प्रकरण क्र.सी.सी./13/181
प्रस्तुती दिनाँक 19.06.2013
1. श्रीमती सुलोचना बाई साहू, आयु 52 वर्ष, ध.प.स्व प्रहलाद कुमार साहू, पेशा गृहणी,
2. वानिज कुमार साहू आयु-35 वर्ष,
दोनों निवासी-करेला, तह. पाटन, थाना रानीतराई, जिला-दुर्ग (छ.ग.)
- - - - परिवादीगण
विरूद्ध
1. शाखा प्रबंधक, शाखा कार्यालय-जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक मर्यादित, शाखा जामगांव(आर.), तह. पाटन, जिला-दुर्ग (छ.ग.)
2. फ्यूचर जनरली इंडिया इंश्यारेंस कंपनी लिमि., शाखा कर्यालय विवेकानंद आश्रम के पास व घुप्पड़ पेट्रोल पंप के पास, जी.ई.रोड, रायपुर, तह. व जिला-रायपुर (छ.ग.)
- - - - अनावेदकगण
आदेश
(आज दिनाँक 27 फरवरी 2015 को पारित)
श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष
परिवादीगण द्वारा अनावेदकगण से जी.पी.ए.बीमा पाॅलिसी अंतर्गत देय बीमा राशि 5,00,000रू. मय ब्याज, मानसिक कष्ट हेतु 10,000रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।
(2) प्रकरण मंे स्वीकृत तथ्य है कि अनावेदक क्र.1 के माध्यम से अनावेदक क्र.2 द्वारा परिवादी के पति का अभिकथित बीमा किया गया था।
परिवाद-
(3) परिवादीगण का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादिनी क्र.1 के पति एवं परिवादी क्र.2 के पिता स्व.प्रहलाद कुमार साहू जो कि एक कृषक थे तथा जिनका अनावेदक क्र.1 के माध्यम से अनावेदक क्र.2 बीमा कंपनी से जी.पी.ए. बीमा पाॅलिसी अंतर्गत बीमा किया गया था। मृतक बीमाधारी दिनंाक 26.01.13 को अपने पुत्र हेतु लड़की देखने ग्राम-नवांगांव गया हुआ था, जहाँ से वापस आते समय रात्रि 3 बजे ग्राम-करेला खार के पास प्रहलाद कुमार की हत्या कर दी गई फलस्वरूप बीमाधारी की मृत्यु दिनंाक 27.01.13 को हो गई, जिसके उपरांत परिवादीगण के द्वारा बीमा कंपनी के समक्ष क्लेम फार्म सहित मय दस्तावेज जमा किया गया, परंतु अनावेदक बीमा कंपनी के द्वारा दि.09.04.13 को पत्र के माध्यम से परिवादीगण को यह सूचना प्रदान की गई कि मृतक घटना के समय नशे के प्रभाव में था तथा नशा किए जाने का उल्लेख होने कारण दावा आवेदन को निरस्त कर दिया गया है। इस प्रकार अनावेदकगण द्वारा परिवादीगण को जी.पी.ए. बीमा पाॅलिसी अंतर्गत दुर्घटनात्मक मृत्यु पर देय बीमा राशि न प्रदान कर सेवा में कमी की है। अतः परिवादीगण को अनावेदकगण से बीमा राशि 5,00,000रू. मय 9 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज एवं मानसिक कष्ट क्षतिपूर्ति हेतु 10,000रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाया जावे।
जवाबदावाः-
(4) अनावेदक क्र.1 का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि आवेदिका क्र.1 के पति स्व.श्री प्रहलाद कुमार साहू का सामूहिक दुर्घटना बीमा अनावेदक क्र.1 के द्वारा किया गया था और साथ ही दावा संबंधी कार्यवाही की गई थी। बीमाधारी की मृत्यु दि.27.01.13 को हो गई थी, जिनका दुर्घटना दावा अनावेदक क्र.2 द्वारा दि.09.04.13 को निरस्त कर दिया गया था, जिसके लिए अनावेदक क्र.1 उत्तरदायी नहीं है। अतः अनावेदक क्र.1 के विरूद्ध संस्थित यह परिवाद निरस्त किया जावे।
(5) अनावेदक क्र.2 का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि इस फोरम को दावा सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है। परिवादी ने सही तथ्य प्रस्तुत नहीं किये हैं, परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है और न ही यह विवाद उपभोक्ता विवाद है, मृतक अल्कोहल के इन्फ्लूऐंस में था, इसलिए बीमा पालिसी की शर्तों के अनुसार यदि अनावेदक ने दावा खारिज किया है तो उसे सेवा में निम्नता नहीं माना जा सकता है। इसी प्रकार दुर्घटना की सूचना बीमा शर्त के अनुसार समय से नहीं दी गई थी, अतः यदि अनावेदक बीमा कपंनी ने बीमा दावा खारिज किया है तो वह शर्तों के अनुसार ही किया है, फलस्वरूप परिवादी के विरूद्ध अनावेदक ने सेवा में निम्नता नहीं की है।
(6) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-
1. क्या परिवादीगण, अनावेदक क्र.2 से जी.पी.ए बीमा पाॅलिसी अंतर्गत देय बीमा राशि 5,00,000रू. मय ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँ
2. क्या परिवादीगण, अनावेदक क्र.2 से मानसिक परेशानी के एवज में 10,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँ
3. अन्य सहायता एवं वाद व्यय? आदेशानुसार
परिवाद खारिज
निष्कर्ष के आधार
(7) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है।
फोरम का निष्कर्षः-
(8) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह पाते है कि बीमित व्यक्ति का बीमा समूह जनता दुर्घटना बीमा के अंतर्गत अनावेदक क्र.2 द्वारा किया गया था, मृतक की हत्या दि.27.01.2013 को कर दी गई थी, तब परिवादी द्वारा बीमा दावा प्रस्तुत किया गया जो कि अनावेदक क्र.2 द्वारा निरस्त कर दिया गया, इस आधार पर की घटना दिनांक को मृतक नशे के प्रभाव में था।
(9) एनेक्चर-8 अनावेदक क्र.2 द्वारा लिखा गया दस्तावेज दि.05.04.2013 है, जिसमें यह उल्लेखित है कि घटना के समय मृतक शराब के नशे में वाहन चला रहा था, उक्त स्थिति का आधार एनेक्चर-3 पोस्टमार्टम रिपोर्ट है, जिसमें अल्कोहल की स्मेल होने का उल्लेख है, मात्र अल्कोहल की स्मेल होने से अल्कोहल इन्फ्लूऐंस में होना अभिनिर्धारित नहीं किया जा सकता। अनावेदकगण का यह कृत्य था कि वे सिद्ध करते कि नशे का प्रभाव किस प्रकृति का था, जिसे अनावेदक क्र.2 द्वारा सिद्ध नहीं किया गया है और यह आधार ले लिया गया है कि मात्र मृतक नशे के इन्फ्लूऐंस में था, अतः अल्कोहल के इन्फ्लूऐंस के आधार पर दावा खारिज किया गया तो निश्चित तौर पर अनावेदक क्र.2 द्वारा सेवा में निम्नता की गई है।
(10) अनावेदक क्र.2 द्वारा यह भी बचाव लिया गया है कि घटना के तुरंत बाद बीमा कंपनी को सूचित नहीं किया गया, परंतु परिवादी का तर्क है कि एक अनपढ़ और ग्रामीण महिला है, इस स्थिति में यह नहीं कहा जा सकता कि देरी के आधार पर परिवादी का दावा खारिज किये जाने योग्य है, उस स्थिति में भी जब कि बीमित व्यक्ति का समूह दुर्घटना बीमा था और अनावेदक क्र.1 का तर्क है कि दावा संबंधी कार्यवाही की गई थी अर्थात् बीमा दावा अनावेदक क्र.1 के मार्फत अनावेदक क्र.2 को दिया गया था, इन परिस्थतियों में थोड़ी बहुत देरी होना स्वभाविक है और इस आधार पर यदि अनावेदक बीमा कंपनी ने दावा खारिज किया है तो निश्चित रूप से सेवा में निम्नता माना जावेगा और इन परिस्थितियों में परिवादी को मानसिक वेदना होना स्वभाविक है, जिसके एवज में परिवादी ने यदि 10,000रू. की राशि की मांग की है तो उसे अत्याधिक नहीं कहा जा सकता है।
(11) अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा बिना किसी उचित कारण के परिवादी का बीमा दावा खारिज कर दिया, जिसके कारण परिवादी को मानसिक वेदना होना स्वभाविक है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति अपना बीमा इसी आशय से कराता है कि समय पड़ने पर उसके परिवार को आर्थिक परेशानी ना उठानी पड़े। यह एक सामाजिक चेतना का विषय है कि किस प्रकार बीमा कंपनी ग्राहकों को बीमा पालिसी देकर अपना व्यापार तो बढ़ा लेती हैं, परंतु जब क्लेम देने का अवसर आता है तो गलत आधारों पर बिना दस्तावेजों का सूक्ष्मता से अध्ययन किये बीमा दावा खारिज कर देती हंै, जैसा कि इस प्रकरण में हुआ है। अनावेदक ने अपने जवाबदावा में क्षेत्राधिकार और वाद कारण संबंधी असत्य बचाव लिया है, अनावेदक ने यह भी असत्य बचाव लिया है कि परिवादी उपभोक्ता ही नहीं है यह विवाद उपभोक्ता विवाद की श्रेणी में नहीं आता है एवं परिवादी का शपथ पत्र औपचारिक है, उसने कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की है, जबकि स्वयं अनावेदक ने अपने द्वारा लिये गये बचाव को सुदृढ़ साक्ष्य से सिद्ध नहीं किया है।
(12) उपरोक्त स्थिति में हम यह निष्कर्षित करते है कि अनावेदक क्र.2 ने परिवादी का बीमा दावा खारिज कर निश्चित तौर से सेवा निम्नता एवं व्यवसायिक कदाचरण किया है।
(13) उपरोक्त परिस्थितियों में हम परिवादीगण को उसके द्वारा न्यायदृष्टांत:-
(1) दी ओरियेंटल इंश्योरेंस कंपनी लि. विरूद्ध श्रीमती रैनी बाई 2007 (1) सी.जी.एल.जे. 5
(2) माया देवी विरूद्ध लाईफ इंश्योरेंस कारपोरेशन आफ इंडिया प्प्प् (2008) सी.पी.जे. 120 (एन.सी.)
(3) नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड विरूद्ध तिगाला लक्ष्मी एवं अन्य प्प् (2012) सी.पी.जे. 16 (एन.सी.)
का लाभ देना उचित पाते हैं।
(14) अनावेदक क्र.1 के विरूद्ध हम सेवा में निम्नता कारित होना नहीं पाते हैं, अतः अनावेदक क्र.1 के संबंध में दावा खारिज करते हैं।
(15) अतः उपरोक्त संपूर्ण विवेचना के आधार पर हम परिवादीगण द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार करते है और यह आदेश देते हैं कि अनावेदक क्र.2, परिवादीगण को आदेश दिनांक से एक माह की अवधि के भीतर निम्नानुसार राशि अदा करे:-
(अ) अनावेदक 2, परिवादिनी को बीमा दावा राशि 5,00,000रू. (पांच लाख रूपये) अदा करे।
(ब) अनावेदक क्र.2 द्वारा निर्धारित समयावधि के भीतर उपरोक्त राशि का भुगतान परिवादीगण को नहीं किये जाने पर अनावेदक, परिवादीगण को आदेश दिनांक से भुगतान दिनांक तक 09 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज अदा करने के लिए उत्तरदायी होगा।
(स) अनावेदक क्र.2, परिवादीगण को मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में 10,000रू. (दस हजार रूपये) अदा करेे।
(द) अनावेदक क्र.2, परिवादीगण को वाद व्यय के रूप में 5,000रू. (पांच हजार रूपये) भी अदा करे।
(इ) उपरोक्त राशि अनावेदक क्र.2 द्वारा अदा किये जाने पर, परिवादिनी को 1,00,000रू. (एक लाख रूपये) नगद एवं शेष राशि उनकी पसंद अनुसार किसी राष्ट्रीकृत बैंक में 3 वर्ष के लिए सावधि खाते में जमा की जावे। जिसमें इस बात का निर्देश हो कि बिना फोरम की अनुमति के समय पूर्व भुगतान न किया जाये।