जिला फोरम उपभोक्ता विवाद प्रतितोष, झुन्झुनू (राज0)
परिवाद संख्या - 208/13
समक्ष:- 1. श्री सुखपाल बुन्देल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती शबाना फारूकी, सदस्या।
3. श्री अजय कुमार मिश्रा, सदस्य।
राजेश कुमार चैहान पुत्र हनुमान राम जाति चैहान निवासी हांसलसर वाया बडागांव तहसील व जिला झुन्झुनू (राज0) - परिवादी
बनाम
बिरला सन लाईफ इंष्योरेंस कम्पनी लि0,देविका टावर फस्ट फलोर ए/22 माननगर रोड नम्बर 2 आफिस ओ.पी.पी. एसी ई. कालेज, झुंझुनू जरिये मैनेजर - विपक्षी
परिवाद पत्र अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता सरंक्षण अधिनियम 1986
उपस्थित:-
1. श्री हेमराज, एडवोकेट - परिवादी की ओर से।
2. श्री अमर सिंह चैधरी, एडवोकेट - विपक्षी की ओर से।
- निर्णय - दिनांक 14.05.2015
परिवादी ने यह परिवाद पत्र मंच के समक्ष पेष किया जिसे दिनांक 17.04.2013 को संस्थित किया गया।
विद्धान अधिवक्ता परिवादी ने परिवाद पत्र मे अंकित तथ्यों को उजागर करते हुए बहस के दौरान यह कथन किया है कि परिवादी को विपक्षी बीमा कम्पनी के एजेंट दिनेष कुमार सैनी द्वारा यह बताया गया था कि बीमा कम्पनी में एक बार किष्त चुकता करने के बाद दुबारा किष्त नहीं चुकानी पडेगी तथा परिवादी को समस्त लाभांस प्राप्त होंगे, जिस पर परिवादी राजेष कुमार चैहान ने अपने नाम से विपक्षी के यहां दिनांक 16.03.2011 को प्रीमियम राषि 10050/-रूपये जमा कराकर बीमा पाॅलिसी नम्बर 004779719 प्राप्त की, जिसकी रसीद नम्बर 21206374 तथा एप्लीकेषन नम्बर ए-43560217 हैं। परिवादी द्वारा बीमा कम्पनी के अधिकारियों से सम्पर्क करने पर जाहिर किया कि कम्पनी की एक साथ दो पालिसी लेने पर ही कम्पनी के सभी लाभांष परिवादी को मिलेगें। तब परिवादी ने दिनांक 17.03.2011 को 10968/-रूपये राषि प्रीमियम बीमा कम्पनी को अदा कर दूसरी पालिसी संख्या 004779717 प्राप्त की गई, जिसकी रसीद संख्या 21206383 तथा एप्लीकेषन नम्बर ए-43560208 हैं। इसलिए परिवादी विपक्षी का उपभोक्ता है।
परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में यह भी कथन किया है कि परिवादी जब फरवरी,2012 में कम्पनी के एजेंट दिनेष कुमार सैनी से मिला तो उसने कहा कि परिवादी को मार्च महिने में एक-एक किष्त ओर जमा करवानी पडेगी। परिवादी ने कम्पनी के एंजेंट के निर्देषानुसार दिनांक 21.03.2012 को पालिसी नम्बर 004779719 की दूसरी किष्त 10100/-रूपये जमा कराई गई जिसकी रसीद नम्बर 29210719 हैं तथा दिनांक 05.04.2012 को पालिसी संख्या 004779717 की दूसरी किष्त 11024/-रूपये जमा करवादी जिसकी रसीद नम्बर 29210900 हैं। इस पर परिवादी ने पुनः बीमा कम्पनी के अधिकारियों से सम्पर्क किया तो उन्होने जानकारी दी कि आपको उक्त पालिसी में ओर किष्ते जमा करवानी पडेगी। परिवादी ने परेषान होकर ओर किष्त जमा कराने से मना कर दिया तथा जमा की गई किष्तें मूल ही वापिस लौटाने के लिये निवेदन किया, जिस पर कम्पनी के अधिकारियों ने बताया कि अगर आपको रूपये वापिस लौटायेंगे तो किसी प्रकार का लाभांष प्राप्त नहीं होगा। परिवादी अपनी मूल किष्तों की राषि विपक्षी से लेने के लिये बार बार चक्कर काटता रहा लेकिन विपक्षी द्वारा किष्तेंा की राषि नही लौटाई जो विपक्षी की सेवा में कमी है।
अन्त में परिवादी ने अपना परिवाद पत्र मय खर्चा स्वीकार करने एंव विपक्षी से प्रीमियम की कुल मूल राषि 42142/-रुपये व अन्य देय लाभ मय ब्याज के एक मुष्त दिलाये जाने का निवेदन किया।
विद्धान् अधिवक्ता विपक्षी बीमा कम्पनी ने अपने जवाब के अनुसार लिखित व मौखिक बहस के दौरान यह कथन किया है कि विपक्षी द्वारा परिवादी को यह समझा दिया गया था अगर आप पालिसी मैच्योर होने से पूर्व कैंसिल करवाते हैं तो आपके द्वारा जमा करवाई गई राषि में से एक हिस्सा काट कर बचा हुआ पैसा वापिस भेज दिया जावेगा । परिवादी द्वारा बीमा पालिसियां वर्ष, 2011 में ली गई थी इस समयावधि के दौरान परिवादी की बीमा पालिसियां जिनकी लाईफ कवर राषि 3,80,000/-रूपये थी, का कवरेज भी चालू था । बीमा पालिसी का प्रीमियम बीमा कम्पनी द्वारा दी जा रही सेवाओं का शुल्क है तथा बीमा कम्पनी द्वारा बीमित परिवादी को प्राप्त किये गये प्रीमियम के बदले सेवाए भी प्रदान की गयी थी इस कारण से परिवादी द्वारा जमा करवाये गये प्रीमियम में से कुछ भी रिफंड करना मुमकिन नहीं है।
विद्धान् अधिवक्ता विपक्षी बीमा कम्पनी ने बहस के दौरान यह भी कथन किया है कि परिवादी ने विपक्षी की सभी शर्तोे व प्रपोजल फार्म पढकर सभी शर्तो को मानते हुए बीमा पालिसी के लिये आवेदन किया था जो तथ्य परिवादी द्वारा छिपाये गये हैं। परिवादी की बीमा पालिसी आई आर डी ए की शर्तो के अनुसार ही जारी की गयी है तथा आई आर डी ए की रेगुलेषन्स के अनुसार हर बीमा पालिसी का पंाच वर्ष का लाक-इन पीरियड होता है जो की फ्री लुक पीरियड के खत्म होने के बाद स्टार्ट होता है और बीमा कम्पनी इन पांच वर्षो के दौरान इस पालिसी को कैंसल नहीं कर सकती। बीमा पालिसी की शर्तो के अनुसार और आई आर डी ए की गाइडलाइन्स के अनुसार परिवादी बीमा कम्पनी से कोई भी राषि पाने का हकदार नहीं है।
विद्धान् अधिवक्ता विपक्षी बीमा कम्पनी ने बहस के दौरान यह भी कथन किया है कि बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (पालिसी धारक के हितों का संरक्षण) विनियम, 2002 की धारा 6(2) के अनुसार कम्पनी द्वारा भेजे गये पालिसी दस्तावेज के साथ एक अग्रेषण पत्र भी भेजा जाता है जिसमें यह साफ-साफ लिखा होता है कि अगर पालिसी धारक पोलिसी की टम्र्स एण्ड कंडीषंस से संतुष्ट नहीं है तो वो पालिसी प्राप्त होने के 15 दिनों के अंदर बीमा कम्पनी को पालिसी वापिस भेज सकता है । परिवादी द्वारा आज तक अपनी पालिसी कैंसिल करवाने के लिये कोई प्रार्थना पत्र विपक्षी बीमा कम्पनी के आफिस में जमा नहीं करवाया गया है। परिवादी की पालिसी प्रीमियम अदा नहीं करने के कारण लेप्स हो चुकी है। परिवादी द्वारा जमा करवाया गया प्रीमियम पूर्ण रूप से उपयोग में आ चुका है और परिवादी की कोई प्रीमियम राषि विपक्षी के पास शेष नहीं है।
अन्त में विद्वान् अधिवक्ता विपक्षी बीमा कम्पनी ने परिवादी का परिवाद पत्र मय खर्चा खारिज किये जाने का निवेदन किया।
उभयपक्ष की बहस सुनी गई। पत्रावली का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया गया।
प्रस्तुत प्रकरण मे यह तथ्य निर्विवादित रहे हंै कि परिवादी द्वारा अपने स्वंय के नाम से विपक्षी के यहां से दो बीमा पालिसियां ली गई थी प्रथम बीमा पालिसी नम्बर 004779719 दिनांक 16.03.2011 को 10050/-रूपये प्रीमियम राषि की ली गई तथा दूसरी पालिसी संख्या 004779717 दिनांक 17.03.2011 को 10968/-रूपये प्रीमियम राषि की ली गई थी। इसके बाद परिवादी ने विपक्षी को पालिसी संख्या 004779719 में दिनांक 21.03.2012 को 10100/-रूपये दूसरी किष्त के रूप में जमा करवाये व पालिसी संख्या 004779717 में दिनांक 05.04.2012 को 11024/-रूपये दूसरी किष्त के रूप में जमा करवाये। इस प्रकार से परिवादी ने विपक्षी को उक्त पालिसियों के पेटे कुल राषि 42142/-रूपये अदा किये ।
विद्वान् अधिवक्ता विपक्षी बीमा कम्पनी का बहस के दौरान यह तर्क होना कि परिवादी द्वारा बीमा पालिसी लेते समय बीमा कम्पनी ने परिवादी को विस्तार से यह समझा दिया था कि यदि परिवादी पालिसी मैच्योर होने से पूर्व कैंसिल करवाता है तो परिवादी द्वारा जमा कराई गई राषि में से एक हिस्सा काटकर बचा हुआ पैसा वापिस भेज दिया जावेगा।
हम विद्वान् अधिवक्ता बीमा कम्पनी के उक्त तर्क से सहमत नहीं हैं क्योंकि परिवादी को विपक्षी बीमा कम्पनी व उसके एजेंट दिनेष कुमार ने बीमा पालिसी की आड में अन्य लाभों का प्रलोभन देने के लिये गुमराह किया। क्योंकि विपक्षी व उसके एजेंट द्वारा यदि शुरू में ही परिवादी को वास्तविकता बता दी जाती तो परिवादी उक्त पालिसी लेने के लिये राजी नहीं होता। परिवादी की जानकारी में विपक्षी बीमा कम्पनी व उसके एजेंट के द्वारा यह बात नहीं लाई गई थी कि परिवादी को उक्त पालिसी प्लान में एक से अधिक पालिसी लेनी पडेगी तथा एक से अधिक किष्तें भी जमा करानी पडेगी। परिवादी ने परेषान होकर तथा अपनी क्षमता से अधिक किष्तों का भार बीमा कम्पनी द्वारा डालने पर मजबूरन परिवादी ने ओर किष्तें जमा कराने के लिये विपक्षी को मना किया है तथा परिवादी ने उपरोक्त युक्तियुक्त कारण के आधार पर अपनी मूल किष्तों की राषि वापिस लौटाने के लिये बीमा कम्पनी को निवेदन किया है।
विपक्षी बीमा कम्पनी यदि परिवादी की पालिसी मैच्योर होने से पूर्व कैसिल करती है तो परिवादी द्वारा जमा कराई गई राषि में से एक हिस्सा किस आधार पर काटकर बचा हुआ पैसा परिवादी को वापिस लौटायेगी, इसका कोई युक्तियुक्त स्पष्टीकरण विपक्षी की ओर से पत्रावली पर पेष नहीं हुआ है। विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा पालिसी जारी करने के बाद नेक नियत के अभाव में दुर्भावनावष परिवादी को पालिसी की मूल किष्तें लौटाने से मना किया है।
उपरोक्त विवेचन के आधार पर विपक्षी बीमा कम्पनी किसी भी तरह से परिवादी द्वारा जमा कराई गई बीमा पालिसी की मूल प्रीमियम राषि की अदायगी के उतरदायित्व से विमुख नहीं हो सकती।
अतः प्रकरण के तमाम तथ्यों व परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुये परिवादी का परिवाद पत्र विरूद्व विपक्षी स्वीकार किया जाकर विपक्षी बीमा कम्पनी को आदेष दिया जाता है कि परिवादी, विपक्षी से बीमा पालिसी की मूल प्रीमियम राषि 42142/- (अक्षरे रूपये बियालीस हजार एक सौ बियालीस मात्र) प्राप्त करने का अधिकारी है। परिवादी उक्त राषि पर संस्थित परिवाद पत्र दिनांक 17.04.2013 से ता वसूली 9 प्रतिषत वार्षिक दर से ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी है। इस निर्देष के साथ प्रकरण का निस्तारण किया जाता है।
पक्षकारान खर्चा मुकदमा स्वंय अपना -अपना वहन करेगें।
निर्णय आज दिनांक 14.05.2015 को लिखाया जाकर मंच द्धारा सुनाया गया।
पत्रावली फैसल शुमार होकर वाद तकमील दाखिल दफ्तर हो।