Uttar Pradesh

StateCommission

RP/126/2017

Indusind Bank - Complainant(s)

Versus

Bhagwanta Singh - Opp.Party(s)

Brijendra Chaudhary

13 Sep 2018

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
Revision Petition No. RP/126/2017
( Date of Filing : 03 Oct 2017 )
(Arisen out of Order Dated 30/04/2015 in Case No. C/303/2014 of District Varanasi)
 
1. Indusind Bank
Through its Manager Legal interalia Office at H.No. D/59/105-67 First Floor Chandrika Nagar Colony Sigara Varanasi
...........Appellant(s)
Versus
1. Bhagwanta Singh
S/O Late Sri Loknath Singh R/O Vill. Danupur Post Chandmar Distt. Varanasi
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN PRESIDENT
 HON'BLE MR. Mahesh Chand MEMBER
 
For the Petitioner:
For the Respondent:
Dated : 13 Sep 2018
Final Order / Judgement

मौखिक

पुनरीक्षण संख्‍या-126/2017

इण्‍डसइण्‍ड बैंक लि0 बनाम भगवन्‍ता सिंह

13.09.2018

पुनरीक्षणकर्ता की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री बृजेन्‍द्र चौधरी और विपक्षी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री संजय कुमार वर्मा उप‍स्थित आए। विपक्षी की ओर से विलम्‍ब माफी प्रार्थना पत्र के विरूद्ध आपत्ति प्रस्‍तुत की गयी।

उभय पक्ष को विलम्‍ब माफी प्रार्थना पत्र पर सुना गया।

यह पुनरीक्षण याचिका धारा-17 (1) (बी) उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्‍तर्गत परिवाद संख्‍या-303/2014 भगवन्‍ता सिंह बनाम इण्‍डसइण्‍ड बैंक में जिला फोरम, वाराणसी द्वारा पारित आदेश दिनांक 30.04.2015 व उसके अनुक्रम में पारित आदेश  दिनांक 02.11.2016 और दिनांक 19.05.2017 के विरूद्ध प्रस्‍तुत की गयी है। उपरोक्‍त आदेश दिनांक 30.04.2015 के द्वारा पुनरीक्षणकर्ता, जो परिवाद में विपक्षी है, के विरूद्ध परिवाद की कार्यवाही एकपक्षीय रूप से किए जाने का आदेश पारित किया गया है क्‍योंकि उक्‍त निश्चित तिथि पर परिवाद के विपक्षी, जो अब पुनरीक्षणकर्ता है, उपस्थित नहीं रहे हैं। इस आदेश दिनांक 30.04.2015 के बाद वि‍पक्षी परिवाद में उपस्थित होते रहे हैं, परन्‍तु आदेश दिनांक 30.04.2015 के विरूद्ध कोई पुनरीक्षण याचिका निर्धारित समय-सीमा के अन्‍दर प्रस्‍तुत नहीं की गयी है।

पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि परिवाद जिला फोरम के समक्ष ग्राह्य नहीं है और इस सम्‍बन्‍ध में विपक्षी ने आपत्ति दिनांक 13.11.2014 को प्रस्‍तुत की है, परन्‍तु जिला फोरम द्वारा उक्‍त आपत्ति का निस्‍तारण किए बिना परिवाद का निस्‍तारण किया जा रहा है। अत: यह पुनरीक्षण याचिका परिवाद के विपक्षी को प्रस्‍तुत करनी पड़ी है। अत: विलम्‍ब क्षमा कर पुनरीक्षण याचिका का निस्‍तारण गुणदोष के आधार पर किया जाए।

विपक्षी, जो उपरोक्‍त परिवाद के परिवादी हैं, के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला फोरम के समक्ष एकपक्षीय आदेश दिनांक 30.04.2015 को रिकाल करने का कोई प्रार्थना पत्र पुनरीक्षणकर्ता ने नहीं प्रस्‍तुत किया है। आदेश दिनांक 02.11.2016 के

.........................2

 

 

-2-

द्वारा जिला फोरम ने यह स्‍पष्‍ट किया है कि परिवाद की कार्यवाही एकपक्षीय रूप से की जाएगी फिर भी पुनरीक्षणकर्ता ने पुनरीक्षण याचिका समय-सीमा के अन्‍दर प्रस्‍तुत नहीं की है।

विपक्षी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि विलम्‍ब क्षमा करने हेतु उचित आधार नहीं है। यह पुनरीक्षण याचिका मात्र परिवाद के निस्‍तारण में विलम्‍ब करने के उद्देश्‍य से प्रस्‍तुत की गयी है।

हमने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।

आदेश दिनांक 30.04.2015 के द्वारा विपक्षी के विरूद्ध परिवाद की कार्यवाही एकपक्षीय रूप से किए जाने का आदेश जिला फोरम ने पारित किया है। माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा राजीव हितेन्‍द्र पाठक व अन्‍य बनाम अच्‍युत कशीनाथ कारेकर व अन्‍य IV (2011) सी0पी0जे0 35 (एस0सी0) के वाद में प्रतिपादित सिद्धान्‍त से स्‍पष्‍ट है कि जिला फोरम को अपने पूर्व पारित आदेश को रिकाल करने का अधिकार नहीं है फिर भी पुनरीक्षणकर्ता, जो परिवाद का विपक्षी है, परिवाद में उपस्थित होता रहा है और आदेश दिनांक 30.04.2015 के विरूद्ध कोई पुनरीक्षण याचिका निर्धारित समय-सीमा के अन्‍दर प्रस्‍तुत नहीं की है। ऐसी स्थिति में दो वर्ष से भी अधिक समय बीतने के बाद पुनरीक्षणकर्ता द्वारा प्रस्‍तुत इस पुनरीक्षण याचिका के विलम्‍ब को क्षमा कर पुनरीक्षण याचिका ग्रहण किया जाना उचित नहीं है। पुनरीक्षणकर्ता परिवाद में विधिक बाधा के सम्‍बन्‍ध में विधिक बिन्‍दु से जिला फोरम को अवगत कराने हेतु स्‍वतंत्र है।

उपरोक्‍त विवेचना के आधार पर हम इस मत के हैं कि पुनरीक्षण याचिका प्रस्‍तुत करने में जो विलम्‍ब हुआ है, उसे क्षमा करने हेतु उचित आधार नहीं है। अत: विलम्‍ब माफी प्रार्थना पत्र निरस्‍त किया जाता है और पुनरीक्षण याचिका कालबाधित होने के आधार पर ग्रहण नहीं की जाती है।

 

 

         (न्‍यायमूर्ति अख्‍तर हुसैन खान)           (महेश चन्‍द)       

            अध्‍यक्ष                     सदस्‍य           

जितेन्‍द्र आशु0

कोर्ट नं0-1

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. Mahesh Chand]
MEMBER

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