Uttar Pradesh

Azamgarh

CC/20/2020

VINAY SHANKAR RAI - Complainant(s)

Versus

BOB - Opp.Party(s)

RAVINDRA KUMAR RAI

08 Apr 2022

ORDER

 

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग- आजमगढ़।

परिवाद संख्या 20 सन् 2020

प्रस्तुति दिनांक 02.11.2020

                                                                                                 निर्णय दिनांक 08.04.2022

VINAY SHANKAR RAI, adult S/O Mr. Ram Prasad Rai, the Partner of M/S Vendors India and resident of B 63/6 B-30a, Akashvani Shivaji Nagar Colony, Chhittupur, Mahmoorganj, Varanasi- 221010, U.P. and presently residing at New Colony, Village Nibi, Belaisa P.O. Sadar Tehsil Sadar Distt. Azamgarh, UP.276001    

      ....................................................................................... The Complainant.

बनाम

  1. BANK OF BARODA Branch Sankat Mochan at Mandir Comples P.O. Lanka, Varanasi, UP. 221002 Through its Branch Manager.    

............................................................ The Opposite Party 1st Set.

  1. Smt. Shweta Rai, adult, W/O Mr. Vinay Shankar Rai resident of B 63/6 B-30a, Akashvani, Shivaji Nagar Colony, Chhittupur, Mahmoorganj, Varanasi- 221010 UP.

............................................................ The Opposite Party 2st Set.

उपस्थितिः- कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष” तथा गगन कुमार गुप्ता “सदस्य”

  •  

कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष”


      याची ने अपने याचना पत्र में यह कहा है कि याची व विपक्षी संख्या 02 मेसर्स वेण्डर्स इण्डिया एण्ड मेसर्स ट्रान्समूवर्स इण्डिया शिवाजी नगर कॉलोनी छित्तूपुर महमूरगंज वाराणसी के हिस्सेदार हैं। जिनका एक कार्यालय न्यू कॉलोनी, विलेज- निबी, बेलईसा, सदर आजमगढ़ में स्थित है। याची व विपक्षी संख्या 02 बेरोजगार शिक्षित व्यक्ति हैं। यह परिवाद विपक्षी संख्या 02 के हित में दाखिल किया जा रहा है। याची व विपक्षी संख्या 02 अपना व्यापार करने के लिए विपक्षी संख्या 01 बैंक ऑफ बड़ौदा से कुछ आर्थिक मदद पाने के लिए मिलना पड़ा। विपक्षी संख्या 01 बैंक ने प्रत्येक फर्म को 50-50 लाख रुपया कैस क्रेडिट लिमिट लोन वर्ष 2015 में दिया। उस लोन पर प्रतिवर्ष 09% ब्याज था। कैस क्रेडिट एकाउन्ट नम्बर जो कि मेसर्स वेण्डर्स इण्डिया के नाम से था और उसकी संख्या 28650400000172 और मेसर्स ट्रान्समूवर्स इण्डिया का एकाउन्ट नम्बर 28650400000165 विपक्षी बैंक के रिकार्ड में दर्ज था। यह परिवाद कैस क्रेडिट खाता नं.28650400000172 से सम्बन्धित है। परिवादी द्वारा लोन एकाउन्ट में नियमित रूप से जमा किया जा रहा था,लेकिन विपक्षी संख्या 02 वर्ष 2016 से 2018 तक काफी बीमार रहा और याची व्यापार पर ध्यान नहीं दे पाया और विपक्षी संख्या 02 के इलाज पर काफी खर्च हुआ। याची दोनों एकाउन्ट का नियमित भुगतान करता था, लेकिन उसके बावजूद भी उसे विपक्षी ने एन.पी.ए. घोषित कर दिया। विपक्षी संख्या 01 बैंक ने प्रथम बार एन.पी.ए. घोषित करने की सूचना पर याची ने बैंक के कर्मचारियों से लोन में जो उसका पैसा फिक्स डिपॉजिट में जमा था उसको तोड़कर जमा करने का अनुरोध किया। लेकिन बैंक के अधिकारी उसके फिक्स डिपॉजिट से गलत मंशा से लोन के खाते में जमा नहीं किया, उस फिक्स डिपॉजिट को तोड़कर दो एफ.डी. मनमाने तरीके से बना दिया और उसका खाता एन.पी.ए. डिक्लियर कर दिया गया। जैसा कि पूर्व में विवरण दिया गया है कि याची के पास दो फर्म थीं। अतः अपना लोन एकाउन्ट रेग्यूलर करने के लिए उसके ब्रॉन्च मैनेजर से मीटिंग किया और याचना किया कि वे उसका लोन एकाउन्ट नियमित कर दें। ब्रॉन्च मैनेजर ने याची से कहा कि 04-04 लाख रुपया जमा करा दें तथा शेष ओवरड्यू एमाउण्ट एक सप्ताह में जमा कर दें, जिससे लोन एकाउन्ट नियमिति हो जाएगा। ब्रॉन्च मैनेजर के निर्देश पर याची ने दोनों फर्मों के लोन एकाउन्ट में 04-04 लाख रुपया जमा किया, लेकिन बैंक मैनेजर ने उसे पांच दिन तक Sundry Account में जमा रखा। उसके पश्चात् जमा धनराशि को दोनों एकाउन्ट में जमा किया। बिना किसी अधिकार के याची का मुo 08 लाख रुपया पांच दिन तक Sundry Account में जमा रहने से उसका काफी आर्थिक नुकसान हुआ। उपरोक्त धनराशि प्राप्त करने के बावजूद बैंक खाते को रेग्यूलर नहीं किया गया और दिनांक 27.03.2019 को याची को सूचित किया कि बैंक उसकी बंधकसुदा संपत्ति को दिनांक 09.05.2019 को नीलामी करा देगा। दुःखी होकर याची ने “सरफैसी ऐक्ट-2002” के तहत मुकदमा नम्बर 259सन्2020 ‘डेब्ट रिकवरी ट्रीब्यूनल इलाहाबाद’ में दाखिल किया। ‘डेब्ट रिकवरी ट्रीब्यूनल इलाहाबाद’ में उसकी शिकायत लम्बित रहने के दौरान ही बैंक मैनेजर ने बंधकसुदा संपत्ति को जो कि मेसर्स वेण्डर्स इण्डिया के नाम से था, नीलामी की तिथि दिनांक 29.06.2020 नियत कर दिया। इसके पश्चात् याची ने वहाँ पर Injunction प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया। दिनांक 24.06.2020 को ट्रिब्यूनल इलाहाबाद ने यह आदेश पारित किया कि याची मुo 30,00,000/- रुपया नीलामी के पूर्व जमा कर दे और शेष धनराशि 10-10 लाख रुपए तीन किस्तों में जमा करेगा। उसके पश्चात् याची ने मुo 30,00,000/- रुपया दिनांक 26.06.2020 को जमा किया, 10 लाख रुपया जमा किया और इस प्रकार उसने कुल 40,00,000/- रुपया कथित खाते में जमा कर दिया और ट्रिब्यूनल इलाहाबाद के आदेश का अनुपालन करते हुए याची ने बैंक मैनेजर से खाते की डिटेल मांगी लेकिन उन्होंने नहीं दिया। इस सम्बन्ध में उसने एक पत्र दिनांक 26.06.2020 को लिखा था। उस पत्र के उत्तर में बैंक ने दिनांक 22.07.2020 को याची को सूचित किया कि उस पर 24,94,295/- रुपया तथा ब्याज बकाया है। यह सुनकर याची अचम्भित हो गया, क्योंकि बैंक उससे 47,95,311/- तथा 12,46,875/- रुपया ब्याज और 4,52,109/- रुपया अन्य खर्च मांगा, लेकिन उसने जो रुपया जमा किया था उसने लोन में समायोजित नहीं किया गया। इसके पश्चात् परिवादी ने दिनांक 28.08.2020 को बैंक को एक पत्र लिखा और यह निवेदन किया कि उसके भिन्न-भिन्न हेड्स की क्या परिस्थिति है? लेकिन बैंक ने दिनांक 07.09.2020 को यह सूचित किया कि मुo 2,25,109/- इन्फोर्समेन्ट एजेन्सी और मुo 1,07,000/- रुपया अधिवक्ता फीस की मांग किया है। इन्फोर्समेन्ट एजेन्सी याची से कोई भी धनराशि वसूलने का अधिकारी नहीं है। क्योंकि याची माननीय डी.आर.टी.न्यायालय के आदेश पर सीधे पेमेन्ट कर रहा था। याची बैंक के सारे बकाए को परिसमाप्त करना चाहता है। लेकिन याची बैंक के मानमाने मांग से बैंक का ड्यू समाप्त नहीं कर पा रहा है। बैंक 12 लाख रुपए से अधिक तक का ब्याज गलत मांग रहा है। याची बैंक का अधिकतम पैसा जमा कर दिया है। इसके पश्चात् भी रिकवरी एजेन्ट याची के संपत्ति पर अवैध कब्जा करने की कोशिश कर रहा है। विपक्षी बैंक लोन एग्रीमेन्ट का उल्लंघन किया है। उसके बावजूद भी विपक्षी बैंक ने दिनांक 06.11.2020 को बंधकसुदा संपत्ति को नीलाम करने के लिए अखबार में प्रकाशन करा दिया। बैंक याची के प्रति गलत व्यवहार कर रहा है। अतः विपक्षी बैंक को एकाउन्ट नं. 28650400000172 और 12,46,875/- रुपए का चार्ज तथा 2,85,109/- रुपया इन्फोर्समेन्ट एजेन्सी को देने के लिए किया गया कथन तथा 1,07,000/- रुपए अधिवक्ता फीस लेने से मना किया जाए और बैंक को यह भी आदेशित किया जाए कि वह बंधकसुदा संपत्ति को नीलाम न करें। इसके अतिरिक्त जो भी अनुतोष याची को मिल सकता है उसे न्यायालय के यदि समझ में आए तो दिवलाए।

याची द्वारा अपने याचना पत्र के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।

प्रलेखीय साक्ष्य में याची ने कागज संख्या 8/1 डेब्ट रिकवरी ट्रिब्यूनल इलाहाबाद के आदेश पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 8/2 विपक्षी संख्या 02 द्वारा परिवाद को ऋण के सम्बन्ध में भेजा गया विवरण की छायाप्रति, इसके बाद बैंक द्वारा जारी बंधकसुदा संपत्ति के लिए विक्रय/नीलामी की सूचना की छायाप्रति, कागज संख्या 8/3ता8/14 ट्रान्जेक्शन डिटेल्स, कागज संख्या 8/15 बंधकसुदा संपत्ति के विक्रय प्रस्ताव की छायाप्रति, कागज संख्या आधारकार्ड की छायाप्रति, कागज संख्या 22/1ता22/4 एकाउन्ट लेजर इन्क्वायरी की छायाप्रति, कागज संख्या 22/5 याची द्वारा ऋण वसूली प्राधिकरण इलाहाबाद के आदेशानुसार बैंक को दिए गए इस सन्दर्भ का पत्र कि वह लोन खाता 286504000172 में आर.टी.जी.एस. के माध्यम से सम्पूर्ण लोन जमा करना चाहता है, अतः उसको ऐसा करने की अनुमति दी जाए।, कागज संख्या 22/6 ऋण वसूली प्राधिकरण इलाहाबाद के आदेशानुसार 30,00,000/- रुपया मेसर्स वेण्डर्स इण्डिया ने आर.टी.जी.एस. कर सम्पूर्ण लोन जमा करने से सन्दर्भित प्रपत्र, कागज संख्या 22/7 मुo 30,00,000/- रुपए जमा करने की रसीद की छायाप्रति, कागज संख्या 22/8 एकाउन्ट से 30,00,000/- रुपए डेविट करने के सन्दर्भ में प्रपत्र, कागज संख्या 22/9 बैंक के लेटर कि ऋण वसूली प्राधिकरण के आदेशानुसार याची ने 30,00,000/- रुपया जमा कर दिया है और हिसाब करके तीन माह के अन्दर सम्पूर्ण बकाया जमा करने के सन्दर्भ में, कागज संख्या 22/10 ऋण खाता एन.पी.ए. करने के सन्दर्भ में आदेश की प्रतिलिपि, कागज संख्या 22/12 मुo 40,00,000/- रुपया जमा करने के पश्चात् 24,94,295/- रुपया धन ब्याज 22.07.2020 से, शेष 28.09.2020 तक जमा करने हैं जिसका विस्तृत विवरण उसके नीचे दिया गया है, प्रस्तुत किया है। 

कागज संख्या 12क² विपक्षी संख्या 01 द्वारा जवाबदावा प्रस्तुत किया गया है, जिसमें उसने परिवाद पत्र के अभिकथनों से इन्कार किया है। अतिरिक्त कथन में उसने यह कहा है कि चूंकि परिवादी उपभोक्ता नहीं है अतः इस आयोग को यह पत्रावली सुनने का क्षेत्राधिकार हासिल नहीं है। याची ने स्टेटमेन्ट एकाउन्ट के अनुबन्ध की शर्तों का पालन नहीं किया है और वह डिफाल्टर है इसलिए “सरफैसी ऐक्ट” के तहत उसके ऊपर नोटिस का तामिला हुआ, जिसके विरुद्ध यह परिवाद प्रस्तुत कर दिया गया। बैंक व याची तथा विपक्षी संख्या 02 के मध्य जो अनुबन्ध हुआ था उसकी शर्तें निम्नलिखित थीं-

  1. फर्म प्रत्येक माह विक्रय व स्टॉक तथा बकाया के सम्बन्ध में सूचित करेगा।
  2. यदि अनुबन्ध में कोई परिवर्तन होता है तो बैंक को यह अधिकार होगा कि बैंक किसी भी समय लोन को रोक सकता है और बिना नोटिस दिए आहरण को भी रोक सकता है।
  3. फर्म ने यह भी अण्डरटेकिंग दिया है कि बैंक की करेन्सी क्रेडिट्स सुविधा में बैंक की अनुमति कि बिना कोई परिवर्तन नहीं किया जाएगा।
  4. बैंक किसी भी समय पॉलिसी को रिकॉल कर सकता है।
  5. बढ़ी हुई सीमा की अवधि पूरी कम्प्लायन्स के बाद ही दी जाएगी।

याची डिफाल्टर रहा है और उसने किसी भी औपचारिकताओं को पूरा नहीं किया। बैंक द्वारा मांगे गए संलग्न प्रपत्रों को वह निर्धारित समय से उपलब्ध नहीं करा पाया, जो कि बैंक का नियम व गाईडलाईन थी। याची स्वयं की गलती का लाभ नहीं ले सकता है। यह परिवाद अधिक-से-अधिक हर्जा के साथ स्वीकार किया जाना चाहिए। याची द्वारा भुगतान में अनियमितता किए जाने के कारण उसका एकाउन्ट एन.पी.ए. कर दिया गया और वह सेवा में कमी नहीं मानी जाएगी। यह परिवाद याची द्वारा आवश्यक तथ्यों को छिपाकर प्रस्तुत किया गया है। अतः परिवाद खारिज किया जाए।  

विपक्षी संख्या 01 द्वारा अपने जवाबदावा के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।

बहस के दौरान पुकार कराए जाने पर उभय पक्षकारों के विद्वान अधिवक्ता उपस्थित आए तथा उभय पक्षकारों के विद्वान अधिवक्ताओं ने अपना-अपना बहस सुनाया। बहस सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया। याची द्वारा दाखिल प्रार्थना पत्र दिनांक 02.11.2020 में बैंक ऑफ बड़ौदा द्वारा उसके साथ अपनायी गयी अवैधानिक प्रक्रिया एवं भारतीय रिजर्व बैंक के निर्धारित नियमों एवं शर्तों का अपने तरीके से लागू करना, के आधार पर याची द्वारा प्रार्थना पत्र प्रस्तुत की गयी। मेसर्स वेण्डर्स इण्डिया में याची के खाता से दिनांक 12.09.2019 को मुo 39 लाख रुपया जमा किया गया है जिससे याची के ऋण खाता में कुछ शेष रकम और बच गया था। माननीय ऋण वसूली प्राधिकरण, इलाहाबाद के आदेश दिनांक 24.06.2020 के अनुपालन में पुनः दिनांक 29.06.2020 को मुo 30 लाख रुपया जमा किया गया जिसके आधार पर बैंक द्वारा छिपाए गए वास्तविक तथ्यों एवं वास्तविक स्टेटमेन्ट ऑफ एकाउन्ट का सच न्यायालय के सामने स्पष्ट न हो, को ध्यान में रखते हुए माननीय न्यायालय एवं याची के साथ छल व कपट पूर्वक 39 लाख रुपया दिनांक 29.06.2020 को लगभग 09 माह बाद बिना याची के सहमति के डेबिट कर लिया गया जो कि बैंकिंग नियमों का घोर सेवा में उल्लंघन एवं मनमानीपन को प्रदर्शित करता है। माननीय न्यायालय ऋण वसूली प्राधिकरण, इलाहाबाद के आदेश दिनांक 24.06.2020 के अनुपालन में याची द्वारा दिनांक 26.06.2020 को पैसा जमा करने के बावजूद भी इसलिए लोन एकाउन्ट में क्रेडिट नहीं किया गया जब याची द्वारा माननीय न्यायालय के आदेश का अनुपालन पूर्णतया करते हुए बैंक उपरोक्त को वैधानिक चेतावनी दिया गया तत्पश्चात् 30 लाख रुपया दिनांक 29.06.2020 को लोन एकाउन्ट में क्रेडिट करते ही 23,98,746.20 सरप्लस हो गया जिससे स्पष्ट होता है कि याची के विरुद्ध बैंक उपरोक्त द्वारा जानबूझकर अपने हिसाब से प्रावधानित अधिनियम का इस्तेमाल किया गया जबकि याची के विरुद्ध कोई बकाया शेष नहीं रहा, इसी क्रम में बैंक द्वारा गलतपूर्ण रवैया अपनाते हुए दिनांक 29.06.2020 को मुo 39 लाख रुपए बिना याची के सहमति के खाते से डेबिट इस वास्ते कर लिया गया ताकि याची को बड़ी क्षति पहुंचाई जा सके। बैंक उपरोक्त द्वारा याची को क्षति पहुंचाने की मंशा इस प्रकार भी स्पष्ट है कि दिनांक 13.02.2019 को 73104.00 रुपया, दिनांक 25.03.2019 को 04 लाख रुपया, दिनांक 12.09.2019 को 39 लाख रुपया, दिनांक 23.09.2020 को 25 हजार रुपया उपभोक्ता के खाते में क्रेडिट होने के पश्चात् सम्बन्धित बैंक के मुख्य प्रबन्धक वसूली विभाग, श्री नरेन्द्र प्रसाद द्वारा 12% की ब्याज फ्लैट चार्ज एड कर 1246875.00 रुपए अतिरिक्त रकम की मांग करना अपनी पद का दुरूपयोग व सेवा के प्रति घोर मनमानी कर याची को व्यक्तिगत क्षति पहूंचाया है। प्रस्तुत परिवाद पत्र में कहा गया है कि ऋण खाताधारक की जीविकोपार्जन, पारिवारिक गतिविधियों का संचालन, शिक्षा-दीक्षा एवं समुचित दवा इलाज उक्त कारोबार से पूरी की जाती थी। इसी कारोबार से वह अपनी मूलभूत आवश्यकता एवं दैनिक जीवन की प्रतिपूर्ति करता था। याची का सम्पूर्ण जीवन शैली एवं मूलभूत आवश्यकता की प्रतिपूर्ति उक्त ऋण खाता से संचालित की जाती रही एवं उक्त ऋण खाता को याची द्वारा नियमित रूप से चलाने का सफल प्रयास भी किया जाता रहा। मेसर्स वेण्डरर्स इण्डिया में खाता एन.पी.ए. न इस बाबत याची द्वारा अपनी एफ.डी.आर. (संख्या 2865आई.जी.एफ.आई.एन.000115) रकम 04 लाख एवं बैंक गारण्टी संख्या 2865आई.जी.पी.ई.आर.000115 रुपए 02 लाख का बैंक के पक्ष में गिरवी थी जिसकी अवधि अप्रैल 2017 में ही समाप्त हो गयी थी, जिसके आधार पर याची द्वारा जब आवेदन इस वास्ते का दिया गया कि उसके द्वारा विपक्षी बैंक में रखी एफ.डी.आर. ऋण खाता में एडजेस्ट कर देय ऋण खाता को नियमित कर लिया जाए तब विपक्षी बैंक उपरोक्त द्वारा नियमित न करके बल्कि याची का खाता एन.पी.ए. करने हेतु बैंकिंग नियम की अवहेलना करते हुए बिना याची की सहमति के मनमाने तरीके से एफ.डी.आर. तोड़कर दो एफ.डी.आर. बनाए और अपने हिसाब से ऋण खाता का संचालन किया गया ताकि उसका हित प्रभावी हो सके एवं बैंक के पक्ष में रखी बन्धकसुदा सम्पत्ति को बेचकर उसके मूल्यवान प्रतिभू में गिरावट कर सम्परिवर्तित किया जा सके।

उक्त कृत्य बैंक के सम्बन्धित अधिकारियों द्वारा अपने मनमाने तरीके से किया जाना उपभोक्ता हित एवं बैंकिंग हित के विरुद्ध है एवं उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम का खुला उल्लंघन है। माननीय न्यायालय ऋण वसूली प्राधिकरण, इलाहाबाद के वाद संख्या 259 सन् 2019 में पारित आदेश दिनांक 24.06.2020 के अनुपालन में याची द्वारा रुपए 30 लाख जमा करना अनिवार्य दिनांक 27.06.2020 तक रहा लेकिन बैंक ऑफ बड़ौदा के साजिशन दिनांक 26.06.2020 को याची द्वारा अन्तरित रकम मुo 30 लाख सफलतापूर्वक ऋण खाता में ट्रान्सफर नहीं हो सका क्योंकि बैंक ऑफ बड़ौदा के प्राधिकृत अधिकारियों द्वारा ऋण खाता का मोड ऑफ ऑपरेशन जानबूझकर रोक दिया गया था ताकि याची का पैसा उक्त ऋण खाता में न आ सके एवं बैंक अपने साजिश को सफलतापूर्वक अंजाम दे सके। फिर भी, याची द्वारा दिनांक 26.06.2020 को बैंक ऑफ बड़ौदा के सम्बन्धित अधिकारियों को सम्पर्क कर उनके विरुद्ध लिखित कार्रवाई की वैधानिक सूचना दी गयी तब बैंक के अधिकारियों द्वारा दूसरा खाता संख्या दिनांक 29.06.2020 को दिया गया जिससे स्पष्ट होता है कि उक्त कृत बैंक की घोर मनमानी एवं दुराश्य को इंगित करती है जो इरादतन याची के हित को प्रभावित करता है। बैंक ऑफ बड़ौदा का साजिश सिर्फ व सिर्फ याची को क्षति पहुंचाना एवं अपने मनमाने तरीके से बन्धकशुदा सम्पत्ति को नीलाम कर देना, इससे भी यह स्पष्ट होता है कि बैंक उपरोक्त का आशय याची के प्रति रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया के निर्धारित नियमानुसार नहीं है बल्कि बैंक की अपनी निजी हित को देखते हुए अपनायी गयी नियमानुसार है। माननीय न्यायालय ऋण वसूली प्राधिकरण, इलाहाबाद के आदेश दिनांक 24.06.2020 के अनुपालन में कुल 40 लाख रुपया जमा करने के उपरान्त परिवादी के एकाउन्ट में सरप्लस पैसा होने के बावजूद भी बैंक ऑफ बड़ौदा द्वारा याची के विरुद्ध पुनः नीलामी की प्रक्रिया अपनायी गयी जिससे स्पष्ट होता है कि याची के पीछे बैंक ऑफ बड़ौदा के सम्बन्धित अधिकारी अपने निजी लाभ एवं उसको क्षति पहुंचाने के मंशा से कार्य कर रहे हैं। याची द्वारा दिनांक 26.06.2020 को 30 लाख रुपया डेबिट कर लेना इस बात का निश्चायक सबूत है कि बैंक ऋण खाता का संचालन निर्धारित नियमों एवं शर्तों के मुताबिक न करके बल्कि इरादतन मनमानी पूर्ण तरीके से दुराश्यपूर्य आशय से कर रही थी ताकि याची के आर्थिक क्षति एवं मूल्यवान प्रतिभू में सम्परिवर्तन किया जा सके। माननीय न्यायालय उपरोक्त द्वारा पारित आदेश दिनांक 02.11.2020 के अनुपालन हेतु बैंक उपरोक्त के लिखित सूचना दिनांक 03.11.2020 को आदेश उक्त की प्रमाणित प्रति बैंक उपरोक्त को दी गयी जिसकी संज्ञान एवं सूचना होने के बावजूद भी बैंक द्वारा दिनांक 06.11.2020 को निकाली गयी नीलामी की प्रक्रिया को स्थगन आदेश के पश्चात् भी निरस्त नहीं किया गया बल्कि माननीय न्यायालय को खुली चुनौती देते हुए पुनः दिनांक 07.11.2020 को नीलामी हेतु प्रकाशन कर दिया गया। बैंक उपरोक्त को माननीय न्यायालय द्वारा पारित आदेश दिनांक 02.11.2020 की सूचना बैंक को होने के बावजूद भी नीलामी की प्रक्रिया की पुनरावृत्ति किया जाना घोर सेवा में कमी एवं अनुचित व्यापार प्रथा का द्योतक है। यही नहीं बल्कि माननीय न्यायालय में अवमानना प्रार्थना पत्र दाखिल किए जाने के पश्चात् बैंक उपरोक्त द्वारा नीलामी हेतु प्रकाशित दिनांक 07.11.2020 की नीलामी प्रक्रिया प्रकाशन के माध्यम से निरस्त किया जाना इस बात का स्पष्ट सबूत है कि बैंक के सम्बन्धित अधिकारियों द्वारा घोर मनमानी एवं अपने निजी हित को ध्यान में रखते हुए याची के विरुद्ध हर कदम उठाया जा रहा है। याची द्वारा 40 लाख रुपया जमा करन के उपरान्त बैंक उपरोक्त द्वारा मनमानी धन वसूली के लिए मांगी गयी रकम से स्पष्ट है कि बैंक पूर्णरूपेण याची को बर्बाद करना चाहती है क्योंकि “रिट संख्या- 11862 सन् 2010” “महेन्द्रपाल सिंह बनाम स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया” में माननीय उच्च न्यायालय द्वारा यह स्पष्ट किया गया है कि जब कोई वसूली उच्च न्यायालय के आदेश के उपरान्त हुआ हो तो उसमें किसी भी अभिकरण एवं विधिक व अन्य प्रभार व शुल्क देय नहीं होगा। इस आदेश की भारत सरकार के उपक्रम बैंक ऑफ बड़ौदा को पूर्णतया जानकारी होने के बावजूद भी याची से अतिरिक्त प्रभार वसूली हेतु अतिरिक्त प्रभार की मांग किया जाना उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के नियमावली के विपरीत है और यही नहीं बल्कि रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया के निर्धारित नियमों एवं शर्तों के भी खिलाफ है। बैंक उपरोक्त द्वारा एक ही ऋण खाता धारक के सामान्य दो ऋण खाता में सामान्य हित संरक्षण होना जानते हुए संव्यवहारों एवं ट्रान्जेक्शन की हेराफेरी याची को क्षति पहुंचाना है तो उक्त कृत्य याची के साथ न्याय एवं घोर सेवा की कमी की श्रेणी में आना माना जाएगा। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के मुताबिक किसी भी उपभोक्ता के खाता से सम्बन्धित ऐसा कोई भी कृत्य नहीं करना चाहिए जिससे उपभोक्ता के मूलभूत अधिकारों का हनन हो एवं उपभोक्ता के जीविकोपार्जन, शिक्षा-दीक्षा एवं समुचित दवा इलाज कराने में भी असमर्थ हो जाए, जबकि उक्त प्रकरण में बैंक उपरोक्त द्वारा ऐसा ही कृत्य किया गया है जिससे उपभोक्ता का ही प्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित होना प्रतीत होता है।

बैंक द्वारा उक्त मनमानीपूर्ण वसूली एवं बन्धकसुदा सम्पत्ति को अपने निजी लाभ हेतु याची को क्षति पहुंचाने का स्पष्टीकरण इस तरीके से भी किया जा सकता है कि बैंक ऑफ बड़ौदा द्वारा एक ही व्यक्ति को रिकवरी एजेन्ट, इन्फोर्समेन्ट एजेन्ट एवं एडवोकेट एक ही ऋण खाता के बाबत नियुक्त कर सभी शुल्क की अदायगी एक ही व्यक्ति को किया जाना बैंक ऑफ बड़ौदा की सर्कुलर के मुताबिक नहीं है। बैंक ऑफ बड़ौदा के सर्कुलर के मुताबिक एक ही व्यक्ति से लीगल वर्क, रिकवरी वर्क, इन्फोर्समेन्ट वर्क का सेवा नहीं लिया जा सकता और न ही उक्त तीनों सेवा के लिए एक ही व्यक्ति को उक्त सेवा शुल्क अदा किया जा सकता यही नहीं बल्कि एजेन्सी का भुगतान उभय पक्षों के बीच हुए एग्रीमेन्ट के मुताबिक भुगतान किया जाना अपेक्षित है और बैंक द्वारा भुगतान भी अपनी इन्टर्नल सोल से अदा की जानी सुनिश्चित है न कि याची के एकाउन्ट से डेबिट करके रिकवरी एजेन्ट, इन्फोर्समेन्ट एजेन्ट एवं लीगल वर्क हेतु भुगतान किया जाएगा। इससे भी स्पष्ट है कि बैंक द्वारा सभी विधिक प्रक्रियाओं को ताक पर रखकर अपने निजी लाभ के नियमों को लागू किया गया है। सम्पूर्ण तथ्यों एवं साक्ष्यों के अवलोकन एवं परिशीलन के पश्चात् यह पाया गया कि बैंक ऑफ बड़ौदा द्वारा घोर सेवा में कमी एवं अनुचित व्यापार प्रथा का द्योतक है। ऐसी स्थिति में हमारे विचार से याचना स्वीकार होने योग्य है। 

 

आदेश

    याचना स्वीकार की जाती है। विपक्षी संख्या 01(बैंक) को आदेशित किया जाता है कि वह एकाउन्ट नम्बर 28650400000172 में से अतिरिक्त जमा धनराशि को मय ब्याज निकालकर याची को वापस करे और उससे वसूल की जाने वाली धनराशि मुo 2,25,109/- रुपए तथा मुo 1,07,000/- रुपए जो कि अधिवक्ता फीस के रूप में दिया गया उसको याची से वसूलने से मना किया जाता है तथा बैंक को यह भी आदेशित किया जाता है कि वह याची से वसूले जाने वाली रिकवरी चार्ज/नीलामी की धनराशि न वसूले और प्रस्तावित नीलाम की संपत्ति पर रोक लगायी जाती है। चूंकि बैंक ने याची को अवैधानिक ढंग से काफी हैरान व परेशान किया है अतः बैंक पर मुo 50,000/- (रु. पचास हजार मात्र) रुपए जुर्माना लगाया जाता है, जिसे वह अन्दर तीस दिन याची को उपलब्ध कराए।

 

 

 

 

                                                                        गगन कुमार गुप्ता                कृष्ण कुमार सिंह

                                                                             (सदस्य)                              (अध्यक्ष)           

 

         दिनांक 08.04.2022

                                           यह निर्णय आज दिनांकित व हस्ताक्षरित करके खुले न्यायालय में सुनाया गया।

 

 

                                              गगन कुमार गुप्ता                 कृष्ण कुमार सिंह

                                                                 (सदस्य)                             (अध्यक्ष)

Consumer Court Lawyer

Best Law Firm for all your Consumer Court related cases.

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!
5.0 (615)

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!

Experties

Consumer Court | Cheque Bounce | Civil Cases | Criminal Cases | Matrimonial Disputes

Phone Number

7982270319

Dedicated team of best lawyers for all your legal queries. Our lawyers can help you for you Consumer Court related cases at very affordable fee.