जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद सं. 65/2015
रामेष्वर भाटी पुत्र श्री बुधाराम, जाति-माली, निवासी ग्राम- रोल,तहसील- जायल व जिला-नागौर(राज.)। -परिवादी
बनाम
1. बाॅम्बे वाॅच कम्पनी, सब्जी बाजार के पास, गांधी चैक, नागौर, तहसील व जिला- नागौर (राजस्थान)।
2. थ्।ैज्ज्त्।ब्ज्ञ ब्व्डडन्छप्ब्।ज्प्व्छै च्टज्ण् स्ज्क्ण् ठ.123ए ैम्ब्ज्व्त्.2ए छव्प्क्। (न्ण्च्ण्) .201301ए प्छक्प्।
-अप्रार्थीगण
समक्षः
1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. प्रार्थी स्वयं उपस्थित।
2. अप्रार्थीगण की ओर से कोई नहीं।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
आ दे ष दिनांक 16.03.2016
1. यह परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 संक्षिप्ततः इन सुसंगत तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया कि परिवादी ने अप्रार्थी संख्या 1 से एक लेमन मोबाइल माॅडल नं. जीसी 349 डबल सिम (आईएमईआई नम्बर 91133830251065 व एमईआईडी नं. ए100006ई1199डी2) दिनांक 02.05.2014 को जरिये बिल नं. 2420, दिनांक 02.05.2014 को 2,200/- रूपये देकर खरीद किया। जिसकी वारंटी अवधि एक वर्श थी। किन्तु खरीद के दूसरे ही दिन मोबाइल के स्क्रीन पर दिखाई देना बन्द हो गया तथा थोडी-थोडी देर से मोबाइल स्वतः ही बन्द भी होने लगा। बार-बार चालू करने पर स्क्रीन पर दिखना बन्द हो जाता तथा सिम कार्ड रिजेक्ट बताने लगा। इस पर अप्रार्थी संख्या 1 को षिकायत की तो उसने सर्विस सेंटर जाने का कहा। इस पर परिवादी सर्विस सेंटर गया तो सर्विस सेंटर वालों ने एक बार मोबाइल ठीक कर उसे दे दिया मगर कुछ समय पष्चात् ही मोबाइल में पूर्व दोश हो गया। इस पर परिवादी पुनः सर्विस सेंटर गया तो सर्विस सेंटर वालों ने विवादित मोबाइल की जगह उसे दूसरा नया मोबाइल दे दिया मगर उसमें भी वही समस्या आने लगी। इस पर परिवादी इस मोबाइल को लेकर भी सर्विस सेंटर गया लेकिन मोबाइल ठीक नहीं हुआ। कुल मिलाकर परिवादी ने पांच छह बार मोबाइल ठीक करवाया मगर मोबाइल ने ठीक से काम नहीं किया। बाद में परेषान होकर परिवादी 16.03.2015 को एक बार फिर सर्विस सेंटर गया तो सर्विस सेंटर वालों ने यह कहते हुए लौटा दिया कि अब यह मोबाइल ठीक नहीं होगा। फिर परिवादी अप्राथी संख्या 1 के पास गया और उससे मोबाइल के विनिर्माण दोश होने तथा वारंटी अवधि में होने की वजह से बदलने की मांग की तो उसने फोन बदलने एवं लेने से साफ मना कर दिया। अतः परिवादी को मोबाइल की बिल राषि मय वाद पत्र में अंकित अनुतोश के साथ दिलायी जावे।
2. अप्रार्थी संख्या 2 बावजूद तामिल/सूचना उपस्थित नहीं आया और ना ही कोई परिवादोतर प्रस्तुत किया गया। जबकि अप्रार्थी संख्या 1 का जवाब प्रस्तुत हुआ।
3. अप्रार्थी संख्या 1 ने अपने जवाब में स्वीकार किया कि परिवादी ने उससे एक लेमन मोबाइल माॅडल नम्बर जीसी 349 दिनांक 02.05.2014 को जरिये बिल संख्या 2420 के 2,200/- रूपये में क्रय किया। उक्त मोबाइल पर 12 माह की वारंटी थी मगर यह वारंटी निर्माता द्वारा देय थी न कि विक्रेता उसके द्वारा। परिवादी के विवादित मोबाइल की सर्विस भी अप्रार्थी संख्या 2 के अधिकृत सर्विस सेंटर गोविन्द टेलीकाॅम, पुराने पाॅवर हाउस के सामने, रामपोल चैराहा, नागौर पर होनी थी। इस तरह अप्रार्थी संख्या 1 का इससे कोई सरोकार नहीं है और ना ही उसका कोई सेवा दोश है। वारंटी सम्बन्धी सभी सेवाएं ग्राहक को स्वयं कम्पनी के सर्विस सेंटर से ही प्राप्त करनी होती है। जवाब में अप्रार्थी संख्या 1 ने परिवादी के इस कथन का भी खण्डन किया कि परिवादी अप्रार्थी संख्या 1 के प्रतिश्ठान पर षिकायत लेकर आया हो। परिवादी अप्रार्थी संख्या 1 के पास कोई षिकायत लेकर नहीं आया और बेवजह उसके विरूद्ध परिवाद पेष कर दिया। अतः परिवाद खारिज किया जावे।
4. बहस अंतिम सुनी गई। अभिलेख का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया गया।
5. परिवादी द्वारा प्रस्तुत षपथ-पत्र एव ंक्रय बिल की प्रति से यह स्पश्ट है कि परिवादी ने अप्रार्थी संख्या 1 से दिनांक 02.05.2014 को लेमन मोबाइल राषि 2,200/- रूपये में खरीद किया। अप्रार्थी संख्या 2 इस मोबाइल का हैड आॅफिस है। इस प्रकार परिवादी अप्रार्थीगण का उपभोक्ता होना पाया जाता है।
6. ऐसा कोई अभिकथन या साक्ष्य अप्रार्थीगण की ओर से नहीं है कि मोबाइल की वारंटी अवधि एक वर्श नहीं हो। अतः परिवादी के अभिकथन एवं साक्ष्य, जिसका लेषमात्र भी खण्डन अप्रार्थीगण की ओर से नहीं है, से प्रमाणित है कि परिवादी द्वारा क्रय किये गये मोबाइल में परिवाद में अंकितानुसार त्रुटियां मोबाइल खरीदने के दूसरे ही दिन चालू हो गई। परिवादी द्वारा बताया गया कि अप्रार्थी संख्या 1 के पास जाने पर उसे सर्विस सेंटर जाने का कहा गया लेकिन बार-बार सर्विस सेंटर से मोबाइल ठीक करवाये जाने के पष्चात् भी मोबाइल पूरी तरह से ठीक नहीं हुआ तथा बाद में सर्विस सेंटर द्वारा भी यह कहकर लौटा दिया गया कि अब यह मोबाइल ठीक नहीं होगा। परिवादी द्वारा यह भी बताया गया है कि जब वह परेषान होकर अप्रार्थी संख्या 1 के पास गया तथा मैन्यूफैक्चरिंग डिफेक्ट के बाबत् बताये जाने पर न तो मोबाइल बदलकर दिया तथा न ही ठीक किया गया। अप्रार्थी संख्या 1 ने जवाब अवष्य पेष किया है लेकिन जवाब के समर्थन में न तो कोई दस्तावेज पेष किये हैं तथा न ही बहस हेतु उपस्थित रहा है। अप्रार्थी संख्या 1 द्वारा प्रस्तुत जवाब से यह स्वीकृत स्थिति है कि परिवादी ने दिनांक 02.05.2014 को एक मोबाइल 2,200/- रूपये में अप्रार्थी संख्या 1 से क्रय किया था जो वारंटी अवधि के भीतर ही मैन्यूफैक्चरिंग डिफेक्ट के कारण बार-बार खराब होता रहा तथा सर्विस सेंटर से रिपेयर कराने के बावजूद पूर्ण रूप से ठीक नहीं हुआ। परिवादी द्वारा क्रय किये गये मोबाइल में किसी प्रकार के मैन्यूफैक्चरिंग डिफेक्ट बाबत् अप्रार्थी संख्या 2 कोई स्पश्टीकरण दे सकता था लेकिन बावजूद तामिल/सूचना के भी अप्रार्थी संख्या 2 न तो न्यायालय में उपस्थित आया है तथा न ही परिवाद में वर्णित तथ्यों के खण्डन में कोई जवाब भी पेष किया गया है। ऐसी स्थिति में परिवाद में किये गये अभिकथनों एवं उसके समर्थन में प्रस्तुत षपथ-पत्र पर अविष्वास नहीं किया जा सकता। अप्रार्थी संख्या 1 ने भी अपने जवाब में ऐसा कोई तथ्य प्रकट नहीं किया, जिसके आधार पर यह माना जा सके कि विवादित मोबाइल सेट में कोई मैन्यूफैक्चरिंग डिफेक्ट या तकनीकी खराबी न हो। अप्रार्थी पक्ष को चाहिए था कि परिवादी के मोबाइल सेट को रिपेयर करते हुए सही करते या बदलकर ऐसा नया मोबाइल प्रदान करते लेकिन अप्रार्थी पक्ष द्वारा ऐसा न करके सेवा दोश किया गया है ऐसी स्थिति में परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार करते हुए अप्रार्थीगण को यह आदेष दिया जाना उचित होगा कि परिवादी को मोबाइल की कीमत 2,200/- रूपये वापिस लौटाये जाने के साथ ही उसे मानसिक परेषानी स्वरूप 5,00/- रूपये एवं परिवाद व्यय के भी 5,00/- रूपये अदा करें।
आदेश
7. परिणामतः परिवाद परिवादी विरूद्ध अप्रार्थीगण एकल-एकल एवं संयुक्त तौर पर स्वीकार कर आदेष है किः- अप्रार्थीगण, परिवादी को उसके मोबाइल की बिल राषि 2,200/- रूपये लौटायें। साथ ही अप्रार्थीगण परिवादी को उक्त राषि पर 9 प्रतिषत वार्शिक साधारण दर से ब्याज भी परिवाद प्रस्तुत करने की दिनांक 17.03.2015 से अदा करें। अप्रार्थीगण, परिवादी को मानसिक संताप के 5,00/- रूपये एवं परिवाद व्यय के भी 5,00/- रूपये अदा करें। आदेष की पालना एक माह में की जावे।
8. निर्णय व आदेष आज दिनांक 16.03.2016 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
नोटः- आदेष की पालना नहीं किया जाना उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 27 के तहत तीन वर्श तक के कारावास या 10,000/- रूपये तक के जुर्माने से दण्डनीय अपराध है।
।बलवीर खुडखुडिया। ।ईष्वर जयपाल। ।राजलक्ष्मी आचार्य।
सदस्य अध्यक्ष सदस्या