जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच,जैसलमेर(राज0)
1. अध्यक्ष ः श्री रामचरन मीना ।
2. सदस्या : श्रीमती संतोष व्यास।
3. सदस्य ः श्री मनोहर सिंह नरावत।
परिवाद प्रस्तुत करने की तिथी - 18.08.2015
मूल परिवाद संख्या:- 43/2015
श्री मनीष पुत्र श्री सुरेष कुमार, जाति- ब्राहमण,
निवासी- जैसलमेर दुर्ग कोटड़ी पाड़ा जैसलमेर
............परिवादी।
बनाम
वरिष्ठ शाखा प्रबन्धक बैक आॅफ बडौदा गांधी चैक, जैसलमेर
.............अप्रार्थी।
प्रार्थना पत्र अंतर्गत धारा 12, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986
उपस्थित/-
1. श्री सुरेष कुमार व्यास, अधिकृत प्रतिनिधि परिवादी की ओर से।
2. श्री टीकुराम गर्ग अधिवक्ता अप्रार्थी की ओर से ।
ः- निर्णय -ः दिनांकः 02.02..2016
1. परिवादी का सक्षिप्त मे परिवाद इस प्रकार है कि परिवादी ने षिक्षित बेरोजगार पी.एम.जी.सरकारी योजना के तहत् ढ़ाबें हैतु जिला उद्योग केन्द्र मे ऋण हैतु आवेदन किया जिस पर टाॅस्क फोर्स कमेटी ने 5 लाख रू स्वीकृत किये जिस पर परिवादी ने अप्रार्थी बैक से 4,50,000 रू प्राप्त कर अपना कार्य प्रारम्भ किया इस दरमियान आकस्मिक निरीक्षण भी अप्रार्थी द्वारा किया गया लेकिन मार्च से अग्रस्त तक पर्यटक सीजन नही होने के कारण वह ढ़ाबे पर नही मिला अप्रार्थी बैक द्वारा जो ऋण दिया गया वह काफी नही होने के कारण व्यवसाय चलाना कठिन था इसलिए परिवादी द्वारा अप्रार्थी बैक से सी.सी. लिमिट बढ़ाकर ओर अधिक ऋण उपलब्ध कराने का निवेदन किया इस हेतु परिवादी ने बैकिंग लोकपाल, क्षैत्रिय प्रंबंधक जोधपुर सहित अन्य जगहों पर अपील की लेकिन अप्रार्थी बैक द्वारा उसकी सी.सी.लिमिट बढ़ाने बाबत् कोई कार्यवाही नही की गई तथा परिवादी के ऋण के लिए उसके पिता की 70 लाख की सम्पति अप्रार्थी बैक ने नियमों के विरूद्व जाकर गिरवी रख दिया तथा अप्रार्थी बैक ने शरूआती तौर पर लगाये गये ब्याज प्रतिषत से वर्तमान मे अधिक ब्याज प्रतिषत वसूला जा रहा है जो नियम विरूद्व है। अप्रार्थी बैक ने परिवादी के पिता की सम्पति गिरवी होते हुए भी सी.सी.लिमिट न बढाकर सेवा दोष कारित किया है। साथ ही सी.सी.लिमिट बढ़ाये जाने या रहन रखी गई सम्पति को अप्रार्थी बैक से मुक्त करवाये जाने के साथ ही मानसिक हर्जाना दिलाये जाने का निवेदन किया।
2. अप्रार्थी की ओर से जवाब पेष कर प्रकट किया कि परिवादी को ऋण जिस उद्वेष्य से दिया था उस उद्वेष्य हैतु ऋण राषि का उपयोग न कर फन्ड का डायवर्जन व दूरूपयोग किया जा रहा है तथा मौक पर आकस्मिक निरीक्षण मे यूनिट बन्द पायी गई है। परिवादी द्वारा ऋण राषि को निजी कार्या मे खर्च कर दिया है परिवादी को एक बार ऋण देने के पश्चात् फिर लिमिट नही बढ़ाई जा सकती। परिवादी के पिता की सम्पति सहमति पत्र लिख देने पर बन्दक रखा गया है तथा परिवादी के ऋण का ब्याज भी नियमानुसार लिया जा रहा है। अप्रार्थी द्वारा कोई सेवाओं मे त्रुटि नही की गई है। परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने का निवेदन किया।
3. हमने पक्षकारान की बहस सुनी और पत्रावली का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया ।
4. पक्षकारान द्वारा की गई बहस पर मनन करने, पत्रावली में पेष किए गए शपथ पत्रों एवं दस्तावेजी साक्ष्य का विवेचन करने तथा सुसंगत विधि को देखने के पष्चात इस प्रकरण को निस्तारित करने हेतु निम्नलिखित विवादित बिन्दु कायम किए जाते है -
1. क्या परिवादी एक उपभोक्ता की तारीफ में आता है ?
2. क्या विपक्षी का उक्त कृत्य एक सेवा त्रुटि के दोष की तारीफ में आता है?
3. अनुतोष क्या होगा ?
5. बिन्दु संख्या 1:- जिसे साबित करने का संपूर्ण दायित्व परिवादी पर है जिसके तहत कि क्या परिवादी उपभोक्ता की तारीफ में आता है अथवा नहीं और मंच का भी सर्वप्रथम यह दायित्व रहता है कि वे इस प्रकार के विवादित बिन्दु पर सबसे पहले विचार करें, क्यों कि जब तक परिवादी एक उपभोक्ता की तारीफ में नहीं आता हो, तब तक उनके द्वारा पेष किये गये परिवाद पर न तो कोई विचार किया जा सकता है और न ही उनका परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों के तहत पोषणिय होता है, लेकिन हस्तगत प्रकरण में परिवादी द्वारा स्वरोजगार हैतु जिला उद्योग केन्द्र मे आवेदन कर अप्राथी बैक से ऋण प्राप्त किया है। जिसे अप्रार्थी द्वारा भी माना गया है इसलिए हमारी विनम्र राय में परिवादी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2;1द्ध;क्द्ध के तहत एक उपभोक्ता की तारीफ में आता है, फलतः बिन्दु संख्या 1 परिवादी के पक्ष में निस्तारित किया जाता है ।
6 बिन्दु संख्या 2:- जिसे भी साबित करने का संपूर्ण दायित्व परिवादी पर है जिसके तहत कि क्या विपक्षी का उक्त कृत्य एक सेवा त्रुटी के दोष की तारीफ में आता है अथवा नहीं ? परिवादी के अधिकृत प्रतिनिधि की मुख्य रूप से यह दलील है कि परिवादी मनीष ने अप्रार्थी बैक से पी.एम.जी.सरकारी योजना षिक्षित बैरोजगार के अन्तर्गत ढ़ाबा चलाने हेतु 5 लाख रू का ऋण स्वीकृत हुआ उसके पश्चात् परिवादी नियमित रूप मे बैक की किस्ते जमा करता रहा इस दौरान प्रार्थी ने शाखा प्रबंधंक से ढ़ाबा चलाने के लिए खाते मे सी.सी.लिमिट बढ़ाये जाने का निवेदन किया लेकिन अप्रार्थी बैक ने उसकी सी.सी.लिमिट नही बढ़ाई इस हेतु परिवादी ने बैकिग लोकपाल जयपुर, क्षैत्रिय प्रबंधंक जोधपुर व अपील अधिकारी के यहा अपील की लेकिन सी.सी.लिमिट बढ़ाने के सम्बंध मे अप्रार्थी द्वारा कोई कार्यवाही नही की गई। परिवादी का यह भी कथन है कि परिवादी के ऋण के लिए उसके पिता की 70 लाख की सम्पति अप्रार्थी बैक ने गिरवी रखी जो बैकिंग नियमों के विरूद्व है जबकि सरकारी पी.एम.जी. योजना के अन्र्तगत सम्पति को मोडगेज (रहन) किये जाने का कोई प्रावधान नही है बैक को इसकी जानकारी होते हुए भी पिता की सम्पति को मोरगेज रख लिया तथा परिवादी की सी.सी.लिमिट भी नही बढ़ाई गई लेकिन उसकी सम्पति को जो बैकिंग नियमों के विरूद्व मोडगेज रखी गई है उसे रिलिज नही किया गया जिस कारण परिवादी को अन्य स्थान से ऋण प्राप्त नही हो सका व आगे कोई कार्य भी नही कर सका जिस कारण परिवादी को मानसिक वेदना हुई। परिवादी के प्रतिनिधि का यह भी कथन है कि बैक ने शरूआती तौर पर जो ब्याज लगाया था वह 10.25 प्रतिषत था जबकि अभी जो ब्याज लगाया जा रहा है वह 11.40 प्रतिषत है जो नियम विरूद्व है। परिवादी के प्रतिनिधि के अन्त मे दलील है कि अप्रार्थी बैक द्व़ारा सी.सी.लिमिट बढाई जावें या उसकी सम्पति जो मोडगेज है उसे रिलिज किया जावें तथा बैक ब्याज दर को नियमानुसार दूरस्त किया जावें तथा साथ ही मानसिक व आर्थिक हर्जाना की भी माॅग की।
7. इसका प्रबल विरूद्व करते हुए विद्वान अप्रार्थी बैक अभिभाषक की दलील है कि बैक द्वारा परिवादी को नियमानुसार ढ़ाबा चलाकर अपना रोजगार किये जाने हैतु ऋण स्वीकृत किया गया था लेकिन परिवादी द्वारा न तो भोजनालय कक्ष, रसोई या अन्य का कोई निर्माण नही किया गया तथा बैक अधिकारी द्वारा दिनांक 24.05.2015 व 16.06.2015 को आकस्मिक निरीक्षण किया गया तो मौके पर यूनिट पूर्ण रूप से बन्द पाई गई इस बाबत् दिनांक 17.06.2015 को महाप्रबंधक जिला उद्योग केन्द्र को भी सूचना दी गई कि मनीष कुमार द्वारा ऋण राषि का दुरूपयोग व फन्ड का डायवर्जन करके सरकारी राषि 1,25000 रू का दुरूपयोग करना चाहता है अप्रार्थी विद्वान अभिभाषक की यह भी दलील है कि परिवादी द्वारा 01.06.2015 को ऋण राषि 5 लाख से बढ़ाकर 15 लाख रू करने को लिखा था लेकिन इस योजना मे ऋण देने के पश्चात् बैक के नियमानुसार भी सी.सी.लिमिट नही बढ़ाई जा सकती जिसकी सूचना परिवादी को कर दी गई थी साथ ही परिवादी के ऋण का वर्तमान नकद साख सीमा खाते मे ऋण सीमा नही बढ़ाई जा सकती क्योंकि परिवादी के खाते मे वर्ष 2013-14 प्रथम ऋण विवरण ओर दिनांक 02.05.2013 से 31.03.2013 तक कुल टर्न ओवर 61,950 रू ही है तथा वर्ष 2014-15 मे दिनांक 01.04.2014 से 31.03.2015 तक कुल टर्न ओवर 311600 रू ही है तथा चालू वितीय वर्ष दिनांक 01.04.2015 से 22.05.2015 तक 17,528 रू ही टर्न ओवर है। बैक के नियमानुसार कुल टर्न ओवर एक वितीय वर्ष नकद साॅख सीमा की 20 प्रतिषत तय की जा सकती है इसी कारणों से परिवादी को ऋण की सीमा बढ़ाकर अतिरिक्त ऋण नही दिया जा सकता अतः बैक ने सी.सी.लिमिट न बढ़ाकर कोई सेवा दोष कारित नही किया है।
8. विद्वान अप्रार्थी अभिभाषक की यह भी दलील है कि परिवादी ने अपने पिता की सम्पति को मोडगेज के रूप मे स्वेच्छा से रखा उनका सहमति पत्र नोटेरी से प्रमाणित करवाकर हस्ताक्षरयुक्त सहमति पत्र दिया इसलिए अप्रार्थी बैक ने सम्पति को मोडगेज कर इस बाबत् कोई सेवा दोष नही किया है। उनकी यह भी दलील है कि परिवादी से अधिक ब्याज की वसूली नही की जा रही है ब्लकि बैक ब्याज दर बेस रेट पर आधारित है जो अभी 9.90 प्रतिषत बेस रेट है जिस पर 1.50 प्रतिषत ओवर रेट है पूर्व मे बेस रेट 10.25 प्रतिषत था जो 1.50 प्रतिषत ओवर रेट से कुल 11.75 प्रतिषत ब्याज था जो हाल मे बैक द्वारा नियमानुसार कम लिया जा रहा है कोई अधिक ब्याज दर वसूला नही जा रहा है इसलिए परिवादी का परिवाद मय हर्जे खर्चे के खारिज करने का निवेदन किया।
9. उभयपक्षों के तर्को पर मनन किया गया पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य का भलीभाति विवेचन किया गया परिवादी ने अपने परिवाद में मुख्य रूप से इस तथ्य को प्रकट किया है कि उसके पिता की करीब 70 लाख की सम्पति लक्ष्मी रीजोर्टे एण्ड एग्रीकल्चर बैक के पास गिरवी पड़ी है जो बैकिंग नियमों के विरूद्व है जबकि सरकारी योजना मे पी.एम.जी. के अन्तर्गत सम्पति को प्रतिभूर्ति के रूप मे लिये जाने का प्रावधान नही है। इसकी जानकारी बैंक को थी लेकिन परिवादी को इस सम्बंध मे अवगत नही कराया। इस बात का परिवादी को पता लगने पर परिवादी ने शाखा प्रबंधंक को कहा कि आप हमारी सी.सी.लिमिट बढ़ाओं या हमारी सम्पति को रिलिज करो अप्रार्थी बैक ने कोई सी.सी.लिमिट नही बढ़ाई। परिवादी के इस कथन को बल परिवादी द्वारा प्रस्तुत पत्र क्रमांक संख्या एल.बी.ओ./1776-1849 दिनांक 23.09.2010 से भी मिलता है क्योकि इस पत्र मे मार्गदर्षी बैक जैसलमेर द्वारा सभी बैक शाखाओं को यह पत्र लिखा कि ‘‘ राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति, राजस्थान के पत्र क्रमांक रा.अ./एसएलबीसी/पीएमईजीपी/49/2010-11/5261-5293 दिनंाक 01.09.2010 के संदर्भ में केवीआईसी, मुम्बई से प्राप्त पत्र जो डैडम् ैमबजवत में ब्वससंजमतंस तिमम सवंद की सीमी 5 लाख से बढ़ाकर 10 लाख कर दिया गया है।
कृपया तदनुसार डैडम् ैमबजवत के आवेदकों को 10 लाख तक के ऋण बिना ब्वससंजमतंस प्रतिभूति के उपलब्ध करवाना नोट करावें। इस मामले में शाखा स्तर पर भारतीय रिजर्व बैक के दिषानिर्देषों की अनुपालना सुनिष्चित की जावें। ऐसे खातों को सीजीएस/सीजीटीएमएसई योजना में भी कवर करायें।
10. अतः अप्रार्थी बैक को यह पत्र भेजा गया इस पत्र के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि डैडम् ैमबजवत में ब्वससंजमतंस तिमम सवंद की सीमा 5 लाख से बढ़ाकर 10 लाख कर दिया गया है। जिसमें डैडम् ैमबजवत के आवेदकों को 10 लाख तक के ऋण बिना ब्वससंजमतंस प्रतिभूति के उपलब्ध कराने का हवाला है अतः अप्रार्थी बैक द्वारा सरकारी योजना पी.एम.जी. षिक्षित बैरोजगार हेतु ऋण बिना सम्पति के मोडगेज के दिये जाने का प्रावधान है लेकिन अप्रार्थी बैक द्वारा उक्त प्रावधान होते हुए भी परिवादी के पिता की सम्पति उनका सहमति पत्र लेकर ऋण स्वीकृत किया गया था जो उक्त पत्र के अनुसार नियम विरूद्व था। परिवादी ने हालाकि अपने पिता की सम्पति ग्राम सत्ता के खसरा नम्बर 282 की कुल रकबा 40 बीधा 10 बीसवा खातेदारी जमीन के बाबत् सहमति पत्र बैक शाखा मे ऋण हेतु 26.12.2012 को नोटेरी से प्रमाणित कराकर अपने हस्ताक्षर कर दिया लेकिन हमारे विनम्र मत मे जब उक्त ऋण हेतु प्रतिभूर्ति लेने का कोई प्रावधान नही है तो अप्रार्थी बैक द्वारा प्रतिभूर्ति के रूप मे सम्पति को मोडगेज किया जाना सेवा दोष की श्रेणी मे आता है। विषेष तोैर से जब परिवादी ने यह कथन किया है कि उसको यह प्रावधान अप्रार्थी बैक द्वारा ऋण लेतें समय नही बताया गया यदि उसे इस प्रकार के प्रावधान का पता होता तो परिवादी अपने पिता का सहमति पत्र नही दिलाता तथा ऋण की राषि का भी भूगतान परिवादी द्वारा समय-समय पर अप्रार्थी बैक को किया जा रहा है। ऐसा भी नही है कि परिवादी अप्रार्थी बैक द्वारा दिये गये ऋण की राषि का डीफाल्टर हो अतः ऐसी स्थिति मे अप्रार्थी बैक ऋण के ऐवज में सम्पति को प्रतिभूर्ति के रूप मे बैक अपने पास गिरवी रखें उसका भी कोई ओचित्य नही है।
11. जहा तक परिवादी का यह कथन कि अप्रार्थी बैक द्वारा उसकी सी.सी.लिमिट नही बढ़ाई गई उसका जवाब व साक्ष्य अप्रार्थी बैक द्वारा प्रस्तुत कर बताया कि परिवादी के ऋण का वर्तमान नकद साख सीमा खाते मे ऋण सीमा नही बढ़ाई जा सकती क्योंकि परिवादी के खाते मे वर्ष 2013-14 प्रथम ऋण विवरण ओर दिनांक 02.05.2013 से 31.03.2013 तक कुल टर्न ओवर 61,950 रू ही है तथा वर्ष 2014-15 मे दिनांक 01.04.2014 से 31.03.2015 तक कुल टर्न ओवर 311600 रू ही है तथा चालू वितीय वर्ष दिनांक 01.04.2015 से 22.05.2015 तक 17,528 रू ही टर्न ओवर है। बैक के नियमानुसार कुल टर्न ओवर एक वितीय वर्ष नकद साॅख सीमा की 20 प्रतिषत तय की जा सकती है इसी कारणों से परिवादी को ऋण की सीमा बढ़ाकर अतिरिक्त ऋण नही दिया जा सकता अतः अप्रार्थी बैक की इस दलील में हम बल पातें है ऐसी स्थिति में परिवादी की सी.सी.लिमिट न बढ़ाकर अप्रार्थी बैक ने कोई सेवा दोष कारित नही किया है।
12. परिवादी का अन्य कथन यह है कि बैक ने शरूआती तौर पर ब्याज 10.25 प्रतिषत लगाया जो अब 11.40 प्रतिषत लगा रहै है यह भी नियम विरूद्व है। इस सम्बंध मे अप्रार्थी बैक ने अपने साक्ष्य व जवाब मे स्पष्ट किया है कि परिवादी द्वारा यह लिखा गया है कि पूर्व मे ऋण का ब्याज 10.25 प्रतिषत था जो अभी 11.40 प्रतिषत लगा रहै है। जबकि बैक ब्याज दर बेस रेट पर आधारित है जो अभी 9.90 प्रतिषत बेस रेट है जिस पर 1.50 प्रतिषत ओवर रेट है पूर्व मे बेस रेट 10.25 प्रतिषत था जो 1.50 प्रतिषत ओवर रेट से कुल 11.75 प्रतिषत ब्याज था जो हाल मे बैक द्वारा नियमानुसार कम लिया जा रहा है ऋण का ब्याज भी बैक के नियमानुसार व दिषा निर्देसानुसार ही लगाया जाता है न कि किसी अन्य कारण से। इसके खण्डन मे परिवादी की साक्ष्य नही है कि बैक द्वारा अधिक ब्याज दर लगाई है अतः अप्रार्थी बैक का इस सम्बंध मे भी कोई सेवा दोष नही है।
13. उपरोक्त सभी विवेचन से यह स्पष्ट है कि परिवादी द्वारा प्रस्तुत पत्र क्रमांक संख्या एल.बी.ओ./1776-1849 दिनांक 23.09.2010 के बावजूद भी अप्रार्थी बैक द्वारा परिवादी के पिता की सम्पति को प्रतिभूर्ति के रूप मे मोडगेज रखा गया वह पत्र के निर्देषों के अनुसार नियम विरूद्व है। अतः अप्रार्थी बैक ने परिवादी के पिता की सम्पति को मोडगेज कर सेवा दोष कारित किया है।
अप्रार्थी का उक्त कृत्य आंषिक रूप से सेवा दोष की श्रेणी मे आता है फलत् बिन्दू सं. 2 आंषिक रूप से परिवादी के पक्ष मे निस्तारित किया जाता है।
14 बिन्दु संख्या 3:- अनुतोष । बिन्दु संख्या 2 आंषिक रूप से परिवादी के पक्ष में निस्तारित होने के फलस्वरूप परिवादी का परिवाद आंषिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है जो आंषिक रूप से स्वीकार किया जाता है। तथा अप्रार्थी बैक के पक्ष मे परिवादी के पिता की मोडगेज रखी गई सम्पति पत्र क्रमांक संख्या एल.बी.ओ./1776-1849 दिनांक 23.09.2010 के विरूद्व होने के कारण रिलीज किया जाना उचित है साथ ही परिवादी को मानसिक वेदना के लिए 2000/- रूपये अक्षरे रू. दो हजार तथा परिवाद व्यय के 1000 रू अक्षरे रू एक हजार मात्र दिलाया जाना उचित है ।
ः-ः आदेष:-ः
परिणामतः प्रार्थी का परिवाद अप्रार्थी बैक के विरूद्व आंषिक रूप से स्वीकार किया जाकर अप्रार्थी को आदेषित किया जाता है कि वे आज से 1 माह के भीतर भीतर परिवादी के पिता की मोडगेज रखी गई सम्पति ग्राम सत्ता के खसरा नम्बर 282 की कुल रकबा 40 बीधा 10 बीसवा खातेदारी जमीन पत्र क्रमांक संख्या एल.बी.ओ./1776-1849 दिनांक 23.09.2010 के निर्देषों के अनुसार रिलीज करें तथा साथ ही परिवादी को मानसिक वेदना के 2000 रूपये अक्षरे रू दो हजार मात्र व परिवाद व्यय के 1000 रू अक्षरे रू एक हजार मात्र अदा करे ।
( मनोहर सिंह नारावत ) (संतोष व्यास) (रामचरन मीना)
सदस्य, सदस्या अध्यक्ष,
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच,
जैसलमेर। जैसलमेर। जैसलमेर।
आदेश आज दिनांक 02.02.2016 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
( मनोहर सिंह नारावत ) (संतोष व्यास) (रामचरन मीना)
सदस्य, सदस्या अध्यक्ष,
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच,
जैसलमेर। जैसलमेर। जैसलमेर।