Rajasthan

Jalor

C.P.A 146/2012

Durga Way Bridge - Complainant(s)

Versus

Branch Managar,Jalore Sahakari Bank Ltd.,etc - Opp.Party(s)

Santosh Bharti

25 Mar 2015

ORDER

पीठासीन अधिकारी

अध्यक्ष:-  श्री  दीनदयाल प्रजापत,

सदस्यः-   श्री केशरसिंह राठौड,

सदस्याः-  श्रीमती मंजू राठौड,

      ..........................

 

1.मैसर्स दुर्गा वे ब्रिज, जालोर

भोमाराम पुत्र हरजीजी, उम्र 48 वर्ष

2.गमनाराम पुत्र अचलाजी, समस्त जातियांन माली, उम्र 42 वर्ष, निवासी-औद्यौगिक तृतीय चरण, भीनमाल    रोड, जालोर।    

 

 

.......प्रार्थीगण।

       बनाम  

1.प्रबन्धक, संचालक मण्डल, जालोर नागरिक सहकारी  बैंक लिमिटेड, जालोर।

2. शाखा प्रबन्धक, जालोर नागरिक सहकारी  बैंक लिमिटेड, सिटी काम्पलैक्स के पास, जालोर, जिला जालोर।

 

 

...अप्रार्थीगण।

              सी0 पी0 ए0 मूल परिवाद सं0:- 146/2012

परिवाद पेश करने की  दिनांक:-05-11-2012

अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता  संरक्षण  अधिनियम ।

उपस्थित:-

1.     श्री सन्तोष भारती,  अधिवक्ता प्रार्थीगण।

2.     श्री  रमेश सोलंकी, अधिवक्ता अप्रार्थीगण।

निर्णय   दिनांक:  25-03-2015

1.              संक्षिप्त में परिवाद के तथ्य इसप्रकार हैं कि प्रार्थीगण ने अपना व्यवसाय बढाने के आशय से तथा मैसर्स दुर्गा वे ब्रिज की उन्नति करने के आशय से अप्रार्थीगण संख्या - 2 से सम्पर्क कर ऋण रूपयै 6,80,000/- प्राप्त किया । उक्त  ऋण के पुर्नभुगतान हेतु 14000/-रूपयै की कुल 60 किश्ते चुकाई जाना तय किया। इसप्रकार प्रार्थीगण उक्त बैंक के उपभोक्ता की श्रेणी में आते हैं। अप्रार्थीगण ने उक्त स्वीकृत  ऋण को एकमुश्त प्रार्थीगण को भुगतान नहीं करके तीन किश्तो में भुगतान किया। प्रथम किश्त दिनांक 24-03-2007 को 4,30,000/-रूपयै, द्वितीय किश्त दिनांक 24-03-2007 को 1,50,000/- तथा अन्तिम किश्त दिनांक 30-03-2007 को 1,00,000/-रूपयै का भुगतान प्रार्थीगण को किया गया। इसप्रकार तीनो किश्तो में कुल 6,80,000/-रूपयै का ऋण प्रार्थीगण को दिया गया। प्रार्थीगण का बैंक खाता एम0 टी0 लोन संख्या- 751 हैं। तथा प्रार्थीगण ने तयशुदा पुर्नभुगतान 60 किश्तो में प्रति किश्त 14000/-रूपयै के हिसाब से बैंक में समय-समय पर जमा कराने का दायित्व निभाया। इसप्रकार प्रार्थी ने कुल  ऋण पेटे 59 किश्ते  बैंक में जमा करवाई, तथा शेष अन्तिम किश्त वर्ष 2012 के मई माह में जमा करवाने हेतु अप्रार्थी बैंक से सम्पर्क किया, तब अप्रार्थीगण ने कहा, कि आपमें हमारी बैंक के 1,94,840/-रूपयै अभी भी बकाया निकलते हैं। तब प्रार्थीगण ने अप्रार्थी से कहा कि हमने 59 किश्ते नियमित रूप से आपकी बैंक में जमा करवाई हैं, शेष एक किश्त रही हैं, जिसे जमा कर अदेय प्रमाणपत्र जारी करे। जिसपर अप्रार्थीगण ने कहा कि आपको किश्तो की कई राशि व समय- समय पर अधिक ब्याज राशि भी आपको जमा करवानी होगी। यानि 13.05 प्रतिशत  एवं 14 प्रतिशत वार्षिक के हिसाब से ब्याज भी चुकाना पडेगा । तथा अप्रार्थीगण बैंक ने स्वीकृत ऋण के पुर्नः भुगतान हेतु 14000/-रूपयै की 60 किश्ते की थी, जिससे भी अधिक राशि प्राप्त कर सेवा दोष किया हैं। इसलिए उपरोक्त राशि के भुगतान के अलावा अतिरिक्त जमा राशि 76000/-रूपयै मय सालाना 13 प्रतिशत वार्षिक ब्याज से प्रार्थीगण, अप्रार्थी बैंक से पुनः प्राप्त करने के अधिकारी हैं। इसप्रकार प्रार्थी ने यह परिवाद अप्रार्थीगण के विरूद्व अतिरिक्त जमा कराई गई राशि 76000/-रूपयै तथा अप्रार्थी बैंक ने प्रार्थीगण को पूर्व सूचित किये बिना उनके बैंक खाते से बीमा प्रिमियम राशि 5794/-रूपयै प्राप्त किये वह एवं आर्थिक क्षति के रूपयै 1,00,000/-, मानसिक वेदना के रूपयै 30000/-, व परिवाद खर्च  रूपयै 5000/-, दिलवाये जाने  हेतु यह परिवाद जिला मंच के समक्ष पेश किया गया हैं।

 

2.            प्रार्थीगण केे परिवाद को कार्यालय रिपोर्ट के बाद दर्ज रजिस्टर कर अप्रार्थीगण को जरिये रजिस्टर्ड ए0डी0 नोटिस जारी कर तलब किया गया। जिस पर अप्रार्थीगण की ओर से अधिवक्ता श्री रमेश कुमार सोलंकी ने उपस्थिति पत्र प्रस्तुत कर पैरवी की। तथा अप्रार्थीगण ने प्रथम दृष्टया प्रार्थी का परिवाद अस्वीकार कर, जवाब परिवाद के साथ प्रारंभ्भिक आपत्तिया पेश कर कथन किये , कि प्रार्थीगण की फर्म मैसर्स दुर्गा वे ब्रिज एक व्यापारिक संस्था हैं, जिससे प्रार्थीगण, अप्रार्थीगण के उपभोक्ता नहीं हैं। तथा अप्रार्थी की बैंक राजस्थान सहकारी सोसायटी अधिनियम के तहत पंजीकृत हैं तथा प्रार्थीगण अप्रार्थी बैंक के सदस्य हैं, जिससे सदस्य व बैंक के बीच कोई विवाद होने पर अधिनियम की धारा 58 के अन्तर्गत निपटारा किया जायेगा, जिसका अधिकारी रजिस्ट्रार सहकारी संस्थान को होने से यह परिवाद खारीज किये जाने योग्य है। तथा प्रार्थीगण की ऋण पत्रावली दिनांक 24-03-2007 को स्वीकृत की थी, तथा 7,00,000/-रूपयै स्वीकृत किये थे, न कि 6,80,000/-रूपयै। रूपयै 7,00,000/- व इस पर लगने वाला ब्याज जो जोडकर 60 किश्तो में प्रार्थीगण को भुगतान करना था, जो प्रार्थीगण ने नहीं करके कम भुगतान किया हैं, तथा ऋण आज भी बकाया हैं, जो अप्रार्थीगण, प्रार्थीगण से प्राप्त करने के अधिकारी हैं। प्रार्थीगण को 7,00,000/-रूपयै का ऋण स्वीकृत किया गया था, तथा उस पर ब्याज 2,77,000/-रूपयै , कुल मिलाकर 9,77,000/- रूपयै 60 किश्तो में जमा करवाने थे, जिसकी प्रत्येक माह किश्त 16,200/-रूपयै  चुकानी थी, लेकिन कल्यरीकल  मिस्टेक की वजह से 14000/- रूपयै किश्त प्रार्थी द्वारा हर माह जमा करवाने से हर माह 2200/-रूपयै  कम जमा हूए हैं। जिसका ज्ञान प्रार्थी को शुरू से बखूबी था, लेकिन  प्रार्थी द्वारा यह कहा गया कि मैं ऋण की 60 किश्ते पूरी होने पर एक मुश्त 2200/-रूपयै  के हिसाब से 60 किश्तो की राशि व ब्याज जमा करा दूगंा। जब प्रार्थीगण द्वारा अन्तिम किश्त माह अप्रेल 2012 में जमा करवानी थी, तब प्रार्थी को कहा गया कि जो राशि कम जमा हुई हैं, वह राशि जमा करवाओं । तब प्रार्थीगण ने कहा कि मैं मई माह में जमा करवा दूगंा, जिस पर प्रार्थीगण द्वारा दिनांक 10-05-2012 को रूपयै 50,000/- एवं दिनांक 11-06-2012 को रूपयै 40,000/- उक्त राशि के पेटे जमा करवाये गये हैं, तथा दिनांक 31-05-2013 तक प्रार्थीगण में अप्रार्थी बैंक का ऋण राशि रूपयै 1,27,899/- बकाया निकल रहे हैैं। तथा प्रार्थीगण का ऋण बकाया होने से अप्रार्थीगण बैंक द्वारा अदेय प्रमाण पत्र जारी नहीं किया गया हैं, जिससे प्रार्थीगण को कोई हानि नहीं हुई हैं। तथा प्रार्थीगण का परिवाद गलत आधारो पर पेश किया गया हैं। इसप्रकार अप्रार्थीगण ने जवाब प्रस्तुत कर प्रार्थीगण का परिवाद मय खर्चे खारिज किये जाने का निवेदन किया हैं।

 

3.           हमने उभय पक्षो को साक्ष्य सबूत प्रस्तुत करने का पर्याप्त समय/अवसर देने के बाद,  उभय पक्षो के विद्वान अधिवक्ताओं की बहस एवं तर्क-वितर्क सुने, जिन पर मनन किया तथा पत्रावली का ध्यानपूर्वक अवलोकन एवं अध्ययन किया, तो हमारे सामने मुख्य रूप से तीन विवाद बिन्दु उत्पन्न होते हैं जिनका निस्तारण करना आवश्यक  हैें:-

 

1  क्या प्रार्थी, उपभोक्ता की परिभाषा में आता हैं ?     प्रार्थी

 

2  क्या  अप्रार्थीगण ने  प्रार्थीगण को दिये गये ऋण पेटे अधिक

      राशि वसूल कर सेवा  प्रदान  करने  में गलती एवं लापरवाही

      कारित की हैं ?           

                                                   प्रार्थी                                    

3  अनुतोष क्या होगा ?     

 

प्रथम विधिक विवाद बिन्दु:-

 

     क्या प्रार्थी, उपभोक्ता की परिभाषा में आता हैं ?     प्रार्थी

 

           

                 उक्त प्रथम विधिक विवाद बिन्दु को सिद्व एवं प्रमाणित करने का भार प्रार्थी पर हैं, तथा जिला मंच का भी सर्वप्रथम यह दायित्व हैं कि वह सर्वप्रथम इस बिन्दु का निस्तारण करे, क्यों कि  जब तक प्रार्थी उपभोक्ता होना सिद्व नहीं कर देता, या  उपभोक्ता होना मान लिया नहीं जाता, तब तक प्रार्थी के परिवाद के अन्य बिन्दुओं पर विचार नहीं किया जा सकता हैं। प्रार्थी ने उक्त विधिक विवाद बिन्दु को सिद्व करने के लिए परिवाद पत्र एवं साक्ष्य शपथपत्र प्रस्तुत कर कथन किये हैं कि  मैसर्स दुर्गा वे ब्रिज एक व्यापारिक संस्था हैं, जिसका संचालन प्रार्थीगण साझेंदारी के रूप में करते हैं। प्रार्थीगण ने अपना व्यवसाय बढाने के आशय से तथा मैसर्स दुर्गा वे ब्रिज की उन्नति करने के लक्ष्य से अप्रार्थीगण संख्या 2 से सम्पर्क कर ऋण प्राप्त किया था, तथा अप्रार्थी बैंक ने प्रार्थीगण से  ऋण दिलाने के सम्बन्ध में सेवा शुल्क भी लिया था। इसप्रकार प्रार्थीगण , अप्रार्थीगण बैंक के उपभोक्ता की श्रेणी में आते हैं। अप्रार्थीगण ने प्रार्थी के परिवाद  एवं साक्ष्य शपथपत्र के खण्डन में जवाब परिवाद पत्र एवं साक्ष्य शपथपत्र  तथा विशेष आपत्तियां प्रस्तुत कर कथन किये, कि प्रार्थीगण की फर्म एक व्यापारिक संस्थान हैं, जिससे प्रार्थीगण, अप्रार्थीगण के उपभोक्ता नहीं हैं।  हमने प्रार्थीगण एवं अप्रार्थीगण के कथनो पर विचार किया, तथा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2 1 क  पप  मे उपभोक्ता की परिभाषा इसप्रकार दी गई हैं:-

 

 ब्वदेनउमत  उमंदे  ं  चमतेवद ूीव दृ

 

पप   ीपतम  वत  ंअंपसे  व ि ंदल  ेमतअपबमे  वित  ं  बवदेपकमतंजपवद ूीपबी  ींे  इममद चंपक  वत चतवउपेमक वत  चंतजसल चंपक ंदक चंतजसल चतवउपेमक  ए वत नदकमत  ंदल  ेलेजमउ  व ि कममिततमक  चंलउमदज  ंदक पदबसनकमे  ंदल  इमदमपिबपंतल  व ि ेनबी  ेमतअपबमे  वजीमत  जींद जीम  चमतेवद  ूीव  ीपतमे  वत  ंअंपसे  व ि जीम  ेमतअपबमे  वित  बवदेपकमतंजपवद  चंपक  वत  चतवउपेमकए  वत  चंतजसल  चंपक  ंदक  चंतजसल चतवउपेमक  ए वत नदकमत  ंदल  ेलेजमउ  व ि कममिततमक  चंलउमदजए ूीमद  ेनबी  ेमतअपबमे  ंतम  ंअंपसमक  व िूपजी  जीम  ंचचतवअंस  व िजीम  पितेज  उमदजपवदमक  चमतेवद इनज कवमे  दवज  पदबसनकम  ं चमतेवद  ूीव  ंअंपसे  व ि ेनबी ेमतअपबमे  वित  ंदल बवउउमतबपंस  चनतचवेमण्

 

म्गचसंदंजपवद ..           थ्वत जीम  चनतचवेम  व ि जीपे  बसंनेम ए  बवउउमतबपंस  चनतचवेम   कवमे  दवज  पदबसनकम नेम  इल  ं चमतेवद  व िहववके  इतवनहीज  ंदक  नेमक  इल ीपउ  ंदक ेमतअपबमे   ंअंपसमक  इल ीपउ  तथा माननीय राष्ट्रीय आयोग छण्ब्ण्क्ण्त्ण्ब्ण्  नई दिल्ली ने  उध्े ।ेीपंदं  प्दद स्पउपजमक  अध्े च्नदरंइ - ैपदक  ठंदाए प्थ्ठ ठंदाए के परिवाद नम्बर-99/2013 में, निर्णय दिनांक 05-07-2013 व  उध्े ।ांेी  हंदहं  ।पतसपदमे  स्जक अध्े ।तलंतंज ळतंउपद  ठंदा के परिवाद नम्बर- 157/2013 में निर्णय दिनांक 06-08-2013  में, निर्णय पारित कर ‘‘ब्वदेनउमत   ूीमद जीम चमतेवदे  ंअंपसपदह  ेमतअपबमे  ीपतमक वित बवउउमतबपंस  चनतचवेम  ूमतम दवज  मगबसनकमक  तिवउ जीम  कमपिदपजपवउ व ि बवदेनउमतण् अर्थात् वाणिज्यिक उदेश्य से ली गई सेवा उपभोक्ता सेवाओं में सम्मिलित होना नहीं माना हैें। तथा प्रार्थी ने अपने हस्तगत परिवाद में अप्रार्थीगण बैंक से ऋण प्राप्त करने  का उदेश्य व्यवसाय को विकसित करने एवं व्यवसाय बढाने के आशय  के कथन स्पष्ट रूप से लिखे हैं,  जो प्रार्थीगण का अप्रार्थी बैंक से ऋण लेने का उदद्ेश्य वाणिज्यिक हैं। इसप्रकार प्रार्थी का परिवाद उपभोक्ता सेवाओं में कमी का नहीं होना सिद्व एवं प्रमाणित हैं। तथा प्रार्थी , अप्रार्थीगण का उपभोक्ता नहीं होना माना जाने से  प्रार्थी का परिवाद मेन्टेनेबल  नहीं हैं, जो अस्वीकार किये जाने योग्य हैंै।

 

                     इस प्रकार प्रार्थी उक्त विधिक विवाद बिन्दु के निस्तारण अनुसार उपभोक्ता नहीं होने से शेष विवाद बिन्दुओं का निस्तारण करना हमारे लिए आवश्यक  नहीं हैं।

 

आदेश

        अतः प्रार्थीगण मैसर्स दुर्गा वे ब्रिज  जालोर का परिवाद विरूद्व अप्रार्थीगण प्रबन्धक, संचालक मण्डल, जालोर नागरिक सहकारी  बैंक लिमिटेड, जालोर व अन्य के विरूद्व परिवाद में प्रार्थीगण के ऋण प्राप्त करने का उदेश्य वाणिज्यिक होने से प्रार्थी, अप्रार्थीगण का उपभोक्ता होना नहीं माना जाने से प्रार्थी का परिवाद मैन्टेनेबल नहीं होेने से खारीज किया जाता हैं। तथा खर्चा पक्षकारान अपना-अपना वहन करे। तथा प्रार्थीगण को सलाह दी जाती हैं कि अप्रार्थी बैंक, सहकारी सोसायटी बैंक हैं  जो सोसायटी अधिनियम के तहत विवाद रजिस्ट्रार, सहकारी संस्थान के यहंा पेश कर सकते हैं, या सक्षम सिविल न्यायालय में भी वाद पेश कर सकते हैं।

निर्णय व आदेश आज दिनांक 25-03-2015 को विवृत मंच में लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।

 

 

                       मंजू राठौड          केशरसिंह राठौड        दीनदयाल प्रजापत

                              सदस्या            सदस्य                       अध्यक्ष   

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