Ram charndra mewada filed a consumer case on 28 Oct 2015 against Bhartiya Jeevan Beema Nigam Ltd. in the Kota Consumer Court. The case no is CC/183/2010 and the judgment uploaded on 02 Nov 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, कोटा (राजस्थान)।
प्रकरण संख्या-183/10
01. रामचन्द्र मेवाडा पुत्र गोपाल लाल आयु 56 साल
02. श्रीमति गीता देवी मेवाडा पत्नी गोपाल लाल आयु 21 वर्ष जाति कलाल निवासीगण बल्लभ बाडी, कोटा, राजस्थान। परिवादी।
बनाम
01. भारतीय जीवन बीमा निगम लिमिटेड, छावनी कोटा।
02. यूनाईटेड काॅमर्शियल बैंक , जे.के. लोन अस्पताल के सामने, खारोली हास्पीटल के पास, नयापुरा, कोटा। -विपक्षीगण
समक्ष :
अध्यक्ष : भगवान दास
सदस्य : महावीर तंवर
सदस्य : हेमलता भार्गव
परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986
उपस्थिति-
1 श्री अशोक गुप्ता, अधिवक्ता, परिवादीगण की ओर से।
2 श्री दिनेश राय द्विवेदी, अधिवक्ता, विपक्षी सं. 1 की ओर से।
3. श्री कमल नयन सक्सेना, अधिवक्ता, विपक्षी सं. 2 की ओर से।
निर्णय दिनांक 28.10.15
परिवादीगण ने विपक्षीगण के विरूद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के अन्तर्गत लिखित परिवाद प्रस्तुत कर उनका संक्षेप में यह सेवा-दोष बताया है कि परिवादी सं. 2 ने अपने व्यवसाय के लिये विपक्षी सं.2 से ऋण लिया था, उनकी शर्त के अनुसार पुत्र लोकेश मेवाडा के नाम विपक्षी सं. 1 से बीमा धन 1,00000/- रूपये की जीवन बीमा पालिसी सं. 19340600100183 दिनांक 24.07.08 को कराई थी जिसकी प्रीमियम परिवादी सं. 2 के खाते में से ही विपक्षी सं.2 ने समय-समय पर जमा कराने का वायदा किया था, इस हेतु उनके निर्देश के अनुसार परिवादी सं. 2 ने अपने खाते में पर्याप्त बेलेन्स रखा था। परिवादी सं. 2 के पुत्र लोकेश मेवाडा की दिनांक 25.11.09 को वाहन दुर्घटना में मृत्यु हो गई, जिसकी बीमा की राशि विपक्षीगण ने इस आधार पर अदा करने से इंकार कर दिया कि प्रीमियम की राशि जमा नहीं हुई है, जबकि जमा करने का विपक्षी सं. 2 का ही दायित्व था। विपक्षीगण को अदायगी के बारे में कानूनी नोटिस भेजे गये, इसके बावजूद भी बीमा धन का भुगतान नहीं किया गया।
विपक्षी बीमा निगम के जवाब का सार है कि लोकेश मेवाडा ने दिनांक 24.07.08 को पालिसी ली थी, जिसकी आगामी प्रीमियम 24.07.09 को बकाया हो गई थी, जिसे रियायती अवधि तक भी जमा नहीं कराई गई। इसीलिये पालिसी की शर्त के अनुसार वह पालिसी स्वतः ही कालातीत हो गई , जिसके अन्तर्गत परिवादीगण कोई राशि पाने के अधिकारी नहीं है। परिवादीगण ने कोई मृत्यु-दावा भी प्रस्तुत नहीं किया। प्रीमियम अदायगी का दायित्व बीमाधारक का ही होता है। प्रीमियम अदायगी के बारे में परिवादी सं. 2 व विपक्षी बैंक के मध्य क्या इकरार था, इससे बीमा निगम का कोई संबंध नहीं है? इसलिये उनका कोई सेवा-दोष नहीं है।
विपक्षी सं. 2 के जवाब का सार है कि उसने परिवादी सं. 2 द्वारा ऋण लेते समय बीमा पालिसी लेने की कोई शर्त नहीं रखी तथा ऐसा भी कोई वायदा नहीं किया कि विपक्षी सं.2 द्वारा ही समय-समय पर उस पालिसी की प्रीमियम परिवादी सं. 2 के खाते से विपक्षी बीमा निगम को अदा की जायेगी। बल्कि पालिसी बाद में ही ली गई थी, जिसकी उसे कोई जानकारी नहीं है। परिवादी सं. 2 के ऋण खाते में क्रेडिट बेलेन्स नही रहा। उसने समय पर ब्याज का भुगतान नही किया, उस पर सदैव ही दांडिक ब्याज लगाया गया। उसने कभी विवादित पालिसी की प्रीमियम राशि विपक्षी निगम को जमा नहीं करवाई और न ही आगे जमा कराने का वायदा किया। उसे अनावश्यक पक्षकार बनाया गया। उसका कोई सेवा-दोष नहीं है।
परिवादीगण ने साक्ष्य में केवल परिवादी रामचन्द्र मेवाडा का शपथ-पत्र प्रस्तुत किया है इसके अलावा परिवादी सं. 2 के ऋण खाते के स्टेटमेन्ट की प्रति, विपक्षीगण को प्रेषित कानूनी नोटिस, ए/डी पोस्टल रसीद, आदि दस्तावेजात की प्रति प्रस्तुत किये है।
विपक्षी बीमा निगम ने साक्ष्य में उच्च श्रेणी सहायक टी.जी. विजय कुमार के शपथ-पत्र के अलावा बीमा प्रस्ताव, बीमा पालिसी, स्टेटस रिर्पोट आदि की प्रति प्रस्तुत की है।
विपक्षी बैंक ने साक्ष्य में वरिष्ठ प्रबंधक बाबू लाल यादव के शपथ-पत्र के अलावा परिवदिया के ऋण खाता स्टेटमेन्ट की प्रति प्रस्तुत की है।
हमने दोनों पक्षों की ओर से बहस सुनी। पत्रावली का अवलोकन किया।
यह र्निविवाद है कि विपक्षी बीमा निगम से पालिसी लोकेश मेवाडा ने ली थी अर्थात् वह पालिसी-धारक है। र्निविवाद रूप से पालिसी-प्रीमियम की समय-समय पर अदायगी का दायित्व बीमाधारक का ही होता है। प्रस्तुत मामलें में 24.07.09 को ड्यू हुई प्रीमियम राशि जमा नहीं होने से पालिसी की शर्त के अनुसार पालिसी स्वतः कालातीत हो गई। पालिसी की प्रीमियम राशि विपक्षी सं. 2 द्वारा अदा करनी थी, इस कहानी की पुष्टि हेतु परिवादी सं. 2 ने विपक्षी सं. 2 से हुये किसी करार का दस्तावेज पेश नहीं किया है। जबकि विपक्षी सं.2 ने शपथ-पत्र में खंडन किया है कि न तो पालिसी उन्होने करवाई और न ही प्रीमियम अदा करने का दायित्व लिया, पालिसी करने की कोई जानकारी भी नहीं है। उल्लेखनीय है कि विपक्षी सं. 2 की ऋणी परिवादी सं. 2 गीता देवी है लेकिन उसने इस परिवाद की कहानी की पुष्टि में अपना शपथ-पत्र तक नहीं दिया, ऐसा कोई प्रमाण प्रस्तुंत नहीं किया है कि उसके ऋण खाते से विपक्षी सं. 2 ने पालिसी की प्रीमियम अदा की हो। इसलिये हम पाते हैं कि बीमाधारी 24.07.09 को ड्यू हुई प्रीमियम राशि अदा करने में विफल रहा परिवादीगण, जो कि उसके माता-पिता हैं, उन्होने भी प्रीमियम की राशि अदा नहीं की, इसलिये स्वयं बीमाधारी व परिवादीगण ही जिम्मेदार है। विपक्षीगण का कोई सेवा-दोष नहीं है तथा कालातीत पालिसी के अन्तर्गत परिवादीगण कोई राशि पाने के अधिकारी भी नहीं है। इसलिये परिवादीगण का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादीगण का परिवाद विपक्षीगण के खिलाफ खारिज किया जाता है। परिवाद खर्च पक्षकारान अपना-अपना स्वयं वहन करेगे।
(महावीर तंवर) (हेमलता भार्गव) ( भगवान दास)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोष मंच, कोटा। प्रतितोष मंच, कोटा। प्रतितोष मंच, कोटा।
निर्णय आज दिनंाक 28.10.15 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोष मंच, कोटा। प्रतितोष मंच, कोटा। प्रतितोष मंच, कोटा।
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