Uttar Pradesh

StateCommission

A/1298/2016

Future Generali India Life Insurance Co. Ltd - Complainant(s)

Versus

Basanti Devi - Opp.Party(s)

Manu Dixit

10 Apr 2019

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/1298/2016
( Date of Filing : 28 Jun 2016 )
(Arisen out of Order Dated 29/04/2016 in Case No. C/100/2013 of District Aligarh)
 
1. Future Generali India Life Insurance Co. Ltd
6th Floor Tower 3 India Bulls Finance Centre Senapati Bapat Marg Elphinstone Road (West) Mumbai 400013 Maharashtra
...........Appellant(s)
Versus
1. Basanti Devi
H.No.159 Nagla Mehtab Khair Road Distt. Aligarh
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN PRESIDENT
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 10 Apr 2019
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखन

अपील संख्‍या-1298/2016

(सुरक्षित)

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, अलीगढ़ द्वारा परिवाद संख्‍या 100/2013 में पारित आदेश दिनांक 29.04.2016 के विरूद्ध)

Future Generali India Life Insurance Company Limited, 6th Floor, Tower 3, India Bulls Finance Centre, Senapati Bapat Marg, Elphinstone Road (West), Mumbai-400013, Maharashtra.

Also at

Future Generali India Life Insurance Company Limited, 1st Floor, 2/471, Vishnu Puri, Ramghat Road, Aligarh-202001.                           

                        ...................अपीलार्थीगण/विपक्षीगण

बनाम

Basanti Devi,

W/o Late Deep Chandra,

H. No. 159, Nagla Mehtab

Khair Road, Dist Aligarh.

                           ......................प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी

समक्ष:-

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष।

अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री मनु दीक्षित के सहयोगी                              

                              श्री अर्जुन कृष्‍णा,                               

                              विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री नवीन कुमार तिवारी,                                

                          विद्वान अधिवक्‍ता।

दिनांक: 28.05.2019  

मा0 न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष द्वारा उदघोषित

निर्णय

परिवाद संख्‍या-100/2013 श्रीमती बसन्‍ती देवी बनाम शाखा प्रबन्‍धक फ्यूचर जनरली इण्डिया लाइफ इन्‍श्‍योरेन्‍स कं0लि0 व एक अन्‍य में जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष  फोरम,  अलीगढ़  द्वारा

 

 

-2-

पारित निर्णय और आदेश दिनांक 29.04.2016 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्‍तर्गत राज्‍य आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की गयी है।

जिला फोरम ने आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा उपरोक्‍त परिवाद आंशिक रूप से स्‍वीकार करते हुए निम्‍न आदेश पारित किया है:-

''परिवादनी का परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध आंशिक रूप से स्‍वीकार किया जाता है तथा विपक्षीगण 1 व 2 को आदेश दिया जाता है कि वे परिवादनी को 3,00,500/-रू0 का भुगतान करें। मानसिक व शारीरिक क्षति के रूप में 2,500/-रू0 तथा वाद व्‍यय के रूप में 2,500/-रू0 का भुगतान करें। उपरोक्‍त आदेश का पालन एक माह में किया जावे, यदि एक माह के अन्‍दर विपक्षीगण, परिवादी को उपरोक्‍त सम्‍पूर्ण धनराशि का भुगतान नही करते हैं, तो निर्णय के दिनांक से वसूलयावी के दिनांक तक 6 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्‍याज परिवा‍दनी, विपक्षीगण से प्राप्‍त करने की हकदार होगी। उपरोक्‍त आदेश के पालन के लिये विपक्षीगण संयुक्‍त रूप से तथा पृथक-पृथक रूप से जिम्‍मेदार होंगे।''

जिला फोरम के निर्णय से क्षुब्‍ध होकर परिवाद के विपक्षीगण ने यह अपील प्रस्‍तुत की है।

अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री मनु दीक्षित के सहयोगी श्री अर्जुन कृष्‍णा और प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता  श्री  नवीन

 

 

-3-

कुमार तिवारी उपस्थित आये हैं।

मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्‍तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय व आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।

अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्‍त सुसंगत तथ्‍य इस प्रकार हैं  कि प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी ने परिवाद अपीलार्थी/विपक्षीगण के विरूद्ध  जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्‍तुत किया है कि अपीलार्थी/विपक्षीगण की बीमा कम्‍पनी के अभिकर्ता उसके पति से उनके जीवनकाल में घर पर मिले और उन्‍हें विश्‍वास दिलाया कि प्रश्‍नगत बीमा पालिसी अत्‍यधिक लाभकारी है। इस बीमा पालिसी पर 15 साल बाद 12,00,000/-रू0 मिलेगा। अत: अभिकर्ता की बातों पर विश्‍वास कर उन्‍होंने अभिकर्ता से बीमा कराया और अपने राशन कार्ड की फोटो प्रति आदि कागजात अभिकर्ता को दिया। अभिकर्ता ने प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के पति का मेडिकल परीक्षण भी कराया और उसके बाद बीमा पालिसी सं0 00789268               दिनांक 19.03.2011 को बीमा राशि 1,53,000/-रू0 की घर पर आकर दिया। साथ ही पालिसी की जमा प्रीमियम धनराशि 11,949/-रू0 की रसीद भी दिया।

परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी का कथन है कि अपीलार्थी/विपक्षीगण की बीमा कम्‍पनी के अभिकर्ता ने प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के पति को स्‍वस्‍थ, निरोगी व हष्‍ट-पुष्‍ट पाये जाने पर दूसरा  बीमा  किया  और  पुन:  समस्‍त  औपचा‍रिकतायें

 

-4-

मेडिकल आदि कराया तथा पालिसी सं0 01030194 दिनांक 04.09.2012 बीमा राशि 1,47,500/-रू0 की घर पर आकर दिया। इस पालिसी की प्रीमियम धनराशि 11,633/-रू0 की रसीद भी दिया।

परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी का कथन है कि दिनांक 05.11.2012 को प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के पति बीमाधारक की यकायक घर पर मृत्‍यु हो गयी। तब प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी ने अपने पति की दोनों पालिसी की नामिनी के रूप में अपीलार्थी/विपक्षी संख्‍या-1 के यहॉं बीमा क्‍लेम प्रस्‍तुत किया और सारी औपचारिकतायें पूरी की तथा आवश्‍यक अभिलेख जमा किये, परन्‍तु अपीलार्थी/विपक्षी संख्‍या-1 व उनके अधीनस्‍थों ने 30,000/-रू0 रिश्‍वत की मांग की और रिश्‍वत न दिये जाने के कारण प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के सही क्‍लेम को गैर कानूनी ढंग से गलत आधार पर यह कहते हुए निरस्‍त कर दिया कि बीमाधारक पालिसी दिनांक के पहले से टी0बी0 की बीमारी से पीडि़त थे और उनका इलाज चल रहा था।

परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी का कथन है कि उसने अपीलार्थी/विपक्षीगण की बीमा कम्‍पनी के पत्र दिनांक 31.12.2012, जिसके द्वारा दोनों पालिसी का बीमा दावा अस्‍वीकार किया गया था, प्राप्‍त होने के बाद अपीलार्थी/विपक्षीगण को पंजीकृत डाक से नोटिस भिजवाया। नोटिस अपीलार्थी/विपक्षी संख्‍या-1 पर तामील हुआ और अपीलार्थी/विपक्षी संख्‍या-2 ने नोटिस वापस  करा

 

-5-

दिया, परन्‍तु दोनों विपक्षीगण ने नोटिस का कोई जवाब नहीं दिया। अत: विवश होकर प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी ने दोनों बीमा पालिसी की बीमित धनराशि दिलाये जाने हेतु परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्‍तुत किया है और क्षतिपूर्ति व वाद व्‍यय की भी मांग की है।

जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से लिखित कथन प्रस्‍तुत कर कहा गया है कि परिवाद गलत कथन के साथ प्रस्‍तुत किया गया है। प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी का बीमा दावा पत्र दिनांक 31.12.2012 के द्वारा उचित आधार पर रिपुडिएट किया गया है। परिवाद जिला फोरम की स्‍थानीय अधिकारिता से परे है।

लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि उन्‍होंने सेवा में कोई कमी नहीं की है।

जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्‍ध साक्ष्‍यों पर विचार करने के उपरान्‍त यह माना है कि पत्रावली पर उपलब्‍ध साक्ष्‍य से यह साबित नहीं होता है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के पति मृतक दीप चन्‍द्र की मृत्‍यु टी0बी0 के कारण हुई थी। जिला फोरम ने अपने निर्णय में यह भी उल्‍लेख किया है कि यह तथ्‍य भी साबित नहीं होता है कि मृतक ने बीमा पालिसियॉं लेते समय अपनी बीमारी को छिपाया था। मृतक शराब पीता था, इस सम्‍बन्‍ध में भी कोई साक्ष्‍य पत्रावली पर उपलब्‍ध नहीं है। अत: जिला फोरम ने यह माना है कि अपीलार्थी/विपक्षीगण ने प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के पति की दोनों बीमा पालिसी के सम्‍बन्‍ध में प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी का बीमा दावा गलत आधार पर विधि विरूद्ध ढंग से निरस्‍त  किया  है

 

-6-

और सेवा में कमी की है। अत: जिला फोरम ने अपीलार्थी/विपक्षीगण के विरूद्ध परिवाद आंशिक रूप से स्‍वीकार करते हुए आदेश पारित किया है, जो ऊपर अंकित है।

अपीलार्थी/विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय व आदेश साक्ष्‍य और विधि के विरूद्ध है। प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के पति दोनों बीमा पालिसी का प्रस्‍ताव फार्म भरने व पालिसी के प्राप्‍त करने के पहले से टी0बी0 रोग से ग्रस्‍त थे, परन्‍तु उन्‍होंने अपनी इस बीमारी के सम्‍बन्‍ध में गलत सूचना देकर बीमा पालिसी प्राप्‍त की है। अत: अपीलार्थी/विपक्षीगण की बीमा कम्‍पनी को प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के दोनों बीमा दावा को रिपुडिएट करने का अधिकार है।  

प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय व आदेश साक्ष्‍य और विधि के अनुकूल है। प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के पति को प्रश्‍नगत दोनों बीमा पालिसी के पूर्व टी0बी0 की बीमारी होना प्रमाणित नहीं है और उन्‍होंने अपनी बीमारी को छिपाकर प्रश्‍नगत दोनों बीमा पालिसी प्राप्‍त नहीं किया है। दोनों बीमा पालिसी जारी करने के पहले प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के पति की डाक्‍टरी जांच भी करायी गयी है। अत: ऐसी स्थिति में अपीलार्थी/विपक्षीगण की बीमा कम्‍पनी द्वारा पूर्व की बीमारी के आधार पर प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के पति की दोनों बीमा पालिसी का बीमा दावा रिपुडिएट किया जाना विधि विरूद्ध है। अत: जिला फोरम ने परिवाद स्‍वीकार कर कोई गलती नहीं की है।

 

-7-

मैंने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।

अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के पति की दोनों बीमा पालिसियों का बीमा दावा पत्र दिनांक 31.12.2012 के द्वारा रिपुडिएट किया गया है, जिसके अनुसार प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के पति ने अपनी पूर्व की बीमारी के सम्‍बन्‍ध में गलत सूचना दी है और पूर्व में चिकित्‍सीय अवकाश लेने के सम्‍बन्‍ध में भी गलत सूचना दी है और इसी आधार पर अपीलार्थी/विपक्षीगण की बीमा कम्‍पनी ने प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के पति द्वारा सारवान तथ्‍य छिपाने के आधार पर प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी का दोनों बीमा दावा निरस्‍त किया है।

प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी ने परिवाद पत्र में स्‍पष्‍ट रूप से यह कथन नहीं किया है कि उसके पति दोनों प्रश्‍नगत बीमा पालिसियों का प्रस्‍ताव भरने के पहले ट्यूबर कुलोसिस की बीमारी अथवा अन्‍य किसी बीमारी से बीमार हुए थे। परिवाद पत्र में प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी ने मात्र यह कहा है कि दोनों बीमा पालिसी उसके पति का चिकित्‍सीय परीक्षण कराकर बीमा कम्‍पनी ने जारी की थी।

अपीलार्थी/विपक्षीगण ने लिखित कथन के PARA WISE REPLY TO THE COMPLAINT की धारा-1 (e) में कहा है कि बीमाधारक की मृत्‍यु पालिसी जारी करने के दो साल के अन्‍दर हो गयी है। इस कारण अपीलार्थी/विपक्षीगण ने मृतक की मृत्‍यु की जांच करायी तो जांच में पता चला कि मृतक बीमा प्रस्‍ताव भरने के पहले से Tuberculosis की बीमारी से  पीडि़त  था  और  उसका

 

-8-

इलाज चल रहा था। उसने लगातार 07 दिन से अधिक मेडिकल लीव वर्ष 2005 से 2011 के बीच ली थी।

लिखित कथन की धारा-1 (e) में इन्‍वेस्‍टीगेशन रिपोर्ट एनेक्‍जर-G के रूप में संलग्‍न की गयी है। इन्‍वेस्‍टीगेशन रिपोर्ट में इन्‍वेस्‍टीगेटर द्वारा यह निष्‍कर्ष अंकित किया गया है कि बीमाधारक शराब का आदी था और वह शराब से सम्‍बन्धित बीमारी से पीडि़त था। उसका इलाज जिला अस्‍पताल, अलीगढ़ में हुआ है और उसके अवकाश के अभिलेखों से स्‍पष्‍ट है कि उसने वर्ष 2005 से 2011 तक मेडिकल ग्राउण्‍ड पर 10 बार छुट्टियॉं ली थी। इन्‍वेस्‍टीगेटर ने अपनी आख्‍या के साथ प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के बीमाधारक पति की सेवा के लीव एकाउण्‍ट की प्रतियॉं संलग्‍न की है, जिसके अनुसार वह दिनांक 18.07.2005 से दिनांक 08.08.2005 तक 22 दिन चिकित्‍सीय अवकाश पर रहा। पुन: दिनांक 31.03.2007 से दिनांक 28.04.2007 तक 29 दिन चिकित्‍सीय अवकाश पर रहा। पुन: दिनांक 01.06.2011 से दिनांक 04.08.2011 तक 85 दिन चिकित्‍सीय अवकाश पर रहा है। इस प्रकार इन्‍वेस्‍टीगेटर की आख्‍या और प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के पति की सेवा पुस्तिका के चिकित्‍सा से सम्‍बन्धित अभिलेख से यह स्‍पष्‍ट है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के पति चिकित्‍सीय अवकाश पर 07 दिन से अधिक समय तक रहे हैं, परन्‍तु उन्‍होंने दोनों बीमा पालिसी के प्रस्‍ताव में अंकित इस प्रश्‍न कि ''क्‍या आप अपने कार्यस्‍थल से मेडिकल ग्राउण्‍ड पर लगातार 07 दिन से अधिक अनुपस्थित रहे हैं''

 

-9-

का उत्‍तर '''' में देकर वास्‍तविकता को छिपाया है। अत: यह मानने हेतु उचित और युक्तिसंगत आधार है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के पति ने दोनों बीमा पालिसियों में अपने चिकित्‍सीय अवकाश पर रहने के महत्‍वपूर्ण तथ्‍य को छिपाकर बीमा पालिसी प्राप्‍त की है। ऐसी स्थिति में यह मानने हेतु उचित आधार है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के पति ने महत्‍वपूर्ण तथ्‍य को छिपाकर प्रश्‍नगत दोनों बीमा पालिसियॉं प्राप्‍त की हैं। अत: माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा P.C. Chacko and Another V. Chairman, Life Insurance Corporation of India and others AIR 2008 SC 424 एवं Life Insurance Corporation of India & Ors. Vs. Smt. Asha Goel & Anr. (2001) ACJ 806 के निर्णयों में प्रतिपादित सिद्धान्‍त के आधार पर अपीलार्थी/विपक्षीगण की बीमा कम्‍पनी को प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी का बीमा दावा अस्‍वीकार करने हेतु उचित आधार है।

बीमा प्रस्‍ताव में बीमाधारक के पूर्व चिकित्‍सीय अवकाश पर 07 दिन से अधिक रहने के सम्‍बन्‍ध में स्‍पष्‍ट प्रश्‍न अंकित है। अत: यह मानने हेतु उचित आधार है कि यह तथ्‍य बीमा पालिसी के लिए बीमा कम्‍पनी हेतु महत्‍वपूर्ण सूचना है। अत: इस सन्‍दर्भ में बीमा कम्‍पनी को गलत सूचना देकर प्राप्‍त बीमा पालिसी से सम्‍बन्धित बीमा दावा को रिपुडिएट करने का बीमा कम्‍पनी को माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय के उपरोक्‍त निर्णयों में प्रतिपादित सिद्धान्‍त के आधार पर अधिकार प्राप्‍त है। ऐसी स्थिति  में  बीमित

 

-10-

व्‍यक्ति का बीमा पालिसी जारी होने के पूर्व बीमा कम्‍पनी द्वारा मेडिकल कराये जाने के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के पति ने प्रश्‍नगत दोनों बीमा पालिसी प्राप्‍त करने हेतु महत्‍वपूर्ण तथ्‍य नहीं छिपाया है। यदि प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के पति ने उपरोक्‍त अवधि में लम्‍बे समय तक चिकित्‍सीय अवकाश पर रहने के सम्‍बन्‍ध में सही सूचना उपलब्‍ध कराया होता तो निश्चित रूप से बीमा कम्‍पनी उक्‍त के प्रकाश में विशेष परीक्षण उनका कराती, परन्‍तु उन्‍होंने अपने चिकित्‍सीय अवकाश के सम्‍बन्‍ध में महत्‍वपूर्ण तथ्‍य छिपाया है। अत: ऐसी स्थिति में बीमा कम्‍पनी द्वारा उनका मेडिकल कराये जाने के आधार पर बीमा कम्‍पनी को बीमा दावा रिपुडिएट किये जाने से वर्जित नहीं किया जा सकता है क्‍योंकि पालिसी गलत कथन के आधार पर प्राप्‍त की गयी है।

उपरोक्‍त निष्‍कर्ष के आधार पर मैं इस मत का हूँ कि अपीलार्थी/विपक्षीगण ने प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी का दोनों बीमा दावा उचित आधार पर रिपुडिएट किया है और जिला फोरम ने परिवाद स्‍वीकार कर गलती की है। अत: जिला फोरम का आक्षेपित निर्णय व आदेश अपास्‍त कर परिवाद निरस्‍त किया जाना आवश्‍यक है।

उपरोक्‍त निष्‍कर्ष के आधार पर अपील स्‍वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय व आदेश अपास्‍त करते हुए परिवाद निरस्‍त किया जाता है।

अपील में उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

 

-11-

धारा-15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्‍तर्गत अपील में जमा धनराशि अर्जित ब्‍याज सहित अपीलार्थी/विपक्षीगण को वापस की जायेगी।

 

 

                (न्‍यायमूर्ति अख्‍तर हुसैन खान)           

                    अध्‍यक्ष             

 

जितेन्‍द्र आशु0

कोर्ट नं0-1

 

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN]
PRESIDENT

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