Rajasthan

Churu

78/2014

Poonia Constaction CO. - Complainant(s)

Versus

BOB Bank - Opp.Party(s)

DRS

19 Dec 2014

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, चूरू
अध्यक्ष- षिव शंकर
सदस्य- सुभाष चन्द्र
सदस्या- नसीम बानो
 
परिवाद संख्या-  78/2014
पूनिया कन्स्ट्रक्शन कम्पनी ग्राम पोस्ट पडि़हारा तहसील रतनगढ जिला चूरू जरिये पार्टनर हनुमान पूनिया पुत्र श्री भंवरलाल पुनिया जाति जाट निवासी ग्राम/पोस्ट पडि़हारा तहसील रतनगढ जिला चूरू (राजस्थान)
......प्रार्थी
बनाम
 
1.    बैंक आॅफ बड़ौदा शाखा, पडि़हारा तहसील रतनगढ जिला चूरू जरिए शाखा प्रबन्धक                                      
......अप्रार्थी
दिनांक-  07.04.2015
निर्णय
द्वारा अध्यक्ष- षिव शंकर
1.    श्री धन्नाराम सैनी एडवोकेट - प्रार्थी की ओर से
2.    श्री सुरेश शर्मा एडवोकेट    - अप्रार्थी की ओर से
 
 
1.    प्रार्थी ने अपना परिवाद पेष कर बताया कि प्रार्थी ने अप्रार्थी के यहां एक खाता खुलवा रखा है जिसके खाता संख्या 0692040000241 है। प्रार्थी लगातार अपने खाते में लेन-देन करता चला आ रहा है। प्रार्थी ने स्वंय रोजगार हेतु पुनिया कन्सट्रक्शन कम्पनी के नाम से एक फर्म खोल रखी है। रामानन्द चैधरी ने भुगतान पेटे दिनांक 25.04.2013 को एक चैक संख्या 178077 एक लाख तीस हजार रूपये का दिया था। जिसका भुगतान रामानन्द चैधरी के स्टेट बैंक आॅफ बीकानेर एण्ड जयपुर में स्थित खाता संख्या 61076193919 से होना था। प्रार्थी ने उक्त चैक अपने खाता संख्या 06920400000241 में संग्रहण हेतु एक चैक संख्या 178077 दिनांकित 25.04.2013 1,30,000 रूपये का जून 2013 के अंतिम सप्ताह में जमा करवाया था। उक्त चैक का संग्रहण अप्रार्थी द्वारा किया जाकर प्रार्थी के खाते में उक्त राशि जमा की जानी थी। प्रार्थी ने अप्रार्थी को उक्त चैक के संग्रहण बाबत् पुछताछ की तो कहा जाता रहा कि उक्त चैक संग्रहण हेतु संबंधित शाखा को भिजवाया हुआ है। संग्रहण होते ही आपके खाते में राषि जमा कर दी जायेगी जुलाई 2013 मे प्रार्थी के खाते मे उक्त चैक की राषि क्रेडिट कर दी गई। लेकिन उक्त राषि को पुनः प्रार्थी के खाते मे डेबिट कर दी गई। उक्त राषि प्रार्थी के खाते मे डेबिट करने से पूर्व प्रार्थी को कोई सूचना नही दी गई,नोटिस नही दिया गया, सूनवाई का कोई अवसर नही दिया गया। उक्त राषि डेबिट करने की कार्यवाही अप्रार्थी द्वारा बाला बल की गई जिसका पता प्रार्थी को नहीं चला।
2.    आगे प्रार्थी ने बताया कि दिनांक 02.11.2013 को अप्रार्थी द्वारा प्रार्थी के घर के पते पर उक्त चैक जरिये पियोन भिजवा दिया गया जिसके साथ स्टेट बैंक आॅफ बीकानेर एण्ड जयपुर शाखा रतनगढ का चैक वापसी मीमो दिनांकित 03.07.2013 का भिजवाया गया। जिस पर प्रार्थी ने अप्रार्थी बैंक मे जाकर चैक के सम्बन्ध मे पुछताछ की तो प्रार्थी को प्रथम बार पता चला कि अप्रार्थी द्वारा प्रार्थी के खाते मे जो राषि क्रेडिट की गई थी वापस डेबिट कर दी गई तथा उक्त चैक दिनंाक 03.07.2013 को ही अनादरित हो चुका था। जिसकी सूचना अप्रार्थी द्वारा लापरवाहीवष नही भिजवाई। जिस कारण प्रार्थी उक्त चैक के सम्बन्ध मे परक्राम्य लिखित अधिनियम के अन्तर्गत परिवाद प्रस्तुत नही कर सका। इस कारण प्रार्थी को उक्त 1,30,000 रू. रामानन्द चैधरी ने देने से इन्कार कर दिया है। प्रार्थी को अप्रार्थी के लापरवाही के कारण उक्त नुकसान हुआ है। जिसकी क्षतिपूर्ती करने के लिये अप्रार्थी जिम्मेदार है। उक्त चैक जून 2013 मे ही अप्रार्थी को पेष कर दिया गया लेकिन अप्रार्थी द्वारा उक्त चैक को संग्रहण हेतु भिजवाया गया था जो दिनांक 03.07.2013 को ही लोट के आ गया था। अगर उक्त समय रहते लोटा दिया जाता तो प्रार्थी कानूनी कार्यवाही करके उक्त राषि वसूल कर सकता था। अनादरण की सूचना भी काफी देरी से दिनांक 02.11.2013 को प्रार्थी को दी गई इस कारण प्रार्थी उक्त चैक की राषि चैक जारिकत्र्ता से प्राप्त नहीं कर सका और प्रार्थी को 1,30,000/- रूपये का नुकसान हो गया। प्रार्थी ने अप्रार्थी संख्या 1 से उक्त चैक देरी से लौटाने का कारण पूछा तो अप्रार्थी ने कोई स्पष्टीकरण नही दिया और प्रार्थी से असभ्य व्यवहार किया। अप्रार्थी द्वारा चैक की राशि प्रार्थी के खाते में जमा न कर अनादरित चैक की अवधि समाप्त होने के बाद देरी से सूचना प्रार्थी को दी गयी जो अप्रार्थी की स्पष्ट सेवादोष है इसलिए प्रार्थी अधिवक्ता ने चैक की राशि 1,30,000 रूपये मय ब्याज, मानसिक प्रतिकर व परिवाद व्यय दिलाने की मांग की है।
3.    अप्रार्थी ने प्रार्थी के परिवाद का विरोध कर जवाब पेश कर बताया कि प्रार्थी एक पंजीकृत व्यापारिक संस्थान है तथा स्वरोजगार के जरिये कारोबार नहीं किया जाता है बल्कि एक साझेदारी फर्म है जिसमें 5 साझेदार है तथा ।। श्रेणी में पंजीकृत ठेकेदारी कार्य की फर्म है जिसमें काफी व्यक्तियों को रोजगार (नियोजन) में रखा जाकर वृहद स्तर पर भवन निर्माण व सड़क निर्माण आदि का कार्य किया जाकर लाभ कमाया जाता है एवं उक्त लाभ का सभी साझेदारान के मध्य विभाजन कर लाभ प्राप्त किया जाता है। इस प्रकार प्रार्थी व्यापारिक फर्म होने से एवं व्यापारिक उदेश्य के लिए ऋण खाता उत्तरवादी बैंक के समक्ष व्यापारिक खाता होने से प्रार्थी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है एवं उपभोक्ता अधिनियम की धारा 2(क्)(1) के तहत परिवाद माननीय मंच के समक्ष सुनवाई योग्य नहीं है। एस.बी.बी.जे. रतनगढ द्वारा उक्त चैक अनादृत होने के कारण वापिस भिजवाया गया जो बैंक आॅफ बड़ौदा शाखा रतनगढ की मार्फत वापिस उत्तरवादी बैंक को भिजवाया गया था। उक्त चैक डाक द्वारा लिफाफा उत्तरवादी बैंक को दिनांक 02.11.2013 को प्राप्त हुआ जिस पर उतरवादी बैंक ने दिनांक 02.11.2013 को ही प्रार्थी को भिजवा दिया गया इस प्रकार उतरवादी बैंक ने किसी प्रकार की देरी नहीं की है तथा कोई भी सेवादोष नहीं रहा है। प्रार्थी व चैक दाता ठेकेदारी फर्म के आपस में अच्छे रिलेसन है तथा आपस में साजिश कर रखी है इस कारण प्रार्थी द्वारा पूर्व में चैक अनादरण होने पर भी चैकदाता के खिलाफ चैक अनादरण अपराध बाबत कोई भी कार्यवाही नहीं की गई तथा एक माह बाद पुनः चैक लगाया गया तथा खाता में पर्याप्त राशि नहीं होने के कारण जानबूझकर उक्त चैक रतनगढ़ बैंक में रूकवाये रखा तथा साजिश पूर्वक उक्त चैक की राशि उतरवादी बैंक से हड़पने की गर्ज से यह फ्रेवलस परिवाद पेश किया है।
4.    आगे अप्रार्थी ने जवाब में दिया कि प्रार्थी को चैक अनादरण की सूचना जब दिनांक 02.11.2013 को प्राप्त हुई तो कानूनन प्रार्थी उक्त दिनांक को चैक अनादरण की सूचना के आधार पर निर्धारित समयावधि में चैक दाता के खिलाफ चैक अनादरण अपराध बाबत कार्यवाही कर सकता था परन्तु प्रार्थी ने चैक अनादरण की सूचना मिलने के बावजूद चैकदाता को कोई नोटिस नहीं दिया न ही कोई कार्यवाही की गई बल्कि चैकदाता के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं करके माननीय मंच के समक्ष बनावटी परिवाद पेश किया गया है इससे स्पष्ट है कि प्रार्थी द्वारा फ्रेवलस परिवाद पेश किया गया हैं इस प्रकार प्रार्थी को उतरवादी बैंक के कारण कोई भी क्षति किसी प्रकार की नहीं हुई है तथा तउरवादी बैंक का कोई सेवादोष नहीं रहा है। प्रार्थी कानूनन सिविल न्यायालय के समक्ष चैकदाता के खिलाफ अपनी राशि वसूली बाबत वाद दायर कर अनुतोष प्राप्त कर सकता है। इस प्रकार प्रार्थी को उक्त चैक की राशि का नुकसान होने की कोई संभावना नहीं है। प्रार्थी द्वारा चैकदाता फर्म व जिस बैंक पर चैक राशि भुगतान हेतु लिखा गया था उक्त बैंक एस.बी.बी.जे. को पक्षकार नहीं बनाया गया है इस कारण कानूनन आवश्यक पक्षकार के अभाव में परिवाद चलने योग्य नहीं है।
5.    प्रार्थी ने अपने परिवाद के समर्थन में स्वंय का शपथ-पत्र, चैक की प्रति, रिटर्न मिमो, पियोन बुक, कार्यालय आदेश, पावर आॅफ अटर्नी दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया है। अप्रार्थी की ओर से बैंक स्टेटमेंट की प्रति, चैक की प्रति, रिटर्न मिमो, कार्यालय आदेश, असल डाक लिफाफा की प्रति, पत्र दिनांक 02.11.2013, डाक प्रेषण प्राप्ति रजिस्टर की प्रति 02.11.2013, खाता खोलने के समय दिया गया फाॅर्म, परिचालन पत्र दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया है।
6.    पक्षकारान की बहस सुनी गई, पत्रावली का ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया, मंच का निष्कर्ष इस परिवाद में निम्न प्रकार से है।
7.    प्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस में परिवाद के तथ्येां को दौहराते हुए तर्क दिया कि प्रार्थी ने अप्रार्थी के यहां एक खाता खुलवा रखा है। उक्त खाते में प्रार्थी ने रामानन्द चैधरी के द्वारा जारी किया गया एक चैक संख्या 178077 दिनांक 25.04.2013 बैंक एस.बी.बी.जे. का राशि सगं्रहण हेतु जून 2013 के अंतिम सप्ताह में जमा करवाया था। अप्रार्थी बैंक ने उक्त चैक के अनादरित होने की सूचना प्रार्थी को दिनांक 02.11.2013 को जरिये पियोन भिजवा दी थी। सूचना के साथ रिटर्न मिमो भी भिजवाया गया था जिसमें प्रश्नगत चैक दिनांक 03.07.2013 को अनादरित हो चूका था। प्रार्थी अधिवक्ता ने तर्क दिया कि अप्रार्थी ने चैक अनादरित होने की सूचना प्रार्थी को काफी समय के बाद दी गयी जिस कारण प्रार्थी चैक जारीकर्ता के विरूद्ध परक्राम्य लिखित अधिनियम के अन्तर्गत कार्यवाही नहीं कर सका और प्रश्नगत चैक की राशि अप्रार्थी बैंक के कारण प्रार्थी को प्राप्त नहीं हो सकी। अप्रार्थी बैंक द्वारा प्रार्थी को चैक अनादरण की सूचना देरी से दी गयी जिस कारण प्रार्थी चैककृत राशि वसूल नहीं कर सका। अप्रार्थी का उक्त कृत्य स्पष्ट रूप से सेवादोष की श्रेणी में आता है। इसलिए प्रार्थी अधिवक्ता ने परिवाद स्वीकार करने का तर्क दिया। अप्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस में प्रार्थी अधिवक्ता के तर्कों का विरोध किया और तर्क दिया कि प्रार्थी फर्म एक पंजिकृत व्यापारिक संस्थान है जिसमें कुल 5 साझेदार है और जो विस्तृत लेवल पर काफी व्यक्तियों को नियोजन में रखते हुए भवन निर्माण व सड़क निर्माण आदि का कार्य करती है व लाभ की राशि सभी साझेदार आपस में वितरित करते है। प्रार्थी फर्म ने अप्रार्थी के यहां खाता भी व्यापारिक उदेश्य हेतु ही खुलवाया हुआ है। इसलिए प्रार्थी फर्म का व्यवसाय व्यापारिक गतिविधि होने के कारण उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है। अप्रार्थी अधिवक्ता ने यह भी तर्क दिया कि प्रश्नगत चैक अप्रार्थी बैंक में एस.बी.बी.जे. रतनगढ़ की शाखा से अनादरित होकर दिनांक 02.11.2013 को प्राप्त हुआ था उसी दिन प्रार्थी को सूचना भिजवा दी गयी थी। इसलिए प्रार्थी चैक जारीकर्ता के विरूद्ध परक्राम्य लिखित अधिनियम के तहत कार्यवाही करने हेतु स्वतन्त्र था परन्तु प्रार्थी व चैक जारीकर्ता के विरूद्ध दुर्भीसंधी होने के कारण प्रार्थी ने चैक जारीकर्ता के विरूद्ध एन.आई. एक्ट के तहत विधिक कार्यवाही न कर मिथ्या आधारों पर यह परिवाद प्रस्तुत किया। अप्रार्थी अधिवक्ता ने यह भी तर्क दिया कि अप्रार्थी बैंक के पास प्रश्नगत चैक एस.बी.बी.जे. शाखा रतनगढ़ से अनादरित होकर दिनांक 02.11.2013 को प्राप्त हुआ था और उसी दिन प्रार्थी को सूचित कर दिया था। जिससे स्पष्ट है कि देरी एस.बी.बी.जे. शाखा रतनगढ़ से हुई है। जो कि परिवाद में एक आवश्यक पक्षकार था। फिर भी प्रार्थी ने एस.बी.बी.जे. शाखा रतनगढ को परिवाद में पक्षकार नहीं बनाया प्रार्थी का परिवाद आवश्यक पक्षकारों के असहयोजन के आधार पर खारिज किये जाने योग्य हैै। अप्रार्थी अधिवक्ता ने उपरोक्त आधारों पर प्रार्थी का परिवाद खारिज करने का तर्क दिया।
8.    हमने उभय पक्षों के तर्कों पर मनन किया। वर्तमान प्रकरण में प्रार्थी फर्म का अप्रार्थी बैंक में खाता होना, उक्त खाते में लगाया गया चैक संख्या 178077 राशि 1,30,000 रूपये अनादरित होना, प्रार्थी फर्म एक भागीदारी फर्म होना जिसमें कुल 5 साझेदार होना स्वीकृत तथ्य है। प्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस में मुख्य तर्क यह दिया है कि अप्रार्थी बैंक द्वारा प्रार्थी को प्रश्नगत चैक संख्या 178077 अनादरित होने की दिनांक 03.07.2013 की सूचना दिनांक 02.11.2013 को देने से प्रार्थी चैक जारीकर्ता के विरूद्ध परक्राम्य लिखित अधिनियम के तहत विधिक कार्यवाही नहीं कर सका जिस कारण प्रार्थी को चैककृत राशि 1,30,000 रूपये का नुकसान हो गया। अपनी बहस के समर्थन में प्रार्थी अधिवक्ता ने इस मंच का ध्यान चैक की प्रति, रिटर्न मिमो की ओर दिलाया जिसका ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया। चैक की प्रति व रिटर्न मिमो के अवलोकन से स्पष्ट है कि प्रश्नगत चैक संख्या 178077 रामानन्द चैधरी के द्वारा दिनांक 25.04.2013 को प्रार्थी फर्म के पक्ष में जारी किया गया था जो चैक जारी कर्ता फर्म के बैंक द्वारा दिनांक 03.07.2013 को चैक जारीकर्ता रामानन्द चैधरी के खाते में पर्याप्त राशि नहीं होने के आधार पर अनादरित कर दिया गया जिसकी सूचना प्रार्थी को दिनांक 02.11.2013 को प्राप्त हुई। प्रार्थी अधिवक्ता ने उक्त दस्तावेजों के आधार पर तर्क दिया कि वह चैक जारीकर्ता के विरूद्ध परक्राम्य लिखित अधिनियम की कार्यवाही चैक अनादरित होने की सूचना देरी से प्राप्त होने पर नहीं कर सका। अप्रार्थी अधिवक्ता ने प्रार्थी अधिवक्ता के तर्कों का विरोध किया और तर्क दिया कि यदि प्रार्थी चैक जारीकर्ता के विरूद्ध परक्राम्य लिखित अधिनियम की कार्यवाही करना चाहता तो वह प्रार्थी को चैक अनादरण की सूचना दिनांक 02.11.2013 के एक माह के अन्दर-अन्दर विधिक नोटिस देकर कर सकता था परन्तु प्रार्थी व चैक जारीकर्ता के मध्य दुर्भिसंधी होने के कारण प्रार्थी ने मिथ्या आधारों पर अप्रार्थी बैंक के खिलाफ परिवाद पेश किया है। चैक जारीकर्ता के विरूद्ध धारा 138 परक्राम्य लिखित अधिनियम के तहत चैक अनादरित होने के बाद किस दिनांक से व कितने समय में कर सकते है इस सम्बंध में हम परक्राम्य लिखित अधिनियम 1881 की धारा 138 का हवाला देना उचित समझते है। धारा 138 के परन्तुक में यह अंकित है कि (क) चैक जिस तारीख को लिखा गया था उस तारीख से छः महिने के अन्दर अथ्वा इसकी विधिमान्य अवधि, जो भी पहले हो, के अन्दर बैंक में प्रस्तुत न कर दी गई हो। (ख) चैक का पाने वाला या सम्यक अनुक्रम में धारक जैसा भी मामला हो, बैंक द्वारा चैक के असंदत वापसी की सूचना की प्राप्ति के बाद2 (तीस दिनों के अन्दर) उसने चैक के लेखीवाल को एक लिखित नोटिस देकर कथित धन राशि के संदाय के लिए मांग नहीं करता। (ग) ऐसी चैक का लेखीवाल कथित नोटिस प्राप्त करने के बाद 15 दिनांे के भीतर कथित धनराशि का संदाय सम्यक अनुक्रम में संदाय करने में असफल नहीं हो जाता। उपरोक्त धारा से स्पष्ट है कि प्रार्थी चैक अनादरित की सूचना दिनांक 02.11.2013 से चैक जारी कर्ता के विरूद्ध परक्राम्य लिखित अधिनियम के तहत विधिक कार्यवाही कर सकता था। उपरोक्त धारा के परिपेक्ष में प्रार्थी का यह तर्क मान्य नहीं है कि वह अप्रार्थी की लापरवाही के कारण चैक जारी कर्ता के विरूद्ध अन्तर्गत धारा 138 परक्राम्य लिखित अधिनियम के तहत कार्यवाही नहीं कर सका।
9.    अप्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस में यह भी तर्क दिया कि प्रार्थी एक व्यवसायिक पंजिकृत फर्म है जिसके 5 साझेदार है जो विस्तृत लेवल पर मजदूर व कर्मचारी रखकर भवन निर्माण व सड़क निर्माण का कार्य करते हुए लाभ कमाती है इसलिए प्रार्थी फर्म उपभोक्ता की परिभाषा में नहीं आती है। बहस के दौरान अप्रार्थी अधिवक्ता ने इस मंच का ध्यान बैंक स्टेटमेन्ट, खाता परिचालन के लिए अधिदेश-पत्र व कार्यालय आदेश की ओर ध्यान दिलाया जिसका ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया। उपरोक्त दस्तावेजों के अवलोकन से स्पष्ट है कि प्रार्थी फर्म ।। श्रेणी की पंजिकृत फर्म है जो समस्त निर्माण कार्य निर्धारित तकनीकी कर्मचारी उपलब्ध रखकर करवाती है। फर्म में कुल 5 साझेदार है और प्रार्थी फर्म का अप्रार्थी बैंक में खाता भी पंजिकृत व्यवसायिक फर्म के नाम से है और जिसमें अवरड्यू ऋण फेसिलिटी भी प्राप्त की हुई है। इससे स्पष्ट है कि प्रार्थी फर्म स्वरोजगार हेतु निर्मित न होकर विस्तृत लेवल पर ठेकेदारी का कार्य करते हुये लाभ कमाती है इसलिए मंच की राय में प्रार्थी फर्म उपभोक्ता अधिनियम की धारा 2(क्)(1) के तहत उपभोक्ता की श्रेणी मंे नहीं आती। अप्रार्थी अधिवक्ता द्वारा दिये गये तर्को, दस्तावेजो से स्पष्ट है कि अप्रार्थी बैंक ने प्रार्थी को प्रश्नगत चैक अनादरित होने की सूचना तुरन्त दिनांक 02.11.2013 को दे दी थी जो स्वंय प्रार्थी ने स्वीकार की है। इसलिए वर्तमान प्रकरण में अप्रार्थी बैंक का कोई सेवादोष प्रकट नहीं होता। प्रश्नगत चैक अनादरित होने पर चैक जारीकर्ता बैंक एस.बी.बी.जे. रतनगढ़ के द्वारा देरी से अप्रार्थी बैंक को असल चैक व रिटर्न मिमो दिनांक 02.11.2013 को भिजवाया गया इससे स्पष्ट है कि देरी एस.बी.बी.जे. बैंक रतनगढ़ के द्वारा हुई थी जिसे प्रार्थी ने आवश्यक पक्षकार होते हुए भी पक्षकार नहीं बनाया। इसलिए मंच की राय में प्रार्थी का परिवाद आवश्यक पक्षकारों के असहयोजन व प्रार्थी फर्म उपभोक्ता अधिनियम की धारा 2(क्)(1) के तहत उपभोक्ता की श्रेणी मंे नहीं होने के कारण प्रार्थी का परिवाद अप्रार्थी के विरूद्ध खारिज किये जाने योग्य है।
             अतः प्रार्थी का परिवाद अप्रार्थी के विरूद्ध अस्वीकार कर खारिज किया जाता है। पक्षकार प्रकरण का व्यय अपना-अपना वहन करेंगे।
 
 
सुभाष चन्द्र              नसीम बानो                षिव शंकर
  सदस्य                 सदस्या                     अध्यक्ष                         
    निर्णय आज दिनांक 07.04.2015 को लिखाया जाकर सुनाया गया।
    
 
सुभाष चन्द्र              नसीम बानो                षिव शंकर
     सदस्य                सदस्या                     अध्यक्ष     
 

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