राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
परिवाद संख्या-366/2019
(मौखिक)
डा0 अजहर आसिफ अंसारी पुत्र जलील ए0 अंसारी, निवासी-वजीरुनिसा मदर केयर नर्सिंग होम, ताजमहल काम्पलेक्स, चौरी रोड, बदोही-221401 उत्तर प्रदेश
........................परिवादी
बनाम
बाया वेवर लि0, कारपोरेट आफिस: 033 ग्राउण्ड फ्लोर, टावर बी ग्लोबल बिजनेस पार्क, एम0जी0 रोड गुरगांव-122001
रजिस्टर्ड आफिस- एल0जी0एफ0-119 (बी-7)
वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर, बाबर रोड कनॉट प्लेस, नई दिल्ली-110001
...................विपक्षी
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
2. माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
परिवादी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
विपक्षी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 24.04.2023
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
पुकार हुई। उभय पक्ष की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। प्रस्तुत परिवाद विगत 04 वर्षों से लम्बित है। अनेकों तिथियों पर पूर्व में भी स्थगित किया जाता रहा। दिनांक 11.01.2023 को प्रस्तुत परिवाद में निम्न आदेश पारित किया गया था:-
''दिनांक:- 11-01-2023
पत्रावली प्रस्तुत हुई। परिवादी की ओर से विद्धान अधिवक्ता उपस्थित हैं। विपक्षी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। प्रस्तुत परिवाद विगत 04 वर्षों से अधिक समय से लम्बित है। अनेकों तिथियों पर सूचीबद्ध होता रहा, परंतु विपक्षी के विद्धान अधिवक्ता श्री अशोक कुमार राय का नाम वाद सूची में उल्लिखित होने के उपरान्त भी वे उपस्थित नहीं हो रहे हैं। तदनुसार विपक्षी कम्पनी के निदेशक को अगली निश्चित तिथि पर उपस्थित होने हेतु
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कार्यालय/निबंधक राज्य आयोग द्वारा समन/नोटिस 04 सप्ताह में प्रेषित किया जाये। संबंधित नोटिस के संबंध में समुचित कार्यवाही परिवादी के विद्धान अधिवक्ता द्वारा 02 सप्ताह में पूर्ण की जाये।
पत्रावली सुनवाई हेतु दिनांक 24-04-2023 को प्रथम 20 वादों में सूचीबद्ध हो।''
उक्त आदेश के अनुपालन में कार्यालय द्वारा निम्न आख्या दिनांक 03.02.2023 उल्लिखित पायी गयी:-
''प्रत्यर्थी को भेजी गयी सूचना बिना तामीला वापस प्राप्त हुयी, जो पत्रावली पर संलग्न है।''
प्रस्तुत परिवाद इस न्यायालय के सम्मुख धारा-17 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत परिवादी डा0 अजहर आसिफ अंसारी द्वारा विपक्षी बाया वेवर लि0 के विरूद्ध योजित किया गया।
हमारे द्वारा प्रस्तुत परिवाद का सम्यक परीक्षण एवं परिशीलन किया गया। प्रस्तुत परिवाद इस न्यायालय के सम्मुख निम्न अनुतोष प्रदान किये जाने हेतु योजित किया गया:-
“a. pass an order against the Opposite Party to refund the amount of Rs.7 Lakh as paid by Complainant as consideration amount for the said unit with 24% interest per annum from the date of payment.
b. award compensation of Rs. 10,00000/-(Rupee Ten Lakh Only) towards mental torture and physical harassment in favor of the Complainant,
c. give the direction to Opposite Party for making payment a sum of Rs.50,000/-(Rupee Fifty Thousand Only) as a litigation fee,
d. give the direction to Opposite Party to make the payment of Rs. 20,000/-(Rupee Twenty Thousand Only) towards the charges of the sent legal notice.
e. Direct the Opposite Parties to pay interest @ 24% on the aforementioned amount from the date of the Complaint case till the date of payment.
f. pass any other order to which the learned forum may fit in eye of law in the favor of the Complainant.”
परिवादी द्वारा परिवाद पत्र में यह कथन किया गया कि वर्ष 2014 में विपक्षी कम्पनी द्वारा मल्टी स्टोरी बिल्डिंग के निर्माण हेतु
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परिवादी से सम्पर्क किया गया। उपरोक्त मल्टी स्टोरी बिल्डिंग का निर्माण डी0एल0एफ0 गार्डेन सिटी, लखनऊ रायबरेली रोड, जिला लखनऊ में प्रस्तावित किया गया तथा परिवादी को विपक्षी कम्पनी द्वारा यह प्रस्ताव दिया गया कि उपरोक्त प्रस्तावित मल्टी स्टोरी बिल्डिंग में भवन बुक कराने पर 1,00,000/-रू0 की छूट प्रदान की जावेगी। तदनुसार परिवादी द्वारा 7,00,000/-रू0 की धनराशि दिनांक 07.06.2014 को बुकिंग एमाउण्ट के रूप में जमा की गयी।
परिवादी का कथन है कि परिवादी द्वारा काफी इन्तजार के बाद भी विपक्षी कम्पनी के किसी कर्मचारी द्वारा परिवादी से करार सम्पादित किये जाने हेतु सम्पर्क नहीं किया गया, इसलिए परिवादी स्वयं विपक्षी द्वारा दिये गये पते पर पहुँचा और वहॉं पाया कि विपक्षी द्वारा कोई भी निर्माण कार्य नहीं किया गया है। इस संबंध में पता करने पर विपक्षी द्वारा परिवादी से बताया गया कि प्रोजेक्ट शीघ्र ही शुरू किया जावेगा।
परिवादी का कथन है कि बुकिंग के समय विपक्षी कम्पनी द्वारा यह बताया गया था कि परिवादी द्वारा उक्त प्रोजेक्ट में भवन हेतु 64,42,500/-रू0 जमा करना होगा। परिवादी द्वारा काफी प्रयास किया गया तथा यह कि स्थल निरीक्षण करने पर पाया गया कि विपक्षी कम्पनी द्वारा प्रोजेक्ट का कार्य शुरू नहीं कराया गया। इस संबंध में परिवादी द्वारा विपक्षी को लिखित रूप में सूचना दी गयी तथा अनुस्मारक भी भेजा गया, परन्तु विपक्षी की ओर से कोई कार्यवाही नहीं की गयी। अत: क्षुब्ध होकर परिवादी द्वारा विपक्षी के विरूद्ध इस न्यायालय के सम्मुख परिवाद योजित करते हुए वांछित अनुतोष की मांग की गयी।
विपक्षी द्वारा लिखित कथन प्रस्तुत करते हुए कथन किया गया कि परिवादी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है। परिवादी द्वारा कुछ पैसा
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दिनांक 07.06.2014 को विपक्षी कम्पनी के यहॉं जमा किया गया था तथा परिवाद दिनांक 06.12.2019 को लगभग 05 वर्ष बाद विलम्ब से प्रस्तुत किया गया।
विपक्षी द्वारा परिवाद पत्र के तथ्यों का विरोध करते हुए कथन किया गया कि परिवादी द्वारा परिवाद मनगढ़न्त तथ्यों के आधार पर प्रस्तुत किया गया है। परिवाद निरस्त होने योग्य है।
हमारे द्वारा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का सम्यक परिशीलन व परीक्षण किया गया।
पत्रावली के परिशीलन से यह विदित होता है कि परिवादी द्वारा विपक्षी की योजना में भवन हेतु 7,00,000/-रू0 का भुगतान किया गया, परन्तु विपक्षी द्वारा निर्माण स्थल पर किसी प्रकार का कोई निर्माण कार्य नहीं कराया गया। परिवादी द्वारा काफी प्रयास किया गया, परन्तु विपक्षी द्वारा कोर्इ कार्यवाही नहीं की गयी तथा न तो भवन का कब्जा दिया गया और न ही परिवादी की जमा धनराशि वापस की गयी। परिवादी द्वारा अपना परिवाद शपथ पत्र एवं अभिलेखों से पुष्ट किया गया है, जिस पर अविश्वास करने का कोई कारण पीठ नहीं पाती है। अत: परिवादी का परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य है।
तदनुसार प्रस्तुत परिवाद स्वीकार करते हुए विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि विपक्षी द्वारा परिवादी को जमा धनराशि 7,00,000/-रू0 (सात लाख रूपये) मय 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज धनराशि जमा किये जाने की तिथि से वास्तविक भुगतान की तिथि तक दो माह की अवधि में अदा किया जावे। इसके साथ ही विपक्षी द्वारा परिवादी को क्षतिपूर्ति के रूप में 2,00,000/-रू0 (दो लाख रूपये) एवं परिवाद व्यय के रूप में 50,000/-रू0 (पचास हजार रूपये) दो माह की अवधि में अदा किया जावे।
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यदि उपरोक्त धनराशि उपरोक्त उल्लिखित अवधि में अदा नहीं की जाती है तब देय धनराशि पर ब्याज की देयता 15 प्रतिशत वार्षिक की रूप में देय होगी।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (विकास सक्सेना)
अध्यक्ष सदस्य
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1