Chhattisgarh

StateCommission

FA/14/405

Naresh Kumar Jasuza - Complainant(s)

Versus

Branch Manager Central Bank Of India - Opp.Party(s)

Shri Sourabh Shukla

05 Feb 2015

ORDER

Chhattisgarh State Consumer Disputes Redressal Commission Raipur
Final Order
 
First Appeal No. FA/14/405
(Arisen out of Order Dated 23/04/2014 in Case No. Complaint Case No. CC/12/16 of District Dhamtari)
 
1. Naresh Kumar Jasuza
Res- Santoshi Sadan, Sihawa Road Dhamtari
Dhamtari
Chhattisgarh
...........Appellant(s)
Versus
1. Branch Manager Central Bank Of India
Branch Dhamtari
Dhamtari
Chhattisgarh
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HONABLE MR. JUSTICE R.S.Sharma PRESIDENT
 HONABLE MS. Heena Thakkar MEMBER
 HONABLE MR. Dharmendra Kumar Poddar MEMBER
 
For the Appellant:Shri Sourabh Shukla , Advocate
For the Respondent: Miss Vijay Shree Bisen, Advocate
ORDER

छत्तीसगढ़ राज्य

उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग, पण्डरी, रायपुर

 

अपील क्रमांकः FA/14/405

संस्थित दिनांकः 10.06.14

नरेश कुमार जसुजा, (HUF)]

कर्ताः नरेश कुमार जसुजा,

पिताः श्री आसुदामल जसुजा,

निवासीः संतोषी सदन, सिहावा रोड, धमतरी,

तह. व जिला धमतरी (छ.ग.)                                           .....अपीलार्थी

विरूद्ध

शाखा प्रबंधक,

सेण्ट्रल बैंक ऑफ इंडिया, शाखा धमतरी,

तह. व जिला धमतरी (छ.ग.) 

                                          .....उत्तरवादी

समक्षः

माननीय न्यायमूर्ति श्री आर. एस. शर्मा, अध्यक्ष

माननीय सुश्री हीना ठक्कर, सदस्या

 

पक्षकारों के अधिवक्ता

अपीलार्थी की ओर से श्री सौरभ शुक्ला, अधिवक्ता।

उत्तरवादी की ओर से सुश्री विजयश्री बिसेन, अधिवक्ता।

 

आदेश

दिनांकः05/02/2015

द्वाराः माननीय सुश्री हीना ठक्कर, सदस्या

 

अपीलार्थी द्वारा यह अपील जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, धमतरी (छ.ग.) (जिसे आगे संक्षिप्त में ’’जिला फोरम’’ संबोधित किया जाएगा) द्वारा प्रकरण क्रमांक 16/1012 ’’नरेश कुमार जसुजा विरूद्ध शाखा प्रबंधक, सेण्ट्रल बैंक आॅफ इंडिया’’ में पारित आदेश दिनांक 23.04.2014 से क्षुब्ध होकर प्रस्तुत की गई है। जिला फोरम द्वारा अपीलार्थी की परिवाद को निरस्त किया गया।

 

2.            अपीलार्थी की परिवाद के स्वीकृत तथ्य यह है कि परिवादी ने अनावेदक बैंक में दिनांक 30.03.2009 को रू 15,000/- जमा कर पी.पी.एफ. खाता एच.यू.एफ. के नाम से खोला था, जिसका नंबर 493 (नया नंबर 1947158420) था। परिवादी ने दिनांक 04.08.2009 को रू 25,000/-, दिनांक 14.08.2010 को रू 40,000/-, दिनांक 30.03.2011 को रू 10,000/- खाते में जमा करवाया था। परिवादी ने दिनांक 02.06.2011 को रू 50,000/- बैंक खाते में जमा करवाया था, जिसका इंद्राज पी.पी.एफ. पास बुक में दिनांक 02.06.2011 को नहीं किया गया। दिनांक 12.09.2011 को मौखिक सूचना देकर बिना ब्याज के रकम वापस कर दिया गया। इस प्रकार दिनांक 02.06.2011 से 12.09.2011 तक अर्थात् 102 दिन तक                रू  50,000/- का उपयोग अनावेदक बैंक द्वारा किया गया, जिसका ब्याज परिवादी को नहीं दिया गया। बैंक का उक्त कृत्य सेवा में निम्नता की श्रेणी में आता है। अनावेदक बैंक को परिवादी के पी.पी.एफ. खाते में जमा रकम पर कुल ब्याज रू  11,005/- मूलधन रू 90,000/- के साथ परिवादी को वापस करना था, परन्तु अनावेदक बैंक ने केवल मूलधन रू  90,000/- ही दिनांक 12.09.2011 को वापस किया गया व परिवादी का खाता बंद कर दिया गया। परिवादी ने यह भी अभिकथन किया कि बैंक ने यदि गलती से खाता खोल दिया था, तब भी यह बैंक का उत्तरदायित्व था कि जितने दिन रकम बैंक में रखी गई है उतने दिन का ब्याज रू 11,005/- परिवादी को भुगतान करें। परिवादी द्वारा अनावेदक बैंक के शाखा प्रबंधक को पत्र लिखकर ब्याज रकम की माँग की, परन्तु  बैंक द्वारा न तो रकम का भुगतान किया गया न ही पत्र का जवाब दिया गया। इस प्रकार बैंक द्वारा जमा रकम पर ब्याज न देकर व अचानक परिवादी का खाता बंद कर सेवा में निम्नता की है। अतः परिवादी द्वारा जिला फोरम के समक्ष अनावेदक बैंक द्वारा की गई सेवा में निम्नता के आधार पर परिवाद प्रस्तुत कर कुल ब्याज रकम रू 11,005/- एवं बैंक द्वारा जमा की गई रू 50,000/- राशि जिसका इंद्राज पासबुक में नहीं पर 102 दिन का ब्याज व मानसिक क्षतिपूर्ति हेतु रू 5,000/- व परिवाद व्यय प्रदान करने की प्रार्थना की गई।

 

3.            अनावेदक बैंक ने स्वीकृत तथ्य के अलावा परिवाद के अन्य तथ्यों को अस्वीकार किया है व प्रतिरक्षा में अभिकथन किया कि अनावेदक बैंक द्वारा मानवीय भूलवश सद्भाविक रूप से परिवादी का पी.पी.एफ. खाता एच.यू.एफ. के नाम से जानकारी के अभाव में खोला था तथा दिनांक                 04.08.2009, 14.08.2010 एवं 30.03.2011 को खाते में रकम जमा किया गया, परन्तु अभिकथन कर यह स्पष्ट किया कि परिवादी द्वारा दिनांक 02.06.2011 को जमा की गई रकम का उल्लेख उसकी पासबुक में न होना इस बात का द्योतक नहीं है कि परिवादी द्वारा जमा रकम उसके खाते में जमा नहीं हुई। अनावेदक बैंक एक राष्ट्रीयकृत बैंक है जो कि पी.पी.एफ. खातों का ऑपरेशन भारत सरकार के मिनिस्ट्री ऑफ फाइनेन्स दिशा निर्देशों के अनुसार एजेंट के रूप में कार्य करता है जिसके लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाता है। यदि मानवीय भूलवश कोई एच.यू.एफ. का खाता खोल लिया गया है तो उसके लिए राष्ट्रीयकृत बैंक को जो लोग धन का संरक्षण एवं लोकहित में कार्य करती है, उसके किसी संव्यवहार को बैंक सेवा में कमी नहीं माना जा सकता है। अतः परिवादी का खाता मात्र मानवीय भूलवश खोला गया था। अतः वह ब्याज पाने का अधिकारी नहीं है। इसलिए भारत सरकार के दिशानिर्देशों का पालन करते हुए भूलवश खोले गए खाते को बंद किया गया एवं उसकी रकम परिवादी को वापस की गई। बैंक द्वारा सेवा में निम्नता नहीं की गई है। रिजर्व बैंक आॅफ इण्डिया के सक्र्यूलर नंबर आर.बी.आई./2004-05/479 दिनांक 25.05.2005 के अनुसार एच.यू.एफ. के पी.पी.एफ. एकाउण्ट यदि बैंक द्वारा खोल दिए गए हैं तो उसे तत्काल बिना किसी ब्याज के जमा राशि मूलधन खातेदार को वापस कर खाते बंद किए जाने के निर्देश हैं। चूंकि परिवादी द्वारा खोला गया खाता पी.पी.एफ. एच.यू.एफ. का है जिसे दिनांक 13.05.2005 के बाद खोला गया। अतः रिजर्व बैंक के निर्देश के अनुपालन में मूलधन राशि बिना ब्याज के सद्भावनापूर्वक परिवादी को लौटा दी गई। इस प्रकार पस्तुत परिवाद सव्यय निरस्त किए जाने की प्रार्थना की गई।

 

4.            विद्वान जिला फोरम द्वारा विनिश्चय किया गया कि अनावेदक बैंक द्वारा परिवादी का पी.पी.एफ. खाता बंद कर उसने जमा राशि को बिना ब्याज के उसे वापस कर सेवा में कमी नहीं की है अपितु बैंक द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक के निर्देशों का पालन किया है। परिवादी वांछित अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी नहीं हैं । अतः परिवाद निरस्त किया गया।

 

5.            हमारे समक्ष अपीलार्थी की ओर से श्री सौरभ शुक्ला, अधिवक्ता एवं उत्तरवादी की ओर से सुश्री विजयश्री बिसेन अधिवक्ता द्वारा तर्क प्रस्तुत किए गए एवं हमारे द्वारा अभिलेख का परिशीलन किया गया।

 

6.            परिवादी/अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री सौरभ शुक्ला द्वारा हमारे समक्ष मुख्यतः यह आपत्ति की गई कि अनावेदक/उत्तरवादी बैंक द्वारा यह स्वीकार किया गया है कि परिवादी/अपीलार्थी का पी.पी.एफ. खाता स्वेच्छा से खोलकर रू 1,40,000/- की राशि जमा की गई। इस स्वीकारोक्ति को भी अनदेखा करते हुए जिला फोरम द्वारा परिवाद निरस्त किया गया। यह भी आपत्ति की गई कि अनावेदक/उत्तरवादी बैंक द्वारा कथित नोटिफिकेशन 479/2004-05 दिनांक 25.05.2005 अनावेदक/ उत्तरवादी बैंक को प्रेषित की गई थी, परिवादी/अपीलार्थी को नहीं। अतः परिवादी/अपीलार्थी को इस नोटिफिकेशन की जानकारी नहीं थी, परन्तु बैंक को इस सूचना की जानकारी के बाद भी परिवादी/अपीलार्थी से राशि लेकर जमा किया गया व लगभग ढाई वर्ष बाद उक्त नोटिफिकेशन के आधार पर खाता बंद कर दिया गया। जिसके परिणामस्वरूप परिवादी/अपीलार्थी को अपनी जमा राशि पर दो वर्ष छः माह तक की ब्याज राशि से वंचित होना पड़ा। इस प्रकार जिला फोरम द्वारा पारित आलोच्य आदेश अपास्त किए जाने योग्य है।

 

7.            परिवादी/अपीलार्थी द्वारा मुख्यतः दो आपत्तियां की गई है कि परिवादी का खाता बिना सूचना बंद कर जमा रकम बिना ब्याज रू 90,000/- वापस की गई व दूसरी आपत्ति है कि दिनांक 02.06.2011 को परिवादी/अपीलार्थी द्वारा अपने पी.पी.एफ. खाते में जमा की गई राशि रू 50,000/- का इंद्राज पासबुक में नहीं हुआ है। अतः परिवाद में यह अनुतोष मांगा है कि उसे जमाराशि पर ब्याज रू 11,005/- व रकम      रू 50,000/- जो कि दिनांक 02.06.2011 को जमा की गई थी जिसका इंद्राज पासबुक में नहीं हुआ है पर भी ब्याज राशि प्रदान किया जावे। यद्यपि उभयपक्षकारों द्वारा यह स्वीकृत तथ्य है कि परिवादी/अपीलार्थी का खाता बंद कर बैंक द्वारा रू 90,000/- खाता राशि उसे लौटाई गई एवं निर्विवादित तथ्य यह भी है कि परिवादी/अपीलार्थी द्वारा दिनांक 02.06.2011 को जमा की राशि का इंद्राज पासबुक में नहीं हुआ है। इस तथ्य की पुष्टि परिवादी द्वारा अभिलेख में प्रस्तुत खाता विवरण से होती है। इस प्रकार परिवादी/अपीलार्थी को अपने खाते में जमा की राशि रू 90,000/- पूर्णतः बिना ब्याज के प्राप्त हो गई थी। अब इस प्रश्न का निराकरण करना है कि क्या परिवादी उक्त रकम पर ब्याज राशि प्राप्त करने का अधिकारी है? परिवादी के अधिवक्ता द्वारा यह तर्क किया गया कि भारतीय रिजर्व बैंक का सक्र्यूलर नंबर आर.बी.आई./2004-05/479 दिनांक 25.05.2005 की प्रति बैंक को प्राप्त थी, परन्तु इसकी जानकारी परिवादी को नहीं थी, अतः बैंक को सक्र्यूलर की जानकारी थी फिर भी बैंक द्वारा परिवादी का पी.पी.एफ. खाता दिनांक 30.03.2009 को खोलकर ढाई साल बाद दिनांक 12.09.2011 को बंद कर दिया गया। हमारे द्वारा कथित भारतीय रिजर्व बैंक के सक्र्यूलर का अवलोकन किया गया, जो कि निम्नानुसार हैः-

RBI/2004-05/479

Ref. No.CO.DT.15.02.001/H-9844-9866/2004-05

May 25, 2005

Jyeshtha 4, 1927(S)

The General Manager

Government Accounts Department

State Bank of India and Associate Banks

Allahabad Bank / Bank of Baroda / Bank of India /

Bank of Maharashtra / Canara Bank / Central Bank of India /

Corporation Bank / Dena Bank / Indian Bank /

Indian Overseas Bank / Punjab National Bank / Syndicate Bank /

UCO Bank / Union Bank of India / United Bank of India /

Dear Sir,

Public Provident Fund Scheme, 1968 – Clarifications

Please refer to our Circular No.CO.DT.15.02.001/H-9593-9615/2004-05 dated May 14, 2005 forwarding therewith Government of India Notification dated May 13, 2005 issued by Ministry of Finance, amending the provisions of the PPF Scheme, 1968 with effect from May 13, 2005.

2. In this regard, Government of India, Ministry of Finance vide letter F.No.2/8/2005-NS-II dated May-20, 2005 have, inter alia, issued the following clarifications:

i)                 Sequel to amendments to various Small Savings Schemes to restrict the scope of investments only to individuals, the accounts, if any, opened by juristic persons (HUFs, Trusts, Provident Funds, etc.) i.e. persons other than individuals (through single or joint accounts or deposits by guardians on behalf of minors and persons of unsound mind as per rules) on or after May 13, 2005, under any of the small savings scheme including Public Provident Fund Scheme, 1968, shall be treated as void ab initio and immediate action should be taken to close such accounts and to refund the deposits without any interest to the depositors.

                इस प्रकार भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा यह स्पष्ट निर्देश दिया गया है कि दिनांक 13.05.2005 के पश्चात् पी.पी.एफ. योजना के अंतर्गत् बचत खाते शून्य व्यव्हृत किए जावेंगे व शीघ्र ही ऐसे खाते बंद कर जमा रकम बिना ब्याज के खाताधारी को लौटाने के निर्देश दिए गए। अतः यह स्पष्ट है कि 2005 में ही पी.पी.एफ. खातों के संबंध में रिजर्व बैंक के उक्त निर्देशों की जानकारी प्राप्त होने के पश्चात् भी वर्ष 2009 में खाता खोला गया व ढाई वर्ष तक संचालित भी किया गया एवं अनायास ही इस निर्देशिका के आधार पर परिवादी/अपीलार्थी का खाता बंद कर बिना ब्याज के जमा रकम लौटा दी गई। अतः उत्तरवादी का यह प्रतिरक्षा व तर्क स्वीकार योग्य नहीं है कि सद्भाविक भूलवश खाता खोल लिया गया था क्योंकि परिवादी को अपने द्वारा जमा की गई रकम पर प्राप्त होने वाले ब्याज राशि की हानि हुई है एवं आर.बी.आई. के उक्त सक्र्यूलर की जानकारी परिवादी/अपीलार्थी को न होना सामान्य व स्वाभाविक तथ्य है। आर.बी.आई. के सक्र्यूलर का अनुपालन करना व याद रखना बैंक का उत्तरदायित्व होता है खाताधारी का नहीं। अतः हमारे मतानुसार बैंक द्वारा सक्र्यूलर प्राप्त होने के पश्चात् भी पी.पी.एफ. खाता खोलना ढाई वर्ष तक संचालित करना व आर.बी.आई स्क्र्यूलर के आधार पर खाता बंद करना एवं खाते में जमा राशि बिना ब्याज वापस करना सेवा में निम्नता की श्रेणी में आता है व बैंक द्वारा आर.बी.आई. के निर्देशों का अनानुपालन व उपेक्षा करते हुए ढाई वर्ष तक राशि जमा कर बिना ब्याज दिए खाता बंद करने की त्रुटि गंभीर है व क्षमणीय नहीं है। चूंकि परिवादी/अपीलार्थी द्वारा अपने परिवाद पत्र में व उत्तरवादी बैंक द्वारा अपने उत्तर में कहीं भी इस तथ्य का उल्लेख नहीं है कि परिवादी के उक्त पी.पी.एफ. खाते में किस दर से ब्याज रकम की गणना की जा रही थी न ही अभिलेख में ऐसा कोई दस्तावेज है जिससे ज्ञात हो कि बैंक द्वारा जमा राशि में किस दर से ब्याज दिया जा रहा था। अतः हमारे मतानुसार, अनावेदक/उत्तरवादी बैंक पी.पी.एफ. खाते में दिनांक अनुसार जमा राशि पर दिनांक 30.03.2009 को निर्धारित तत्कालीन प्रचलित ब्याजदर से ब्याज राशि की गणना कर कुल ब्याज रकम प्रदान करने हेतु दायित्वधीन है। इसके अतिरिक्त बैंक द्वारा परिवादी/अपीलार्थी के पासबुक में दिनांक 02.06.2011 को जमा की गई राशि रू 50,000/- का उल्लेख नहीं किया गया है न ही उस पर ब्याज की गणना की गई है अतः बैंक उक्त राशि पर भी जमा दिनांक से ब्याज की गणना दिनांक 12.09.2011 खाता बंद करने की तिथि तक का ब्याज राशि प्रदान करने हेतु दायित्वधीन है। चूंकि बैंक द्वारा प्रतिषेधित पी.पी.एफ. खाता खोला गया व ढाई वर्ष तक संचालित करने के दौरान ब्याज राशि की गणना कर अनायास खाता बंद कर परिवादी/अपीलार्थी को बिना ब्याज के मूलधन की राशि लौटाई गई। जिससे स्पष्ट है कि परिवादी/अपीलार्थी अर्जित ब्याज राशि से वंचित हुआ है व उसे इस हेतु मानसिक संताप कारित हुआ होगा। अतः बैंक परिवादी /अपीलार्थी को मानसिक संताप हेतु क्षतिपूर्ति रू 2,000/- प्रदान करने हेतु दायित्वधीन है।

 

8.            इस प्रकार प्रकरण के तथ्यों पर विचार करने के पश्चात् हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि परिवादी/अपीलार्थी की अपील स्वीकार करने योग्य है। अतः स्वीकार की जाती है व जिला फोरम द्वारा पारित आलोच्य आदेश अपास्त किया जाता है। उत्तरवादी बैंक को निर्देशित किया जाता है कि इस आदेश दिनांक से 15 दिनों के अंदर बैंक परिवादी/अपीलार्थी के खाते में समय-समय पर जमा की गई राशि पर तत्कालिक तय ब्याज दर के अनुसार ब्याज रकम की गणना उक्त खाता बंद किए जाने की तिथि तक नियमानुसार करेगा व उसके खाता विवरण की प्रति परिवादी/ अपीलार्थी को प्रदान करेगा। व उत्तरवादी बैंक अपीलार्थी को मानसिक संताप हेतु  रू 2,000/- एवं अपील व्यय रू 3,000/- भी प्रदान करेगा।

 

(न्यायमूर्ति आर. एस. शर्मा)                       (सुश्री हीना ठक्कर)     

       अध्यक्ष                                                 सदस्या         

      /02/2015                                            /02/2015   

 
 
[HONABLE MR. JUSTICE R.S.Sharma]
PRESIDENT
 
[HONABLE MS. Heena Thakkar]
MEMBER
 
[HONABLE MR. Dharmendra Kumar Poddar]
MEMBER

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