Uttar Pradesh

StateCommission

CC/146/2014

Nissin ABC Loristics Pvt Ltd - Complainant(s)

Versus

Bharti Airtel Ltd - Opp.Party(s)

Suchita Singh & Tilotma Sharma

23 Mar 2022

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
Complaint Case No. CC/146/2014
( Date of Filing : 16 Oct 2014 )
 
1. Nissin ABC Loristics Pvt Ltd
Kolkata
...........Complainant(s)
Versus
1. Bharti Airtel Ltd
NewDelhi
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Rajendra Singh PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Vikas Saxena JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 23 Mar 2022
Final Order / Judgement

(सुरक्षित)

 

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

 

परिवाद सं0- 146/2014

Nissin ABC Logistics Pvt. Ltd. A Company incorporated under the Companies Act, 1956 having its Registered office at 46C Rafi Ahmed Kidwai Road PS Park Street Kolkata (Through its authorized signatory Mr. Navin Panpalia)

                                                                                        …………Complainant

 

                                                        Versus

1. Bharti Airtel Limited Mobile Connect Showroom No. 1, Opposite Bal Bharti Public School, C 5-1 Block Sector 25, Noida, U. P.

2. ICICI Bank Limited, K-1, Senior Mall Sector-18, Noida.  

                                                                                   ………..Opposite Parties

 

समक्ष:-

          1. माननीय श्री राजेन्‍द्र सिंह, सदस्‍य।        

     2. माननीय श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य।

 

परिवादिनी की ओर से : श्रीमती तिलोत्‍मा शर्मा, विद्वान अधिवक्‍ता।

विपक्षी सं0- 1 की ओर से : श्री राहुल कपूर, विद्वान अधिवक्‍ता।

विपक्षी सं0- 2 की ओर से : श्री प्रशांत कुमार, विद्वान अधिवक्‍ता।   

 

दिनांक:- 22.08.2022

माननीय श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य द्वारा उद्घोषित

 

निर्णय/आदेश

1.     यह परिवाद परिवादी निशिन एबीसी लाजिस्टिक्‍स प्रा0लि0 द्वारा विपक्षीगण भारती एयरटेल लि0 व एक अन्‍य के विरुद्ध राज्‍य आयोग के समक्ष योजित किया गया है।

2.     परिवाद पत्र में परिवादी द्वारा कथन किया गया है कि परिवादी एक इनकार्पोरेटेड कम्‍पनी है जिसका पंजीकृत कार्यालय पार्क स्‍ट्रीट, कोलकाता में स्थित है। परिवादी कम्‍पनी द्वारा विपक्षी सं0- 1 भारती एयरटेल लि0 से एक कार्पोरेट कनेक्‍शन का पैकेज लिया गया था जो उसके कर्मचारियों की मोबाइल फोन सुविधा हेतु था तथा विपक्षी सं0- 2 आई0सी0आई0सी0आई0 बैंक एक कार्पोरेटेड बैंक है जिसके पास परिवादी कम्‍पनी का खाता खुला हुआ है। परिवादी के डी0जी0एम0 एकाउंट श्री बी0एन0वी0 सुब्रामण्‍यम अधिकृत सेनेट्री हैं जो उक्‍त खातों का परिचालन करते हैं। दि0 17.01.2014 को लगभग 7:00 बजे उक्‍त श्री बी0एन0वी0 सुब्रामण्‍यम ने यह ध्‍यान दिया कि उनका मोबाइल फोन सं0- 8826894604 जो उपरोक्‍त पैकेज के अंतर्गत दिया गया था ने काम करना बंद कर दिया है। उनको आभास हुआ कि मोबाइल फोन के उक्‍त कनेक्‍शन की आने तथा जाने वाली दोनों कालें अवरुद्ध हैं। श्री बी0एन0वी0 सुब्रामण्‍यम ने तुरंत विपक्षी सं0- 1 कस्‍टमर केयर विभाग को शिकायत दर्ज करायी, जिन्‍होंने श्री बी0एन0वी0 सुब्रामण्‍यम को सूचित किया कि उनका नम्‍बर सक्रिय है। दि0 17.01.2014 को उनके कस्‍टमर केयर नम्‍बर 121 पर विपक्षी सं0- 1 को इस सम्‍बन्‍ध में सूचना भी दी गई। श्री बी0एन0वी0 सुब्रामण्‍यम परिवादी कम्‍पनी के डी0जी0एम एकाउंट हैं। इस कारण उन्‍हीं के हस्‍ताक्षर से खाते का संचालन होता है। दि0 19.01.2014 को श्री सुब्रामण्‍यम ने पाया कि एकाउंट स्‍टेटमेंट में रू0 30,60,000/- का संव्‍यवहार कम्‍पनी के खाता सं0- 003105007802 इंटरनेट बैंकिंग के माध्‍यम से किया गया है जो समय 18:05 बजे दि0 18.01.2014 से आरम्‍भ होकर समय 2:47 बजे दि0 19.01.2014 के मध्‍य किए गए थे। परिवादी के अनुसार उक्‍त मोबाइल नम्‍बर सक्रिय नहीं था। इस कारण श्री सुब्रामण्‍यम को इस वित्‍तीय संव्‍यवहार की कोई सूचना प्राप्‍त नहीं हो पायी। श्री बी0एन0वी0 सुब्रामण्‍यम ने इसके उपरांत तुरंत ही विपक्षी सं0- 2 आई0सी0आई0सी0आई0 बैंक से सम्‍पर्क किया तथा सम्‍बन्धित खातों को तुरंत फ्रीज कर देने का आग्रह किया। उनके द्वारा आई0सी0आई0सी0आई0 बैंक सेक्‍टर 18 नोएडा के श्री लोकेश भाटिया को सूचित किया गया तथा उनके फर्जी वित्‍तीय संव्‍यवहार के सम्‍बन्‍ध में सूचित किया, किन्‍तु श्री लोकेश भाटिया ने किसी प्रकार की सहायता देने में असमर्थता प्रकट की, क्‍योंकि वे लखनऊ में थे। श्री सुब्रामण्‍यम ने विपक्षी सं0- 2 बैंक को सम्‍पर्क करने का बहुत प्रयास किया, किन्‍तु उन्‍हें यह सूचना दी गई कि उस दिन रविवार था। इस कारण उनकी शिकायत उस दिन निस्‍तारित नहीं हो पायेगी। श्री सुब्रामण्‍यम ने पुलिस थाना सेक्‍टर 20 नोएडा में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करायी, जिन्‍हें यह सूचित किया गया कि उन्‍हें एस0पी0 क्राइम से विवेचना आरम्‍भ करने के लिए सम्‍पर्क करना होगा।

3.     परिवादी के अनुसार श्री सुब्रामण्‍यम ने अपने सहयोगी श्री अरुण तथा श्री प्रदीप के साथ सेक्‍टर 18 नोएडा स्थित आई0सी0आई0सी0आई0 बैंक में कपट पूर्ण किए गए वित्‍तीय संव्‍यवहार के सम्‍बन्‍ध में जानकारी लेने का प्रयास किया, किन्‍तु विपक्षी सं0- 2 के कर्मचारियों ने यह कहकर इंकार कर दिया कि तृतीय पक्ष के खाते की सूचना नहीं दी जा सकती है। परिवादी के अनुसार विपक्षी सं0- 2 बैंक को सूचना दिए जाने के बावजूद भी कि उनके खाते से धोखाधड़ी से धनराशि निकाली गई है, विपक्षी सं0- 2 बैंक के कर्मचारी अत्‍यंत उदासीन रहे और उनके द्वारा कोई भी सूचना नहीं दी गई न ही विवेचना में सहयोग किया गया। दि0 22.01.2014 को जब परिवादी द्वारा विपक्षी सं0- 1 भारती एयरटेल से सम्‍पर्क किया गया तो उनको यह जानकार आश्‍चर्य हुआ कि विपक्षी सं0- 1 द्वारा यह सूचना दी गई कि मोबाइल सं0- 8826894604 का डुप्‍लीकेट सिम दि0 17.01.2014 को लगभग 6:00 बजे शाम को जारी हो गया था जब कि परिवादी कम्‍पनी का कथन है कि उनके द्वारा कोई भी प्रार्थना डुप्‍लीकेट सिम जारी करने की नहीं की गई थी। परिवादी के अनुसार विपक्षी सं0- 1 द्वारा सेवा में भारी कमी की गई, क्‍योंकि बिना परिवादी कम्‍पनी की प्रार्थना के डुप्‍लीकेट सिम जारी किया गया। परिवादी के अनुसार इस प्रकार डुप्‍लीकेट सिम जारी करके विपक्षी सं0- 1 भारती एयरटेल ने न केवल सरकार की नियमों का उल्‍लंघन किया है, बल्कि सेवा में कमी भी की है। परिवादी की ओर से विपक्षी सं0- 1 से बार-बार यह साक्ष्‍य मांगा गया कि किस प्रकार डुप्‍लीकेट सिम जारी हुआ है, किन्‍तु विपक्षी सं0- 1 द्वारा कोई भी दस्‍तावेज प्रस्‍तुत नहीं किए गए। परिवादी के अनुसार परिवादी कम्‍पनी के बिना किसी प्रार्थना के और किसी अधिकृत व्‍यक्ति को नया सिम जारी करना कानूनी प्रावधान का उल्‍लंघन है। परिवादी के अनुसार इस प्रकार का अपराध तब तक कारित नहीं हो सकता जब तक विपक्षी सं0- 2 बैंक के स्‍तर से परिवादी की गोपनीय जानकारी अनाधिकृत रूप से लीक की गई हो। परिवादी के अनुसार दि0 22.04.2014 को विपक्षी सं0- 2 बैंक ने परिवादी को यह सूचित किया कि परिवादी के खाते में संव्‍यवहार संदेह पूर्ण पाया गया जिस कारण उसका उक्‍त खाता फ्रीज कर दिया गया, किन्‍तु विपक्षी सं0- 2 बैंक द्वारा दी गई यह सूचना अभिलेख और वास्‍तविक तथ्‍यों के विपरीत है। दि0 19.01.2014 को विपक्षी बैंक के कर्मचारियों को फोन पर बार-बार सूचना दी गई, किन्‍तु उनके द्वारा कोई सहयोग नहीं किया गया और इसी कारण दि0 19.01.2014 से दि0 20.01.2014 का मध्‍य समय अनावश्‍यक रूप से व्‍यतीत हो गया, क्‍योंकि यह समय परिवादी के खाते के अनाधिकृत संचालन को रोकने में सहायक हो सकता था। परिवादी के अनुसार परिवादी कम्‍पनी ने विपक्षी सं0- 2 बैंक को सम्‍पर्क करके उन खातों की जानकारी चाही जो इस फर्जी संव्‍यवहार से लाभान्वित हुए थे, किन्‍तु विपक्षी सं0- 2 बैंक ने सूचना देने से इंकार कर दिया कि उक्‍त खातों की खोलने के समय दस्‍तावेज उपलब्‍ध नहीं है जो स्‍पष्‍ट करता है कि विपक्षी सं0- 2 बैंक ने सम्‍बन्धित खाते आर0बी0आई0 के उक्‍त दिशा-निर्देशों का उल्‍लंघन करते हुए खाते खोले थे जो बैंक की सेवा में कमी दर्शाती है। परिवादी द्वारा यह स्‍वीकार किया गया है कि विपक्षी सं0- 2 बैंक ने रू04,53,284.69पैसे परिवादी कम्‍पनी के खाते में वापस कर दिया जो बैंक द्वारा लाभान्वित होने वाले खातों से वापस किए गए थे। यह विपक्षी बैंक की गलती का स्‍पष्‍ट प्रमाण है कि इस धनराशि की वापसी के द्वारा बैंक ने अपनी गलती स्‍वीकार की है। परिवादी के अनुसार विपक्षी सं0- 1 भारती एयरटेल द्वारा डुप्‍लीकेट सिम जारी करके तथा विपक्षी सं0- 2 बैंक द्वारा उक्‍त उदासीनता दिखलाये जाने से परिवादी को वित्‍तीय हानि हुई है, जिसके लिए परिवाद में उल्लिखित धनराशि की क्षतिपूर्ति की मांग की गई है।

4.     विपक्षी सं0- 2 द्वारा अपना जवाबदावा प्रस्‍तुत किया गया जिसमें यह कथन किया गया है कि परिवादी ने दि0 20.01.2014 को एस0पी0 क्राइम ने नोएडा को एक प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करायी है जिससे यह स्‍पष्‍ट होता है कि स्‍वयं परिवादी की लापरवाही से घटना हुई है। इसलिए विपक्षी सं0- 2 आई0सी0आई0सी0आई0 बैंक का इस संव्‍यवहार के लिए उत्‍तरदायित्‍व नहीं हो सकता है। यह कारण इंटरनेट बैंकिंग के माध्‍यम से छल व धोखाधड़ी संव्‍यवहार का है, जिसके लिए विपक्षी सं0- 2 बैंक को उत्‍तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। परिवादी की शिकायत का अन्‍वेषण पुलिस क्राइम ब्रांच, नोएडा द्वारा किया जा रहा है और इस मामले में इसी स्‍तर पर विपक्षी सं0- 2 बैंक को हानि के लिए उत्‍तरदायी मान लेना उचित नहीं है। विपक्षी सं0- 2 बैंक के अनुसार सभी प्रश्‍नगत वित्‍तीय संव्‍यवहार पंजीकृत यूजर ID-BNCSMAYAM के माध्‍यम से हुई है। इस कारण स्‍वयं परिवादी के स्‍तर से लापरवाही या चूक हुई है। उक्‍त संव्‍यवहार का अन्‍वेषण साइबर क्राइम पुलिस द्वारा किया जा रहा है। स्‍वयं बैंक की ओर से सेवा में कोई कमी नहीं की गई थी। इस कारण परिवाद चलने योग्‍य नहीं है।

5.     परिवादी की ओर से अपने कथनों के समर्थन में शपथ पत्र एवं अन्‍य अभिलेख प्रस्‍तुत किए गए हैं।

6.     विपक्षी सं0- 1 की ओर से अपने कथनों के समर्थन में शपथ पत्र एवं अन्‍य अभिलेख प्रस्‍तुत किए गए हैं।

7.     हमने परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता श्रीमती तिलोत्‍मा शर्मा एवं विपक्षी सं0- 1 के विद्वान अधिवक्‍ता श्री राहुल कपूर और विपक्षी सं0- 2 के विद्वान अधिवक्‍ता श्री प्रशांत कुमार को सुना तथा पत्रावली पर उपलब्‍ध अभिलेखों का सम्‍यक परिशीलन किया।  

8.     विपक्षी सं0- 1 की ओर से अपनी आपत्ति में यह कथन किया गया कि परिवादी उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत उपभोक्‍ता की परिभाषा में नहीं आता है, क्‍योंकि उसके द्वारा कम्‍पनी के लिए एक बड़ी संख्‍या में मोबाइल कनेक्‍शन लिए गए थे जो निश्‍चय ही व्‍यावसायिक उद्देश्‍य से लिए गए थे। अत: धारा 2(1)(d) उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत परिवादी को उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं माना जा सकता। इस कारण परिवाद उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत पोषणीय नहीं है। विपक्षी के अनुसार उपभोक्‍ता प्रार्थना पत्र जो कनेक्‍शन लेते समय लिया जाता है उनके शर्तों के अनुसार विपक्षी टेलीफोन कम्‍पनी का उत्‍तरदायित्‍व सीमित है। उक्‍त उपभोक्‍ता प्रार्थना पत्र के अनुच्‍छेद 09 के अनुसार- 

       "(a) Airtel's maximum liability under these terms or otherwise, in relation to the services shall be limited to a refund of the amount charged by Airtel for the transaction which gave rise to the dispute. Under no circumstances shall Airtel be liable for any indirect, special, consequential or punitive damages or any damages for loss of data, loss of services, loss of goodwill or any other similar loss even if Airtel has been advised of the possibility of such losses. The limitations on Airtel's liability as set forth here are an integral consideration for Airlel offering the services and shall apply to the maximum extent permissible by law.

इसी प्रकार इस दस्‍तावेज का Clause 2(e) प्रदान करता है-

       2.(e) You shatl be responsible for any loss-damage-misuse of the SIM card or any unauthorized use of or access to the SIM card. Any use of the SIM card, including use of services through SIM card, shall always be deemed to be used by you."  

9.     इसी प्रकार अनुच्‍छेद 2(e) यह प्रदान करता है कि कम्‍पनी द्वारा दिए गए सिमकार्ड के अनाधिकृत प्रयोग से होने वाली हानि के लिए कम्‍पनी उत्‍तरदायित्‍व नहीं रखती है। इसके लिए सिमकार्ड से होने वाले किसी संव्‍यवहार व सेवा के लिए भी कम्‍पनी उत्‍तरदायित्‍व नहीं रखती है।

10.     मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा पारित निर्णय जनरल मैनेजर टेलीकॉम बनाम एम0 कृष्‍णन व अन्‍य जो 2009 VIII S.C.C. पृष्‍ठ 481 में प्रकाशित हुआ है। उसके अनुसार टेलीफोन कम्‍पनी के विरुद्ध यह वाद पोषणीय नहीं है। इन आधारों पर परिवाद निरस्‍त किए जाने की प्रार्थना की गई है।

11.     परिवादी द्वारा स्‍वयं को कम्‍पनी अधिनियम के अंतर्गत इनकार्पोरेटेड कम्‍पनी दर्शाते हुए यह कथन किया गया है कि यह कम्‍पनी लॉजिस्टिक के व्‍यवसाय में लिप्‍त है, इसी व्‍यवसाय हेतु कार्पोरेट सिम जारी किए जाने के सम्‍बन्‍ध में विपक्षी भारती एयरटेल के द्वारा कार्पोरेट सिम दिए जाने का उल्‍लेख परिवाद पत्र में किया गया है। परिवाद-पत्र की धारा 1 में स्‍पष्‍ट रूप से परिवादी द्वारा स्‍वयं को कम्‍पनी अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत कम्‍पनी एवं व्‍यावसायिक तौर पर कार्यरत होने और परिवाद पत्र की धारा 3 में प्रश्‍नगत सिम इसी व्‍यवसाय हेतु जारी होने का कथन किया गया है। इसके अतिरिक्‍त विपक्षी आई0सी0आई0सी0आई0 बैंक से भी कम्‍पनी के व्‍यवसाय हेतु खाता खोले जाने का कथन किया गया है। उक्‍त व्‍यावसायिक उद्देश्‍य से लिए गए सिम में डुप्‍लीकेट जारी होने तथा खाते में धोखाधड़ी के माध्‍यम से कदाचित अज्ञात व्‍यक्तियों द्वारा बैंक के कर्मचारियों की कथित रूप से मदद से कम्‍पनी की उक्‍त खाते से धनराशि की क्षति किए जाने का कथन किया गया है। यद्यपि यह स्‍पष्‍ट नहीं है कि यह बैंक खाता कैश क्रेडिट (व्‍यावसायिक) था अथवा सेविंग बैंक था, किन्‍तु यह स्‍पष्‍ट है कि कम्‍पनी अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत कम्‍पनी का खाता निश्‍चय ही व्‍यावसायिक उद्देश्‍य से लिया गया था। अत: उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2(घ) के अंतर्गत परिवादी उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आता है। धारा 2(घ) उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम निम्‍नलिखित प्रकार से है:-

       (i) किसी ऐसे प्रतिफल के लिए जिसका संदाय किया गया है या वचन दिया गया है या भागत: संदाय किया गया है, और भागत: वचन दिया गया है या किसी आस्‍थगित संदाय की पद्धति के अधीन किसी माल का क्रय करता है, और इसके अंतर्गत ऐसे किसी व्‍यक्ति से भिन्‍न, जो ऐसे प्रतिफल के लिए जिसका संदाय किया गया है या वचन दिया गया है या भागत: संदाय किया गया है या भागत: वचन दिया गया है या आस्‍थगित संदाय की पद्धति के अधीन माल का क्रय करता है ऐसे माल का कोई प्रयोगकर्ता भी है, जब ऐसा प्रयोग ऐसे व्‍यक्ति के अनुमोदन से किया जाता है किन्‍तु इसके अंतर्गत ऐसा कोई व्‍यक्ति नहीं है जो ऐसे माल को पुन: विक्रय या किसी वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए अभिप्राप्‍त करता है; और

       (ii) किसी ऐसे प्रतिफल के लिए जिसका संदाय किया गया है या वचन दिया गया है या भागत: संदाय किया गया है और भागत: वचन दिया गया है, या किसी आस्‍थगित संदाय की पद्धति के अधीन सेवाओं को (भाड़े पर लेता है या उनका उपभोग करता है) और इसके अंतर्गत ऐसे किसी व्‍यक्ति से भिन्‍न जो ऐसे किसी प्रतिफल के लिए जिसका संदाय किया गया है और वचन दिया गया है और भागत: संदाय किया गया है और भागत: वचन दिया गया है या किसी आस्‍थगित संदाय की पद्धति के अधीन सेवाओं को (भाड़े पर लेता है या उपभोग करता है) ऐसी सेवाओं का कोई हिताधिकारी भी है जब ऐसी सेवाओं का उपभोग प्रथम वर्णित व्‍यक्ति के अनुमोदन से किया जाता है) (किन्‍तु इसमें ऐसा व्‍यक्ति शामिल नहीं है, जो किसी वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए ऐसी सेवा प्राप्‍त करता है।)''  

12.     अत: धारा 2(घ) उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अनुसार परिवादी उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं माना जा सकता तथा परिवाद पोषणीय नहीं माना जा सकता है। इस सम्‍बन्‍ध में मा0 राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय माया इंजीनियरिंग वर्क्‍स बनाम आई0सी0आई0सी0आई0 बैंक लि0 प्रकाशित IV(2014) C.P.J. पृष्‍ठ 777  (N.C.) प्रस्‍तुत मामले पर लागू होती है। मा0 राष्‍ट्रीय आयोग के समक्ष मामले में परिवादी इंजीनियरिंग माल के निर्माता और विक्रेता थे। उनके द्वारा बैंक को विदेश भेजे गए माल को कलेक्‍ट करने की जिम्‍मेदारी दी गई थी। सेवा में कमी होने पर उनके द्वारा परिवाद लाया गया। मा0 राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा यह निर्णीत किया गया कि परिवादी व्‍यावसायिक उद्देश्‍य से कार्य कर रहे हैं एवं प्रश्‍नगत संव्‍यवहार व्‍यावसायिक उद्देश्‍य से है। अत: इस सम्‍बन्‍ध में परिवाद उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत पोषणीय नहीं है।

13.     मा0 राष्‍ट्रीय आयोग के समक्ष एक अन्‍य मामले मरियम केमिकल लि0 बनाम यूको बैंक व अन्‍य प्रकाशित III(2013) CPJ पृष्‍ठ 261 N.C. के मामले में परिवादी एक केमिकल निर्माणकर्ता कम्‍पनी थी, जिन्‍होंने विपक्षी बैंक से 2.25करोड़ रुपये का ऋण स्‍वीकृत कराया था। उक्‍त ऋण के सम्‍बन्‍ध में विवाद होने पर परिवादी ने परिवाद लाया। मा0 राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा यह निर्णीत किया गया कि बैंक का खाता व्‍यावसायिक संव्‍यवहार से सम्‍बन्‍ध रखता है और इस प्रकार की बैं‍किंग गतिविधि एक व्‍यवसाय को चलाने और अग्रसारित करने के लिए वांछित हैं। अत: परिवादी द्वारा ली गई सेवायें व्‍यावसायिक उद्देश्‍य से मानी जायेंगी और धारा 2(घ) उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत परिवादी उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आयेंगे तथा परिवाद उपभोक्‍ता न्‍यायालय में पोषणीय नहीं हैं।

14.     मा0 राष्‍ट्रीय आयोग के समक्ष एक अन्‍य मामले में निधि निटवेयर्स प्रा0लि0 बनाम बैंक आफ महाराष्‍ट्रा तथा अन्‍य प्रकाशित III(2014) CPJ पृष्‍ठ 147 (N.C.) में भी परिवादी एक पंजीकृत कम्‍पनी थी उनके द्वारा बैंक खाता अपने व्‍यवसाय के संचालन हेतु खोला गया। इस खाते से सम्‍बन्धित संव्‍यवहार के लिए लाया गया वाद मा0 राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा यही निर्णीत किया गया कि इस खाते के सम्‍बन्‍ध में वाद उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत पोषणीय नहीं है।

15.     मा0 राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा निर्णीत उपरोक्‍त निर्णयों से दिशा-निर्देशन लेते हुए यह पीठ इस मत की है कि परिवादी ने स्‍वयं को व्‍यावसायिक उद्देश्‍य की कम्‍पनी दर्शाया है एवं इस व्‍यवसाय के लिए ही विपक्षी आई0सी0आई0सी0आई0 बैंक में खाता खोला गया और विपक्षी सं0- 2 से कार्पोरेट श्रेणी के सिम कार्ड लिए गए थे। उसके सम्‍बन्‍ध में परिवादी का यह कथन परिवाद में आया है कि उक्‍त सिम एवं बैंक खाते दोनों में सेवा में कमी और धोखाधड़ी हुई जिस कारण कम्‍पनी को उक्‍त व्‍यावसायिक खातों में क्षति हुई। इस आधार पर यह परिवाद लाया गया है। निश्‍चय ही जारी किए गए सिम एवं प्रश्‍नगत बैंक खाता व्‍यावसायिक उद्देश्‍य के लिए खोला गया है। अत: मा0 राष्‍ट्रीय आयोग के उपरोक्‍त निर्णयों के आधार पर परिवादी इस संव्‍यवहार के लिए उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं माना जायेगा एवं परिवाद उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत पोषणीय नहीं है।

16.     परिवादी द्वारा यह कथन किया गया है कि प्रश्‍नगत सिम के माध्‍यम से एवं धोखाधड़ी द्वारा डुप्‍लीकेट सिम जारी होने से तथा प्रश्‍नगत बैंक खाते में भी बैंक कर्मियों के मिलीभगत कदाचित अज्ञात व्‍यक्तियों द्वारा धोखाधड़ी करते हुए कपट पूर्वक धनराशि आहरित की गई। इस प्रकार छल कपट व धोखाधड़ी में मोबाइल कम्‍पनी एवं बैंक के कर्मचारियों के सम्मिलित होने और छल पूर्वक धोखाधड़ी द्वारा उक्‍त संव्‍यवहार किए जाने का आक्षेप लगाया गया है जिसके सम्‍बन्‍ध में प्रथम सूचना रिपोर्ट भी दर्ज की गई है जिसकी प्रतिलिपि अभिलेख पर परिवादी ने दाखिल की है। धोखाधड़ी एवं कपट के आक्षेप लगाते हुए यदि सेवा में त्रुटि के सम्‍बन्‍ध में वाद लाया जा रहा है जिसमें यह प्रश्‍न निस्‍तारित होना है कि वास्‍तव में कोई आपराधिक छल हुआ है या नहीं तो यह वाद भी उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत भी निस्‍तारित नहीं किया जा सकता है। इस सम्‍बन्‍ध में मा0 राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय विमल राव साहब चौगले व अन्‍य बनाम स्‍टाक होल्डिंग कार्पोरेशन आफ इंडिया लि0 व अन्‍य प्रकाशित III(2014) CPJ पृष्‍ठ 621 (N.C.) का उल्‍लेख करना उचित होगा। इस मामले में परिवादी की ओर से धोखाधड़ी द्वारा उसके शेयर हस्‍तांतरित करने का आक्षेप लगाया गया था जिसमें परिवादी ने स्‍टाक होल्डिंग कम्‍पनी के कर्मचारियों पर शेयर धोखाधड़ी से हस्‍तांतरित करने का आक्षेप लगाते हुए परिवाद लाया। मा0 राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा यह निर्णीत किया गया कि यह परिवाद उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत पोषणीय नहीं है। मा0 राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा पारित एक अन्‍य निर्णय सुरेश पन्‍ना लाल मुनदादा बनाम संत नामदेव नागरी सहकारी संस्‍था IV(2019) C.P.J.  पृष्‍ठ 518 (N.C.) भी इस सम्‍बन्‍ध में उल्‍लेखनीय है। इस मामले में सहकारी समिति के सदस्‍यों द्वारा समिति के प्रबंधक व कर्मचारियों पर धोखाधड़ी करके क्षति पहुंचाने का अभियोग लगाया गया था और इस आधार पर परिवाद लाया गया। मा0 राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा भी इस मामले में यह निर्णीत किया गया कि धोखाधड़ी आदि का आरोप लगाये जाने पर कि यदि धोखाधड़ी कपट आदि के आक्षेप के आधार पर सेवा में कमी का परिवाद लाया जा रहा है तो यह परिवाद उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत पोषणीय नहीं होगा। मा0 राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय के निर्णय ड्राइफूड लि0 बनाम नेशनल इंश्‍योरेंस कं0लि0 व अन्‍य प्रकाशित III(2012) CPJ  पृष्‍ठ 17 (S.C.) पर आधारित किया गया। मा0 राष्‍ट्रीय आयोग ने उक्‍त निर्णय पर आधारित करते हुए यह निष्‍कर्ष दिया कि यदि परिवादी धोखाधड़ी व कपट का आक्षेप करता है तो उसकी यह स्‍वतंत्रता है कि वह सिविल न्‍यायालय में अपना वाद ला सकता है एवं उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत वाद पोषणीय नहीं होगा। उक्‍त निर्णयों के पूर्व में मा0 राष्‍ट्रीय आयोग के निर्णय ब्राइट ट्रांसपोर्ट कम्‍पनी बनाम सांगली सहकारी बैंक लि0 में दोहराया गया है। मा0 राष्‍ट्रीय आयोग के उपरोक्‍त निर्णय को दृष्टिगत करते हुए यह पीठ पुन: इस मत की है कि चूँकि इस मामले में धोखाधड़ी एवं कपट का आक्षेप परिवादी द्वारा लगाया गया है एवं इस सम्‍बन्‍ध में प्रथम सूचना रिपोर्ट भी दर्ज की गई, अत: यह मामला सिविल न्‍यायालय द्वारा निस्‍तारण योग्‍य है और उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत वाद पोषणीय नहीं है।

17.      उपरोक्‍त समस्‍त विवेचना से यह स्‍पष्‍ट है कि व्‍यावसायिक उद्देश्‍य से संव्‍यवहार होने के कारण परिवादी उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आता है। दूसरी ओर छल कपट एवं धोखाधड़ी का आरोप प्रश्‍नगत संव्‍यवहार में लगाया गया है जो निस्‍तारित होना है कि वास्‍तव में छल हुआ है या नहीं, जिस कारण उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत न्‍यायालयों को इसको निस्‍तारित करने का क्षेत्राधिकार भी नहीं है। अत: परिवाद उपरोक्‍त आधारों पर निरस्‍त किया जाता है। परिवादी सक्षम न्‍यायालय में अपना परिवाद प्रस्‍तुत करने हेतु स्‍वतंत्र है।

       उभयपक्ष अपना-अपना व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।                           

       आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

 

                            

  (विकास सक्‍सेना)                               (राजेन्‍द्र सिंह)           

      सदस्‍य                                      सदस्‍य 

         

निर्णय आज खुले न्‍यायालय में हस्‍ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।

 

 (विकास सक्‍सेना)                               (राजेन्‍द्र सिंह)           

     सदस्‍य                                      सदस्‍य     

शेर सिंह, आशु0,

कोर्ट नं0-3

 
 
[HON'BLE MR. Rajendra Singh]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MR. Vikas Saxena]
JUDICIAL MEMBER
 

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