Uttar Pradesh

Kanpur Dehat

CC/28/2022

Raja Singh - Complainant(s)

Versus

Branch Manager, Bank of Baroda, Branch Deegh, Kanpur Dehat - Opp.Party(s)

Kalyan Singh Yadav

18 Sep 2024

ORDER

 

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, कानपुर देहात ।

           अध्यासीन:- श्री मुशीर अहमद अब्बासी..........................अध्यक्ष

                       H.J.S.

                               सुश्री कुमकुम सिंह .........................महिला सदस्य

 

उपभोक्ता परिवाद संख्या :- 28/2022

परिवाद दाखिला तिथि :- 30.03.2022

निर्णय दिनांक:- 18.09.2024

(निर्णय श्री मुशीर अहमद अब्बासी, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित)

राजा सिंह वयस्क उम्र करीब 65 साल पुत्र राधेश्याम निवासी ग्राम व पोस्ट अंगदपुर तहसील भोगनीपुर जिला कानपुर देहात ।              

                                                                                                                                                                             ....................परिवादी

बनाम

शाखा प्रबन्धक महोदय बैंक ऑफ बडौदा शाखा डीघ जिला कानपुर देहात ।

                                                                                                                                                                              ...................प्रतिवादी

निर्णय

     प्रस्तुत परिवाद परिवादी राजा सिंह की ओर से सशपथ पत्र, विपक्षी बैंक द्वारा परिवादी से अवैध रूप से वसूली गयी धनराशि मु0 19,901/- रुपये को ब्याज सहित दिलाये जाने हेतु विपक्षी को आदेशित किये जाने एवं परिवादी को हुयी मानसिक क्षति व वाद व्यय के एवज में मु0 5,000/- रुपये विपक्षी बैंक से दिलाये जाने के आशय से दिनांक 30.03.2022 को संस्थित किया गया ।

     संक्षेप में परिवादी का कथन है कि, परिवादी ग्राम अंगदपुर तहसील भोगनीपुर जिला कानपुर देहात का निवासी है । परिवादी ने अपने भाई शिवराज सिंह व लल्ला सिंह के साथ मिलकर विपक्षी बैंक से ट्रैक्टर क्रय करने हेतु दिनांक 30.04.2002 को 1 लाख 90 हजार रुपया का लोंन कराया था और जिसके सम्बन्ध में आराजी सं0 64अ रकवा 0.3120 हे0, 64ब रकवा 0.6630 हे0 एवं 112 रकवा 2.0260 हे0 कुल 3 किता कुल रकवा 3.0110 हे0 स्थित मौजा ग्राम अंगदपुर तहसील भोगनीपुर जिला कानपुर देहात को बंधक किया था । परिवादी एवं उसके भाइयों द्वारा लिये गये लोन का खाता सं0 13670600000088 था । परिवादी एवं उसके भाइयों द्वारा सम्पूर्ण ऋण की अदायगी ब्याज सहित दिनांक 17.09.2016 को की जा चुकी है जिसका डिस्चार्ज प्रमाणपत्र दिनांक 06.07.2018 को तत्कालीन शाखा प्रबन्धक अनुज कटियार द्वारा हस्ताक्षरित कर दिया गया जिसके आधार पर उक्त भूमि भार मुक्त की गयी । इस ऋण के बावत दिनांक 13.08.2016 को 33,000/- रुपया विपक्षी बैंक में जमा किया गया जिसकी रसीद उसके भाई शिवराज सिंह आदि के नाम से निर्गत करते हुये सम्बन्धित खाते को बन्द कर उसकी प्रतियाँ जारी की गयी । दिनांक 21.08.2018 को शाखा प्रबन्धक अनुज कटियार ने परिवादी को अदा किये गये ऋण के बावत 19,901/- रुपये पुनः लेते हुये एक रसीद दिनांक 21.08.2018 को जारी कर पुनः डिस्चार्ज प्रमाणपत्र दिनांक 21.08.2018 को दिया जबकि उक्त सभी ऋण दिनांक 17.09.2016 को अदा किये जाने के बाद दिनांक 06.07.2016 को डिस्चार्ज प्रमाणपत्र एवं नोडयूज प्रमाणपत्र दिया जा चुका है । इस प्रकार विपक्षी ने परिवादी से छल एवं प्रवंचना कर 19,901/- रुपये हड़प लिये हैं जो कि एक संज्ञेय अपराध है । परिवादी ने इस बावत विपक्षी के यहाँ जाकर कई बार मौखिक शिकायत की और अपनी उक्त धनराशि वापस मांगी तथा दिनांक 15.10.2018, 11.01.2019 तथा 13.05.2020 को लिखित रूप से प्रार्थना पत्र भी दिये लेकिन विपक्षी  द्वारा परिवादी की उक्त धनराशि वापस नहीं की गयी । परिवादी ने दिनांक 13.12.2021 एवं पुनः दिनांक 08.03.2022 को रजिस्टर्ड नोटिस दी जिसको प्राप्त करने के बावजूद भी कोई उत्तर विपक्षी द्वारा नहीं दिया गया और ना ही उक्त धन की अदायगी की गयी इस कारण परिवादी प्रस्तुत करने के अलावा अन्य विकल्प शेष नहीं बचा है । परिवादी के भाई शिवराज सिंह की मृत्यु हो चुकी है । प्रतिवादी का उपरोक्त कार्य सेवा एवं उपभोक्ता अधिकारों का घोर उल्लंघन है । परिवादी का परिवाद सव्यय स्वीकार किया जाये ।

     परिवादी के परिवाद पत्र के उत्तर में विपक्षी शाखा प्रबन्धक बैंक ऑफ बड़ौदा, शाखा डीग कानपुर देहात की ओर से गौरव सिंह शाखा प्रबन्धक शाखा डीग द्वारा अपनी जवाबदेही सशपथपत्र दाखिल की गयी । विपक्षी बैंक द्वारा प्रस्तुत जवाबदेही के अनुसार परिवाद पत्र की धारा-1 को सिद्ध करने का भार परिवादी के स्वयं का है एवं परिवाद पत्र की धारा-2 लगायत 5 के कथन जिस प्रकार से अभिकथित किये गये हैं वह अभिलेख से सम्बन्धित हैं, जिसके जवाब की कोई आवश्यकता नहीं है । परिवाद पत्र की धारा-6 के संदर्भ में यह अभिकथन किया है कि, सत्यता मात्र यह है कि परिवादी ने उत्तरदाता बैंक द्वारा प्राप्त वित्तीय सहायता जिसका खाता संख्या- 13670600000088 में अवशेष अचेतन ब्याज (Rev of unrealized int/ chgs) धनराशि मु0 19,901/- को दिनांक 21.08.2018 को जमा किया गया है और तत्कालीन शाखा प्रबन्धक द्वारा डिस्चार्ज प्रमाणपत्र दिया जा चुका है । उत्तरदाता बैंक द्वारा किसी छल एवं प्रवंचना करने व रकम हड़पने का कोई प्रश्न उत्पन्न ही नहीं होता है । उत्तरदाता बैंक एक सरकारी उपक्रम है और उक्त जमा धनराशि से किसी व्यक्ति विशेष का किसी प्रकार का कोई हित लाभ होने का कोई प्रश्न उत्पन्न नहीं होता है । परिवाद पत्र की धारा-7 व 8 के कथन को सरासर गलत व बेबुनियाद बताते हुये यह अभिकथन किया है कि, सत्यता यह है कि परिवादी का ऋण खाता N.P.A. हो जाने के कारण बैंक नियमानुसार अर्जित ब्याज उत्तरदाता बैंक द्वारा प्रविष्ठ रुपये 19,904/- की दिनांक 25.02.2016 को खाते में दर्ज की गयी थी परन्तु बैंक के अधिकारी द्वारा सामान्य जाँच प्रक्रिया में जानकारी होने पर खाता संख्या 13670600000088 में दिनांक 25.02.2016 को अर्जित अचेतन ब्याज (Rev of unrealized int/ chgs) मु0 19,901/- को जमा न होने के कारण आपत्ति किये जाने पर बैंक द्वारा परिवादी को पूर्ण जानकारी प्रदान करने के उपरान्त उक्त धनराशि को (Recovery in Bad Debts written off) खाता संख्या 13670042701013 में जमा किया गया है । विपक्षी बैंक द्वारा कोई छल व कपट कारित नहीं किया गया है । विपक्षी द्वारा अपनी जवाबदेही के पैरा-6 में परिवाद पत्र की धारा-9 के संदर्भ में यह कथन किया गया है कि परिवादी ने स्वयं अभिकथित किया है कि शिवराज सिंह की मृत्यु हो चुकी है तथा लल्ला सिंह भी प्रश्नगत खाते में सह-खातेदार है जिनका परिवाद पत्र में संयोजन किया जाना अति आवश्यक है । परिवाद पत्र की धारा-10 के संदर्भ में यह अभिकथन किया है कि मुकदमे को रंगत देने व विपक्षी को हैरान परेशान करने की गरज से असत्य कथनों का सहारा माननीय न्यायालय को गुमराह करने हेतु अभिकथित किये गये हैं जबकि विपक्षी द्वारा किसी प्रकार की सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है । परिवाद पत्र की धारा-11 का कथन औपचारिक है, परिवाद बिना किसी विधिक कारण के संस्थित किया गया है । परिवादी का परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत काल बाधित है । परिवादी ने स्वच्छ हाथों से माननीय न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत परिवाद संस्थित नहीं किया है जो विशेष हर्जे के साथ निरस्त किये जाने योग्य है ।

     विपक्षी शाखा प्रबन्धक महोदय बैंक ऑफ बडौदा शाखा डीघ द्वारा जवाबदेही के साथ Account Ledger व जमा पर्ची मु0 19,901/- रुपये दिनांकित 21.08.2018 की छायाप्रति (कुल 3 पेज) पत्रावली पर दाखिल किया गया है ।   

     परिवादी ने वाद-पत्र के समर्थन दस्तावेजों की सूची के साथ परिवादी राजा सिंह के आधार कार्ड की छायाप्रति, अधिवक्ता श्री कल्याण सिंह यादव द्वारा विपक्षी को प्रेषित रजिस्टर्ड नोटिस दिनांकित 13.12.2021 की सत्यापित प्रति, मूल रजिस्ट्री रसीद, खतौनी की छायाप्रति, Certificate of the Discharge की छायाप्रति, शाखा प्रबन्धक बैंक ऑफ बडौदा द्वारा तहसीलदार भोगनीपुर को प्रेषित पत्र दिनांकित 06-जुलाई-2018 की छायाप्रति, No Dues Certificate की छायाप्रति, जमा पर्ची मु0 33,000/- रुपये दिनांकित 13.08.2016 की छायाप्रति, पासबुक (लेन-देन विवरण) की छायाप्रति, जमा पर्ची मु0 19,901/- रुपये दिनांकित 21.08.2018 की छायाप्रति, शाखा प्रबन्धक बैंक ऑफ बडौदा द्वारा तहसीलदार भोगनीपुर को प्रेषित पत्र दिनांकित 21-अगस्त-2018 की छायाप्रति, Certificate of the Discharge दिनांकित 21-अगस्त-2018 की छायाप्रति व  No Dues Certificate दिनांकित 21-अगस्त-2018 की छायाप्रति साक्ष्य के रूप में पत्रावली पर दाखिल किया है ।

     परिवादी की ओर से परिवाद पत्र में वर्णित कथनों के समर्थन में परिवादी स्वयं परिवादी राजा सिंह द्वारा साक्ष्य शपथपत्र दिनांकित 05.12.2022 पत्रावली पर दाखिल किया गया है । इसके अतिरिक्त परिवादी के समर्थन में श्री अरविन्द सिंह पुत्र लल्ला सिंह निवासी ग्राम व पोस्ट अंगदपुर तहसील भोगनीपुर जिला कानपुर देहात का साक्ष्य शपथपत्र दिनांकित 05.12.2022 पत्रावली पर दाखिल किया गया है ।

     विपक्षी बैंक ऑफ बडौदा की ओर से श्री विनय कुमार पुत्र श्री गोविन्द दास, शाखा प्रबन्धक शाखा डीघ जिला कानपुर देहात द्वारा जवाबदेही में वर्णित कथनों के समर्थन में साक्ष्य प्रतिशपथपत्र दिनांकित 07.10.2023 पत्रावली पर दाखिल किया गया है ।

     परिवादी की ओर से उनके अधिवक्ता द्वारा लिखित बहस दिनांकित 07.05.2024 पत्रावली पर दाखिल की गयी । विपक्षी बैंक ऑफ बडौदा की ओर से लिखित बहस दिनांकित 03.06.2024 पत्रावली पर दाखिल की गयी ।

     विपक्षी बैंक ऑफ बड़ौदा की ओर से उनके विद्वान अधिवक्ता द्वारा प्रार्थना पत्र दिनांकित 30.08.2024 के साथ विधि व्यवस्थाओं को दिनांक 31.08.2024 को पत्रावली पर दाखिल किया गया ।

     उभयपक्षों के विद्वान अधिवक्ताओं की मौखिक बहस सुनी तथा उनकी ओर से दाखिल लिखित बहस का परिशीलन किया ।    

     पत्रावली के परिशीलन से विदित है कि परिवादी ने परिवाद पत्र की धारा-6 में यह अभिकथन किया है कि दिनांक 21.08.2018 को श्री अनुज कटियार शाखा प्रबन्धक ने वादी को गुमराह कर अदा किये गये ऋण के बावत 19,901/- रुपये पुनः लेते हुये एक रसीद दिनांक 21.08.2018 को जारी कर पुनः डिस्चार्ज प्रमाणपत्र दिनांक 21.08.2018 को दिया जबकि सभी ऋण दिनांक 17.09.2016 को अदा किये जाने के बाद दिनांक 06.07.2018 को डिस्चार्ज प्रमाणपत्र एवं नोडयूज प्रमाणपत्र दिया जा चुका है । इस प्रकार से विपक्षी ने परिवादी से छल एवं प्रवंचना करके 19,901/- रुपये हड़प लिये । आगे परिवादी ने परिवाद पत्र की धारा-7 में विपक्षी के यहाँ जाकर कई बार मौखिक शिकायत किया जाना कहा है तथा परिवाद पत्र की धारा-8 में परिवादी ने दिनांक 13.12.2021 व दिनांक 08.03.2022 को रजिस्टर्ड नोटिस देना कहा है । इस सम्बन्ध में विपक्षी बैंक ने अपनी जवाबदेही के पैरा-9 में स्पष्ट रूप से कहा है कि परिवादी का परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत काल बाधित है, कतई पोषणीय नहीं है ।

     The Consumer Protection Act, 2019 की धारा-69 (1) के अन्तर्गत अनुबन्ध है कि- The District Commission, the State Commission or the National Commission shall not admit a complaint unless it is filed within two years from the date on which the cause of action has arisen. इस सम्बन्ध में विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता की ओर से 2011 (1) OLR 390; 2010 0 Supreme (Ori) 611 Seven Hills Estates Ltd. Gandhi Nagar बनाम Smt. Purnima Pattnaik के मामले में दिनांक 23.11.2010 को निर्णीत करते हुये यह सिद्धांत प्रतिपादित किया कि- Held, complaint had already become belated and barred by limitation- Making of correspondence does not enlarge the period of limitation and writing of letter in July 2007 and sending Advocates notice in September 2007 cannot extend the period of limitation.

     इस प्रकार उपरोक्त पारित सिद्धांत से यह विदित है कि वाद का कारण उत्पन्न होने के पश्चात 2 वर्ष के अन्दर परिवाद दाखिल हो जाना चाहिये । प्रस्तुत मामले में परिवादी के कथनानुसार वाद का कारण दिनांक 21.08.2018 को उत्पन्न हुआ तो दिनांक 21.08.2018 से दिनांक 20.08.2020 तक परिवाद दाखिल हो जाना चाहिये था किन्तु प्रस्तुत मामले में परिवाद दिनांक 25.03.2022 को आयोग के समक्ष संस्थित किया गया तथा परिवादी की ओर से विपक्षी को नोटिस दिनांक 13.12.2021 व 08.03.2022 को भेजी गयी । माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित उपरोक्त विधि व्यवस्था में स्पष्ट रूप से यह सिद्धांत प्रतिपादित किया गया कि, Making of correspondence does not enlarge the period of limitation and writing of letter in July 2007 and sending Advocates notice in September 2007 cannot extend the period of limitation.

     इस प्रकार इन परिस्थितियों में प्रस्तुत मामले में वाद के गुण-दोष पर विचार किये बिना, The Consumer Protection Act, 2019 की धारा-69 (1) के बिंदुओं को दृष्टिगत रखते हुये प्रस्तुत परिवाद, ग्राहय न होने के कारण पोषणीय नहीं रह जाता है । अतः परिवादी की ओर से प्रस्तुत परिवाद समय सीमा से बाधित होने के कारण खारिज  किये जाने के योग्य है ।

आदेश

     परिवादी का परिवाद समय सीमा से बाधित होने के कारण विपक्षी बैंक के विरुद्ध खारिज किया जाता है । पक्षकार अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करें ।

 

                         ( सुश्री कुमकुम सिंह )                  ( मुशीर अहमद अब्बासी )

                                म0 सदस्य                                        अध्यक्ष

                      जिला उपभोक्ता आयोग                  जिला उपभोक्ता आयोग

                            कानपुर देहात                                 कानपुर देहात

     प्रस्तुत निर्णय / आदेश हस्ताक्षरित एवं दिनांकित होकर खुले कक्ष में उद्घोषित किया गया ।

 

                          ( सुश्री कुमकुम सिंह )                 ( मुशीर अहमद अब्बासी )

                                म0 सदस्य                                        अध्यक्ष

                       जिला उपभोक्ता आयोग                  जिला उपभोक्ता आयोग

                             कानपुर देहात                                 कानपुर देहात

दिनांक:- 18.09.2024

 

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