Chhattisgarh

Durg

CC/185/2014

Nikhil Mittal - Complainant(s)

Versus

Birla Sunlife Insurance Co. - Opp.Party(s)

Mr. Aashish Verma

26 Feb 2015

ORDER

DISTRICT CONSUMER DISPUTES REDRESSAL FORUM, DURG (C.G.)
FINAL ORDER
 
Complaint Case No. CC/185/2014
 
1. Nikhil Mittal
Bhilai
Durg
C.G.
...........Complainant(s)
Versus
1. Birla Sunlife Insurance Co.
Bhilai
Durg
C.G.
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MRS. मैत्रेयी माथुर् PRESIDENT
 HON'BLE MRS. शुभा सिंह MEMBER
 
For the Complainant:Mr. Aashish Verma, Advocate
For the Opp. Party:
ORDER

                                                   प्रकरण क्र.सी.सी./14/185

                                                                                                   प्रस्तुती दिनाँक 31.05.2014

 

निखिल मित्तल आ. स्व. राजेश मित्तल, उम्र 21 वर्ष लगभग, निवासी- मकान नं.20, केम्प-1, सुन्दर नगर, भिलाई, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.)                                                       - - - -     परिवादी

 

विरूद्ध

1.             बिरला सनलाईफ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, द्वारा प्राधिकृत अधिकारी, थर्ड फ्लोर, चैहान स्टेट, चन्द्रा मौर्चा टाकीज के पास, जी.ई.रोड, सुपेला, भिलाई, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.)

2.             बिरला सनलाईफ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, द्वारा प्राधिकृत अधिकारी/क्लेम मैनेजर, सिक्स फ्लोर, क्लेम्स डिपार्टमेंट, जी.कार्प टीन पार्क, कसारवाडवाली, गोडबंदर रोड, थाने (वेस्ट) महाराष्ट्र 400601                                                                                - - - -      अनावेदकगण

आदेश

(आज दिनाँक 16 मार्च 2015 को पारित)

श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष

                                परिवादी द्वारा अनावेदकगण से बीमा राशि 12,00,000रू. मय ब्याज, मानसिक क्षति, वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।              

परिवाद-

                                (2) परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी के पिता स्व. राजेश मित्तल द्वारा अनावेदक बीमा कंपनी से बीमा पालिसी क्र.005694674 लिया था, उक्त पालिसी के अनुसार बीमाधारक की मृत्यु होने पर उसके नाॅमिनी को बीाधन 12,00,000रू. प्राप्त होता। परिवादी के पिता बीमाधारक का स्वास्थ्य खराब होने से भिलाई नर्सिग होम में इलाज कराया गया, वहां से बेहतर ईलाज हेतु मेदांता हाॅस्पिटल गुडगांव में भर्ती कराया गया, जहां बीमाधारक की ईलाज के दौरान दि.15.06.2013 को मृत्यु हो गई।  बीमाधारक की मृत्यु की सूचना अनावेदकगण को दी गई तथा समस्त दस्तावेजों सहित क्लेम फार्म जमा किया गया।  अनावेदकगण द्वारा परिवादी के बीमा दावा को दि.31.03.2014 को निरस्त कर दिया, जिसमें निरस्त करने का कोई कारण का उल्लेख नहीं किया गया था।  परिवादी की ओर से अनावेदकगण को दि.04.04.2014 को पत्र प्रेषित कर अपने दवे के संबंध स्थिति स्पष्ट करने या बीमाधन भुगतान करने का उल्लेख किया गया, इसके बावजूद भी अनावेदकगण द्वारा परिवादी के बीमा दावा राशि का भुगतान न कर सेवा में कमी तथा व्यवसायिक कदाचरण किया गया है।  अतः परिवादी को अनावेदकगण से बीमा राशि 12,00,000रू. मय ब्याज, मानसिक क्षति, वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाया जावे।

जवाबदावाः-

                                (3) अनावेदक का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि दावा असत्य आधारों पर प्रस्तुत है, बीमित व्यक्ति ने बीमा लेते समय महत्वपूर्ण तथ्य छुपाये थे, जबकि बीमा बीमित व्यक्ति द्वारा बताये तथ्यों पर विश्वास करते हुए सदभावना के आधार पर किया जाता है, जिसके संबंध में बीमित व्यक्ति सही तथ्य की जानकारी देने के संबंध में घोषणा भी निष्पादित करता है। इस प्रकार परिवादी स्वच्छ हाथों से नहीं आया है और अनावेदकगण द्वारा परिवादी का बीमा दावा खारिज करने में किसी भी प्रकार से सेवा में निम्नता नहीं की गई है, क्योंकि बीमित व्यक्ति को पूर्व से ही लीवर संबंधी गंभीर बीमारी थी, शराब सेवन का आदी था, जिसे मृत्यु के 6 माह पहले छोड़ दिया था, बीमित व्यक्ति को हेपेटाईटिस-बी, किडनी की बीमारी थी और आॅरगन डिस फंगशन सिंडरोम था जो कि एक दिन में उत्पन्न होने वाली बीमारी नहीं थी, जबकि लम्बे समय से उक्त बीमारी चली आ रही होगी और उक्त तथ्य बीमित व्यक्ति ने बीमा लेते समय छुपाया, जबकि बीमित व्यक्ति के संबंध में पालिसी दि.31.07.2012 को जारी हुई थी और दि.15.06.2013 को बीमित व्यक्ति की मृत्यु हो गई तथा दि.20.05.2013 को बीमित व्यक्ति का मेदांता हास्पिटल में इलाज किया गया, जहां उसे क्राॅनिक लीवर डीसीज़ बताई गई थी, इसी प्रकार 2007 में भी बीमित व्यक्ति को उपचार हेतु अस्पताल में भर्ती किया गया था, जिसके बारे में बीमित व्यक्ति ने बीमा लेतेे समय बीमा कंपनी को तथ्य प्रस्तुत नहीं किये थे और प्रपोजल फार्म में बीमारी और इलाज संबंधी गलत घोषणा की और ऐसा कृत्य बीमित व्यक्ति ने दुर्भावनापूर्वक किया, जिसके कारण बीमा शर्त के अंतर्गत परिवादी का बीमा निरस्त करने में अनावेदकगण द्वारा सेवा में निम्नता एवं व्यवसायिक कदाचरण नहीं किया गया है।

                                (4) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-

1.             क्या परिवादी, अनावेदकगण से बीमा राशि 12,00,000रू. मय ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी है?      हाँ

2.             अन्य सहायता एवं वाद व्यय?           आदेशानुसार परिवाद स्वीकृत

निष्कर्ष के आधार

                                (5) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है। 

फोरम का निष्कर्षः-

                                (6) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह पाते है कि एनेक्चर पी.1 अनुसार बीमित व्यक्ति परिवादी का पिता राजेश मित्तल था, जिसके नाम से एनेक्चर-1 की पालिसी जारी हुई थी।  प्रपोजल फार्म मंे भी राजेश मित्तल का नाम उल्लेखित है। एनेक्चर 10 प्रपोजल फार्म है, जिसके अनुसार बीमित व्यक्ति राजेश मित्तल का प्रपोजल फार्म एनेक्चर-11 अनुसार रूस्तम सिंह बंजारे द्वारा हस्ताक्षरित है जो कि अनावेदक बीमा कंपनी का एजेंट होना परिलक्षित होता है।

(7) यदि बीमित व्यक्ति को अभिकथित बीमारियां जिनका बचाव अनावेदक बीमा कंपनी ने लिया है, पूर्व से ही थी, तो वे बीमारियां ऐसी नहीं है कि मरीज को सरसरी तौर से देखने से भी बता नहीं सकते, अनावेदक बीमा कंपनी के उक्त एजेंट बंजारे को बीमित व्यक्ति को देखकर भी आभास हो जाना था कि बीमित व्यक्ति एक क्रोनिक अल्कोहलिक और अभिकथित बीमारियों से पीड़ित है, ऐसी बीमारी से ग्रसित व्यक्ति को देखकर कोई भी व्यक्ति की बीमारी का अनुमान लगा सकता है, तब इस एजेंट ने उक्त बीमारी के बारे में क्यों नहीं जाना, इस संबंध में अनावेदक बीमा कंपनी ने कोई संतोषप्रद स्पष्टीकरण प्रस्तुत नहीं किया है, जिससे यह सिद्ध होता है कि बीमा कंपनी अपने आक्रामक व्यवसायिक नीति के चलते पहले तो ग्राहकों को येनकेनप्रकारेण  बीमा लेने के लिए अपने व्यापारिक जाल में फंसा लेती है और मोटी-मोटी राशि प्रीमियम के रूप में प्राप्त कर लेती है और जब बाद में बीमा दावा देने का प्रश्न उठता है, तब प्रायवेट संस्था को इंवेस्टीगेटर के रूप में नियुक्त कर अत्यंत सूक्ष्मता से छानबीन करवाती है, जबकि ऐसी छानबीन बीमा पालिसी देने के पहले ही ग्राहकों के संबंध में करवाना चाहिए, जिससे की ग्राहक को बीमा प्रदान करते समय ही वस्तु स्थिति सामने आये और यदि बीमारी की स्थिति मिलती है तो ग्राहक का बीमा ही नहीं कराया जाये, जिससे ग्राहक अपनी मेहनत की मोटी कमाई बीमा कंपनी को प्रीमियम के रूप में देने से बचे, वहीं बीमित व्यक्ति और उसके परिजन का विश्वास नहीं टूटे, क्योंकि कोई व्यक्ति बीमा इसी आशय से कराता है कि विषम परिस्थिति में बीमित व्यक्ति के परिवार को आर्थिक परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ेगा, यदि हम बीमित व्यक्ति के बीमा प्रपोजल एनेक्चर-10 से एनेक्चर-13 का अवलोकन करें तो अनावेदक बीमा कंपनी के घोर व्यवसायिक दुराचरण की स्थिति स्पष्ट होती है, एनेक्चर पी.13 में प्री इंश्योरेंस टेस्ट रेक्वीजिट फार्म भरा ही नहीं गया है, जिसमें डाॅक्टर या अस्पताल का नाम उल्लेख होना चाहिए।  बीमित व्यक्ति की क्या डाॅक्टरी जांच की गई है, वह उल्लेखित होना चाहिए और उसमें एजेंट के हस्ताक्षर होने चाहिए, तत्पश्चात् चिकित्सक द्वारा विस्तृत रूप से घोषणा दी जानी चाहिए की बीमित व्यक्ति का डाॅक्टरी परीक्षण किया गया और उसकी चिकित्सकीय स्थिति कैसी पाई गई, इन दस्तावेजों से यह सिद्ध होता है कि अनावेदक बीमा कंपनी ने अपने व्यवसायिक दुराचरण की नीति के चलते घोर व्यवसायिक कदाचरण किया है और बीमित व्यक्ति को बीमा कराने के लिए सभी नियम शर्तों को ताक में रखकर बीमित व्यक्ति का बिना सूक्ष्म मेडिकल परीक्षण कराये बीमा कराकर, प्रीमियम की राशि प्राप्त कर घोर व्यवसायिक कदाचरण किया है।  स्वभाविक है कि इस प्रकार की बीमा कंपनी अनेकानेक ग्राहकों से ऐसी ही आर्थिक लाभ अर्जित करने के आशय से बीमा कराकर बड़ी-बड़ी प्रीमियम राशि प्राप्त करती है और अपने व्यापार को आगे बढ़ाते है, जो कि एक सोच का और एक सामाजिक चेतना का विषय है, बीमित अनभिग्य व्यक्ति जिसे अनावेदक बीमा कंपनी सारी जानकारी विशिष्ट रूप से देकर समझाते नहीं है कि किन परिस्थितियों में बीमा दावा खारिज होगा, ऐसे ग्राहक से बड़ी-बड़ी राशियां प्रीमियम के रूप में प्राप्त कर अपना व्यापार गलत तरीके से चलती है।

(8) यदि हम एनेक्चर-14 से एनेक्चर-18 के मेडिकल परीक्षण रिपोर्ट पर गौर करें तो यहीं प्रश्न उत्पन्न होता है कि उक्त चिकित्सक को भी बीमित व्यक्ति को उपरी तौर पर बीमारी के लक्षण होना महसूस नहीं हुआ, जबकि स्वयं अनावेदक बीमा कंपनी का अभिकथन है कि बीमित व्यक्ति क्रोनिक अल्कोहलिक था, उसको  क्रोनिक लीवर डीसीज़ थी, तो ऐसे लक्षण अभिकथित चिकित्सक को बाहरी तौर पर परिलक्षित नहीं हुये, आश्चर्य की स्थिति यह है कि एनेक्चर-14 से एनेक्चर-17 द्वारा बीमित व्यक्ति का ई.सी.जी. भी लिया गया है तथा क्या ऐसा ई.सी.जी. अभिकथित बीमारी वाले व्यक्ति में नाॅर्मल माना जायेगा।  इसी प्रकार एनेक्चर पी.18 द्वारा बीमित व्यक्ति का ब्लड टेस्ट रिपोर्ट है, जिसके संबंध में अनावेदकगण यह सिद्ध नहीं किये हैं कि यदि बीमित व्यक्ति को क्रोनिक लीवर डीसीज़ थी तो उसके फासटिंग ब्लड शुगर लेवल क्या रहता या एनेक्चर पी.18 की रीडिंग्स किस प्रकार रहती, वैसे भी उपधारणा यही लगायी जायेगी कि एनेक्चर-18 की ब्लड रिपोर्ट सही पाई गई थी, तभी बीमित व्यक्ति का बीमा अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा किया गया था। इसी प्रकार एनेक्चर-14 से एनेक्चर-17 की चिकित्सकीय रिपोर्ट सही पाई गई थी, बीमित व्यक्ति का ई.सी.जी. सही था, इसी कारण बीमित व्यक्ति को स्वस्थचित का व्यक्ति पाया गया था और इसी कारण अनावेदक बीमा कंपनी ने बीमित व्यक्ति को स्वस्थ पाते हुए बीमा किया गया था।

 

(9) अनावेदक बीमा कंपनी ने कहीं भी यह स्थिति स्पष्ट नहीं की है कि जब उन्होंने बीमा दावा निराकरण करते समय बीमित व्यक्ति को पहले से ही गंभीर बीमारी से ग्रस्त पाया तो उन्होंने बीमा देने के पहले जिस चिकित्सक से बीमित व्यक्ति का डाॅक्टरी परीक्षण किया था, उससे स्पष्टीकरण प्राप्त क्यों नहीं किया और उस चिकित्सक द्वारा एनेक्चर-14 से एनेक्चर-18 की रिपोर्ट के संबंध में उसकी रिपोर्ट शासन द्वारा निर्धारित मेडिकल बोर्ड के समक्ष उचित विशलेषण हेतु क्यों नहीं रखी? अनावेदक बीमा कंपनी की इन गतिविधियों से यह सिद्ध होता है कि अनावेदक बीमा कंपनी की यही आक्रामक व्यवसायिक नीति है कि येनकेनप्रकाणेन किसी भी तरह पहले व्यक्ति को बीमा लेने के लिए अग्रसर किया जाये और मोटी राशियां समय-समय पर प्रीमियम के रूप में प्राप्त की जाये और अपना आर्थिक व्यवसाय बढ़ते हुए जब कभी बीमा दावा प्रस्तुत हो तो फिर प्रायवेट इंवेस्टीगेटर से छानबीन कराकर बीमा दावा खारिज कर दिया जाये, जिससे और प्रीमियम की राशि ऐसी बीमा कंपनी सालो साल अपने ग्राहकों से प्राप्त करते हुए अपना व्यापार बढ़ाती है और इस प्रकार यह प्रकरण अनावेदक बीमा कंपनी के घोर व्यवसायिक कदाचरण की पराकाष्ठा का उदाहरण है।

(10) अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा शार्प इन्वेस्टीगेटर प्रायवेट लिमिटेड द्वारा जो जांच की गई है, उक्त संबंध में दस्तावेज एनेक्चर आर.5 प्रस्तुत किया गया है, उसमें संलग्न डाॅ.हमदानी की रिपोर्ट दि.27.04.2013 की है और मेदांता अस्पताल में भर्ती की तारीख 20.05.2013 उल्लेखित है, जबकि प्रपोजल फार्म एनेक्चर पी.10 के अनुसार प्रपोजल फार्म दि.31.07.2012 को भरा गया है, अर्थात् अनावेदकगण द्वारा बीमित व्यक्ति के स्वास्थ्य संबंधी दस्तावेज प्रपोजल फार्म भरने के बाद की तिथियों के हैं। अनावेदक बीमा कंपनी ने ऐसा कोई भी कारण नहीं बताया है कि एनेक्चर-14 से एनेक्चर-18 की चिकित्सकीय रिपोर्ट पर उसे अब विश्वास क्यों नहीं हो पा रहा है, जब बीमा दावा निराकरण करने की बारी आयी है और किन आधारों पर अब बीमा कंपनी इंवेस्टीगेटर की रिपोर्ट पर विश्वास कर रही है और जिस चिकित्सक ने प्रपोजल फार्म भरते समय बीमित व्यक्ति का मेडिकल परीक्षण किया, उसकी रिपोर्ट पर अविश्वास कर रहे हैं।  एनेक्चर पी.18 में सीरम बिलीरूबीन ब्लड टेस्ट में ज्यादा पाये जाने का उल्लेख नहीं है, जबकि इन्वेस्टीगेटर के द्वारा जांच की गई मेदांता अस्पताल के दस्तावेजों में जौनंडिस भी पाया गया था, अर्थात् सीरम बिलीरूबीन बढ़ा हुआ पाया गया है, इन परिस्थितियों में यह सिद्ध होता है कि एनेक्चर-14 से 18 की मेडिकल रिपोर्ट में बीमित व्यक्ति को अभिकथित बीमारी से ग्रस्त होना नहीं पाया गया, अन्यथा उन रिपोर्टस में रीडिंगस अलग तरह की होती है।

(11) एनेक्चर आर.10 के माध्यम से अनावेदक बीमा कंपनी ने मृतक बीमित व्यक्ति के संबंध में दि.27.08.2013 को फेमली फिजीशियन सर्टिफिकेट प्राप्त किया है, जिसके सीरियल नं.1’’सी’’ में अन्य कोई बीमारी के स्थान पर ’’नो’’ लिखा है।  उपरोक्त स्थिति में यह अभिनिर्धारित करना उचित होगा कि अनावेदक बीमा कंपनी ने बीमित व्यक्ति का डाॅक्टरी परीक्षण, बीमा पालिसी देने के पूर्व भी एक मान्यता प्राप्त चिकित्सक से कराया था और कोई बीमारी नहीं पाई थी और इस स्थिति में अब अनावेदक बीमा कंपनी यह आक्षेप नहीं लगा सकती है कि बीमित व्यक्ति को पूर्व से ही उसके द्वारा अभिकथित बीमारी थी और उसने बीमारी के तथ्य छुपा कर बीमा पालिसी प्राप्त की, स्वभाविक है कि जब कोई चिकित्सक व्यक्ति का ई.सी.जी. कर रहा है और ब्लड टेस्ट कर रहा है और उसमें कोई अनियमितता नहीं पाते हैं, अर्थात् व्यक्ति को कोई बीमारी नहीं पाते हैं तथा फिर अनावेदक बीमा कंपनी यह आक्षेप नहीं लगा सकती कि बीमा पालिसी लेने के पहले ही बीमित व्यक्ति बीमार था और उसने बीमारी संबंधी तथ्य जानबूझकर प्रपोजल फार्म में छुपाये है, क्योंकि बीमित व्यक्ति को जो बीमारी अनावेदक द्वारा बताई गई है वे छुपाने से छुप नहीं सकती है, जब चिकित्सक ई.सी.जी. करे और ब्लड टेस्ट करे तो किसी भी परिस्थिति में ऐसी बीमारी छुप नहीं सकती।

(12) मात्र एनेक्चर आर.6 से आर.8 के दस्तावेजों में यह उल्लेख कर दिया जाना कि बीमित व्यक्ति को एक साल पहले से क्रोनिक लीवर डीसीज थी, से प्रकरण की इस परिस्थिति में अनावेदक बीमा कंपनी को कोई लाभ नहीं दिया जा सकता, क्योंकि अनावेदक बीमा कंपनी ने बीमित व्यक्ति द्वारा प्रपोजल फार्म भरते समय बीमित व्यक्ति का सूक्ष्मता से अपने द्वारा ही नियुक्त चिकित्सक के माध्यम से चिकित्सक परीक्षण कराया है और तभी उक्त चिकित्सक द्वारा बीमित व्यक्ति की बीमारी रहित रिपोर्ट दिये जाने के पश्चात् स्वयं बीमा पालिसी जारी की है और तब अनावेदक बीमा कंपनी इस तर्क का लाभ नहीं ले सकती है कि बीमित व्यक्ति ने पूर्व की बीमारी को छुपा कर प्रपोजल फार्म भरा था।

(13) उपरोक्त साक्ष्य विवेचना से हम यह निष्कर्षित करते हैं कि यह प्रकरण उन परिस्थतियों को साबित करता है कि किस प्रकार आज कल बीमा कंपनी ग्राहकों को बीमा पालिसी देकर अपना व्यापार तो बढ़ा लेती हैं, परंतु जब क्लेम देने का अवसर आता है तो बिना दस्तावेजों का सूक्ष्मता से अध्ययन किये, बीमा दावा खारिज कर देती हंै, जैसा कि इस प्रकरण में हुआ है। यह एक सामाजिक चेतना का विषय है कि जब कोई व्यक्ति बीमा कराता है तो वह इसी कल्पना से कराता है कि उसके नहीं रहने पर उसके परिवार को आर्थिक परेशानी नहीं होगी, परंतु यदि इस प्रकार के कदाचार से परिवादी का बीमा दावा अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा खारिज किया गया है, तो निश्चित तौर पर सेवा में निम्नता एवं अनुचित व्यापारिक प्रथा के दोषी पाये जाते हैं।

(14) उपरोक्त स्थिति में हम परिवादी को न्यायदृष्टांत प्(2015) सी.पी.जे. 473 (एस.सी.) बिरला सन लाईफ इंश्योरेंश कंपनी विरूद्ध किरण प्रफुल्ल बहादुरे का लाभ देते हैं और यह निष्कर्षित करते है कि बीमित व्यक्ति का बीमा लेने के पूर्व चिकित्सकीय परीक्षण बीमा कंपनी द्वारा नियुक्त चिकित्सक द्वारा किया गया, उसमें कोई बीमारी नहीं पायी गई और इस प्रकार बीमित व्यक्ति ने प्रपोजल फार्म भरते समय सही तथ्य प्रस्तुत किये, जिसके आधार पर ही अनावेदक बीमा कंपनी बीमा पालिसी जारी की।

                                (15) अतः उपरोक्त संपूर्ण विवेचना के आधार पर हम परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार करते है और यह आदेश देते हैं कि अनावेदक क्र.1 एवं 2 संयुक्त एवं अलग-अलग रूप से, परिवादी को आदेश दिनांक से एक माह की अवधि के भीतर निम्नानुसार राशि अदा करेंगे:-

(अ)    अनावेदक क्र.1 एवं 2 संयुक्त एवं अलग-अलग रूप से, परिवादी को बीमा राशि 12,00,000रू. (बारह लाख रूपये) अदस करेंगे।

(ब)    अनावेदक क्र.1 एवं 2 द्वारा निर्धारित समयावधि के भीतर उक्त राशि का भुगतान परिवादीगण को नहीं किये जाने पर अनावेदक क्र.1 एवं 2 संयुक्त एवं अलग-अलग रूप से, परिवादीगण को आदेश दिनांक से भुगतान दिनांक तक 12 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज अदा करनें के लिए उत्तरदायी होंगे।

(स)    अनावेदक क्र.1 एवं 2 संयुक्त एवं अलग-अलग रूप से, परिवादी को वाद व्यय के रूप में 10,000रू. (दस हजार रूपये) भी अदा करेंगे।

 
 
[HON'BLE MRS. मैत्रेयी माथुर्]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MRS. शुभा सिंह]
MEMBER

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