(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 1371/2013
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, गाजीपुर द्वारा परिवाद सं0- 08/2011 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 18.10.2012 के विरुद्ध)
The Oriental insurance company limited Regional office, Jeevan bhawan, 43, Hazratganj, District- Lucknow through its Divisional Manager Varanasi.
………Appellant
Versus
1. Smt. Bhagyamaani Devi (मृतक) प्रतिस्थापित वारिसान Ram adhar singh yadav Resident of Village and Post : Banjaaripur, Police station: Kotwali District- Gazipur.
2. M/s Punit auto mobiles pvt. Ltd. Rauja (Mohanlal ka Pokhra) District-Gazipur.
3. That M/s Tata Motors limited building-1, Second floor Lorha, Think Tacco campus office Prakhesh road-2, Thane West Mumbai through its manager.
……….Respondents
समक्ष:-
1. माननीय श्री गोवर्धन यादव, सदस्य।
2. माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से : श्री वासुदेव मिश्रा,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0- 1 की ओर से : श्री आदित्य कुमार श्रीवास्तव,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0- 2 की ओर से : कोई नहीं।
प्रत्यर्थी सं0- 3 की ओर से : श्री राजेश चड्ढा,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक:- 23.07.2021
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद सं0- 08/2011 श्रीमती भाग्यमानी देवी बनाम वरिष्ठ मण्डल प्रबंधक, दि ओरियण्टल इंश्योरेंस कं0लि0 व दो अन्य में पारित निर्णय व आदेश दि0 18.10.2012 के विरूद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 15 के अंतर्गत यह अपील प्रस्तुत की गई है। जिला उपभोक्ता आयोग, गाजीपुर द्वारा परिवाद स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया गया है:-
‘’परिवादिनी का परिवाद, परिवाद व्यय रू0500/- के साथ स्वीकार किया जाता है। परिवादिनी विपक्षी द्वारा वांछित प्रलेख (आर सी में बीमा कम्पनी का नाम ट्रांसफर कराये, लेटर आफ सब्रोगेशन, लेटर आफ इंडेमिनिटी, लेटर आफ अण्डरटेकिंग) विपक्षी सं0- 1 को एक माह के अन्दर उपलब्ध कराये। उपरोक्त प्रलेख उपलब्ध होने के दो माह के अन्दर, विपक्षी सं0- 1 परिवादिनी को बीमित धनराशि रू0 8,39,000/- तथा उस पर ट्रक चोरी की तिथि से अदायगी की तारीख तक 08 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से होने वाली धनराशि दे।
विपक्षी सं0- 1 उपरोक्त आदेश का अनुपालन इस आदेश की तारीख से दो माह के अन्दर कर दे। अन्यथा परिवादिनी को पूर्ण अधिकार होगा कि वह विहित प्रक्रिया का सहारा लेकर, उपरोक्त अनुपालन करा ले।
इस निर्णय की एक-एक प्रति पक्षकारों को नि:शुल्क दी जाय।‘’
2. मामले के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी ने प्रत्यर्थी सं0- 3/विपक्षी सं0- 3 मै0 टाटा मोटर्स लि0 से वित्तीय सहायता लेकर प्रश्नगत ट्रक ली थी जिसकी बीमा पालिसी अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 से दि0 22.05.2009 से दि0 21.05.2010 तक के लिए कम्प्रेहेंसिव बीमा कराया था जिसके तहत ट्रक की चोरी व अन्य जोखिम आच्छादित था। बीमित वाहन की धनराशि रू0 8,39,000/-रू0 की गई थी। यह ट्रक माल लेकर मुजफ्फरपुर, बिहार गई थी वहां से मुर्गी दाना लोड कर दि0 07.06.2009 को वाराणसी की पार्टी के लिए मुर्गी दाना लेकर वाराणसी के लिए चली तथा दि0 09.06.2009 को माल पहुंचाना था। ट्रक न पहुंचने पर इसकी सूचना मोबाइल पर प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी को दी गई। प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी का पुत्र व अन्य लोग ट्रक का पता लगाने मुजफ्फरपुर, बिहार गए, जहां थाना बेला में दि0 11.06.2009 को सूचना दी गई। थाना बेऊर पटना, बिहार में यह जानकारी मिली कि दो व्यक्तियों का शव मिला है। प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी के पुत्र राधेश्याम ने दि0 13.06.2009 को वहां जाकर अपने ड्राइवर व खलासी की सम्मुखी पहचान की। तदोपरांत प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करायी गई। अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 दि ओरियण्टल इंश्योरेंस कं0लि0 को दि0 18.06.2009 को ट्रक की चोरी चले जाने की सूचना दी गई। रिपोर्ट पटना, बिहार में पंजीकृत करायी गई थी। प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी के अनुसार ट्रक परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि तक प्राप्त नहीं हुई थी। तदोपरांत प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी ने सभी अभिलेखों के साथ क्षतिपूर्ति के लिए बीमा क्लेम भेजा। प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी के अनुसार उसका दावा मात्र इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि चोरी के समय गाड़ी का फिटनेस नहीं था। परिवाद पत्र के अनुसार सहायक सम्भागीय परिवहन अधिकारी के पत्र दि0 11.05.2009 के अनुसार प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी के उपरोक्त ट्रक की फिटनेस दि0 31.05.2009 तक वैध थी। बीमा कम्पनी ने प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी को बताया कि चोरी दि0 07.06.2009 को हुई। अत: चोरी की तारीख पर फिटनेस नहीं थी, इसलिए बीमा का क्लेम खारिज कर दिया गया।
3. प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी का यह भी कथन है कि उसकी ट्रक गाजीपुर से चार सौ किलोमीटर दूर मुजफ्फरपुर, बिहार गई थी जहां दि0 07.06.2009 को वाराणसी से रवाना हुई, इसलिए उसका ट्रक फिटनेस की अवधि बीतने से पहले ही बाहर चला गया था और बाहर से ही गायब हो गया। इसलिए ट्रक के अभाव में फिटनेस नहीं कराया जा सका। प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी द्वारा अपीलार्थी/विपक्षीगण के विरुद्ध ट्रक की बीमित धनराशि मय ब्याज दिलाये जाने हेतु परिवाद योजित किया गया है।
4. अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत किया गया है जिसमें यह स्वीकार किया गया है कि जिस तिथि को वाहन चोरी हुआ था उस तिथि पर वाहन बीमा अवधि के अन्दर था। प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी का ट्रक गायब होने की सूचना दि0 18.06.2009 को अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 को दी गई थी जब कि उक्त सूचना घटना के तुरंत बाद देनी चाहिए थी। अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 का कथन है कि बीमा पालिसी में उल्लिखित शर्तों के अनुसार घटना के 48 घण्टे के अन्दर सूचना देनी चाहिए थी, परन्तु प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी ने ऐसा नहीं किया जिससे स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी ने बीमा की शर्त का उल्लंघन किया। प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी के ट्रक का फिटनेस दि0 31.05.2009 तक वैध था जब कि चोरी की घटना दि0 07.06.2009 की है। उपरोक्त से यह स्पष्ट है कि जिस तारीख को वाहन चोरी हुआ उस तारीख पर वाहन का फिटनेस सार्टीफिकेट नहीं था। प्रश्नगत ट्रक के फिटनेस के अभाव में बीमा कम्पनी क्षतिपूर्ति देने की उत्तरदायी नहीं है, किन्तु यदि किन्हीं कारणों से बीमा कम्पनी उत्तरदायी पायी जाती है तो उस स्थिति में बीमाधारक द्वारा आर0सी0 में बीमा कम्पनी का नाम ट्रांसफर कराकर लेटर आफ सब्रोगेशन, लेटर इंडेमिनिटी एवं लेटर आफ अण्डरटेकिंग प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी की तरफ से उपलब्ध कराया जाए। उपरोक्त प्रपत्र उपलब्ध कराये जाने के बाद बीमा कम्पनी द्वारा इंगित कम्पल्सरी एवं वालेंटरी एक्सेस क्लाज की धनराशि घटाने के उपरांत शेष धनराशि के लिए बीमा कम्पनी उत्तरदायी है।
5. दोनों पक्षों को सुनने का अवसर देने के उपरांत विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग, गाजीपुर ने बीमित धनराशि मय ब्याज एवं वाद व्यय हेतु वाद आज्ञप्त किया जिससे व्यथित होकर यह अपील प्रस्तुत की गई है।
6. अपील में दि ओरियण्टल इंश्योरेंस कं0लि0 का मुख्य रूप से कथन इस प्रकार है कि धारा 56 एवं 39 मोटर वाहन अधिनियम 1988 में स्पष्ट है कि यातायात वाहन को सदैव फिटनेस सार्टीफिकेट की आवश्यकता होती है। बिना उक्त प्रमाण पत्र के वाहन नहीं चलाया जा सकता है। वाहन के चोरी चले जाने पर बीमा कम्पनी को 48 घंटे के भीतर घटना की सूचना देनी चाहिए। इस शर्त के उल्लंघन पर बीमा राशि देय नहीं है। पुलिस को तथा बीमा कम्पनी को देरी से सूचना दिए जाने पर दोनों जांच एजेंसियां मामले की जांच करने में असफल रहती हैं। अत: इस आधार पर बीमित राशि देय नहीं है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने मा0 राष्ट्रीय आयोग के निर्णय नितिन खण्डेलवाल की अनदेखी करते हुए वाहन की सम्पूर्ण धनराशि दिलायी है जब कि उक्त निर्णय के आधार पर 75 प्रतिशत नॉन स्टैण्डर्ड बेसिस क्लेम के आधार पर यह धनराशि की जानी चाहिए थी। इन आधारों पर अपील स्वीकार किए जाने एवं प्रश्नगत निर्णय व आदेश को अपास्त किए जाने की प्रार्थना की गई है।
7. अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री वासुदेव मिश्रा उपस्थित हैं। प्रत्यर्थी सं0- 1 की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री आदित्य कुमार श्रीवास्तव उपस्थित हैं। प्रत्यर्थी सं0- 2 की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। प्रत्यर्थी सं0- 3 की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री राजेश चड्ढा उपस्थित हैं।
8. हमने अपीलार्थी और प्रत्यर्थीगण सं0- 1 एवं 3 के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का परिशीलन किया गया।
9. अपीलार्थी की ओर से पहले तर्क यह उठाया गया है कि वाहन की चोरी चले जाने की सूचना देरी से दी गई थी। स्वीकार्य रूप से वाहन दि0 07.06.2009 को मुजफ्फरपुर, बिहार से वाराणसी के लिए रवाना हुआ जिसको दि0 09.06.2009 को वाराणसी पहुंचना था। ट्रक के न पहुंचने पर प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी के पुत्र एवं पति ट्रक का पता लगाने मुजफ्फरपुर, बिहार गए जहां पर दि0 11.06.2009 को थाना बेला, जिला मुजफ्फरपुर, बिहार में घटना की सूचना देना कहा गया है। इस प्रकार अत्यंत तत्परता से पुलिस को उक्त ट्रक की सूचना दे दी गई। पुन: थाना बेऊर, पटना बिहार में ट्रक के ड्राइवर अमीर चन्द यादव व खलासी अनिल राम के शव की मिलने पर पुन: अपराध की प्रथम सूचना रिपोर्ट थाना बेऊर, बिहार में दिया जाना भी अंकित है तथा दि0 18.06.2009 को उक्त घटना की सूचना बीमा कम्पनी को दिया जाना अंकित है। इस प्रकार प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी की ओर से पुलिस को उक्त चोरी की सूचना दे दी गई थी। पुलिस को सूचना ज्ञात होने के तुरंत बाद दि0 11.06.2009 और नौ दिन बाद बीमा कम्पनी को सूचना दे दी गई। अत: यह नहीं माना जा सकता कि पुलिस को सूचना देर से दी गई। इस सम्बन्ध में मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गुरुशिंदर सिंह बनाम श्रीराम जनरल इंश्योरेंस कं0लि0 व अन्य I (2020) C.P.J. 96 (S.C.) में पारित निर्णय इस सम्बन्ध में उल्लेखनीय है जिसमें मा0 सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णीत किया है कि यदि बीमे के मामले में वाहन चोरी की सूचना पुलिस को दे दी गई है तो पुलिस के पास पर्याप्त अवसर रहता है कि वह तुरंत वाहन की खोज हेतु जांच आरम्भ कर दे। यद्यपि बीमा कम्पनी को सूचना कुछ देरी से भी दी गई है तो यह बीमे के दावे को खारिज किए जाने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है।
10. इस मामले में दि0 11.06.2009 को थाना बेला जिला मुजफ्फरपुर में वाहन की गुमशुदगी की सूचना दे दी गई है। पुन: शव के मिलने की औपचारिक प्रथम सूचना रिपोर्ट थाना बेऊर, बिहार में दर्ज कराया जाना कहा गया है। अत: प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी की ओर से तत्परता से पुलिस को सूचना दी गई है। यदि पुलिस ने औपचारिक रूप से प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज नहीं की तो ऐसे में इस आधार पर बीमे के दावे को अस्वीकार किया जाना उचित प्रतीत नहीं होता है। इस सम्बन्ध में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय श्रीराम जनरल इंश्योरेंस कं0लि0 बनाम अब्दुल रहमान सिद्दीकी प्रकाशित IV (2019) CPJ पृष्ठ 582 उल्लेखनीय है, जिसमें वाहन के बीमे के सम्बन्ध में प्रश्नगत वाहन की गुमशुदगी की सूचना पुलिस को दी गई। मा0 राष्ट्रीय आयोग ने यह निर्णीत किया कि यदि स्वयं पुलिस द्वारा ही देर में प्रथम सूचना रिपोर्ट अंकित की गई है तो इसमें परिवादी को दोषी नहीं माना जा सकता। इस प्रकार गुमशुदगी की सूचना पुलिस को तत्परता से दिए जाने पर और नौ दिन बाद बीमा कम्पनी को कोई सूचना प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी की ओर से यदि दी गई है तो इस आधार पर बीमे के दावे को अस्वीकार किया जाना इस मामले में भी उचित प्रतीत नहीं होता है। मा0 सर्वोच्च न्यायालय एवं मा0 राष्ट्रीय आयोग के उपरोक्त निर्णय के आधार पर इस मामले में बीमे के क्लेम को खारिज किया जाना उचित नहीं है।
11. अपीलार्थी की ओर से प्रश्नगत निर्णय व आदेश को अपास्त किए जाने और बीमे के दावे को अस्वीकार किए जाने का दूसरा आधार यह लिया गया है कि प्रश्नगत वाहन का कथित चोरी की तारीख पर फिटनेस नहीं था, इसलिए इस आधार पर बीमे का क्लेम खारिज किया गया। इस सम्बन्ध में प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी की ओर से यह तर्क दिया गया है कि वाहन मुजफ्फरपुर बिहार के लिए गाजीपुर से भेजा गया था जो दि0 07.06.2009 को मुजफ्फरपुर पहुंचना था। इसके उपरांत ट्रक वाराणसी के लिए रवाना हुआ था। प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी के अनुसार संदर्भित ट्रक फिटनेस अवधि बीतने से पहले ही बाहर चला गया था। इसलिए ट्रक की फिटनेस नहीं करायी जा सकी, प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी का यह तर्क उचित नहीं है। चार सौ किलोमीटर दूर प्रेषित करने के पूर्व प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी को यह देखना आवश्यक था कि इस अवधि में ट्रक की फिटनेस की अवधि समाप्त हो जायेगी और ट्रक को व्यवसाय के लिए प्रेषित करने के पूर्व उसका यह दायित्व था कि उचित प्रकार से इसकी फिटनेस का प्रमाण पत्र प्राप्त कर लेती। यहां पर यह भी उल्लेखनीय है कि मामला चोरी अर्थात प्रश्नगत वाहन की सम्पूर्ण हानि का है, इसलिए ट्रक के फिटनेस न होने की शर्त चोरी के प्रकरण में महत्वपूर्ण नहीं है और इस आधार पर बीमा की सम्पूर्ण धनराशि को खारिज किया जाना उचित नहीं है। यदि फिटनेस न होने के कारण ट्रक में दुर्घटना आदि होती तो बीमे के क्लेम की स्थिति भिन्न होती, किन्तु यहां पर सम्पूर्ण वाहन के चोरी चले जाने का कारण है। ऐसे में फिटनेस का न होना अधिक महत्वपूर्ण नहीं रह जाता है। मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय निहारिका मौर्या बनाम न्यू इंडिया इंश्योरेंस कं0लि0 तथा अन्य प्रकाशित 2011 (II)CPR पृष्ठ 342 में इस अभिमत को व्यक्त किया एवं विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने अपना निर्णय उक्त निर्णय पर आधारित भी किया है। इस सम्बन्ध में मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय नेशनल इंश्योरेंस कं0लि0 बनाम नितिन खण्डेलवाल प्रकाशित (2008)11 सुप्रीम कोर्ट केसेस पृष्ठ 259 उल्लेखनीय है। इस निर्णय में भी बीमित ट्रक चोरी चला गया था। बीमा कम्पनी की ओर से यह तर्क उठाया गया कि प्रश्नगत वाहन बीमा की शर्तों का उल्लंघन करते हुए व्यावसायिक वाहन के रूप में प्रयोग किया जा रहा था, इसलिए शर्तों के उल्लंघन के कारण बीमित धनराशि देय नहीं है। मा0 सर्वोच्च न्यायालय ने अपने अन्य पूर्व निर्णयों नेशनल इंश्योरेंस कं0लि0 बनाम स्वर्ण सिंह 2004 (III) SCC पृष्ठ 297 तथा नेशनल इंश्योरेंस कं0लि0 बनाम कासिम राय 2006 (IV)SCC पृष्ठ 256 पर आधारित करते हुए यह निर्णीत किया गया कि प्रस्तुत बीमे के मामले में वाहन की चोरी हुई है। ऐसे में बीमा की जो शर्तों का उल्लंघन किया गया वह वाहन की सम्पूर्ण हानि के लिए महत्वपूर्ण नहीं हैं, इसलिए सम्पूर्ण बीमे की धनराशि को रोका जाना और बीमा को अस्वीकार किया जाना उचित प्रतीत नहीं होता है एवं यह उचित होगा कि नॉन स्टैण्डर्ड बेसिस पर बीमित धनराशि का 75 प्रतिशत दिया जाना उचित होगा।
12. प्रस्तुत मामले पर मा0 सर्वोच्च न्यायालय का उपरोक्त निर्णय पूर्णत: लागू होता है एवं अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 ने भी अपील के आधारों में यह मत व्यक्त किया है कि प्रस्तुत मामले में बीमित धनराशि का 75 प्रतिशत दिलाया जाए। अत: यह पीठ उचित पाती है कि प्रस्तुत मामले में बीमित धनराशि का 75 प्रतिशत दिलवाया जाना उचित है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने अपने निर्णय में इस तथ्य को नजरंदाज किया है कि प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी द्वारा बीमा की शर्तों का उल्लंघन करते हुए वाहन चलाया जा रहा था। अत: बीमे की सम्पूर्ण धनराशि दिलाया जाना उचित प्रतीत नहीं होता है। नॉन स्टैण्डर्ड बेसिस पर बीमित धनराशि का 75 प्रतिशत दिलाया जाना इस मामले में अधिक समीचीन होगा एवं प्रश्नगत निर्णय व आदेश तदनुसार परिवर्तित एवं संशोधित किए जाने योग्य प्रतीत होता है। शेष प्रश्नगत आदेश पुष्ट होने योग्य है। उक्त प्रकार से अपील आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। प्रश्नगत निर्णय व आदेश इस प्रकार संशोधित किया जाता है कि अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1, प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादिनी को बीमित धनराशि का 75 प्रतिशत तथा उस पर वाद योजन की तिथि से 08 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज प्रदान करे। अन्य सम्पूर्ण आदेश की पुष्टि की जाती है।
अपीलार्थी द्वारा अपील में धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित इस निर्णय के अनुसार निस्तारण हेतु जिला उपभोक्ता आयोग को प्रेषित की जाए।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(गोवर्धन यादव) (विकास सक्सेना)
सदस्य सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0- 2