Final Order / Judgement | (सुरक्षित) राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ। अपील सं0 :- 2856/2006 (जिला उपभोक्ता आयोग, बलिया द्वारा परिवाद सं0-222/2003 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 31/08/2006 के विरूद्ध) State Bank of India, Main Branch Rewa, Through Assistant General Manager thePrincipal Officer - Appellant
Versus - Bharatji Pandey son of Sri Subhash Chandra Pandey resident of Village and Post Bhimpura, No.1 Tahsil Belthara Road, Distt. Balia.
- Shakha Prabhandhak, Kshetriya Gramin Bank, Semrai, Distt. Balia.
- Adhyaksh, Kshetriya Gramin Bank, Distt Balia.
- Respondents
समक्ष - मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य
- मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य
उपस्थिति: अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता:- श्री शरद द्विवेदी प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर विद्वान अधिवक्ता:- श्री आर0के0 मिश्रा दिनांक:- 25.10.2024 माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित निर्णय - यह अपील जिला उपभोक्ता आयोग, बलिया द्वारा परिवाद सं0-222/2003 भरतजी पाण्डेय बनाम शाखा प्रबंधक बलिया क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 31/08/2006 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी है।
- जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए यह आदेश पारित किया है कि विपक्षी सं0 द्वारा प्रेषित चेक का समाशोधन विपक्षी सं0 3 द्वारा तुरंत नहीं किया गया, इसलिए विपक्षी सं0 3 परिवादी को अंकन 2,000/-रू0 वाद व्यय अदा करने तथा दिनांक 06.08.2001 को 40,000/-रू0 पर विपक्षी सं0 2 द्वारा लगाये गये बयाज के साथ 60 दिन के अंदर प्रदान करें। विपक्षी सं0 2 द्वारा विपक्षी सं0 3 को ब्याज की सुविधा दे और विपक्षी सं0 2 द्वारा विपक्षी सं0 3 से ही परिवादी पर बने अवशेष को प्राप्त करेंगे।
- परिवाद के तथ्यों के अनुसार दिनांक 14.10.1996 को परिवादी ने विपक्षी सं0 1 से अंकन 2,000/-रू0 का ऋण लिया था, जिसकी सुरक्षा के लिए अंकन 1,20,000/-रू0 एनएसी बंधक रखी थी। एनएससी तथा दो के0वी0पी0 प्रत्येक का मूल्य 10,000/-रू0 बंधक रखी थी। दिसम्बर 2000 तक ऋण लौटाने का पर परिवादी पर केवल 40,000/-रू0 शेष रहा तब परिवादी ने मौखिक निवेदन किया कि जो के0वी0पी0 गिरवी रखी गयी है, उससे ऋण चुकता कर लिया जाए तथा अदेयता प्रमाण पत्र जारी किया जाए, परंतु विपक्षी सं0 2 द्वारा कोई कार्यवाहीनहीं की गयी, इसके पश्चात दिनांक 18.06.2001 से 15 दिन पूर्व लिखित दिया तब रीवा मध्यप्रदेश के डाकघर से विपक्षी सं0 2 के नाम 40,000/-रू0 का चेक आ गया, जो दिनांक 03.01.2001 को वादी के घर में जमा किया गया। 31 माह का सूद विपक्षी सं0 2 मांग रहे हैं, जिसका कोई औचित्य नहीं है क्योंकि किसान विकास पत्र की राशि परिवादी के निर्देश व आवेदन के अनुसार यदि मंगा लिये होते तब 31 माह का सूद मांगने का आधार नहीं बनता। यह विपक्षी सं0 2 की त्रुटि है।
- विपक्षी सं0 2 का कथन है कि परिवादी के लिखित आवेदन पर दिनांक 18.06.2001 को ही केवीपी की राशि मंगाने के लिए डाकपाल रीवा को पत्र लिखा गया। दिनांक 22.07.2001 को डाकपाल से चेक मिला, जिसका भुगतान एसबीआई रीवा में होना था। वहां से समाशोधन हेतु चेक तुरंत भेज दिया गया, जो दिनांक 06.08.2001 को प्राप्त हुआ, परंतु दिनांक 03.01.2001 को ड्राफ्ट मिला। यह राशि परिवादी के खाते में जमा कर दी गयी,इसलिए उनके स्तर से सेवा में कमी की गयी है, जो भी देरी हुई है, वह एसबीआई रीवा के स्तर से कारित हुई है।
- जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा साक्ष्य की व्याख्या करते हुए यह निष्कर्ष दिया है कि विपक्षी सं0 3 के स्तर से सेवा में कमी की गयी है। विपक्षी सं0 2 द्वारा भेजे गये चेक का समाशोधन तुरंत नहीं किया, इसलिए 40,000/-रू0 की राशि पर ब्याज विपक्षी सं0 3 अदा करे।
- विपक्षी सं0 3 एसबीआई द्वारा इस निर्णय एवं आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गयी है कि जिला उपभोक्ता आयोग ने अवैध निर्णय पारित किया है। प्रत्यर्थी का अपीलार्थी बैंक से कोई संबंध नहीं है, इसलिए परिवादी अपीलार्थी का उपभोक्ता नहीं है, इसलिए अपीलार्थी के विरूद्ध प्रश्नगत आदेश पारित नहीं किया जा सकता। जिला उपभोक्ता आयोग ने पूर्णता अवैध रूप से अपना निष्कर्ष दिया है। परिवाद पत्र में अपीलार्थी के विरूद्ध कोई आरोप नहीं लगाया गया था। प्रश्नगत आदेश निष्कर्ष विहीन है, इसलिए अपास्त होने योग्य है।
- अपीलार्थी बैंक की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री शरद शुक्ला तथा प्रत्यर्थी की ओर से श्री आर0के0 मिश्रा की बहस सुनी गयी। प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
- निर्णय के अवलोकन से ज्ञात होता है कि पृष्ठ सं0 1 लगायत 2 के आधे भाग में पक्षकारों के अभिवचनों का उल्लेख किया गया है, इसके पश्चात निम्नलिखित टिप्पणी अंकित की गयी है:- ''विचार किया, प्रलेखीय साक्ष्य से विपक्षी सं0 2 के कथन को तथा परिवादी के कथन को पूर्ण पुष्टि प्राप्त है। विपक्षी सं0 3 की सेवा त्रुटि स्पष्ट है'' और इस प्रकार इस टिप्पणी के बाद अपीलार्थी बैंक के विरूद्ध आदेश पारित कर दिया गया। इस निर्णय को कदाचित कारणों पर आधारित वाक्या सहित निर्णय नहीं कहा जा सकता, इसलिए अपील के ज्ञापन में वर्णित यह तथ्य निश्चित रूप से साबित है कि जिला उपभोक्ता आयोग ने कारण विहीन निर्णय पारित किया है। अपीलार्थी के उत्तरदायित्व को तथ्यों तथा उन पर लागू होने वाले विधि के संबंध में वाक्या करते हुए निर्धारित नहीं किया है।
- परिवाद पत्र के अवलोकन से ज्ञात होता है कि परिवादी ने परिवाद पत्र के किसी भी पैरे में अपीलार्थी बैंक के विरूद्ध लापरवाही या उपभोक्ता संबंध होने का कोई कथन नहीं किया है और जिला उपभोक्ता आयोग ने इस बिन्दु पर कदाचित विचार नहीं किया कि विपक्षी सं0 3 से परिवादी का क्या संबंध है, जबकि अपीलार्थी बैंक द्वारा यह आपत्ति की गयी है कि उनके विरूद्ध परिवाद पत्र मे कोई अनुतोष नहीं मांगा गया है, बाद में उन्हें कारण विहीन आधार पर पक्षकार बनाया गया है, जो अनुचित है, परंतु जिला उपभोक्ता आयोग ने विपक्षी सं0 3 द्वारा उठायी गयी आपत्तियों पर कोई विचार नहीं किया और अभिवचन समाप्त होने के तुरंत पश्चात अपना निर्णय अंकित कर दिया, जो न केवल अवैध है, अपितु इस निर्णय को पारित पारित करने वाले अध्यक्ष एवं सदस्य की सत्यनिष्ठा को भी संदिग्ध बनाता है। लिखित कथन में जो आपत्तियां उठायी गयी हैं, उन पर विचार किये बिना निष्कर्ष देना किसी भी जिला उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष व सदस्य के लिए न्यायिक विवेक का उपयोग करना नहीं कहा जा सकता, चूंकि परिवाद पत्र में विपक्षी सं0 3 के विरूद्ध कोई आरोप नहीं लगाया गया, यहां तक कि अनुतोष क्लॉज में भी विपक्षी सं0 3 अपीलार्थी बैंक के विरूद्ध किसी प्रकार के अनुतोष की मांग नहीं की गयी। परिवाद पत्र के अवलोकन से ज्ञात होता है कि प्रारंभ मे शाखा प्रबंधक बलिया क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक एवं अध्यक्ष बलिया क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक को पक्षकार बनाया गया है और बाद में किसी समय अपीलार्थी बैंक को भी पक्षकार बनाया गया, परंतु परिवाद के किसी भी प्रस्तर में अपीलार्थी बैंक के विरूद्ध वाद कारण उत्पन्न होने या अपीलार्थी बैंक के विरूद्ध उपभोक्ता एवं सेवा प्रदाता के संबंध होने, अपीलार्थी बैंक द्वारा परिवादी के प्रति सेवा में कमी कारित करने का कोई कथन नहीं किया। इस प्रकार किसी भी आरोप के अभाव में अपीलार्थी बैंक को उत्तरदायी ठहराना जिला उपभोक्ता आयोग की निष्क्रियता, अकर्मण्यता एवं कहा जा सकता कि अज्ञानता का परिणाम रहा है। अत: यह निर्णय/आदेश अपास्त होने योग्य है।
आदेश अपील स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता मंच द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश अपास्त किया जाता है। उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वंय वहन करेंगे। प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए। आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे। (सुधा उपाध्याय)(सुशील कुमार) सदस्य सदस्य संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट 2 | |