Savarup Singh filed a consumer case on 20 Feb 2015 against Branch Managar,Bhumi Vikias Bank Ltd. in the Jalor Consumer Court. The case no is C.P.A 91/2013 and the judgment uploaded on 16 Mar 2015.
न्यायालयःजिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच,जालोर
पीठासीन अधिकारी
अध्यक्ष श्री दीनदयाल प्रजापत,
सदस्य श्री केशरसिंह राठौड
सदस्या श्रीमती मंजू राठौड,
..........................
1.स्वरूपसिंह पुत्र प्रेमसिंहजी, जाति राजपूत, उम्र- 30 वर्ष, निवासी-डडूसन, तहसील साचोंर, जि0 जालोर ।
....प्रार्थी।
बनाम
1.शाखा प्रबन्धक,
सहकारी भूमि विकास बैंक लि0, जालोर।
2.शाखा सचिव,
जालोर सहकारी भूमि विकास बैंक लि0,
शाखा- साचोंर, जिला- जालोर।
...अप्रार्थीगण।
सी0 पी0 ए0 मूल परिवाद सं0:- 91/2013
परिवाद पेश करने की दिनांक:-10-06-2013
अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ।
उपस्थित
1. श्री जगदीश गोदारा अधिवक्ता प्रार्थी।
2. श्री चुन्नीलाल पुरोहित, अधिवक्ता अप्रार्थी्र संख्या 1 व 2,
निर्णय दिनांक: 25.02.2015
1. संक्षिप्त में परिवाद के तथ्य इसप्रकार हैं कि प्रार्थी के पिता प्रेमसिंह ने सन् 2001 में अप्रार्थी क्रमांक- 2 से टैक्टर ट्रोली हेतु भूमि 9.34 हैक्टर रहन रख कर ऋण प्राप्त किया था। जिसकी ऋण राशि रूपयै 2,87,000 एवं ऋण खाता संख्या- 346/2001 तथा ऋण दिनांक 08.01.2001 थी, तथा ऋण की अवधि 9 वर्ष थी। तथा दिनांक 16-09-2002 को ब्याज के रूपयै 20,000/- अप्रार्थी के यहंा जमा करवाये, तथा प्रार्थी के पिता की मृत्यु दिनांक 16-09-2004 को हो जाने के बाद प्रार्थी, अप्रार्थी संख्या- 2 के कार्यालय गया व सूचना दी, कि पिताजी की मृत्यु हो गई हैं, तो अप्रार्थी संख्या- दो ने बताया कि आप किश्ते जमा करवा दो, आपसे दण्डनीय ब्याज व अवधिपार ब्याज नहीं लिया जायेगा। तब प्रार्थी ने दिनांक 14-07-2009 को रूपयै 57500/-, दिनांक 22-6-2010 को 1,00,000/-रूपयै, दिनांक 14-06-2010 को 40,000/-रूपयै, दिनांक 23-06-2011 को 43000/-रूपयै, दिनांक 30-06-2011 को 2,40,000/-रूपयै, दिनांक 30-06-2011 को 8700/-रूपयै, दिनांक 30-06-2011 को 48576/-रूपयै जमा करवाये। तथा राजस्थान राज्य सहकारी भूमि विकास बैंक लि0 के आदेश क्रमांक- 37/अकृषि/एमुसयो/2010...2011/34123-222 दिनांक 31-12-2010 में पारित आदेश में पैरा संख्या- 8 के उप पैरा- 9 में स्पष्ट निर्देश हैं कि ऐसे ऋणी जिनकी मृत्यु हो चुकी हैं, मृत्यु की तिथी से समझौता तक का ब्याज, दण्डनीय ब्याज व वसूली खर्च, वसूल नहीं किया जायेगा। अप्रार्थी संख्या- 2 द्वारा इस नियम की पालना नहीं की गई हैं। 31 मार्च 2010 तक प्रार्थी से रूपयै 4,24,769/-बकाया थे, तथा परिवादी ने 04 जून 2010 को रूपयै 40,000/- व 22-06-2010 को रूपयै 1,00,000/- जमा करवाये थे, तो घटाने पर शेष 2,84,769/- रूपयै थे, जबकि अप्रार्थी बैंक द्वारा 3,43,276/-रूपयै प्रार्थी से लिये गये हैं। जो ब्याज व दण्डनीय ब्याज वसूला गया हैं। इसप्रकार प्रार्थी ने यह परिवाद अप्रार्थीगण के विरूद्व मानसिक व आर्थिक क्षति के रूपयै 70,000/-, तथा प्रार्थी द्वारा जमा कराया गया ब्याज , दण्डनीय ब्याज व अवधि पार ब्याज दिलाये जाने का आदेश एवं परिवाद व्यय के रूपयै 5,000/-, दिलाये जाने हेतु यह परिवाद जिला मंच में पेश किया हैं।
2. प्रार्थी केे परिवाद को कार्यालय रिपोर्ट के बाद दर्ज रजिस्टर कर अप्रार्थीगण को जरिये रजिस्टर्ड ए0डी0 नोटिस जारी कर तलब किया। अप्रार्थीगण की ओर से अधिवक्ता श्री चुन्नीलाल पुरोहित ने उपस्थिति पत्र प्रस्तुत कर पैरवी की। अप्रार्थीगण ने प्रथम दृष्टया प्रार्थी का परिवाद अस्वीकार कर, जवाब परिवाद प्रस्तुत कर कथन किये, कि प्रार्थी के पिता प्रेमसिंह ने अप्रार्थीगण से ऋण लिया था, यह बात सही हैं, तथा ऋणी की मृत्यु हो गई हैं। प्रार्थी के द्वारा अप्रार्थी के यहंा समय-समय पर ऋण राशि जमा करवाई, यह ऋण राशि प्रार्थी के पिता के खाते में जमा हैं। अप्रार्थी बैंक द्वारा नियमानुसार बकाया राशि प्राप्त करने हेतु नोटिस दिये थे, तथा ऋण राहत योजना के अन्तर्गत दिनांक 30-06-2010 को अवधि पार बकाया ब्याज के रूपयै 106356/- व दण्डित ब्याज 20739/-रूपयै बकाया था। उसके बाद खाता बन्द होने के दिनांक 30-06-2011 तक राशि ब्याज व दण्डित ब्याज वसूली खर्चा कुल 1,92,329/-रूपयै अवधि पार हो गया था, जो समस्त बकाया राशि वसूली खर्चा सहित बैंक की तरफ से छूट प्रदान की गई है। ऋण वर्ष 2006 में लिया गया था, तथा राज्य सरकार द्वारा 31-12-2010 तक अवधि मानी गई थी। उस समय से लेकर आज दिन तक परिवाद म्याद बाहर हैं, तथा ऋण माफी योजना के अनुसार यदि ऋणी जीवित होते, तो दिनांक 30-06-2010 को अवधि पार बकाया ब्याज का 50 प्रतिशत रूपयै 53177/- एवं दण्डित ब्याज शत प्रतिशत 2749/- एवं वसूली खर्च रूपयै 2000/- कुल 75917/- की छूट मिलती। चूकिं ऋणी की मृत्यु होने के कारण दिनांक 30-06-2010 को अवधि पार बकाया रूपयै 106357/- शेष रहा तथा ब्याज रूपयै 53178/- व उसके बाद खाता बन्द होने तक सम्पूर्ण ब्याज व दण्डित ब्याज के रूपयै 15928/- कुल 116416/- रूपयै की छूट दी गई हैं, तथा ऋणी का खाता 31-03-2010 तक संदिग्ध हो गया था। तथा भारत सरकार से ऋण माफी राहत योजना 2008 लागू की थी, उसमें दो हैक्टर से अधिक कृषि भूमि वाले काश्तकारो को दिनांक 29-02-2008 को अवधि पार बकाया राशि को पात्रता माना गया हैं, प्रार्थी को भारत सरकार की योजना का लाभ नहीं मिला। तथा राजस्थान सहकारी समिति अधिनियम के अन्तर्गत सदस्य व बैंक के लेन-देन के सम्बन्ध में कोई विवाद उत्पन्न हो जाये, उसका निपटारा केवल मात्र संयुक्त रजिस्ट्रार व सहायक रजिस्ट्रार के यहंा अपीलीय अधिकार हैं। जिला मंच को सुनवाई का क्षैत्राधिकार नहीं हैं। इसप्रकार अप्रार्थीगण ने जवाब परिवाद प्रस्तुत कर प्रार्थी का परिवाद खारीज करने का निवेदन किया हैं।
3. हमने उभय पक्षो को साक्ष्य सबूत प्रस्तुत करने के पर्याप्त समय एवं अवसर देने के बाद, उभय पक्षो के विद्वान अधिवक्ताओं की बहस एवं तर्क-वितर्क सुने, जिस पर मनन किया तथा पत्रावली का ध्यानपूर्वक अवलोकन एवं अध्ययन किया, तो हमारे सामने मुख्य रूप से तीन विवाद बिन्दु उत्पन्न होते हैं जिनका निस्तारण करना आवश्यक हैें:-
1. क्या प्रार्थी, अप्रार्थीगण का उपभोक्ता हैं ? प्रार्थी
2. क्या अप्रार्थीगण ने प्रार्थी से अधिक ब्याज व दण्डनीय ब्याज
राशि वसूली कर, सेवा प्रदान करने में गलती एवं कमी कारित
की हैं ? प्रार्थी
3. अनुतोष क्या होगा ?
प्रथम विधिक विवाद बिन्दु:-
क्या प्रार्थी, अप्रार्थीगण का उपभोक्ता हैं ? प्रार्थी
उक्त प्रथम विधिक विवाद बिन्दु को सिद्व एवं प्रमाणित करने का भार प्रार्थी पर हैं। जिसके सम्बन्ध में प्रार्थी ने परिवाद पत्र एवं साक्ष्य शपथपत्र प्रस्तुत कर कथन किये हैं कि प्रार्थी के पिता प्रेमसिंह ने दिनांक 08-01-2001 को अप्रार्थीगण से टैक्ट्रर ट्रोली क्रय बाबत् ऋण प्राप्त किया था, तथा प्रार्थी के पिता ऋणी प्रेमसिंह की मृत्यु दिंनाक 16-09-2004 को हो जाने से ऋण राशि की अदायगी प्रार्थी ने उत्तराधिकारी के रूप में अप्रार्थीगण को की हैं, जिसके कारण प्रार्थी , अप्रार्थीगण का उपभोक्ता हैं। प्रार्थी ने उक्त कथनो के समर्थन में ऋणी प्रेमसिंह के मृत्यु प्रमाण पत्र की प्रति पेश की हैं। तथा प्रार्थी ने ऋण अदायगी की रसीद नम्बर-088778 दिनांक 12-06-2002 रूपयै 20,000/-, रसीद नम्बर-03569 दिनांक 14-07-2009 रूपयै 57,500/-, रसीद नम्बर-07273 दिनांक 14-06-2010 रूपयै 40,000/-, रसीद नम्बर- 07416 दिनांक 22-06-2010 रूपयै 1,00,000/-, रसीद नम्बर- 08830 दिनांक 23-06-2011 रूपयै 46,000/-, रसीद क्रमाक-09067 दिनांक 30-06-2011 रूपयै 2,40,000/-, रसीद नम्बर- 05482 दिनांक 30-06-2011 रूपयै 8700/-, रसीद नम्बर-09157 दिनांक 30-06-2011 को रूपयै 48,576/- जमा कराने की प्रतियां पेश की हैं। जो अप्रार्थीगण ने प्रार्थी के पिता प्रेमसिंह के नाम ऋण खाता संख्या- 346 में जमा होने की जारी की हैं, तथा अप्रार्थीगण ने भी जवाब परिवाद में स्वीकार किया हैं कि प्रार्थी ने अपने पिता प्रेमसिंह के ऋण की अदायगी की हैं। जिसकी जमा रसीदे जारी की गई हैं। इसप्रकार प्रार्थी एवं अप्रार्थीगण के मध्य ग्राहक- उपभोक्ता का सीधा सम्बन्ध स्थापित होना सिद्व एवं प्रमाणित हैं। तथा प्रार्थी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2 1 ख अ के तहत उपभोक्ता की परिभाषा में आता हैं, इसप्रकार प्रथम विवाद बिन्दु प्रार्थी के पक्ष में तथा अप्रार्थी के विरूद्व निस्तारित किया जाता हैं।
द्वितीय विवाद बिन्दु:-
क्या अप्रार्थीगण ने प्रार्थी से अधिक ब्याज व दण्डनीय ब्याज
राशि वसूली कर, सेवा प्रदान करने में गलती एवं कमी कारित
की हैं ?
प्रार्थी
उक्त द्वितीय विवाद बिन्दु को सिद्व एवं प्रमाणित करने का भार प्रार्थी पर हैं। जिसके सम्बन्ध में प्रार्थी ने परिवादपत्र एवं साक्ष्य शपथपत्र प्रस्तुत कर कथन किये हैं कि दिनंाक 31-03-2010 तक प्रार्थी के पिता के ऋण खाते बाबत् रूपयै 4,24769/- बकाया थे, तथा प्रार्थी ने दिनांक 04 जून 2010 को रूपयै 40,000 व 22 जून 2010 को रूपयै 1,00,000/- जमा करवाये थे, तो 4,24,769-1,40,000/- त्र 284269/- रूपयै बकाया होने चाहिए, जबकि बैंक द्वारा रूपयै 3,43,276/- बकाया बताकर वसूल किये हैं, जो ब्याज व दण्डनीय ब्याज वसूला गया हैं, जो राजस्थान राज्य सहकारी भूमि विकास बैंक लि0 के आदेश क्रमांक- 37/अकृषि/एमुसयो/2010...2011/34123-222 दिनांक 31-12-2010 के अनुसार वसूल नहीं करने थे। जिसके सम्बन्ध में प्रार्थी ने ऋण खाते के स्टैटमैन्ट आफ एकाउन्ट की प्रति पेश की हैं, जिसमें दिनांक 30-06-2004 को असल ( बकाया) रूपयै 4,24,769/- होना अंकित हैं। तथा इसके बाद दिनांक 04-06-2010 तक मूल ऋण रूपयै 4,24,769/- व ब्याज व दण्डित ब्याज की राशि पृथक से पृथक-पृथक काॅलम में दर्शित की गई हैं, जो दिनांक 31-03-2010 तक मूल/असल राशि रूपयै 4,24,769/- व ब्याज रूपयै 1,64,863/-, व दण्डनीय ब्याज 20,739/-रूपयै लिखा हुआ हैं। तथा प्रार्थी ने दिनांक 04-06-2010 को रूपयै 40,000/- की अदायगी की हैं। जो ब्याज पेटे जमा कर शेष ब्याज 1,24,863/-रूपयै लिखा गया हैं, तथा दिनांक 22-06-2010 को रूपयै 1,00,000/- प्रार्थी ने जमा करवाये हैं जिसकी रसीद संख्या-07416 हैं, जिसमें असल चालू पेटे रूपयै 81,493/- व अवधि पार ब्याज पेटे रूपयै 18,507/- कुल रूपयै एक लाख जमा किये हैं, जिसका विवरण भी स्टैटमैन्ट आफ एकाउन्ट में किया गया हैं, तथा ऋण समाधान योजना 2010 दिनांक 31-12-2010 को जारी की गई हैं। जो अप्रार्थीगण बैंक को दिनांक 03-01-2011 को पत्र के जरिये प्राप्त हुई हैं। तथा उक्त योजना 2010 के बिन्दू संख्या- 8 के उपबिन्दू संख्या- 13 मे स्पष्ट रूप से लिखा हैं कि यदि किसी ऋणी द्वारा समझौते के अन्तर्गत देय राशि से अधिक राशि खाते में जमा करा दी हैं तो किसी भी स्थिति में अधिक जमा कराई गई राशि लौटाई नहीं जायेगी इसप्रकार प्रार्थी ने उक्त ऋण समाधान योजना 2010 बैंक के पास पहूंचने से पूर्व ही दिनांक 04 जून व 22 जून 2010 को ऋण पेटे रूपयै 40,000/- व 1,00,000/- रूपयै जमा करवाये थे, वह राशि उक्त योजना के तहत होने वाले समझौते में शामिल नहीं की गई हैं क्यों कि उक्त राशि समझौते से पूर्व ही अदा की गई हैं तथा उक्त योजना के तहत समझौता बाद में हुआ हैं। तथा स्टैटमैन्ट आफ एकाउन्ट में वर्णितानुसार दिनांक 30-06-2010 तक ऋण के मूल पेटे राशि 3,43,276/- बाकि थे, तथा ब्याज के रूपयै 1,06,356/- व दण्डनीय ब्याज के रूपयै 20,739/- बाकि थे, तथा प्रार्थी ने ऋण समाधान जमा योजना 2010 के सम्बन्ध में समझौता दिनांक 03-01-2011 के बाद ही हो सकता हैं या किया जा सकता हैं, जो प्रार्थी ने अप्रार्थीगण बैंक को किया हैं, तथा समझौता के अनुसार ऋण खाते के स्टैटमैन्ट के अनुसार दिनांक 30-06-2010 तक मूल/असल ऋण पेटे रूपयै 3,43,276/- अंकित हैं, वहीं राशि अप्रार्थीगण ने प्रार्थी से ऋण पेटे दिनांक 23-06-2011 से दिनांक 30-06-2011 तक उपरोक्त वर्णित रसीदो के जरिये जमा करवाई हैं, तथा ब्याज एवं दण्डनीय ब्याज वसूल नहीं किया गया हैं। उक्त तथ्य सिद्व एवं प्रमाणित हैं। तथा अप्रार्थीगण ने कोई सेवा दोष, गलती या त्रुटि कारित नहीं की हैं , यह सिद्व होता हैं। तथा प्रार्थी ने दिनांक 4 जून व 22 जून 2010 को जो रूपयै ऋण पेटे अप्रार्थीगण के पास जमा करवाये हैं। वह भी उक्त ऋण समाधान योजना के तहत शामिल जोडकर अधिक ब्याज व दण्डनीय ब्याज वसूल करने का आधार लेकर उक्त परिवाद लाया हैं, जो प्रार्थी उक्त योजना को पूर्णतया समझ नहीं सकने के कारण विवाद उत्पन्न किया गया हैं। इसप्रकार विवाद का द्वितीय बिन्दु अप्रार्थीगण के पक्ष में तथा अप्रार्थी के विरूद्व निस्तारित किया जाता हैं।
तृतीय विवाद बिन्दु-
अनुतोष क्या होगा ?
जब प्रार्थी प्रथम विवाद बिन्दु के अनुसार उपभोक्ता तो हैं, लेकिन द्वितीय विवाद बिन्दू के निस्तारण अनुसार अप्रार्थीगण का सेवादोष कारित करना सिद्व व प्रमाणित नहीं कर सकने के कारण किसीप्रकार का अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी नहीं हैं। तथा प्रार्थी का परिवाद अस्वीकार कर खारीज किये जाने योग्य हैं।
आदेश
अतः प्रार्थी स्वरूपसिंह का उक्त परिवाद विरूद्व अप्रार्थीगण शाखा प्रबन्धक, सहकारी भूमि विकास बैंक लि0, जालोर व अन्य के विरूद्व अप्रार्थीगण का सेवादोष कारित करना सिद्व एवं प्रमाणित नहीं होने से प्रार्थी का परिवाद अस्वीकार कर खारीज किया जाता हैं। खर्चा पक्षकारान अपना-अपना वहन करेगें। ं
निर्णय व आदेश आज दिनांक 25-02-2015 को विवृत मंच में लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
मंजू राठौड केशरसिंह राठौड दीनदयाल प्रजापत
सदस्या सदस्य अध्यक्ष
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