्सकीय जांच कराये और तब बीमा पालिसी लेने के लिए अग्रसर हो, परंतु अनावेदक बीमा कपंनी ने ऐसा कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की है जब इतनी दिग्भ्रमित शर्त रखी हुई है तो उसे बीमित व्यक्ति को ठीक से समझाई क्यों नहीं गई। वैसे भी इस प्रकरण की परिस्थितियां यह है कि बीमित व्यक्ति का पहले भी मेडिक्लेम था और जब उसने अपने पालिसी को आगे बढ़ाया तो महत्वपूर्ण तथ्यों छुपाने का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता है और इस स्थिति में यह सिद्ध होता है कि बीमा कंपनी ने संपूर्ण तथ्यों की जानकारी रखते हुए बीमा पालिसी नं.285205/48/08/3500000467 जारी की, जिसके बारे में अनावेदक बीमा कपंनी ने कहीं भी यह स्पष्ट नहीं किया कि इस बीमा पालिसी में जो आॅब्लिक के बाद अंक दर्शाये गये है उनका विस्तृत विवरण या मायने क्या है? अतः हम किसी भी परिस्थिति में यह निष्कर्षित करने का आधार नहीं पाते हैं कि बीमा कंपनी ने जवाबदावा में जो बचाव लिया है वह स्वीकार योग्य है।
(13) यहां यह उल्लेख करना आवश्यक है कि बीमा कंपनियों की यह एक बड़ी जिम्मेदारी रहती है कि जब अपने ग्राहकों से उसकी मेहनत की गाढ़ी कमाई की मोटी रकम प्रीमियम के रूप में प्राप्त कर अपना व्यापार आगे बढ़ाते है तथा इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि वह बीमित व्यक्ति का प्रापोजल फार्म पुख्ता रूप से भरवाये और उस बीमित व्यक्ति का मेडिकल परीक्षण उच्च स्तरीय चिकित्सा संस्था से करवा कर बीमा पालिसी प्रदान करने के पहले उन्हीं संस्था के मार्फत जांच करवाये जिन संस्थाओं को वह बीमा दावा प्रकरण प्रस्तुत होने पर कार्यवाही हेतु प्रकरण देते हैं।
(14) यदि हम अभिकथित पालिसी के नाम का भी अवलोकन करें तो उसका नाम संपूर्ण सुरक्षा बीमा है, अतः इस स्थिति में जब कि बीमा कंपनी ने यह सिद्ध नहीं किया कि उन्होंने बीमित व्यक्ति को संपूर्ण नियम और शर्त बताकर लिखित में स्वीकारोक्ति दी थी तब यही निष्कर्षित किया जायेगा कि अनावेदक बीमा कपंनी ने अनुचित व्यापारिक प्रथा के चलते बीमित व्यक्ति को दिग्भ्रमित किया, क्योंकि उस नाम से ग्राहक सम्पूर्ण सुरक्षा हेतु ही बीमा करने का अर्थ निकालेगा। सही ढंग से प्रापोजल फार्म नहीं भरवाया गया और फिर बीमा दावा प्रस्तुत होने पर विभिन्न बचाव लिया गया जो कि स्वीकार योग्य नहीं माना जा सकता है।
(15) उपरोक्त स्थिति में यदि अनावेदक बीमा कंपनी ने परिवादीगण का बीमा दावा स्वीकार नहीं किया तो निश्चित तौर पर वह सेवा में निम्नता एवं अनुचित व्यापारिक प्रथा के दोषी पाये जाते हैं और हम यह निष्कर्षित करते हैं कि जब कोई व्यक्ति अपना बीमा कराता है तो वह इसी आशय से बीमा करता है कि उसके नहीं रहने पर उसके इलाज का खर्च और इलाज के खर्चो के अतिरिक्त भार से परिवारजन को व्यथित नहीं होना पड़ेगा और बीमा दावा राशि उसके परिवार को प्राप्त होगी, जिससे आर्थिक सहायता मिल सकेगी, जिसके लिए बीमित व्यक्ति अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई की मोटी रकम प्रीमियम के रूप में जमा करते रहता है और विपरीत परिस्थिति में जब बीमा कंपनी मृतक के परिवार को इस प्रकार के कदाचरण कर मामले मुकदमें में उलझाते तो निश्चित रूप से उन्हें मानसिक वेदना होना स्वाभाविक है जिसके एवज में यदि परिवादीगण ने 50,000रू. की मांग की है तो उसे अत्याधिक नहीं माना जा सकता है।
(16) निर्विवादित रूप से बीमा राशि 5,00,000रू. थी और 2,00,000रू. बीमा कंपनी द्वारा स्वीकार किया जा चुका है अतः प्रकरण की परिस्थितियों को देखते हुए हम अनावेदक क्र.1 को सेवा में निम्नता एवं अनुचित व्यापारिक प्रथा का दोषी पाते हुए परिवादीगण का परिवाद अनावेदक क्र.1 के विरूद्ध स्वीकार करते हैं, चूंकि बीमित व्यक्ति का बीमा अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा किया गया है इसलिए हम यह प्रकरण अनावेदक क्र.2 के विरूद्ध स्वीकार करने का कोई आधार नहीं पाते हैं अतः अनावेदक क्र.2 के विरूद्ध खारिज करते हैं।
(17) अतः उपरोक्त संपूर्ण विवेचना के आधार पर हम परिवादीगण द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार करते है और यह आदेश देते हैं कि अनावेदक क्र.1, परिवादीगण को आदेश दिनांक से एक माह की अवधि के भीतर निम्नानुसार राशि अदा करे:-
(अ) अनावेदक क्र.1, परिवादीगण को बीमा दावा राशि 3,00,000रू. (तीन लाख रूपये) अदा करे।
(ब) अनावेदक क्र.1 द्वारा निर्धारित समयावधि के भीतर उपरोक्त राशि का भुगतान परिवादीगण को नहीं किये जाने पर अनावेदक क्र.1, परिवादीगण को आदेश दिनांक से भुगतान दिनांक तक 09 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज अदा करने के लिए उत्तरदायी होगा।
(स) अनावेदक क्र.1, परिवादीगण को मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में 50,000रू. (पचास हजार रूपये) अदा करेे।
(द) अनावेदक क्र.1, परिवादीगण को वाद व्यय के रूप में 5,000रू. (पांच हजार रूपये) भी अदा करे।