जिला मंच, उपभोक्ता संरक्षण अजमेर
श्रीमति विद्यावती पत्नी स्वर्गीय श्री राजेष कष्यप, निवासी- प्लाॅट नम्बर-36, टावर के पास, चन्द्रवरदाईनगर, अजमेर ।
प्रार्थीया
बनाम
निदेषक, भगवन्त यूनिवर्सिटी, सीकर रोड, अजमेर ।
अप्रार्थी
परिवाद संख्या 471/2013
समक्ष
1. गौतम प्रकाष षर्मा अध्यक्ष
2. विजेन्द्र कुमार मेहता सदस्य
3. श्रीमती ज्योति डोसी सदस्या
उपस्थिति
1.श्री गुलजीत सिंह छाबडा, अधिवक्ता, प्रार्थीया
2.श्री अषोक अग्रवाल,अधिवक्ता अप्रार्थी
मंच द्वारा :ः- आदेष:ः- दिनांकः- 04.02.2015
1. परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस तरह से है कि प्रार्थीया ने अप्रार्थी द्वारा समाचार पत्र में दिए गए विज्ञापन के आधार पर अप्रार्थी से सम्पर्क कर अपने पुत्र मोहित कष्यप को अप्रार्थी के यहां बी.टेक की ब्रांच एम.ई में प्रथम वर्ष के रूप में दाखिला दिलवाया । दाखिला दिलवाते समय अप्रार्थी ने प्रार्थीया को आष्वस्त किया कि उसका पुत्र जो कि सत्र प्रारम्भ होने के कुछ देर से दाखिला ले रहा है, के लिए अतिरिक्त कक्षाए लगवा देेंगे एवं उसे नोट्स भी उपलबध करवा देगें साथ ही यह भी आष्वासन दिया कि यदि उसके पुत्र को अप्रार्थी संस्थान की पढाई से सन्तुष्टी नही ंहोती है तो प्रार्थीया को उसके द्वारा जमा कराई गई फीस राषि पूरी लौटा देगें । अप्रार्थी द्वारा दिए इए इन आष्वासनों पर विष्वास करते हुए प्रार्थीया ने दिनांक 26.9.2012 को रू. 30,000/- जमा करा दिए । प्रार्थीया का पुत्र 5-6 दिन अप्रार्थी संस्थान में अध्ययन हेतु गया जहां सभी विषयों के कोर्स काफी पढाए जा चुके थे । अतः प्रार्थीया के पुत्र द्वारा अप्रार्थी को अनेकों बार आग्रह किया गया कि उसे नोट्स उपलब्ध कराए जावे तथा उसके लिए अतिरिक्त कक्षाओं का आयोजन करवाया जावे ताकि उसका अधूरा कोर्स पूरा हो सके लेकिन अप्रार्थी ने न तो अतिरिक्त कक्षाए लगाई और ना ही नोट्स उपलब्ध करवाए । अतः क्षुब्ध होकर प्रार्थीया के पुत्र ने अप्रार्थी संस्थान को छोडकर अन्यत्र प्रवेष ले लिया तथा जमा कराई गई फीस राषि लौटाए जाने की मांग की लेकिन अप्रार्थी ने फीस राषि नहीं लौटाई इसलिए यह परिवाद पेष किया गया है ।
2. अप्रार्थी की ओर से जवाब पेष हुआ जिसमें मात्र इस तथ्य को ही स्वीकार किया कि प्रार्थीया के पुत्र ने उनके संस्थान में परिवाद में वर्णितानुसार कोर्स के लिए प्रवेष लिया था,बाकी तथ्यों को गलत होना बतलाते हुए यह दर्षाया कि प्रार्थीया के पुत्र को अन्य छात्रों के समान अध्ययन हेतु सेवाएं उपलब्ध करवाई गई किन्तु कुछ दिनों बाद प्रार्थीया का पुत्र अप्रार्थी संस्थन से बिना पूर्व सूचना के अनुपस्थित हो गया तथा अप्रार्थी को प्रार्थीया द्वारा कोई सूचना नहीं दी गई । जवाब में यह भी दर्षाया कि जमा फीस पुनः लौटाए जाने के संबंध में विष्वविद्य़ालय अनुदान आयोग के नियम निर्धारित है एवं उन्हीं के अनुसार फीस लौटाई जा सकती है । प्रार्थीया के पुत्र ने स्वयं अपनी इच्छा से अप्रार्थी का संस्थान छोडा है अतः उसे फीस नहीं लौटाई जा सकती । अन्त में परिवाद खारिज होने योग्य दर्षाया है ।
3. परिवाद के समर्थन में प्रार्थीया का संक्षिप्त षपथपत्र प्रस्तुत हुआ एवं अप्रार्थी ने भी अपने जवाब के समर्थन में संक्षिप्त षपथपत्र पेष किया है साथ ही प्रार्थीया द्वारा जमा कराई गई फीस राषि की रसीद एवं अप्रार्थी को दिए गए नोटिस तथा ।सस प्दकपं ब्वनदबपस थ्वत ज्मबीदपबंस म्कनबंजपवद ।बजण् 1987 की धारा 10 की प्रति पेष की है ।
4. जहां तक प्रार्थीया के पुत्र ने अप्रार्थी संस्थान में परिवाद में दर्षाए अनुसार प्रवेष लिया, तथ्य विवादित नहीं है एवं इस हेतु फीस के रू. 30,000/- की राषि जमा कराए जाने का तथ्य अविवादित है ।
5. निर्णय हेतु हमारे समक्ष यहीं बिन्दु है कि क्या परिवाद की चरण संख्या 2 में वर्णित अनुसार जो आष्वासन व विष्वास अप्रार्थी संस्थान ने प्रार्थीया को दिलाया उस आष्वासन अनुसार अप्रार्थी संस्थान ने प्रार्थीया के पुत्र हेतु अतिरिक्त कक्षाएं लगाई और ना ही नोट्स उपलब्ध करवाए और यदि प्रार्थीया का पुत्र अप्रार्थी संस्थान की पढाई से संन्तुष्ट नही ंहुआ तो जमा कराई गई राषि प्रार्थीया को लोटा दी जावेगी जो अप्रार्थी संस्थान ने नहीं लौटा कर सेवा में कमी कारित की है ?
6. उपरोक्त कायम किए गए निर्णय बिन्दुओं पर पक्षकारान के अधिवक्तागण को सुना ।
7. अधिवक्ता प्रार्थीया की बहस है कि प्रार्थीया के पुत्र को प्रवेष दिलाया उसके पूर्व से ही कक्षाएं षुरू हो चुकी थी अतः अप्रार्थी द्वारा प्रार्थीया को अतिरिक्त कक्षाए व नोट्स उपलब्ध करवाए जाने एव यदि प्रार्थीया का पुत्र अप्रार्थी संस्थान में पढाई से सन्तुष्ट नहीं होगा तो पूरी फीस लौटा दी जावेगी के आष्वासन के बाद ही प्रवेष लिया एवं फीस जमा कराई । अधिवक्ता की आगे बहस है कि प्रार्थीया का पुत्र 5-6 दिन तक अप्रार्थी संस्थान में अध्ययन हेतु गया लेकिन तब तक सभी विषयों के कोर्स काफी पढाए जा चुके थे अतः उसके द्वारा अ्रप्रार्थी संस्थान को जैसा कि उन्होने आष्वासन दिया उसके अनुसार न तो अतिरिक्त कक्षाए लगाई और ना ही बार बार अनुरोध के नोट्स उपलब्ध करवाए अतः अप्रार्थी के व्यवहार से क्षुब्ध होकर अप्रार्थी संस्थान को छोडकर अन्यत्र प्रवेष ले लिया । चूंकि प्रार्थीया के पुत्र ने अप्रार्थी संस्थान द्वारा दिए गए आष्वासन व विष्वास अनुसार अतिरिक्त कक्षाए नहीं लगाई तथा नोटिस उपलब्ध नहीं कराए अतः प्रार्थीया के पुत्र को यह संस्थान छोडना पडा एवं स्वयं अप्रार्थी द्वारा दिए गए आष्वासन अनुसार प्रार्थीया को फीस पुनः लौटाई जानी थी वह भी नहीं लौटाई । अतः अप्रार्थी के विरूद्व सेवा में कमी का मामला सिद्व है । अधिवक्ता प्रार्थीया द्वारा यह भी दर्षाया कि विष्वविद्यालय अनुदान आयोग के नियम व इस संबंध में जारी दिषा निर्देषानुसार जहां कोई विद्यार्थी संस्थान छोड देता है तो उसे जमा कराई गई फीस में से मात्र रू. 1000/- प्रोसेसिंग फीस राषि काटने के बाद षेष राषि वापस लौटा देनी चाहिए जो अप्रार्थी संस्थान ने नहीं लौटाई है । उनकी यह भी बहस है कि ।सस प्दकपं ब्वनदबपस थ्वत ज्मबीदपबंस म्कनबंजपवद ।बजण् 1987 की धारा 10 व विषेषकर 10 (द) में वर्णितानुसार तकनीकी षिक्षण से संबंधित संस्थान व्यावसायिक गतिविधियों से दूर रहेगें, के आधार पर दर्षाया कि प्रार्थीया को फीस नहीं लौटाई जाकर अप्रार्थी संस्थान ने सेवा में कमी की है । अपने तर्को के समर्थन में दृष्टान्त 2011क्छश्र;ब्ब्द्ध1 ैंतअंअचतममज ैपदही टे च्तपदबपचंस स्ंसं स्ंरचंज त्ंप प्देजपजनजम व िम्दहपदममतपदह -ज्मबीदवसवहल पेष किया है ।
8. अधिवक्ता अप्रार्थी की बहस है कि अप्रार्थी संस्थान ने प्रार्थीया को उसके पुत्र के लिए अतिरिक्त कक्षाएं लगाने व नोट्स उपलब्ध कराने एवं यदि वह पढाई से सन्तुष्ट नहीं होता तो फीस लौटाई जावेगी आदि आष्वासन के तथ्य जो दर्षाए है वे गलत है एवं ऐसे कोई आष्वासन प्रार्थीया को नहीं दिए गए थे । उनकी यह भी बहस है कि ऐसे आष्वासन अप्रार्थी संस्थान द्वारा दिए गए, तथ्यों को सिद्व करने का भार प्रार्थीया पर है लेकिन ऐसी कोई साक्ष्य पेष नहीं हुई है । अधिवक्ता की आगे बहस है कि स्वयं प्रार्थीया के कथन व परिवाद के तथ्योनुसार प्रार्थीया के पुत्र ने इस संस्थान में प्रवेष लिया उससे पूर्व से ही कक्षाएं चालू हो चुकी थी एवं स्वयं प्रार्थीया के पुत्र ने ही 5-6 दिन बाद आना बन्द कर दिया था इस तरह से कोर्स पहले से ही षुरू हो चुका था एवं उसके द्वारा संस्थान छोड दिए जाने के बाद उसकी यह सीट रिक्त रही एवं उक्त सीट नहीं भरी गई । अतः।प्ब्ज्म् के परिपत्र अनुसार भी प्रार्थीया फीस राषि प्राप्त करने की अधिकारणी नही ंहै एवं परिवाद खारिज होने योग्य दर्षाया ।
9. हमने बहस पर गौर किया । परिवाद में जिस तरह का वर्णन प्रार्थीया की ओर से हुआ है यथा प्रार्थीया के पुत्र ने सत्र प्रारम्भ होने के कुछ देर बाद दाखिला लिया था एवं प्रार्थीया के अनुसार अप्रार्थी संस्थान द्वारा प्रार्थीया को इस हेतु आष्वस्त किया गया था कि अप्रार्थी संस्थान प्रार्थीया के पुत्र के लिए अतिरिक्त कक्षाएं लगाएगा व नोट्स भी उपलब्ध करवाएगा । परिवाद की चरण संख्या 2 में वर्णित अनुसार अप्रार्थी संस्थान ने यह भी आष्वासन व विष्वास दिलाया कि यदि प्रार्थीया के पुत्र को संस्थान की पढाई से संन्तुष्टी नहीं होती है तो उसे पूरी फीस वापस लौटा दी जावेगी । परिवाद की चरण संख्या 3 में वर्णित अनुसार प्रार्थीया का पुत्र मात्र 5-6 दिन ही अप्रार्थी संस्थान में अध्ययन हेतु गया तथा सभी विषयों के कोर्स काफी पढाए जा चुके थे एवं प्रार्थीया के पुत्र के लिए अतिरिक्त कक्षाएं तथा नोट्स आष्वासन अनुरूप उपलब्ध नहीं करावाए जाने से क्षुब्ध होकर प्रार्थीया के पुत्र ने अप्रार्थी संस्थान छोड दिया एवं उसने अन्यत्र प्रवेष ले लिया । एक तरह से प्रार्थीया की ओर से अप्रार्थी के विरूद्व उपर वर्णित अनुसार ही सेवा में कमी दर्षाई है ।
10. इस संबंध में हमारी विवेचना है कि अप्रार्थी संस्थान ने ऐसा कोई आष्वासन देने के संबंध में प्रार्थीया का कथन मात्र ही है एवं प्रार्थीया के इस कथन का समर्थन का किसी अन्य साक्ष्य से नहीं है । अप्रार्थी संस्थान ने ऐसा आष्वासन प्रार्थीया को देने के संबंध में इन्कार किया है । प्रकरण में यह तथ्य स्वीकृतषुदा है कि प्रार्थीया के पुत्र ने कोर्स प्रारम्भ होने के कुछ देर से दाखिला लिया था । अतः हमारे विनम्र मत में प्रार्थीया के कथन मात्र से एवं बिना किसी अन्य साक्ष्य के समर्थन के अभाव में प्रार्थीया का कथन कि अप्रार्थी संस्थान ने प्रार्थीया के पुत्र के संबंध में अतिरिक्त कक्षाए लगाने व नोटिस आदि उपलब्ध कराने तथा यदि प्रार्थीया का पुत्र अप्रार्थी संस्थान की पढाई से सन्तुष्ट नहीं होता है तो फीस पुनः लौटा दी जावेगी, आष्वासन दिया एवं ऐसे आष्वासन के आधार पर प्रवेष लिया सिद्व होना नहीं पाते है ।
11. अधिवक्ता प्रार्थीया ने फीस पुनः लौटाए जाने के संबंध में अन्य आधार ।प्ब्ज्म्( ।सस प्दकपं ब्वनदबपस वित ज्मबीदपबंस म्कनबंजपवद) के पब्लिक नोटिस का लिया है एवं उनकी ओर से दृष्टान्त 2011क्छश्र;ब्ब्द्ध1 ैंतअंअचतममज ैपदही टे च्तपदबपचंस स्ंसं स्ंरचंज त्ंप प्देजपजनजम व िम्दहपदममतपदह -ज्मबीदवसवहल पेष किया है । हमने इस संबंध में भी गौर किया । ।प्ब्ज्म् द्वारा जारी पब्लिक नोटिस को दृष्टान्त ैंतअंअचतममज ैपदही के निर्णय के पैरा संख्या 5 में उद्वरत किया हुआ है । इसके अध्ययन से पहली श्रेणी में वे विद्यार्थी आते है जो कोर्स ष्षुरू होने से पहले ही संस्थान छोडते है और दूसरी श्रेणी में वे विद्यार्थी आते है जो कोर्स ज्वाईन करने के बाद संस्थान छोडते है तथा उनके द्वारा कोर्स छोडने से रिक्त हुई सीट प्रवेष की अंतिम तिथी तक भर जाती है तो उन्हें फीस पुनः प्राप्त करने का अधिकारी माना गया है । हस्तगत प्रकरण में प्रार्थीया के पुत्र ने अध्ययन ष्षुरू हो जाने के कुछ दिनों बाद कोर्स ज्वाईन करना दर्षाया है तथा प्रार्थीया का यह भी कथन नहीं है कि उसके द्वारा खाली हुई सीट अप्रार्थी संस्थान ने पुनः भर ली है । ।प्ब्ज्म् के उपर वर्णित पब्लिक नोटिस के अनुसार ऐसी स्थिति प्रवेष की अंतिम तिथी तक ही रहेगी, पाई गई है । इस तरह से इस आधार पर भी प्रार्थीया अपने पुत्र के लिए जमा कराई गई फीस राषि पुनः प्राप्त करने की अधिकारणी नहीं पाई जाती है ।
12. उपरोक्त सारे विवेचन से हमारा निष्कर्ष है कि प्रार्थीया की ओर से निर्णय बिन्दु संख्या 1 सिद्व नहीं हुआ है एवं अप्रार्थी के विरूद्व सेवा में कमी का मामला सिद्व नहीं होना पाया गया है ।अतः प्रार्थीया का परिवाद स्वीकार होने योग्य नहीं होने से खारिज होने योग्य है एवं आदेष है कि
-ःः आदेष:ः-
13. प्रार्थीया का परिवाद स्वीकार होने योग्य नहीं होने से अस्वीकार किया जाकर खारिज किया जाता है । खर्चा पक्षकारान अपना अपना स्वयं वहन करें ।
(विजेन्द्र कुमार मेहता) (श्रीमती ज्योति डोसी) (गौतम प्रकाष षर्मा)
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14. आदेष दिनांक 04.02.2015 को लिखाया जाकर सुनाया गया ।
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