Uttar Pradesh

Muradabad-II

cc/262/2009

Smt. Sharda Devi - Complainant(s)

Versus

Birla Sun Life Company Ltd. - Opp.Party(s)

21 Sep 2015

ORDER

District Consumer Disputes Redressal Forum -II
Moradabad
 
Complaint Case No. cc/262/2009
 
1. Smt. Sharda Devi
R/o Sanjay Nagar Gali No. 1 Dubble Fatak Sambhal Road Thana Katghar District Moradabad
...........Complainant(s)
Versus
1. Birla Sun Life Company Ltd.
Parsavnath Plaza Delhi Road Thana Majhola Moradabad
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

द्वारा- श्री पवन कुमार जैन - अध्‍यक्ष

  1.   इस परिवाद के माध्‍यम से परिवादिनी ने अनुरोध किया है कि पिता की मृत्‍यु के फलस्‍वरूप विपक्षी से उसे क्‍लेम राशि मुवलिंग 2,40,559/- रूपया तथा क्षतिपूर्ति के रूप में 10,000/- रूपया दिलाऐ जाऐ। परिवादी व्‍यय  परिवादिनी ने अतिरिक्‍त मांगा है।
  2.   संक्षेप में परिवाद कथन  इस प्रकार हैं कि परिवादिनी के पिता श्री धर्म सिंह ने दिनांक 20/01/2009 को विपक्षी से अपना बीमा कराया था। बीमा प्रपत्रों में परिवादिनी नोमिनी थी। दिनांक 20/01/2009 को ही बीमा की पहली किश्‍त के प्रीमीयम के रूप  में 15,035/- रूपया परिवादिनी के पिता ने विपक्षी को अदा किऐ जिसकी रसीद विपक्षी ने जारी की। विपक्षी द्वारा परिवादिनी के पिता के नाम बीमा पालिसी सं0- 002467740 जारी की गई परिपक्‍वता राशि 2,21,502/- रूपया थी। दुर्भाग्‍यवश से दिनांक 23/1/2009 को परिवादिनी के पिता की अचानक मृत्‍यु हो गई। परिवादिनी ने विपक्षी के समक्ष प्रीमियम राशि तथा  उसके 15 गुना  अर्थात् कुल 2,40,559/- रूपया  अदा करने हेतु प्रार्थना पत्र दिया, किन्‍तु क्‍लेम राशि अदा करने के बजाऐ विपक्षी ने अदा की गई प्रीमियम राशि 15,035/- रूपये का चैक परिवादिनी को भेजा जो परिवादिनी ने वापिस कर दिया। परिवादिनी का आरोप है कि अनेकों बार अनुरोध करने और कानूनी नोटिस भिजवाये जाने के बावजूद विपक्षी ने  बीमा राशि परिवादिनी को अदा नहीं की और परिवादिनी के कानूनी नोटिस का गलत उत्‍तर देते हुऐ बीमा क्‍लेम देने से इन्‍कार कर दिया। परिवादिनी ने उपरोक्‍त कथनों के आधार पर परिवाद में अनुरोधित अनुतोष विपक्षी से दिलाऐ जाने की प्रार्थना की। 
  3.   परिवाद के साथ परिवादिनी ने प्रीमियम की प्रथम किशत अदा करने की रसीद दिनांकित 20 जनवरी, 2009, विपक्षी द्वारा 15,035/- रूपया का  चैक परिवादिनी को भेजे जाने सम्‍बन्‍धी पत्र दिनांकित 18/02/2009, चैक की फोटो प्रति, विपक्षी को भिजवाऐ गऐ कानूनी नोटिस की फोटो प्रतियों तथा  कानूनी नोटिस भेजे जाने की डाकखाने की असल रसीद, कानूनी नोटिस के  जबाब के विपक्षी की ओर से प्राप्‍त अन्‍तरिम उत्‍तर तथा अन्तिम जबाब मूल  रूप में दाखिल किया गया। उक्‍त के अतिरिक्‍त पिता के मृत्‍यु प्रमाण पत्र की फोटो प्रति भी दाखिल की गई, यह प्रपत्र पत्रावली के कागज सं0-3/6 लगायत 3/16 हैं।
  4.   विपक्षी की ओर से प्रतिवाद पत्र कागज सं0-12/1 लगायत 12/6 दाखिल  हुआ जिसके समर्थन में विपक्षी के लीगल हैड श्री पुनीत बंसल ने अपना शपथ  पत्र दाखिल किया।
  5.   प्रतिवाद पत्र में विपक्षी की ओर से प्रारम्भिक आपत्ति उठाते हुऐ कथन  किया गया कि विवाद को हल करने के लिए मामले का तथ्‍यान्‍वेषण आवश्‍यक है जो इस फोरम द्वारा किया जाना अपेक्षित नहीं है अत: मामले को सिविल कोर्ट में भेज दिया जाना चाहिए। यह भी कहा गया कि परिवादिनी के पिता की मृत्‍यु के समय तक बीमा प्रस्‍ताव को विपक्षी द्वारा स्‍वीकार नहीं किया गया था अत: मृतक धर्म सिंह और विपक्षी के मध्‍य बीमा सम्‍बन्‍धी कोन्‍ट्रेक्‍ट अस्तित्‍व में नहीं आया। ऐसी दशा में परिवाद सरसरीतौर से खारिज होने योग्‍य  है। विपक्षी की ओर से अग्रेत्‍तर कहा गया कि परिवादिनी के पिता का बीमा प्रस्‍ताव हेतु प्रार्थना पत्र दिनांकित 20/01/2009 विपक्षी के हैड आफिस में  दिनांक 23/01/2009 को प्राप्‍त हुआ। इस प्रार्थना पत्र पर अग्रेत्‍तर कार्यवाही विपक्षी के स्‍तर से प्रारम्‍भ भी नहीं हो पाई इसी मध्‍य परिवादिनी के पिता की  मृत्‍यु  हो गई। इस  प्रकार मृतक  श्री  धर्म सिंह और विपक्षी के मध्‍य बीमा सम्‍बन्‍धी कोन्‍ट्रेक्‍ट अस्तित्‍व में नहीं आया था ऐसी दशा में विपक्षी बीमा राशि  देने के लिए उत्‍तरदायी नहीं है। विपक्षी की ओर से यह भी कहा गया कि  नियमानुसार धर्म सिंह द्वारा प्रथम किश्‍त के रूप में अदा की गई 15,035/- रूपये की धनराशि चैक द्वारा परिवादिनी को वापिस भेजी गई। विपक्षी ने  सेवा देने में कोई कमी नहीं की और बीमा दावे का परिवादिनी का अनुरोध अस्‍वीकृत करके कोई त्रुटि नहीं की। परिवाद को विशेष व्‍यय सहित खारिज किऐ जाने की प्रार्थना की गई। 
  6.   परिवादिनी ने साक्ष्‍य में अपना साक्ष्‍य शपथ पत्र कागज सं0-14/1  लगायत 14/3 दाखिल किया।
  7.   अवसर दिऐ जाने के बावजूद विपक्षी की और से साक्ष्‍य शपथ  पत्र दाखिल नहीं हुआ।
  8.   परिवादिनी की ओर से लिखित बहस दाखिल हुई। विपक्षी ने लिखित बहस दाखिल नहीं की।
  9.   पत्रावली दिनांक 11/9/2015 को  मौखिक बहस हेतु नियत थी। विपक्षी की ओर से बहस हेतु कोई उपस्थित नहीं हुऐ।
  10.   हमने परिवादिनी के विद्वान अधिवक्‍ता के तर्कों को सुना और पत्रावली का अवलोकन किया।
  11.   परिवादिनी के विद्वान अधिवक्‍ता ने पालिसी की प्रथम प्रीमियम अदा  करने की रसीद कागज सं0-3/6 की ओर हमारा ध्‍यान आकर्षित किया और  कहा कि दिनांक 20 फरवरी, 2009 को परिवादिनी के पिता ने प्रथम किश्‍त  के रूप में 15,035/- रूपया विपक्षी को अदा किऐ थे। परिवादिनी ने परिवाद में यह स्‍वीकार किया है कि दिनांक 23/1/2009 को उसके पिता की अचानक मृत्‍यु हो गई। परिवादिनी के विद्वान अधिवक्‍ता ने रिप्‍यूडिऐशन लेटर की नकल कागज सं0-3/7 तथा प्रीमियम राशि को वापिस किऐ जाने के विपक्षी के पत्र दिनां‍क 18 फरवरी, 2009 की नकल कागज सं0-3/8 की ओर हमारा ध्‍यान  आकर्षित किया और तर्क दिया कि कागज सं0-3/7 एवं 3/8 में पालिसी नम्‍बर का उल्‍लेख किया जाना यह दर्शाता है कि मृत्‍यु से पूर्व ही परिवादिनी के पिता को बीमा पालिसी सं0-002467740 विपक्षी द्वारा जारी कर दी गई थी ऐसी दशा में  परिवादिनी के पिता की मृत्‍यु होने पर बीमा राशि का भुगतान न करके और  मात्र प्रथम प्रीमियम की धनराशि 15,035/- रूपया का चैक भेजकर विपक्षी ने सेवा में कमी की है। परिवादिनी  के विद्वान अधिवक्‍ता ने यह भी कहा कि मृतक धर्म सिंह से बीमा पालिसी के सन्‍दर्भ में किऐ गऐ एग्रीमेन्‍ट से बाध्‍य है।     
  12.   चूँकि विपक्षी  की  ओर  से  बहस  हेतु कोई  उपस्थित  नहीं  हुऐ  और  विपक्षी की  ओर से साक्ष्‍य  शपथ  पत्र  भी  दाखिल नहीं   हुआ  है अत: हम  पत्रावली पर  उपलब्‍ध  अभिलेखों  एवं  उपलब्‍ध साक्ष्‍य  के आधार पर  मामले का  निस्‍तारण कर रहे हैं।
  13.   प्रथम प्रीमयम की रसीद की नकल कागज सं0-3/6 में उल्‍लेख            ‘ Deposit Application Under Consideration ‘’ दर्शाता है  कि प्रीमियम की रसीद जारी करने मात्र से मृतक धर्म सिंह और विपक्षी के मध्‍य बीमा का कोन्‍ट्रेक्‍ट कनक्‍लूड नहीं हुआ  था।  जहॉं तक रिप्‍यूडिऐशन लेटर  की नकल  कागज सं0-3/7 और चैक  भेजे जाने सम्‍बन्‍धी  कवरिंग लेटर की नकल  कागज सं0-3/8 में  ‘’ पालिसी नम्‍बर 002467740 ‘’ उल्लिखित होने का  प्रश्‍न  है इस सन्‍दर्भ में  वस्‍तुस्थित विपक्षी के  जबाब नोटिस कागज सं0-3/12  के पैरा सं0-4 एवं  5 से  स्‍पष्‍ट  हो  जाता है। विपक्षी के जबाब नोटिस के अनुसार कागज सं0-3/7  एवं  3/8  में  ‘’ 002467740 ‘’  वास्‍तव में अस्‍थाई पालिसी नम्‍बर है जो परिवादिनी के पिता श्री धर्म सिंह को प्री पालिसी इश्‍यूऐंस स्‍टेज  पर  जारी किया गया था। परिवादिनी के  पिता द्वारा बीमा पालिसी हेतु जो प्रार्थना पत्र प्रस्‍तुत  किया गया था उसकी प्रोसेसिंग उनकी मृत्‍यु  की  तिथि तक प्रारम्‍भ  नहीं हुई  थी  जैसा कि रिप्‍यूडिऐशन लेटर कागज सं0-3/7  में उल्‍लेख है।  परिवादिनी की ओर से  कोई  बीमा कवरनोट अथवा पालिसी वांड अथवा उसकी नकल  दाखिल नहीं की  गई  है।  पत्रावली पर ऐसा  कोई अभिलेख नहीं है जिसके आधार पर  यह  प्रमाणित होता हो कि परिवादिनी के पिता और विपक्षी के मध्‍य बीमा का कोन्‍ट्रेक्‍ट कनक्‍लूड हो गया था।  विधि का यह स्‍थापित सिद्धान्‍त है कि जब तक बीमा कम्‍पनी द्वारा बीमा का प्रस्‍ताव स्‍वीकार कर बीमा पालिसी जारी नहीं की जाती तब तक बीमा प्रस्‍तावक एवं बीमा कम्‍पनी के मध्‍य बीमा का कोन्‍ट्रेक्‍ट अस्तित्‍व में नहीं आता।
  14.   1992(2) कन्‍ज्‍यूमर प्रोटेक्‍शन रिपोर्टर पृष्‍ठ-715 (एन0सी0), लाइफ इंश्‍योरेंस कारपोरेशन आफ इण्डिया बनाम श्रीमति मुमताज बेगम के मामले में मा0 राष्‍ट्रीय उपभोक्‍ता  विवाद प्रतितोष आयोग, नई दिल्‍ली द्वारा निम्‍न व्‍यवस्‍था दी गई है:-

         Unless there was a concluded contract  of insurance on the date of death of assured, no claim can be given to the nominee.

   15 -      मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायाल द्वारा (1984) 2 एस0सी0सी0 पृष्‍ठ-719, Life Insurance Corporation of India v/s Raja Vasireddy                            Komalavalli Kamba and ors. के मामले के निर्णय के पैरा सं0-14 एवं पैरा सं0-15 में निम्‍न अभिमत दिया गया है:-

     “ The mere receipt and retention of premium until after the death of the applicant or the mere preparation of the policy documents is not acceptance. Acceptance must be signified by some act or acts agreed on  by the parties or from which the law raises a presumption of acceptance. See in this connection the statement of law in Corpus Juris secundum, Vol. XLIV, page 986 wherein it has been stated as:

The mere receipt and retention of premiums until after the death of applicant does not give rise to a contract, although the circumstances may be such that approval could be inferred from retention of the premium.The mere execution of the policy is not an acceptance; an acceptance, to be complete, must be communicated to the offeror, either directly, or by some definite act. Such as placing the contract in the mail.The test is not intention alone. When the application so requires, the acceptance must be evidenced by the signature of one of the company’s executive officers.

 Though in certain human relationships silence to a proposal might convey acceptance, but in the case of insurance proposal, silence does not denote consent  and no binding contract arises until the person to whom an offer is made says or does something to signify his acceptance, Mere delay in giving an answer cannot be construed as an  acceptance, as prima facie, acceptance must be communicated to the offeror. The general rule is that the contract of insurance will be concluded only when  the party to whom an offer has been made accepts it unconditionally and communicates  his acceptance to the person making the offer. Whether the final acceptance is that of the assured or insurer, however, depends simply on the way in which negotiations for an insurance have progressed. See in thes connection statement of law in MacGillivray & Parkington on Insurance Law, Seventh Edition, page 94, paragraph 215 ”

 

     16 -  वर्तमान मामले में परिवादिनी  के पिता और विपक्षी के मध्‍य बीमा  के सम्‍बन्‍ध में कोई कोन्‍ट्रेक्‍ट कनक्‍लूड नहीं हुआ था अत: मा0 राष्‍ट्रीय उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, नई दिल्‍ली तथा मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा पारित उपरोक्‍त निर्णयज विधियों के दृष्टिगत परिवादिनी का बीमा दावा अस्‍वीकृत करके विपक्षी न तो सेवा में कमी की और न ही त्रुटि की। परिवाद खारिज  होने योग्‍य है।

 

परिवाद खरिज किया जाता है।

 

 

    (श्रीमती मंजू श्रीवास्‍तव)   (सुश्री अजरा खान)    (पवन कुमार जैन)

          सदस्‍य               सदस्‍य              अध्‍यक्ष

  •     0उ0फो0-।। मुरादाबाद    जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद  जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद

       21.09.2015         21.09.2015         21.09.2015

    

  हमारे द्वारा यह निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 21.09.2015 को खुले फोरम में हस्‍ताक्षरित, दिनांकित एवं उद्घोषित किया गया।

 

 

     (श्रीमती मंजू श्रीवास्‍तव)   (सुश्री अजरा खान)    (पवन कुमार जैन)

          सदस्‍य               सदस्‍य              अध्‍यक्ष

  •     0उ0फो0-।। मुरादाबाद    जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद  जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद

     21.09.2015           21.09.2015        21.09.2015

 

 

 

 

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