(राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0 प्र0 लखनऊ)
सुरक्षित
पुनरीक्षण संख्या 15/1999
(जिला मंच गाजियाबाद द्वारा परिवाद सं0 540/1994 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 25/06/1998 के विरूद्ध)
1- जनरल मैनेजर, नार्दन रेलवे, बड़ौदा हाउस, नई दिल्ली।
2- चीफ कामर्शियल मैनेजर, नार्दन रेलेवे, वाराणसी।
3- स्टेशन मास्टर, स्टेशन श्यामगढ़ (वेस्टर्न रेलवे)
4- स्टेशन मास्टर, स्टेशन पिलखुआ, जिला गाजियाबाद।
…पुनरीक्षणकर्तागण/विपक्षीगण
बनाम
श्री ब्रिजेन्द्र कुमार पुत्र श्री सलेक चन्द्र प्रोपराइटर मेसर्स पवन सुत टेक्सटाइल्स गोपी हलवाई के सामने, पिलखुआ, गाजियाबाद।
.........प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:
1. मा0 श्री अशोक कुमार चौधरी, पीठा0 न्यायिक सदस्य।
2. मा0 श्री संजय कुमार, सदस्य।
पुनरीक्षणकर्ता की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री अमित अरोरा।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : विद्वान अधिवक्ता श्री वी0पी0 शर्मा के सहयोगी श्री अरूण टण्डन।
दिनांक : 30-12-2014
मा0 श्री अशोक कुमार चौधरी, पीठा0 न्यायिक सदस्य द्वारा उदघोषित ।
निर्णय
पुनरीक्षणकर्तागण ने प्रस्तुत पुनरीक्षण परिवाद सं0 540/94 श्री ब्रिजेन्द्र कुमार बनाम जनरल मैनेजर, नार्दन रेलवे, व अन्य जिला पीठ गाजियाबाद के निर्णय/आदेश दिनांक 25/06/1998 से क्षुब्ध होकर प्रस्तुत की गई है, जिसमें की विद्वान जिला पीठ ने निम्नलिखित निर्णय/आदेश पारित किया है:-
‘’ परिवादी की शिकायत को स्वीकार करते हुए विपक्षीगण को निर्देशित किया जाता है कि वह परिवादी के 1200/ रूपये मय ब्याज 18 प्रतिशत वार्षिक की दर से वापस करे। ब्याज की गणना 11/06/97 से अदायगी की तिथि तक की जायेगी। साथ ही उक्त अवधि में वाद के हर्जे
2
खर्चे और मानसिक उत्पीड़न के लिए विपक्षीगण 500/ रूपये मुआवजा अदा करे। निर्णय की एक एक प्रति रजि0 डाक से चारों विपक्षीगण को परिवादी के खर्चे पर भेजी जाय।‘’
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार है कि परिवादी ने एक बंडल काटन क्लोथ पिलखुवां रेलवे स्टेशन से श्यामगढ़ के लिए भेजी थी तथा उक्त माल की डिलीवरी परिवादी को स्वयं लेनी थी और उसने निर्धारित भाड़ा भी अदा कर दिया था किन्तु उक्त माल की डिलीवरी परिवादी को नहीं की गई। अत: उसका माल सही हालात में दिलाया जाय एवं उसका मूल्य 1200/ रूपये दिलाया जाय एवं मु0 500/ रूपये व्यापारिक हानि के लिए दिलाया जाय।
पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्ता एवं प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता के तर्क को सुना गया। प्रश्नगत निर्णय एवं पत्रावली में उपलब्ध साक्ष्यों का अवलोकन किया गया।
पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्ता ने तर्क दिया कि रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल एक्ट 1987 की धारा 13 (1-बी) के अंतर्गत प्रस्तुत प्रकरण रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए था, क्योंकि उपरोक्त अधिनियम की धारा 15 के अंतर्गत किसी अन्य न्यायालय को ऐसे प्रकरण को श्रवण करने का क्षेत्राधिकार नहीं है।
प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता ने तर्क दिया कि विद्वान जिला मंच ने जो निर्णय/आदेश पारित किया है वह विधि अनुसार पारित किया गया है। अत: प्रस्तुत पुनरीक्षण निरस्त किये जाने योग्य है।
प्रश्नगत प्रकरण में जो माल परिवादीगण/प्रत्यर्थी के द्वारा बुक कराया गया था उक्त माल की डिलीवरी परिवादी को नहीं की गई। जो कि ऐसे प्रकरण रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल 1987 की धारा 13 (1-बी) के अंतर्गत रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए था क्योंकि उपरोक्त अधिनियम की धारा 15 के अंतर्गत किसी अन्य न्यायालय को श्रवण का क्षेत्राधिकार नहीं है।
उपरोक्त विवेचना के आधार पर पुनरीक्षण स्वीकार किये जाने योग्य है एवं प्रश्नगत निर्णय/आदेश निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
पुनरीक्षण स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला मंच गाजियाबाद द्वारा परिवाद सं0 540/1994 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 25/06/1998 निरस्त किया जाता है। परिवादी
3
अपने परिवाद/प्रत्यावेदन को रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल एक्ट 1987 की धारा 13 (1-बी) के अंतर्गत प्रस्तुत कर सकता है, जो कि वर्णित परिस्थितियों में काल बाधित नहीं माना जायेगा।
उभय पक्ष अपना अपीलीय व्यय स्वयं वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध कराई जाय।
(अशोक कुमार चौधरी)
पीठा0 सदस्य
(संजय कुमार)
सुभाष चन्द्र आशु0 कोर्ट नं0 3 सदस्य