प्रकरण क्र.सी.सी./13/137
प्रस्तुती दिनाँक 12.06.2013
अनुराग ताम्रकार आ. श्री होरी लाल ताम्रकार, आयु-38 वर्ष, निवासी- वार्ड नं.24 मकान नं.46 तमेरपारा, काशीराम चैक, दुर्ग (छ.ग.) - - - - परिवादी
विरूद्ध
शाखा प्रबंधक, एच.डी.एफ.सी. बैंक, गिरीराज बिल्डिंग, स्टेशन रोड, ढिल्लन नर्सिंग होम के सामने, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.)
- - - - अनावेदक
आदेश
(आज दिनाँक 19 फरवरी 2015 को पारित)
श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष
परिवादी द्वारा अनावेदक से क्रेडिट कार्ड से की गई खरीददारी पर ब्याज अधिरोपित कर राशि वसूल की गई कुल राशि लगभग 2,00,000रू., वाद व्यय मय ब्याज व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।
(2) प्रकरण मंे स्वीकृत तथ्य है कि अनावेदक के द्वारा परिवादी को क्रेडिट कार्ड जारी किया गया था।
परिवाद-
(3) परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी का खाता अनावेदक बैंक में है तथा अनावेदक के द्वारा परिवादी के अनुरोध पर उसे एक क्रेडिट कार्ड क्र.5243681700104972 जारी किया गया था। क्रेडिट कार्ड जारी करते समय परिवादी को यह बताया गया था कि उक्त कार्ड पर वार्षिक फीस ली जावेगी तथा क्रेडिट कार्ड के माध्यम से खारीददारी करनें पर बैंक द्वारा उसे विशेष छूट प्रदान की जावेगी तथा क्रेडिट कार्ड से खरीदी गई राशि के अनुरूप राशि परिवादी के खाते से समायोजित कर ली जावेगी यदि परिवादी के खाते में अपर्याप्त राशि होगी तब परिवादी के द्वारा उपयोग की गई राशि पर अनावेदक बैंक द्वारा ब्याज लिया जावेगा। परिवादी के द्वारा कार्ड प्राप्ति के उपरांत से विभिन्न दिनंाकों पर कुल 31,855.07रू. ब्याज अधिरोपित कर काटे गए, इसके अलावा भी अन्य महीनों में लगभग 2,00,000रू. की राशि अधिरोपित की गई, जिसका विवरण अनावेदक के द्वारा परिवादी को उपलब्ध नहीं कराया गया। परिवादी द्वारा अपने खाते मे जमा राशि के अनुरूप ही खरीददारी की गई थी नियमानुसार अनावेदक को तत्काल क्रेडिट कार्ड से उपयोग की गई राशि खाते से आहरित कर लेना थी, परंतु अनावेदक के द्वारा ऐसा न कर क्रय की गई राशि पर ब्याज अधिरोपित करते रहे तथा ब्याज राशि को समय-समय पर आवेदक के खाते से आहरित करते रहे। आवेदक के द्वारा बैंक से कभी भी ऋण प्राप्त नहीं किया गया, परंतु अनावेदक के द्वारा क्रेडिट कार्ड से की गई खरीददारी पर ब्याज अधिरोपित कर ब्याज राशि परिवादी के खाते से आहरित करते रहे। अनावेदक का उपरोक्त परिवादी के प्रति व्यवसायिक दुराचरण करते हुए सेवा मे कमी की श्रेणी में आता है। अतः परिवादी को अनावेदक से कुल मूल्यांकित 2,00,000रू. व वाद व्यय 10,000रू. मय ब्याज दिलाया जावे।
जवाबदावाः-
(4) अनावेदक का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि दावा असत्य आधारों पर प्रस्तुत किया गया है। परिवादी के पास दावा प्रस्तुत करने का कोई वाद कारण नहीं है, क्योंकि जो भी कार्यवाही और राशि की गणना की गई है वह क्रेडिट कार्ड से संबंधित नियम और शर्तो के अनुसार की गई है। इस प्रकार अनावेदक द्वारा किसी भी प्रकार से सेवा में निम्नता एवं व्यवसायिक दुराचरण नहीं किया गया है, फलस्वरूप दावा खारिज किया जावे।
(5) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-
1. क्या परिवादी, अनावेदक से क्रेडिट कार्ड से की गई खरीददारी की राशि पर उसके खाते से आहरित की गई ब्याज राशि 2,00,000रू. मय ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँ,
केवल अनुसूचित ’अ’ के अनुसार 31,855रू.
2. अन्य सहायता एवं वाद व्यय? आदेशानुसार परिवाद स्वीकृत
निष्कर्ष के आधार
(6) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है।
फोरम का निष्कर्षः-
(7) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह पाते है कि परिवादी ने अनावेदक बैंक को यह विकल्प दिया था कि क्रेडिट कार्ड के माध्यम से जो भी खरीदी करेगा उसकी राशि तत्काल उसके बैंक खाते से काट ली जायेगी। इस प्रकार अनावेदक बैंक की यह जिम्मेदारी थी कि वह प्रत्येक खरीदी के पश्चात् राशि परिवादी के सेविंग बैंक खाते से काट ले, जिससे ऐसी स्थिति न बने की परिवादी ने खरीदी तो कर ली परंतु रकम अदायगी नहीं हुई।
(8) प्रकरण के अवलोकन से हम यह भी पाते हैं कि परिवादी ने जब-जब खरीदी की है, तब-तब अनावेदक ने परिवादी के खाते से रकम काटी नहीं है, जबकि परिवादी के खाते में पर्याप्त रकम थी, जिसके संबंध में अनावेदक ने कोई संतोषप्रद कारण प्रस्तुत नहीं किया है। हम परिवादी के तर्काें से असहमत नहीं है कि अनावेदक ने समय-समय पर खरीदी के संबंध में राशि नहीं काटी और फिर ऋण शब्द का उल्लेख करते हुए फायनेंस चार्ज, ब्याज और सर्विस टैक्स काट लिये गये हैं, निश्चित रूप से अनावेदक बैंक का ऐसा कृत्य घोर सेवा में निम्नता एवं व्यवसायिक दुराचरण की श्रेणी में आता है।
(9) आज की परिस्थिति में हम यह पाते हैं कि अनावेदक जैसी बैंक अपने आक्रामक व्यवसायिक नीति को अपनाते हुए विभिन्न प्रकार के लुभावने शब्द का प्रयोग करते हुए अपने ग्राहकों को दिग्भ्रमित करते हैं और इस प्रकार के क्रेडिट कार्ड लेने के लिए उत्साहित करते है, जबकि क्रेडिट कार्ड के नियम और शर्त विस्तृत रूप से ग्राहकों को समझाये नहीं जाते हैं, जबकि ऐसे बैंकों की यह जिम्मेदारी होती है कि वे सीधे-सीधे शब्दों में बैंक के नियमों का उल्लेख कर स्पष्ट रूप से ग्राहकों को क्रेडिट कार्ड की शर्तों को समझाएं और उक्त शर्त समझ जाने के संबंध में क्रमवार उनका उत्तर प्राप्त करें, ऐसा अनावेदक ने सिद्ध नहीं किया है और इस प्रकार निश्चित रूप से अपने आक्रामक व्यवसायिक नीति को बढ़ाने के लिए अनावेदक ने जो भी अतिरिक्त चार्जेस लिये गये हैं उसे अवैधानिक माना जायेगा।
(10) अनावेदक का यह कर्तव्य था कि वह परिवादी द्वारा जो खरीदी गई रकम जिस तिथि को डेबिट की गई है, उसी दिनांक को वस्तुतः उसी समय परिवादी के खाते से काट कर समायोजित करते। आज की स्थिति में सारे खाते सिस्टम जनरेटेड हैं, पूरी कार्यवाही कम्प्यूटर के माध्यम से होती है, अतः विलंब का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता और जब परिवादी ने विभिन्न तिथियों को खरीदी की तो अनावेदक को अविलम्ब ही परिवादी के खाते से राशि समायोजित कर लेनी थी, यदि एनेक्चर डी.25 नियम और शर्तों के संबंध में दस्तावेजों का अवलोकन किया जाये तो फायनेंस चार्जेस के संबंध में जो उल्लेख किया गया है वह अपने आप में अनावेदक के कृत्य को व्यवसायिक दुराचरण की श्रेणी में रखता है, उसके शब्द ऐसे घुमावदार लिखे गये हैं कि ग्राहक दिग्भ्रमित हो जाये। अनावेदक द्वारा सिम्पल शब्दों का उल्लेख करते हुए भी उक्त शर्त को समझाया जा सकता था, परंतु अनावेदक ने अपने आक्रामक व्यवसायिक नीति के चलते उक्त शर्त रखी है जो कि स्वमेय अनावेदक की व्यवसायिक दुराचरण को सिद्ध करती है, जब ग्राहक ने अपने एकाउण्ट से खरीदी की राशि वसूल करने का विकल्प दिया है तो अनावेदक को अविलम्ब ही उक्त राशि परिवादी के खाते से समायोजित की जानी थी और यदि अनावेदक ने ऐसा नहीं किया है तो अनावेदक द्वारा ब्याज तथा अन्य मद में वसूल की गई राशि, निश्चित रूप से अनावेदक द्वारा घोर व्यवसायिक कदाचरण की नीति को सिद्ध करता है, क्योंकि स्वाभाविकता यही है कि जब ग्राहक विकल्प दे दिया है कि वह प्रत्येक खरीदी के बाद निश्चिंत रहेगा कि उसके खाते से उक्त राशि क्रेडिट कार्ड द्वारा खरीदी के संबंध में समायोजित कर ली जायेगी, जबकि परिवादी का तर्क है कि जब भी क्रेडिट कार्ड के माध्यम से उसने खरीदी की है, तब-तब उसके खाते में पर्याप्त राशि थी, परंतु अनावेदक ने घोर कदाचरण करते हुए उक्त खरीदी को ऋण लेना बताते हुए ब्याज अधिरोपित कर दिया और तदानुसार परिवादी के खाते से कटौती की है, जो कि निश्चित रूप से व्यवसायिक दुराचरण की श्रेणी में आता है।
(11) यहां यह उल्लेख करना आवश्यक होगा कि किस प्रकार बैंक ऐसे कार्ड सुविधा उपलब्ध कराती तो है, परंतु समस्या आने पर अपने ग्राहकों को उच्च शिष्टाचार अपनाते हुए त्वरित सेवाएं नहीं देती है, जैसा कि एनेक्चर-7 से सिद्ध होता है कि परिवादी को विवरण पाने हेतु आर.टी.आई. के माध्यम से कार्यवाही करनी पड़ी तथा एनेक्चर-12 अनुसार अधिवक्ता के माध्यम से नोटिस देनी पड़ी, परंतु परिवादी की समस्या का निराकरण नहीं किया गया।
(12) उपरोक्त स्थिति में हम यह पाते हैं कि निश्चित रूप से अनावेदक बैंक ने परिवादी के साथ सेवा में निम्नता एवं व्यवसायिक दुराचरण किया है। इस संबंध में परिवादी द्वारा प्रस्तुत एनेक्चर-12 को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, जिसके अनुसार परिवादी ने पेपर में प्रकाशित प्रकाशन की प्रति भी प्रस्तुत की है।
(13) उपरोक्त परिस्थिति में परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद पत्र पर अविश्वास किये जाने का कोई कारण नहीं पाते हैं और यह निष्कर्षित करते हैं कि परिवादी ने क्रेडिट कार्ड के माध्यम से खरीदी के संबंध में विकल्प दिया था कि अनावेदक उक्त खरीदी की राशि को तत्काल उसके खाते से राशि समायोजित करें, परंतु अनावेदक ने ऐसा नहीं किया और खरीदी राशि को ऋण बताते हुए विभिन्न चार्जेस लगाकर फायनेंस चार्जेस इत्यदि काटे हैं, जिसका विवरण परिवादी ने अनुसूचित-’अ’ की राशि 31855.07 रूपये दिया हैं अनावेदक से प्राप्त करने का अधिकारी है, शेष का विवरण प्रस्तुत नहीं करने के कारण परिवादी की प्रार्थना स्वीकार नहीं की जाती है।
(14) अतः उपरोक्त संपूर्ण विवेचना के आधार पर हम परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार करते है और यह आदेश देते हैं कि अनावेदक, परिवादी को आदेश दिनांक से एक माह की अवधि के भीतर निम्नानुसार राशि अदा करे:-
(अ) अनावेदक, परिवादी को 31,855रू. (इक्तीस हजार आठ सौ पचपन रूपये) अदा करे।
(ब) अनावेदक, परिवादी को उक्त राशि पर परिवाद प्रस्तुती दिनांक 12.06.2013 से भुगतान दिनांक तक 12 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज भी प्रदान करें।
(स) अनावेदक, परिवादी को वाद व्यय के रूप में 10,000रू. (दस हजार रूपये) भी अदा करे।