प्रकरण क्र.सी.सी./13/311
प्रस्तुती दिनाँक 19.12.2013
अंगारक देव देशमुख, पिता-श्री मोहत कुमार देशमुख, आयु लगभग 30 वर्ष, निवासी-एस.एम.10, पद्मनाभपुर, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.) - - - - परिवादी
विरूद्ध
1. श्री बसंत कुमार कटारिया (जैन), आ.स्व चम्पालाल कटारिया, आयु लगभग 56 वर्ष
2. ऋषभ बिल्डर्स, द्वारा-प्रो.बसंत कुमार कटारिया, कार्यालय-ऋषभ नगर, जिला कार्यालय दुर्ग के पीछे, कसारीडीह, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.) - - - - अनावेदकगण
आदेश
(आज दिनाँक 10 मार्च 2015 को पारित)
श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष
परिवादी द्वारा अनावेदकगण से भवन निर्माण कर अभिकथित भवन का कब्जा परिवादी को सौंपे अन्यथा स्थिति में उक्त अधूरे निर्माण कार्य को पूर्ण करने में जो लागत राशि 19,50,000रू. मय ब्याज, वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।
परिवाद-
(2) परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि अनावेदकगण भवन निर्माण कार्य ठेके में करते है। परिवादी के द्वारा अपने 2580 वर्ग फीट भूखण्ड पर 900रू. प्रति वर्गफुट निर्मित बिल्ड अप एरिया की दर से तीन वर्ष की अवधि के भीतर उच्च श्रेणी का भवन निर्माण तथा भवन के लिए उच्च श्रेणी के संपूर्ण फिटिंग्स लगाकर प्रदान करने का मौखिक करार किया गया था, चूंकि परिवादी के पिता एवं अनावेदकगण के बीच पूर्व से मैत्रीपूर्ण संबंध थे इसलिए दि.04.07.2008 से लेकर दि.17.12.2008 तक की अवधि में कुल 25,14,000रू. अनावेदकगण को परिवादी द्वारा भुगतान किया गया। अनावेदकगण के द्वारा परिवादी को यह वचन दिया गया था कि बिल्ड अप एरिया के मुताबिक जो भी लेना-देना होगा, उसे निपटा लिया जावेगा। अनावेदकगण द्वारा करार की शर्तों को भंग करते हुए विहित तीन वर्षों के भीतर भवन निर्माण कार्य पूरा नहीं किया गया, अनावेदकगण के द्वारा जितना भी कार्य किया गया व उस कार्य में जो मटेरियल उपयोग किया गया वह गुणवत्ताहीन एवं अत्यंत निम्नस्तर का था।
(3) परिवाद इस आशय का भी प्रस्तुत है कि अनावेदकगण द्वारा ले आउट में प्रदर्शित भूखण्ड के सामने की रोड की चैड़ाई कम कर एवं ऋषभ नगर में नियम विरूद्ध मंदिरों का निर्माण किया गया तथा अन्य अनियमितताएं की गई। परिवादी के द्वारा अनावेदकगण को अधिवक्ता मार्फत नोटिस प्रेषित किया गया, जिसका जवाब अनावेदकगण के द्वारा दि.19.11.11 के भेजते हुए परिवादी के भूखण्ड पर भवन निर्माण कार्य की लागत 47,00,000रू. बताई गई तथा चंूकि परिवादी के द्वारा संपूर्ण राशि अदा नहीं की गई है, इसलिए कार्य बंद कर दिए जाने का उल्लेख किया गया। अनावेदक के द्वारा आग्रह किए जाने पर परिवादी के द्वारा अपने पिता के साथ अनावेदक कार्यालय मे संपर्क किया गया। अनावेदक के द्वारा भवन निर्माण की सामग्री की कीमतों मे वृद्धि होने के कारण, परिवादी द्वारा प्रदान की गई राशि के अतिरिक्त 7,00,000रू. का भुगतान करने पर एक वर्ष के भीतर सभी कार्य (परिवाद पत्र कंडिका 8 ए से के) पूर्ण कराकर प्रदान कर देने का वचन दिया गया, जिसे परिपालन स्वरूप परिवादी के द्वारा दि.28.08.12 को चेक के माध्यम से 7,00,000रू. का भुगतान अनावेदक के पक्ष मे कर दिया गया। परिवादी के द्वारा इस प्रकार कुल 32,14,000रू. का भुगतान अनावेदक को किया जा चुका है किंतु अनावेदक के द्वारा अपने वचन के अनुसार एक वर्ष के भीतर भवन निर्माण कार्य पूर्ण नहीं किया गया, आग्रह करने पर शीध्र भवन निर्माण कार्य पूर्ण कर प्रदान कर दिए जाने का आश्वासन दिया जाकर टाल- मटोल किया जाता रहा। अनावेदकगण द्वारा अभिकथित भवन में कचरा एवं फालतू सामानों को भरकर रखा गया है, जिससे परिवादी के अर्द्ध निर्मित भवन को क्षति पहुंच रही है।
(4) परिवाद इस आशय का भी प्रस्तुत है कि अनावेदकगण के द्वारा अभिकथित भवन का कब्जा नहीं सौंपने से परिवादी अपने भवन के उपयोग व उपभोग से वंिचत हो गया है, जिसके लिए परिवादी, अनावेदकगण से प्रतिदिन दो हजार रूपये की दर से क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकारी है। अनावेदकगण द्वारा भवन निर्माण पूर्ण नहीं करने से पिछले वर्षों में भवन निर्माण सामग्री जो इस भवन निर्माण के उपयोग में आना है, में मूल्यों में काफी वृद्धि होने से अपूर्ण भवन को फिटिंग्स सहित पूर्ण होने में लगभग 19,50,000रू. का अतिरिक्त खर्च करना पड़ेगा, जिसे परिवादी अनावेदक से प्राप्त करने का अधिकारी है। इस तरह अनावेदकगण द्वारा अभिकथित भवन को पूर्ण कर परिवदाी को कब्जा प्रदान नहीं किया जा कर सेवा में कमी एवं व्यवसायिक कदाचरण किया गया है। अतः परिवादी को अनावेदकगण से भवन निर्माण कर अभिकथित भवन का कब्जा परिवादी को सौंपे अन्यथा स्थिति में उक्त अधूरे निर्माण कार्य को पूर्ण करने में जो लागत राशि 19,50,000रू. मय ब्याज, साथ ही दि.27.08.13 से 18.12.13 तक प्रति माह 2,000रू. की दर से क्षतिपूर्ति राशि दिलाए जाने व अन्य अनुतोष दिलाया जावे।
जवाबदावाः-
(5) अनावेदक का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि अनावेदकगण भवन निर्माण का कार्य ठेके में करते हैं। परिवादी के मकान के निर्माण हेतु 900रू. प्रतिवर्ग फुट बिल्ड अप एरिया के हिसाब से कीमत अदा किया जाना तय नहीं हुआ था बल्कि भवन निर्माण हेतु 47,00,000रू. की रकम तय की गई थी। परिवादी के द्वारा भवन निर्माण सामग्री की कीमतों की वृद्धि की राशि के भुगतान का दायित्व परिवादी के द्वारा स्वीकार किया गया था। परिवादी के द्वारा अनावेदक को कुल 32,14,000रू. का भुगतान किया गया है तथा 14,86,000रू दिया जाना शेष है। अनावेदकगण संबंधित क्षेत्र में विगत कई वर्षों से भवन निर्माण का कार्य सफलता पूर्वक करते आ रहे हैं। परिवादी के द्वारा भवन निर्माण कार्य 2008 से देखते आ रहें है तथा उनके द्वारा 2011 तक उक्त संबंध मे कोई शिकायत नहीं की गई, अनावेदक के द्वारा शेष राशि 21,86,000रू. की मांग किए जाने पर रकम अदायगी से बचने के लिए अनावेदकगण द्वारा दुर्भावनापूर्वक वर्ष 2011 मे अधिवक्ता के माध्यम से झूठे आरोप लगाते हुए प्रथम बार नोटिस प्रेषित किया गया, जिसका जवाब अनावेदकगण के द्वारा अपने अधिवक्ता के माध्यम से दिया गया। अनावेदकगण के द्वारा पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार ही रोड का निर्माण किया गया है, जिसके अनुसार रोड की चैड़ाई 25 फीट रखी गई है। सोसायटी के अन्य रहवासियों की इच्छा एवं सहमति से खाली भूमि पर उनके द्वारा कराया गया है। परिवादी के द्वारा भवन निर्माण की शेष राशि 14,86,000रू. अदा न किए जाने के कारण भवन निर्माण कार्य रूका है, जिसके लिए आवेदक स्वयं जिम्मेदार है। इस प्रकार अनावेदक आवेदक, को शेष राशि 14,86,00रू एवं उक्त राशि पर दि.16.10.08 से रकम अदायगी तक 18 प्रतिशत की दर से ब्याज तथा परिवादी के द्वारा रकम भुगतान मे विलंब करने के कारण निर्माण सामग्री एवं मजदूरी मे हुई मूल्य वृद्धि की राशि 10,00,000रू. का भुगतान कर दिए जाने की स्थिती में 6 माह के भीतर परिवादी को भवन पूर्ण कर कब्जा सौंपने को तैयार है, अनावेदक द्वारा परिवादी के प्रति सेवा मे कमी नहंी की है परिवादी का दावा सव्यय निरस्त किया जावे।
(6) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-
1. क्या परिवादी, अनावेदकगण से भवन निर्माण कर अभिकथित भवन का कब्जा परिवादी को सौंपे अन्यथा स्थिति में उक्त अधूरे निर्माण कार्य को पूर्ण करने में जो लागत राशि 19,50,000रू. मय ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी है? हाँ
2. अन्य सहायता एवं वाद व्यय? आदेशानुसार परिवाद स्वीकृत
निष्कर्ष के आधार
(7) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है।
फोरम का निष्कर्षः-
(8) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह पाते है कि पक्षकारों के मध्य निमार्ण कार्य को लेकर मौखिक बातचीत हुई थी, क्योंकि पक्षकार के मध्य उस समय अच्छे सम्बंध थे।
(9) परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में मुख्य आधार यह बताया है कि अनावेदकगण ने निर्माण कार्य में अत्यधिक देरी की, निर्माण में निम्न गुणवत्ता की सामग्री लगाई और अत्यधिक राशि लेने के बाद भी काम पूरा नहीं किया और जब परिवादी ने शिकायत की तो अतिरिक्त रकम की मांग की गई, तब परिवादी ने 7,00,000रू. और दिया, इस प्रकर 25,14,000रू. के अतिरिक्त परिवादी ने 7,00,000रू. और दिये, तब पक्षकारों के मध्यम एक वर्ष के भीतर परिवाद पत्र की कंडिका-8 के अनुसार कार्य करने की बात अनावेदकगण द्वारा कही गई, परंतु 32,14,000रू. देने के बाद भी अनावेदकगण ने निर्माण कार्य चालू नहीं किया, बल्कि अर्द्ध निर्मित मकान में कचरा और फालतू सामान भरकर रखा, जिससे मकान में क्षति हुई और यदि अब परिवादी अलग से निर्माण कार्य कराता है तो उसे 19,50,000रू. का अतिरिक्त खर्च करना पड़ेगा।
(10) अनावेदकगण ने यह बचाव लिया है कि दावा फोरम के क्षेत्राधिकार में नहीं है, विधि और साक्ष्य के जटिल प्रश्न हैं, अतः इस फोरम में मामला चलने लायक नहीं है। परिवादी के विवाद के संबंध में अन्य व्यक्तियों का साक्ष्य लेना जरूरी है और विवाद संक्षिप्त विचारण के तहत नहीं है, परिवादी ने अपने वाद के संबंध में साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किये हंै, गुणवत्ता के संबंध में भी विशेषज्ञ रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की है और शेष निर्माण कार्य में अधिक रकम लगने से बचने के लिए झूठा दावा प्रस्तुत किया है, क्योंकि प्रारंभ में ही निर्माण कार्य 47,00,000रू. होना तय हुआ था, जिसकी पूर्ण राशि परिवादी ने अनावेदक को नहीं दी और अनावेदक को परिवादी से 14,86,000रू. प्राप्त करना शेष है, जिससे बचने के लिए यह आधारहीन दावा प्रस्तुत किया है।
(11) प्रकरण के अवलोकन से हम यह पाते हैं कि परिवादी ने अधिवक्ता के माध्यम से अनावेदकगण को एनेक्चर-6 की नोटिस दी थी, उक्त नोटिस में परिवादी द्वारा संपूर्ण विवरण प्रस्तुत किया गया था कि 2600 वर्गफिट में 900रू. प्रति वर्गफिट की दर से निर्माण कार्य किया जाना था, जिसके संबंध में परिवादी ने अनावेदकगण को ड्राॅईंग और स्वीकृत नक्शा सौंपा था और उक्त एनेक्चर-6 के बताए अनुसार परिवादी ने 25,14,000रू. अनावेदकगण को अदा किये थे, परंतु अनावेदकगण ने स्तरहीन निर्माण सामग्री का उपयोग किया गया। मौखिक करार के अनुसार निर्माण कार्य तीन वर्ष के भीतर होना था, वह भी सम्पन्न नहीं हुआ और जब परिवादी ने अनावेदकगण से शिकायत की तो अनावेदकगण ने यह कह दिया कि भवन निर्माण की लागत की सामग्री की कीमतों में वृद्धि हो गई है और इस प्रकार अतिरिक्त रकम की मांग की गई। परिवादी ने जो 25,14,000रू. की राशि की अदायगी की है, उक्त संबंध में अनावेदकगण ने उतने लागत का निर्माण कार्य किया जाना सिद्ध नहीं किया है, क्योंकि अनावेदकगण की ओर से न ही कोई दस्तावेज प्रस्तुत है और न ही कोई विशेषज्ञ रिपोर्ट प्रस्तुत है, जबकि परिवादी द्वारा एनेक्चर-19 के द्वारा विभिन्न फोटोग्राफ प्रस्तुत किये गये हैं, जिससे प्रथम दृष्टया यह सिद्ध हो जाता है कि निर्माण कार्य बिलकुल अधूरा है, जिसकी सम्पुष्टि एनेक्चर-18 के प्रमाण पत्र से भी होती है, जिसके अनुसार नेतराम साहू, इंजीनियर द्वारा विस्तृत रूप से प्रमाणित किया गया है कि निर्माण कार्य अधूरा है, निर्माण कार्य 5 से 6 वर्ष पुराना है, उक्त निर्माण को लापरवाही और छत में बजरी रेत इकट्ठा करने के कारण क्षति हुई है, मकान काफी क्षतिग्रस्त हो गया है। इस अखण्डित दस्तावेजी साक्ष्य एनेक्चर-18 में यह प्रमाणित किया गया है कि अनावेदक द्वारा जितना भी निर्माण कार्य किया गया है उसकी लागत केवल 8,46,035रू. है, इस एनेक्चर-18 में अब निर्माणकार्य को पूर्ण करने की लागत के संबंध में भी उल्लेख है, चूंकि अनावेदकगण द्वारा इस दस्तावेज के खण्डन में कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की गयी है, अतः एनेक्चर-18 प्रमाण पत्र एवं एनेक्चर-19 फोटोग्राफ पर अविश्वास किये जाने का कोई कारण प्रतीत नहीं होता है। परिवादी द्वारा अनावेदकगण को भेजे गये नोटिस एनेक्चर-6 के खण्डन में कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं है, अतः इन अखण्डित दस्तावेजों से यह सिद्ध होता है कि अनावेदकगण ने निर्माण कार्य में अत्यधिक देरी की और अधूरा निर्माण कार्य किया, जितनी राशि परिवादी ने अदा की उसके अनुपात में निर्माण कार्य भी नहीं किया और जब परिवादी ने शिकायत की तो उल्टा परिवादी पर ही आक्षेप लगा दिया कि निर्माण कार्य की राशि 47,00,000रू. तय हुई थी।
(12) इस प्रकार हम यह निष्कर्षित करने के समुचित आधार पाते हैं कि अनावेदकगण ने अभिकथित निर्माण कार्य में घोर सेवा में निम्नता एवं व्यवसायिक दुराचरण किया है, अनावेदकगण ने कहीं भी यह कारण नहीं बताया है कि उन्होंने निर्माण कार्य में इतनी देरी क्यों की, अनावेदकगण का यह कर्तव्य था कि यदि परिवादी निर्धारित समय पर उनके द्वारा अभिकथित रकम अदा नहीं कर रहा था तो उस संबंध में परिवादी को तत्काल नोटिस देते और बची रकम की मांग करते, परंतु अनावेदकगण ने ऐसा कोई भी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया है, जबकि परिवादी द्वारा अनावेदकगण को एनेक्चर-6 की नोटिस दी गई है, जिसके खण्डन में अनावेदकगण ने न ही कोई साक्ष्य प्रस्तुत की है और न ही उक्त नोटिस का जवाब देना सिद्ध किया है, जिससे यही निष्कर्षित करना उचित है कि परिवादी ने सत्य आधारों पर अनावेदकगण को नोटिस दी थी। अनावेदकगण को एनेक्चर-6 की नोटिस दी गई, परंतु चूंकि अनावेदकगण स्वयं गलती पर थे, इसलिए उन्होंने परिवादी को नोटिस का जवाब नहीं दिया।
(13) निर्माण कार्य में इतने अधिक वर्ष लगने से निश्चित रूप से निर्माण कार्य की सामग्री के मूल्य में वृद्धि होगी, पंरतु इस प्रकरण के अवलोकन से स्पष्ट है कि प्रमाण पत्र एनेक्चर-18 के अनुसार परिवादी ने जितनी भी राशि अनावेदकगण को अदा की उसके अनुपात में निर्माण कार्य नहीं किया गया, तब अनावेदकगण ने यह सिद्ध नहीं किया है कि उन्होंने बचत राशि का क्या किया, अनावश्यक रूप से इतना अधिक विलम्ब अनावेदकगण द्वारा निर्माण कार्य में किया गया है और इस स्थिति में हम परिवादी को मूल्य वृद्धि के फलस्वरूप राशि देने का जिम्मेदार भी नहीं पाते हैं।
(14) अनावेदकगण का व्यवसायिक दुराचरण एनेक्चर-6 की नोटिस द्वारा इस बिन्दु पर भी सिद्ध होता है कि एनेक्चर-6 के चरण क्र.5 में उल्लेखित है कि स्वीकृत ले आउट के अनुसार मकान के सामने 25 फिट रोड दर्शाई गई है, जबकि परिवादी के मकान के सामने 25 फिट की रोड ही नहीं है तथा जो जगह गार्डन और खुली भूमि के लिए छोड़ी गई थी, उस पर मंदिर का निर्माण करा दिया गया है। इस प्रकार परिवादी का तर्क है कि अनावेदकगण का निर्माण के संबंध कार्य शुरू से ही गलत रहे हैं और वे अपने कार्य में पारदर्शिता नहीं रखे।
(15) परिवादी का यह भी तर्क है कि अनावेदकगण ने निर्माण कार्य में जो भी सामग्री लगाया है वह गुणवत्ताविहीन और अत्यधिक निम्न स्तर की है, जिसके संबंध में एनेक्चर-18 के प्रमाण पत्र से सिद्ध होता है कि निर्माण कार्य का स्तर निम्न स्तर का है, जिसके विरोध में अनावेदकगण द्वारा कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की गई है, फोटोग्राफ एनेक्चर-19 से भी यही सिद्ध होता है कि अनावेदकगण का आशय निर्धारित अवधि में उच्च गुणवत्ता का निर्माण कार्य करने का बिलकुल नहीं था, बल्कि अनावेदकगण ने असत्य आधारों पर बचाव लिया है कि जब परिवादी से अतिरिक्त रकम की मांग की गई तब परिवादी ने 7,00,000रू. का भुगतान किया, परंतु इस बिन्दु का लाभ अनावेदकगण को दिया जाना उचित नहीं पाते है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति जब अपने मकान में इतनी बड़ी राशि 25,14,000रू. लगायेगा तब वह बिल्डर्स के हाथों फंस जायेगा और तब उसे आशा की किरण दिखती है कि उसके द्वारा अतिरिक्त राशि देने से बिल्डर्स निर्माण कार्य पूर्ण कर देगा तब उसके पास मजबूरी हो जाती है कि उसके द्वारा कुछ अतिरिक्त रकम बिल्डर्स को अदा करें और भवन का निर्माण कार्य पूरा करवाये।
(16) अनावेदकगण ने ऐसा कोई कारण प्रस्तुत नहीं किया है कि उनके द्वारा निर्मित उक्त भवन की गुणवत्ता यदि उच्चस्तरीय थी तो उस के संबंध में विशेषज्ञ रिपोर्ट क्यों प्रस्तुत नहीं की गई? परिवादी ने उसके द्वारा अदा की गई राशि के संबंध में समुचित दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत की है, अतः यह नहीं माना जा सकता कि इस विवाद को निराकृत करने हेतु विस्तृत साक्ष्य की आवश्यकता है, क्योंकि उक्त भवन निर्माण के संबंध में विस्तृत रिपोर्ट और फोटोग्राफ भी प्रस्तुत हंै, जिससे आसानी से निर्माण का अनुमान लगाया जा सकता है कि अनावेदकगण ने परिवादी से जितनी राशि प्राप्त की थी, उसके अनुपात में निर्माण कार्य कराया ही नहीं, फलस्वरूप यही निष्कर्षित किया जाता है कि बिना साक्ष्य के विवाद का निराकरण किया जा सकता है, फलस्वरूप अनावेदकगण की प्रारंभिक आपत्ति भी स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है।
(17) प्रकरण के अवलोकन से स्पष्ट है कि जहां अनावेदकगण ने परिवादी की मेहनत की गाढ़ी कमाई की इतनी मोटी राशि प्राप्त कर तीन वर्ष की अवधि में निर्माण कार्य सम्पूर्ण नहीं किया, वहीं 7,00,000रू. ले कर जो कार्य परिवाद पत्र के चरण क्र.8 के अनुसार एक साल में पूर्ण करने का वचन दिया था वह भी नहीं किया, अन्यथा स्थिति में अनावेदकगण अपने बचाव में निश्चित रूप से निर्माण कार्य की फोटोग्राफ प्रस्तुत करता और तत्संबंध में विस्तृत रिपोर्ट भी प्रस्तुत करता, इन परिस्थितियों में यह सिद्ध हो जाता है कि अनावेदकगण ने निर्माण कार्य को अधूरा किया और निर्माण हेतु सामग्री भी निम्न स्तर की लगाई, अन्यथा वे प्रमाण पत्र एनेक्चर-18 के खण्डन में अवश्य ही साक्ष्य प्रस्तुत करते।
(18) जब कोई अपने मेहनत की गाढ़ी कमाई की मोटी रकम अपने घर को बनाने के लिए लगाता है तो वह यही आशय रखता है कि उसको अपने गाढ़ी कमाई की इतनी मोटी रकम अपना घर निर्धारित अवधि में प्राप्त करने के लिए लगायेगा, जब अनावेदकगण ने ग्राहक को यह सपना दिखाया है कि वह उन्हें घर निर्माण कार्य करके देगा तो अनावेदक का यह कर्तव्य था कि जब परिवादी से इतनी मोटी रकम घर हेतु लगाई है तो उसे निर्धारित अवधि में निर्माण कार्य करना था। इतनी मोटी रकम अनावेदक द्वारा प्राप्त कर लेना और शीघ्रताशीघ्र निर्माण कार्य कर परिवादी को मकान का कब्जा न देना अपने आप में व्यवसायिक दुराचरण है और इस स्थिति में यदि अनावेदक के द्वारा कारित की गई देरी और गलतियों से निर्माण लागत में वृद्धि होती है तो उसकी जिम्मेदारी परिवादी पर अधिरोपित करना व्यवसायिक कदाचरण होगा।
(19) उपरोक्त स्थिति में हम परिवादी को उसके द्वारा प्रस्तुत न्यायदृष्टांत:-
1) बिरिग (रिट.) कमला सूद विरूद्ध मेसर्स डी.एल.एफ. यूनिवर्सल लिमिटेड, प्रथम अपील नं.557 आफ 2003 एवं प्रथम अपील नं.683 आॅफ 2003 (एन.सी.डी.आर.सी.)
का लाभ देना उचित पाते हैं तथा अनावेदकगण को उनके द्वारा प्रस्तुत न्यायदृष्टांत:-
1) जेपी ब्रदर्स मेडिकल पब्लिशर्स प्रा. लि. विरूद्ध बैंक आफ इंडिया, निर्णय दि.26.07.1994, ओरिजनल पिटीशन (एन.सी.डी.आर.सी.)
2) निवास स्पीनिंग मिल्स लि. विरूद्ध केनबैंक म्यूचवल फण्ड, निर्णय दि.11.09.2001, ओरिजनल पिटीशन नं.256 आफ 2000 (एन.सी.डी.आर.सी.)
3) सिनको इंडस्ट्रीज़ विरूद्ध स्टेट बैंक आफ बिकानेर एण्ड जयपुर, निर्णय दि.15.01.2002 सिविल अपील, (सुप्रीम कोर्ट आफ इंडिया)
4) मेगना नन्द विरूद्ध हरियाणा अर्बन डेवेल्पमेंट अथाॅरिटी, निर्णय दि.02.07.2012, रिवीजन पिटीशन नं.1173 आॅफ 2012, (एन.सी.डी.आर.सी.)
का लाभ देना उचित नहीं पाते हैं।
(20) उपरोक्त साक्ष्य विवेचना से हम यह निष्कर्षित करते हैं कि अनावेदकगण ने निश्चित रूप से निर्माण कार्य में अत्यंत देरी की है, निर्माण में निम्न गुणवत्ता का कार्य किया है वह भी अधूरा कार्य किया है और परिवादी को समयावधि में निर्माण कार्य पूरा करके आधिपत्य नहीं सौपा है और इस प्रकार सेवा में घोर निम्नता एवं व्यवसायिक दुराचरण किया है।
(21) फलस्वरूप उपरोक्त संपूर्ण विवेचना के आधार पर हम परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार करते है और यह आदेश देते हैं कि अनावेदकगण, परिवादी को एक माह के भीतर पूर्व में अदा की जा चुकी राशि में ही अभिकथित भवन को परिवाद पत्र की कंडिका-8 में दर्शाये विवरण अनुसार निर्माण कार्य कर उक्त भवन का कब्जा परिवादी को सौंपे अन्यथा स्थिति में अनावेदक क्र.1 व 2 संयुक्त एवं अलग-अलग रूप से, उक्त अधूरे निर्माण कार्य को पूर्ण करने में जो लागत परिवादी द्वारा अनुमनित की गई है जो कि 19,50,000रू. (उन्नीस लाख पचास हजार रूपये) है, परिवादी को अदा करेंगे। अनावेदक क्र.1 एवं 2 संयुक्त एवं अलग-अलग रूप से, परिवादी को वाद व्यय के रूप में 10,000रू. (दस हजार रूपये) भी अदा करेंगे।