Rajasthan

Kota

CC/98/2010

Mangi lal grasiya - Complainant(s)

Versus

Bharat Vikas Parishad Hospital & Research Centre - Opp.Party(s)

V.S. Goswami

27 Nov 2015

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, कोटा (राजस्थान)।

प्रकरण संख्या-98/10
मांगी लाल पुत्र ग्यारसी राम आयु 68 साल जाति किराड निवासी बटावदापार तहसील छबडा जिला बांरा, राजथान।                              -परिवादी।
                     बनाम
01.    भारत विकास परिषद होस्पीटल एण्ड रिसर्च सेन्टर, प्रताप नगर
     दादाबाडी, कोटा, जिला कोटा, राजस्थान।
02.    डा0 रामावतार अग्रवाल (आर0ए0 अग्रवाल) प्रभारी एवं वरिष्ठ शल्य 
 चिकित्सक भारत विकास परिषद चिकित्सालय एवं अनुसंधान केन्द्र
 प्रताप नगर, दादाबाडी, कोटा, जिला कोटा, राजस्थान।
03.    दी नेशनल इन्श्योरेन्स कंपनी झालावाड रोड, कोटा, राजस्थान।
  -विपक्षीगण
समक्ष   :
अध्यक्ष  :        भगवान दास     
सदस्य  :        हेमलता भार्गव 
       परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986
उपस्थित:-
1  श्री विद्या शंकर गोस्वामी, अधिवक्ता, परिवादी की ओर से।
2  श्री सत्य प्रकाश गौतम, अधिवक्ता, विपक्षी सं. 1 व 2 की ओर से।
3. श्री बी0एस0 यादव, अधिवक्ता, विपक्षी सं. 3 की ओर से। 

    निर्णय           दिनांक  27.11.15

परिवादी ने विपक्षीगण के विरूद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के अन्तर्गत लिखित परिवाद प्रस्तुत कर उनका संक्षेप में यह सेवा-दोष बताया है कि विपक्षी सं. 1 के अस्पताल में चिकित्सक विपक्षी सं. 2 ने परिवादीे को यूरीन समस्या के ईलाज के लिये विभिन्न जांचे करवाकर दिनांक 08.08.07 को दिनांक 23.08.07 तक भर्ती करके आपरेशन व ईलाज किया , लेकिन उससे आराम नहीं हुआ। अक्टूबर 07 तक उसका ईलाज होता रहा, लेकिन यूरीन नियंत्रित नहीं हुआ। परिवादी ने एस.एम.एस. हास्पीटल में दिखाया वहाॅ 11.10.07 से 28.10.07 तक भर्ती रखा उसके पश्चात् भी कई बार दिखाया पुनः 21.11.07 से 17.12.07 तक भर्ती रखा आपरेशन किया। एस.एम.एस. हास्पीटल में उसे बताया गया कि विपक्षी सं. 2 द्वारा किये गये आपरेशन में गलती व लापरवाही से ऐसी नस कट गई, जिससे पेशाब नियंत्रित नहीं हो रहा है। इस प्रकार विपक्षी हास्पीटल में विपक्षी सं. 2 चिकित्सक द्वारा उसके ईलाज व आपरेशन में लापरवाही करने के कारण काफी खर्चा हुआ एवं एस.एम.एस हास्पीटल में भी काफी खर्चा हुआ। तब भी वह पूर्णतः स्वस्थ नहीं हो पाया। इससे उसे शारीरिक कष्ट के साथ-साथ मानसिक संताप भी हुआ। विपक्षी हास्पीटल में भी चिकित्सक का बीमा विपक्षी बीमा कंपनी ने किया है। सभी विपक्षीगण से हर्जाना दिलाने की प्रार्थना की गई है। 
    विपक्षी सं. 1 व 2  के जवाब का सार है कि दिनांक 08.08.07 को परिवादी विपक्षी हास्पीटल में पैशाब रूकने की समस्या के कारण भर्ती हुआ था, उसकी सभी प्रकार की जांच की गई, जिसमें पाया गया कि उसकी पौरूष ग्रन्थि (प्रोस्टेट ग्लेण्ड) का ग्रेड थर्ड व फोर्थ आकार तक बढ़ा हुआ था तथा उसकी ग्रन्थी का वजन 100 ग्राम पाया गया । ऐसी अवस्था में रोग के निवारण हेतु चिकित्सीय विज्ञान में प्रोस्टेट को चीरा लगाकर आपरेशन करना ही एक मात्र ईलाज था। यही ईलाज पूरी सावधानी, सतर्कता से किया गया । उससे उत्पन्न होने वाली कोम्पलीकेशन्स के बारे में रोगी व उसके परिजनों को भी अवगत करा या गया। आपरेशन में लगभग 110 ग्राम की प्रोस्टेट की गांठ निकाली गई। सफल आरपरेशन होने पर परिवादी को 23.08.07 को डिस्चार्ज कर दिया गया, उसके केथेटर (पेशाब की ट्यूब) लगाई गई, पेल्विक मसल्स एक्सरसाईज करने व नियमित चैक-अप कराने व दवाई लने की सलाह दी गई, लेकिन परिवादी ने सलाह के अनुसार एक्सरसाईज नहीं की, दवाई नही ली, चैक-अप नही करवाया, अपितु 3 माह में ही रीढ़ की हड्डी के छल्लो का आपरेशन करा लिया। जयपुर में परिवादी ने जो ईलाज लिया वह प्रोस्टेट बीमारी से संबंधित नहीं होकर रीढ़ की हड्डी के छल्लांे का ईलाज लिया था जिससे नर्वस सिस्टम खराब हो जाता है। इस कारण भी पैशाब रोकने की क्षमता कम हो जाती है। एस.एम.एस. हास्पीटल के किसी भी चिकित्सक ने ऐसा कोई अंकन नहीं किया है कि विपक्षी सं. 2 ने परिवादी के आपरेशन में कोई गलती, भूल या लापरवाही की हो। यह भी बताया गया कि चिकित्सीय विज्ञान में प्रोस्टेट का आपरेशन संपूर्ण सावधानी, सतर्कता के बरतने के बाद भी पेशाब नही रूकने व पेशाब रोकने की क्षमता कम होने के हालत पैदा हो जाते है। परिवादी के ईलाज व आपरेशन करने में किसी भी प्रकार की कोई लापरवाही नहीं की । जवाब मे यह कहा गया है कि विपक्षी हास्पीटल व विपक्षी चिकित्सक का बीमा विपक्षी बीमा कंपनी ने किया हुआ है। उनके विरूद्ध परिवादी खारिज करने की प्रार्थना की है। 
    बीमा कंपनी के जवाब का सार है कि परिवादी ने विपक्षी हास्पीटल व चिकित्सक की सुनिश्चित लापरवाही नहीं बताई है वांछित साक्ष्य भी प्रस्तुत नहीं की है। विपक्षी हास्पीटल व चिकित्सक ने जो बीमा करवाया है उसके अन्तर्गत कोई सूचना बीमा कंपनी को नहीं दी गई है। विपक्षी चिकित्सक ने मेडिकल डिफेन्स सोसायटी के सदस्य के नाते बीमा करवाया है, लेकिन उसके ईलाज का कोई स्थान अंकित नहीं होने से बीमा कंपनी का दायित्व नहीं बनता है। 
    परिवादी ने साक्ष्य में अपने शपथ-पत्र के अलावा विपक्षी हास्पीटल व एस.एम.एस. हास्पीटल में भर्ती होने, ईलाज, आपरेशन व डिस्चार्ज से संबंधित दस्तावेजात आदि की प्रतिया प्रस्तुत की हैं ।
    विपक्षी सं. 1व 2 ने साक्ष्य में डा. रामावतार अग्रवाल (विपक्षी सं. 2 ) द्वारा शपथ-पत्र के अलावा डा0 रामावतार अग्रवाल के शल्य चिकित्सा के अनुभव से संबंधित दस्तावेजात  हास्पीटल में परिवादी के भर्ती, ईलाज व डिस्चार्ज से संबंधित दस्तावेजात प्रस्तुत किये है एवं चिकित्सीय साहित्य का विवरण भी पेश किया है। 
    विपक्षी बीमा कंपनी ने प्रबंधक अजय वर्मा के शपथ-पत्र के अलावा बीमा पालिसी व मेडिकल डिफेन्स सोसायटी कोटा के चिकित्सकों की सूचि प्रस्तुत की है। 

    हमने दोनों पक्षों की बहस सुनी। पत्रावली का अवलोकन किया। 
    सर्वप्रथम विपक्षी सं. 1 व 2 की इस आपत्ति पर विचार किया जाता है कि क्या परिवाद मियाद बाहर है? 
    परिवादी विपक्षी हास्पीटल/ चिकित्सक के यहाॅ 08.08.07 से 23.08.07 तक भर्ती रहा व ईलाज लिया, जिसमें उनकी कोई लापरवाही बताई गई है इस संबंध में परिवाद 12.03.10 को प्रस्तुत किया गया है, जो कि निश्चित रूप से मियाद बाहर है। क्योंकि 23.08.07 के पश्चात 2 वर्ष की अवधि में ही  परिवाद पेश कर सकता था जबकि लगभग 3 वर्ष से अधिक समय बाद प्रस्तुत किया गया है। इस प्रकार हमारे मत में परिवाद मियाद बाहर है। 
        इस बारे में विवाद की स्थिति नहीं है कि परिवादी विपक्षी हास्पीटल में पेशाब रूकने की समस्या के ईलाज के लिये 08.08.07 को भर्ती हुआ था, जहाॅ उसकी संपूर्ण जांच कराने पर पाया गया कि उसकी प्रोस्टेट ग्रन्थी फोर्थ ग्रेड की थी तथा उसका वजन लगभग 100 ग्राम था इसी लिये डा0 रामावतार अग्रवाल (विपक्षी सं. 2 ) ने उसका चीरा लगा कर आपरेशन किया था तथा लगभग 110 ग्राम की प्रोस्टेट की गांठ निकाली गई थी। हास्पीटल से उसे 23.08.07 को डिस्चार्ज किया था तथा उसे निर्देशानुसार दवाईया लेना,चैक-अप कराना, एक्सरसाईज करने की सलाह दी गई थी। 
    यह र्निविवाद है कि परिवादी ने एस.एम.एस. हास्पीटल जयपुर में पुनः ईलाज करवाया जिसके लिये भर्ती रहा वहाॅ भी उसका आपरेशन हुआ लेकिन उन दस्तावेजात से यह स्पष्ट है कि वह आपरेशन प्रोस्टेट की बीमारी का नही था, अपितु हड्डी के छल्लों मे गेप आने/कम्प्रेश होने के रोग हेतु किया गया था अर्थात् उसका वह ईलाज विपक्षी हास्पीटल में हुये ईलाज से कोई संबंध नहीं था। 
    परिवादी यह स्पष्ट केस लेकर आया है कि एस.एम.एस. हास्पीटल में ईलाज के दौरान उसे बताया गया था कि विपक्षी के हास्पीटल में डा0 रामावतार (विपक्षी सं. 2) ने उसके आपरेशन के दौरान ऐसी नस काट दी, जिससे पेशाब नियंत्रित नहीं हो रहा है। लेकिन उल्लेखनीय है कि इस संबंध में परिवादी ने लेश-मात्र भी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की है। एस.एम.एस.हास्पीटल के किसी चिकित्सक की ऐसी कोई रिपोर्ट, प्रमाण-पत्र, या शपथ-पत्र प्रस्तुत नहीं किये जिससे यह सिद्ध होता हो कि विपक्षी हास्पीटल में विपक्षी चिकित्सक ने परिवादी के आपरेशन में गलती/लापरवाही से ऐसी कोई नस काटी हो जिससे पेशाब नियंत्रित नहीं हो रहा है। एस.एम.एस. हास्पीटल के किसी चिकित्सक की ऐसी कोई रिपोर्ट, प्रमाण-पत्र या शपथ-पत्र भी नही है कि विपक्षी हास्पीटल में परिवादी के प्रोस्टेट के ईलाज में गलत प्रक्रिया अपनाई गई हो या आपरेशन की प्रक्रिया सही नही रही हो या उसके ईलाज या आपरेशन में अन्य किसी प्रकार की कोई भूल या लापरवाही की हो। एस.एम.एस. हास्पीटल के अलावा अन्य किसी चिकित्सीय विशेषज्ञ की ऐसी कोई रिपोर्ट, प्रमाण पेश नहीं है कि परिवादी के ईलाज व आपरेशन में विपक्षी हास्पीटल में विपक्षी चिकित्सक ने चिकित्सीय विज्ञान के विपरीत ईलाज या आपरेशन में लापरवाही या चूक की हो। केवल कल्पना के आधार पर यह सिद्ध नहीं माना जा सकता है कि परिवादी के ईलाज या आपरेशन में कोई भूल या लापरवाही की थी। अपितु इन तथ्यों को प्रमाणित एवं सुनिश्चित साक्ष्य से सिद्ध करना परिवादी का दायित्व है, जिसे सिद्ध करने का भार भी परिवादी पर है जिसमें वह विफल रहा है। विपक्षी चिकित्सक रामावतार अग्रवाल ने योग्यता,दक्षता व अनुभव से संबंधित दस्तावेज प्रस्तुत किये जिससे प्रकट है कि वह अनुभवी है, दक्षता,क्षमता रखता है। परिवादी के जिस रोग का ईलाज व आपरेशन किया, उसकी वह  पूरी तरह योग्यता, दक्षता व अनुभव रखता है, जिसके लिये उसने चिकित्सीय प्रमाण भी प्रस्तुत किया है कि प्रोस्टेट ग्रन्थि का पूरी सावधानी, सतर्कता से आपरेशन करने के बावजूद पेशाब बंद नहीं होने व पेशाब रोकने की क्षमता कम होने की समस्या हो सकती है। इसलिये केवल इस आधार पर कि आपरेशन के पश्चात परिवादी का पेशाब पूरी तरह नहीं रूका यह नहीं माना जा सकता कि आपरेशन या ईलाज में कोई लापरवाही रही थी। विपक्षी डा0 रामावतार अग्रवाल ने यह भी स्पष्ट किया है कि आपरेशन के पश्चात परिवादी को जो सलाह दी गई थी उसकी अनुपालना उसने नहीं की, उसने नियमित दवाईया नहीं ली,चैक-अप नहीं करवाया। इससे ऐसी संभावना है कि समस्या का पूरा निवारण नही हो पाया। इसलिये विपक्षी हास्पीटल या चिकित्सक को दोषी नहीं माना जा सकता है। 
    उपरोक्त विवेचन के फलस्वरूप हम यह पाते है कि परिवादी यह सिद्ध करने में पूरी तरह विफल रहा है कि विपक्षी हास्पीटल अथवा विपक्षी चिकित्सक ने परिवादी के ईलाज करने या आपरेशन करने में कोई गलती, भूल या लापरवाही की हो । 
    जहाॅ तक विपक्षी बीमा कंपनी का प्रश्न है विपक्षी हास्पीटल या विपक्षी चिकित्सक की कोई लापरवाही ही सिद्ध नही है तब विपक्षी बीमा कंपनी का भी कोई दायित्व पैदा नहीं होता।
    उपरोक्त विवेचन के फलस्वरूप हम पाते है कि विपक्षीगण के विरूद्ध परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
    
                     आदेश 

     परिवादी का परिवाद विपक्षीगण के खिलाफ खारिज किया जाता है। परिवाद खर्च पक्षकारान अपना-अपना स्वयं वहन करेगे। 


(हेमलता भार्गव)                             ( भगवान दास)  
  सदस्य                                             अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद                          जिला उपभोक्ता विवाद 
प्रतितोष  मंच, कोटा।                           प्रतितोष मंच, कोटा।
    निर्णय  आज दिनंाक 27.11.15  को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया। 
                                     
  सदस्य                                           अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद                         जिला उपभोक्ता विवाद 
प्रतितोष  मंच, कोटा।                          प्रतितोष मंच, कोटा।

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